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गांधीजी के सही मार्गदर्शक कौन ?

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गांधीजी के सही मार्गदर्शक कौन ?

2 अक्टूबर, 2014 को गांधी जयंती के दिन प्रधानमंत्री ने मंदिर मार्ग थाना और वाल्मीकि मोहल्ले में झाड़ू लगाकर स्वच्छता अभियान की शुरूआत की और सभी से आह्वान किया कि हम बापू के 150वीं जयंती पर बापू के सपने को पूरा करें. प्रधानमंत्री ने उपस्थित लोगों को हाथ ऊपर करके कसम खिलाया कि ‘हम गंदगी नहीं करेंगे और न किसी को करने देंगे. साल में 100 घंटे यानी हर हफ्ते दो घंटे श्रमदान करके स्वच्छता के इस संकल्प को चरितार्थ करेंगें.’

उन्होंने 9 लोगों सचिन तेंदुलकर, योगगुरू बाबा रामदेव, कांग्रेस के नेता शशि थरूर, कमल हसन, उस समय गोवा के राज्यपाल मृदुला सिन्हा, सलमान खान, प्रियंका चोपड़ा, तारक मेहता के उल्टा चश्मा के पूरी टीम को सोशल साईट के द्वारा निमंत्रण दिया. प्रधानमंत्री जी कहना था कि ये लोग और 9-9 लोगों को आमंत्रित करेंगे. फिर वे लोग भी 9-9 लोगों को आमंत्रित करेंगे और यह चैन चलती रहेगी.

प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम में अमीर खान भी ने हिस्सा लिया था और प्रधानमंत्री के साथ मंच पर खड़े होकर कसम भी खाई. कसम खाने वाले लोग इसके बाद स्वच्छता में कितना श्रमदान किये यह तो पता नहीं, यह भी पता नहीं कि 9 लोगों कि चैन कि संख्या कहां तक पहुंची लेकिन सेलीब्रेटिज ‘झाड़ू लगाते हुए’ फोटो शूट कराते हुए देखे गये.

कई बार फोटो देखकर या सोशल मीडिया से पता चलता था कि किस तरह से साफ स्थानों पर भी यह सेलीब्रेटिज झाड़ू लगा रहे हैं. इलाहाबाद कुंभ मेले में प्रधानमंत्री ने सफाई कर्मचारियों के पैर धोए लेकिन सफाई कर्मचारियों कि वास्तविकता किसी से छुपी हुई नहीं है. एक तरह से कहा जाये तो यहां गांधी के नाम पर गांधी के विचारों को ही तिलांजली दी जा रही है. गांधी ने कहा कि सदा सत्य बोलो लेकिन यह लोग स्वच्छता के नाम पर झाड़ू पकड़कर, फोटो शूट कराकर गांधी के ही विचारों को मार रहे हैं.

इस वर्ष गांधी के 150वीं जयंती के अवसर पर हिन्दुस्तान को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया और स्वच्छता आन्दोलन को एक सफल कार्यक्रम बताया गया. स्वच्छता आंदोलन कितना सफल और असफल रहा, इसको हम अपने आस-पास देखकर जान सकते हैं और गांधी के विचारों से इस घोषणा की तुलना कर सकते हैं.

सबसे खास बात यह है कि इन पांच सालों में जो स्वच्छता के असली सिपाही हैं, उनका क्या हाल है ? उनकी जिन्दगी पांच सालों में कितनी बदली ? वह किन हालातों में रहते हैं, यह सरकार ने जानने कि कोशिश नहीं की. कभी स्वच्छता के नाम पर सफाई कर्मचारियों की सम्मान की बात हुई भी है तो हम प्रधानमंत्री द्वारा जिन कर्मचारियों के पैर धोए गए उनके बयानों से हम जान, समझ सकते हैं, या दिल्ली विश्वविद्यालय में लम्बे समय से ठेके पर कार्यरत सफाई कर्मचारी मुन्नी और फूलवती की बातों से समझा जा सकता है.

प्रधानमंत्री द्वारा पैर धुलवाने वाले कर्मचारी होरी का कहना है कि ‘बड़े आदमी से पैर धुलवाना उनके लिए शर्मनाक था, उस दिन वह अच्छे से स्नान किये. सम्मान के लिए वह आभारी है लेकिन इससे हमारे जीवन में कोई अंतर नहीं आया है. हम पहले भी सफाई का काम कर रहे थे और आज भी  कर रहे हैं, यह काम मुझे बिलकुल पसंद नहीं है. काम कुछ भी हो पक्का होनी चाहिए. प्रधानमंत्री पैर धोने की जगह नौकरी देते तो अच्छा होता.’

