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जनता को भाषण और अभिभाषण के बीच का भेद समझाना होगा

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जनता को भाषण और अभिभाषण के बीच का भेद समझाना होगा

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

हे बुद्धिमान किशन ! बुद्धि के घोडों की रास तुम्हीं थाम के रखो और देश की जनता को भाषण और अभिभाषण के बीच का भेद समझाओ क्योंकि इस जनता को लम्बी-लम्बी फेक कर कोई भी भरमा सकता है.

ये बेचारी जनता अच्छे दिन की चाह में महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार सब कुछ सहन कर रही है और इस आशा में जिन्होंने भी लोकसभा में मोदी के नाम पर बीजेपी और उनके सहयोगी दलों को वोट भी दिया था, वे वाकई काटजू के बताये हुए मूर्खोंं की कतार में सबसे आगे खड़े रहने वाले लोग थे. हां, जिन्होंने सांप्रदायिक कारणों से मोदी को वोट दिया वे निश्चित रूप से शातिर दिमाग माने जायेंगे क्योंकि आजादी के पहले से जिस हिन्दू शासन का सपना वे पाले हुए थे, उस शासन को उन्होंने स्थापित कर दिखाया !

मोदी एक अशिक्षित, कुसंस्कारी, असंवेदनशील (40 वर्ष पत्नी को नहीं स्वीकारा), चापलूसी पसंद, अवसरवादी, विश्वासघाती और राजनीति का नायाब नमूना (नेता नहीं) है. उसे हर वह चीज जो अच्छी है, वह बुरी लगेगी. जब किसी मुल्क के बुरे दिन आते हैं तो उसके औसत बुद्धि के कुंठित मानसिकता वाले जातिवादी लोग इसी तरह के नेता का चुनाव करते हैं. यह एक फेज होता है, जिसके दौरान वह राष्ट्र आतंरिक कलह से जूझता है. फिर एक झटके में ऐसे नेता को उखाड़ फेंकता है और फिर से आगे बढ़ जाता है. भारत अभी सिर्फ मुर्ख नेता चुनने वाले दौर से गुजर रहा है. आंतरिक कलह होने की तैयारियां शुरू हो चुकी है, पर अभी आंतरिक कलह होने में थोड़ा समय बाकी है. उसके बाद ऐसे सभी नेताओं को जहन्नुम भेज दिया जायेगा और भारत फिर से आगे बढ़ेगा (जैसे पिछले 70 सालों में बढ़ा था).

लोकसभा में जिन मूर्खों ने भी जातिवाद या सांप्रदायिकता के नाम पर मोदी के लिये बीजेपी को वोट दिया है, उन्होंने ऐसा पाप किया है कि उनकी आने वाली पीढ़ियांं शर्म के मारे कभी यह स्वीकार ही नहीं करेंगी कि उनके पूर्वजों ने यह पाप किया था. ठीक उसी तरह जैसे आज कोई यह नहीं स्वीकार नहीं करता कि अंग्रेजों के शासन में क्रान्तिकारियों के ऊपर गोली चलाने वाले पुलिस का अफसर या सिपाही उसका पूर्वज था.

मोदी सरकार के देश को बर्बाद करने वाले कुछ काम –

भारत के सबसे बड़े शत्रु देशों अमेरिका-चीन-पाकिस्तान के सामने कमर तक झुक रहे हैं जबकि कांग्रेस की सरकार के समय यही लोग दुश्मनों के छक्के छुड़ाने की बात करने वाली सरकार बनाने की बातें करते थे.

लगभग ऐसे 1200 कानूनों को चुपचाप बदल दिया गया, जो एक आम नागरिक को स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अलावा देश में रहने और व्यापार करने अथवा अपनी स्वैच्छिक आजीविका कमाने और देश में रहने संबंधी मौलिक अधिकार शामिल है.

सत्ता में आने से पहले समान नागरिक कानून की बात करने वाले ये लोग एनआरसी का कानून लेकर आये हैं, जिसमें देश के एक पूरे तबके के साथ उनके धर्म के आधार पर भेदभाव किया गया है, जबकि देश का संविधान अनेकता में एकता और सबको समान मौलिक अधिकार पर बनाया गया है और साथ ही ये वादा किया गया है कि किसी से भी धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जायेगा.

धारा 370 में संशोधन करने से पहले जो लोग कश्मीर में शांति एकता और सामान नागरिक संहिता की बातें करते थे, वे अब पुरे कश्मीर को सेना के बल द्वारा नाजायज तरीके से कैद करके उनके समस्त अधिकारों का हनन कर रहे हैं.

चुनाव के भाषणों में जिन अल्पसंख्यको से हिंदुत्व के नाम पर वोट मांंगा गया था, आज जीतने के बाद वे उन्हीं अल्पसंख्यकों के खिलाफ विष वमन करते हैं और उनके खिलाफ दंगे भड़काने वाली नीति का प्रयोग भी कर रहे हैं, ताकि उनका सफाया आसानी से हो जाये और किसी को जवाब भी न देना पड़े.

4G, 5G का आबंटन उन कम्पनियों को किया गया जिन्होंने मोदी के प्रचार में पैसा लगाया और बीजेपी को सबसे ज्यादा चन्दा भी दिया. और इनकी कम्पनियों के फायदे के लिये बीएसएनएल और दूसरी सरकारी कम्पनियों को जबरन घाटे में लाया जा रहा है और सरकारी कम्पनियों को इनके हाथों में बेचा जा रहा है.