ज्योति का कहना है कि सम्मान से काम नहीं चलता. हमें बात करने का मौका मिलता तो हम प्रधानमंत्री से नौकरी मांगते. मेरे लाल कहते हैं कि प्रधानमंत्री हमसे एक मिनट के लिए मुश्किल से मिले. हमें ठीक से बात करने का मौका नहीं मिला. वह चाहते हैं कि वेतन वृद्धि हो.’

इसी तरह से दिल्ली विश्वविद्यालय में काम करने वाली मुन्नी और फूलवती सन् 2002 और 2008 से सफाई का काम कर रही थी. इन सफाई कर्मचारियों को 1 जनवरी, 2019 से 15070 रुपया कि जगह 13350 रुपया दिया जाने लगा. इन्होंने जब वेतन कटौती के बारे में आवाज उठाई तो 1 अगस्त, 2019 को इनको काम से निकाल दिया. इसके पहले 1 मई, 2019 को भी दिल्ली विश्वविद्यालय में बड़े पैमाने पर सफाई कर्मचारियों को काम से निकाला गया था.

गांधी जयंती की 150वीं वर्षगांठ और स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए सरकारी स्कूलों में छात्रों और अध्यापकों को सुबह 6.30 बजे स्कूल बुलाया गया था. इन छात्रों, अध्यापकों को ‘फिट इंडिया’ (FIT INDIA Plogging Run) के तहत सड़कों पर 2 कि.मी. की दौड़ के साथ-साथ कूड़े (प्लास्टिक) उठाने को कहा गया, इसके लिए अभिभावक से नो अब्जेकशन फॉर्म भी भरवाये गये.

भारत के शहरों और महानगरों में हर दिन पीठ पर प्लास्टिक के बोरे लादे या ठेला रिक्शा के साथ बच्चे, बूढ़े, नौजवान, महिलाएं सुबह-सुबह ही दिख जाते हैं. जो सुबह में नहीं उठा पाते, वह शाम के समय या रात में बाजार बंद होने के बाद भी कूड़े उठाते नजर आते हैं. इन लोगों के कपड़े गंदे, बाल बेतरतीब, पैर में पुराने चप्पल या फटे-पुराने जूते होते हैं जो कि हर मुहल्ले, गली, बाजार, कुड़े के ढेर, गंदे स्थानों पर भी जा कर कूड़े को उठाकर अपनी बोरी में डालते हैं. इन लोगों को लोग शक की नजर से देखते हैं. जब वह गल्ली, मुहल्ले में जाते हैं तो लोग ऐसे घूरते हैं जैसे कोई चोर हो, लोग आते-जाते उनसे छू (टच) न जाये, इसका ध्यान रखते हैं।

अंसार (बदला हुआ नाम) पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के रहने वाले हैं. अंसार 8 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. बंगाल में भूख से एक भाई और एक बहन की मृत्यु के बाद 1972 या 73 में अपने बड़े भाई-बहन और मां के साथ दिल्ली आ गये. दिल्ली में उन्होंने लोहे के पुल के पास झुग्गी बनाई और कूड़ा बिनने लगे. उनकी बस्ती को 1976 में तोड़ दिया गया. फिर वह जहांगीरपुरी आ गये, जहां पर उनका पूरा परिवार कूड़ा बीनने का काम करता रहा. कूड़ा बीनते बीनते उनकी मां कि 1993 में मृत्यु हो गई.

समय के साथ-साथ अंसार की भी शादी हुई उनके बच्चे हुए 45 साल में कूडा़ बीनकर उन्होंने अपने बच्चों की शादी की और जहांगीरपुरी में एक छोटी-सी झुग्गी बनाई. उनके पास धन के रूप में एक रिक्शा है जो कि उनकी आय का मुख्य साधन भी है. अंसार सुबह घर से अपनी सम्पत्ति (रिक्शा) को लेकर निकलते हैं और दिल्ली के सड़कों पर तब तक घूमते रहते हैं जब तक उनके रिक्शे पर रखा हुआ प्लास्टिक के 100 किलो का बड़ा थैला नहीं भर जाये, वह घर वापस नहीं लौटते. इसके लिए उनको 20-30 किलोमीटर भी रिक्शा चलाना पड़ता है.

अंसार बताते हैं कि वह सिंधु बॉर्डर से लेकर वजीराबाद पुल, मधुबनचौक, पीरागढ़ी, आजादपुर, मॉडल टाउन सभी जगह कूड़ा बीनने के लिए जाते हैं. अंसार से पूछने पर कि ‘क्या कभी कूड़ा बीनने में किसी तरह की परेशानी होती है ?’ अंसार भावुक हो जाते हैं और दो मिनट बाद बताते हैं कि ‘हां अभी चार-पांच माह पहले उनको वजीराबाद के जगतपुर में चोरी के आरोप में पकड़ कर बुरी तरह पीटा गया. 100 नं. काल करने पर भी पुलिस नहीं आई. उन्होंने घर पर फोन किया तो घर वाले और पड़ोसी जाकर उन्हें बचा कर लाये.’