बीजेपी को चंदा देने वाले लोगों का कर्ज जानबूझकर एनपीए में डाला जा रहा है जबकि उनके पास से आसानी से वसूली हो सकती है. मगर ऐसा न करके उन्हें विदेशों में भगाकर वहां सेटल किया जा रहा है और इस तरह आम जनता का पैसा लुटाया जा रहा है ताकि वे आगे भी बीजेपी को चंदा देते रहे.

किसानों को न तो न्यूनतम समर्थित मूल्य दिया जा रहा है और न ही उनके होने वाले नुकसान की भरपाई ठीक से की जा रही है. किसानों के ऋण माफ़ करने की जगह किसानों पर गोलियांं चलवाई जा रही है ताकि किसान डरकर रहे और विरोध न करे.

अर्थजगत में नव-उदारवाद, निजीकरण-विनिवेशीकरण-विदेशीकरण की रफ़्तार एकदम से इतनी तेज कर दी गयी है कि आम आदमी संभाल ही नहीं पा रहा. न तो वो समझ पा रहा है और न ही काम कर पा रहा है. सरकार की गलत नीतियों और अंधाधुंध टैक्स थोपने की नीति से रोजगार चौपट हो रहे हैं. जीडीपी लगातार गिर रही है और अर्थव्यवस्था डूबने की कगार पर पहुंंच गयी है, जिसे छुपाने के लिये सरकारी संपत्तियों को बेच-बेचकर सरकार चलायी जा रही है, जिससे अभी लोगों को पता नहीं लग पा रहा लेकिन जो इसे समझते हैं, वे अच्छे से समझ रहे हैं कि देश बर्बादी की तरफ बढ़ रहा है (हो सकता है थोड़े दिनों में पाकिस्तान वाली हालत हो जाये और फिर हमे विश्व बैंक से भीख मांगनी पड़ेगी).

सरकार अपने कॉर्पोरेट दोस्तों के स्वार्थों को हर हाल में पूरा कर रही है. और इसलिये हर जनकल्याण के की तारीख 2022 की बतायी जा रही है, जबकि इतना समय तो नेहरूजी को तब भी नहीं लगा था जब देश सक्षम नहीं था. 2000 वर्ष के गुलाम, जिद्दी और अंध-धार्मिक लोगों की अटल मान्यताओं को तोड़कर देश का विकास करना नेहरूजी के लिये उतना ही मुश्किल था, जितना किसी भी संतान का पालन-पोषण करके उसे उच्च शिक्षा दिलाकर कमाने योग्य बनाना. जबकि मोदी के लिये देश को बनाये रखना उतना ही सरल है, जितना उस सक्षम संतान द्वारा अपनी नौकरी को बनाये रखने के लिये कम्पनी में अपनी सेवायें देकर उसे प्रगति करवाना. लेकिन मोदी इसमें भी असफल हो चुके हैं (कांग्रेस ने उन्हें एक सक्षम देश दिया मगर मोदी उसे बर्बाद कर रहा है).

देश में आतंकवाद फैलाने वाले पाकिस्तान में मोदी बिन बुलाये पहुंंच जाते हैं और शत्रुओं के पांवों में झुककर बिरयानी खाकर चुपचाप लौट आते हैं और विस्तारवादी नीति वाले चीन के साथ व्यापारिक समझौते करके देश की अर्थ व्यवस्था को डूबा रहे हैं. और साथ ही जिन बांग्लादेशियों को घुसपैठिया कहकर हड़काया जाता था उन्हींं बांग्लादेशियों के देश बांग्लादेश को हजारों-लाखों एकड़ जमीनें फ्री में गिफ्ट दी जा रही है, जबकि बात घुसपैठियों को भगाने की करते थे.

एक तरफ जहांं घर-वापसी के नाम पर जबरन धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है और ऐसा करवाने वालों के खिलाफ मोदी मौनी बाबा बने हुए है, वहीं दूसरी तरफ देश में गाय के नाम पर देश में सांप्रदायिकता फैलायी जा रही है. और भी तरीकों से अन्य सभी धर्मों पर हिन्दू धर्म थोपा जा रहा है, जो कि संवैधानिक दृष्टी से एकदम गलत है (वो उपरोक्त में लिख चूका हूंं).

अंग्रेजों के काल में जो राम मंदिर सिर्फ डेढ़ फुट का चबूतरा था, उसकी ज़गह पूरी मस्जिद को हड़पने की कोशिश की जा रही है और जबरन सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है ताकि हिन्दुओं की वोट बैंक पक्की रहे.

निर्मल भारत का नाम बदलकर स्वच्छ भारत करके भी देश में स्वच्छता नहीं आयी और घर-घर शौचालय बनवाने की बात की गयी लेकिन वे सिर्फ कागजों में ही बनाये गये.

मोदी की शब्दाडम्बर की ढब तो सरकार-2 में आते ही बदल गयी लेकिन असली एजेंडा आज भी वही है जिसे बड़ी मुस्तैदी से लागू किया जा रहा है. ऐसे न जाने कितने ही काम है जिसमें से अगर हरेक का विवरण देने लगूं तो पूरी एक किताब लिखनी पड़ेगी.

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