अंसार बताते हैं कि उनको इतना पीटा गया कि वह एक सप्ताह तक घर पर ही रहे. वह बताते हैं कि जिस सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उनको पकड़ा गया था, जब उस तस्वीर को कम्प्यूटर पर बड़ा कर देखा गया तो वह फोटो उनका था ही नहीं. लेकिन दूसरे कि गलती की सजा उनको मिली. वह बताते हैं कि अगर उनके पड़ोसी वहां नहीं पहुंचते तो उनकी जान भी जा सकती थी क्योंकि जो भी आता था, उनकी पिटाई कर रहा था. अंसार के साथ इससे पहले भी इस तरह के वाकया हो चुका है.

सन् 2014 या 15 (सन् ठीक से याद नहीं है) में अशोक बिहार दीप सिनेमा के पास एक होटल से कूड़ा उठाने का काम करते थे. उस समय अशोक बिहार के एक घर में लूटपाट के साथ एक वृद्ध महिला कि हत्या हुई थी. उस समय पुलिस ने 8-10 कूड़ा बिनने वाले को पकड़ कर सड़क पर ही बुरी तरह से पीटा और पूछा था कि ’20 लाख रुपया कहां है बताओ ?’ अंसार की भी पिटाई उनके होटल के पास हुई लेकिन जब होटल के मैनेजर ने बताया कि अंसार उनके होटल में कूड़ा उठाता है, तब उसको छोड़ा गया. उसके बाद अंसार अशोक बिहार जाना ही छोड़ दिये.

काफी जोर देने के बाद उन्होंने एक और घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक बार जहांगीरपुरी पुलिस थाने का एसएचओ और एक प्रधान ने उनकी बीमार बेटी की इलाज कराने का लालच देकर मंदिर के एक पुजारी के खिलाफ झूठी गवाही दिलवानी चाही. उन्होंने अंसार से कहा कि तुम सुबह कूड़ा बीनने जाते हो तो कोर्ट में बताना कि मैंने मंदिर के बाबा को 4 किलो, 800 गांजा के साथ पकड़ा.

अंसार मुझे मुकुन्दपुर लाल बत्ती पर कूड़ा उठाते हुए 2 अक्टूबर को मिले थे. अंसार सड़क ही नहीं गड्ढ़े में उतर कर भी एक-एक प्लास्टिक के टुकड़े, कागज, गत्ते, कॉच की बोतल बीन रहे थे. जब हम उनसे पूछे कि आज कौन सा दिन है तो उन्होंने कहा बुधवार है. मैंने कहा और क्या है तो बोले कि 2 अक्टूबर है. जब 2 अक्टूबर के बारे में पूछा कि 2 अक्टूबर क्या होता है तो वे चुप रहे. मैंने उनको बताया कि आज के दिन स्वच्छता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है और आप तो कूड़ा उठा कर स्वच्छ कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम रोज ही स्वच्छ करते हैं.

अंसार जैसे लोगों के लिए स्वच्छता का एक दिन या एक तारीख नहीं होता, वह प्रतिदिन इस काम को अपने पेट की भूख मिटाने के लिए बिना किसी फोटो सेशन और बिना पैसे का करते हैं. इन स्वच्छता के लिए उनको चोर कहा जाता है, उनके साथ मारपीट की जाती है..अंसार एक दिन में 100 किलो कूड़ा बीनते हैं और 45 साल से कूड़ा बीन रहे हैं तो इस तरह वह अपने जिन्दगी में 1,620 टन कूड़े को दिल्ली के सड़कों से साफ किया है.

यानी अंसार जैसे लाखों लोग दिल्ली के सड़कों, बाजार, मोहल्ले, लैंडफिल से कूड़ा उठाने का काम करते हैं. जिन लोगों को स्वच्छता के लिए इनाम मिलना चाहिए, उन लोगों को चोर, गन्दगी फैलाने वाले, बंग्लादेशी कह कर गालियां दी जाती है. अंंसार जैसे लोग ही गांधी के सही मार्गदर्शक हो सकते हैं जो कि चुप-चाप, बिना शोर गुल के स्चछता के कार्यों को एक दिन, एक तारीख ही नहीं पूरी जिन्दगी करते आ रहे हैं.

  • सुनील कुमार

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