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पीएमसी (पंजाब और महाराष्ट्र को-आपरेटिव बैंक)

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पीएमसी (पंजाब और महाराष्ट्र को-आपरेटिव बैंक)

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

इस बार ये घोषणा मोदीजी ने स्वयं न करके रिजर्व बैंक से लिखित में करवायी है (शायद नोटबंदी वाले मीम्स से उफत गये होंगे, वैसे भी इस बैंक में भी इंदिरा गांंधी का ही नाम जुड़ा है. अतः शायद मोदीजी भी ऐसा ही चाहते होंगे कि इंदिरा गांंधी का नाम और काम मिटाने का इससे अच्छा मौका फिर कब मिलेगा ? और एक खास बात बताऊं – ताज्जुब मत कीजियेगा, अगर आने वाले साल में रिलायंस की कोई बैंक चेन लॉन्च हो जाये, जो रिजर्व बैंक को भी अपनी अंडरटेकिंग में ले ले.

ये है असल डिजिटल इंडिया का हाल. एक तरफ मोदीजी कहते है कि कैश मत रखो और डिजिटल लेन-देन करो और जब बैंकों में धन रखा तो बैंकें लगातार डूबती जा रही है. इस तरह के प्रतिबन्ध से डिजिटल इंडिया की कलई खुल रही है और काले धन पर सरकार की मंशा की भी स्पष्ट हो रही है. क्योंकि इस प्रतिबन्ध से एक सन्देश सीधा जा रहा है कि बैंकों में अपना पैसा मत रखिये क्योंकि वो सुरक्षित जगह नहीं है और बैंक के डूबने या बंद होने पर आपका पैसा भी डूब जायेगा. और जब धन बैंक में नहीं रखा जायेगा तो जाहिर सी बात है सरकार से भी छुपाया जायेगा, जिससे कालाधन बढ़ेगा. बैंकों में धन की कमी होने से और भी कई बैंक इसी डूबने वाली लाइन में आ जायेंगे (मैंने तो ये भी महसूस किया है कि ज्यादातर लोगों ने दूसरी बैंकों से भी अपना धन-निवेश निकालना शुरू कर दिया है और लोग अपने धन को निकालने के लिये फिर से लाइनों में लगे चुके हैं) यानि आने वाले समय में धन की भारी किल्लत से बैंकें गुजरेगी और दिवालियापन की तरफ बढ़ेगी और बंद होगी.)

रिजर्व बैंक ने जो पीएमसी पर आने वाले 6 महीनों में सिर्फ एक हजार प्रति खाता-धारक की निकासी का नियम तय किया है, वो जख्म पर लालमिर्च लगाने जैसा है. क्योंकि आम आदमी के पास कोई संसद वाली केंटीन तो है नहीं कि 15 में रूपये भर पेट दावत हो जाये. आम आदमी को तो सौ तरह के खर्चे होते हैं जैसे एक या अनेक ईएमआई उसे हर महीने भरनी पड़ती है, स्कूल की फीस से लेकर राशन तक और शॉपिंग से लेकर सिनेमा के टिकट तक का भुगतान वो बैंकों के थ्रू करता है. मगर वे 50 हज़ार लोग 6 महीनों में एक हजार निकाल कर अपना घर-खर्च और दूसरे सभी खर्च 6 महीनों तक कैसे चलायेंगे, ये तो मोदीजी ही बता सकते हैं या फिर आरबीआई ही बता सकती है (वैसे अब रिजर्व बैंक में अब कोई भी आर्थिक मामलों का जानकर तो है नहीं. और जो है उन्हें सीधा गणित भी नहीं आता, तो मेरे ख्याल से आरबीआई नहीं बता पायेगी इसलिये ये सवाल मोदीजी से ही पूछा जाना चाहिये).

हो सकता है महराष्ट्र का चुनाव के मद्देनजर आम खाताधारकों का पैसा काल्पनिक कारण बताकर रोका जा रहा हो ताकि आने वाले महीनों में उस धन को एक ‘स्टॉपिंग हीप’ के रूप में इस्तेमाल किया जा सके और इसलिये आपको स्पष्ट रूप से आपका अपना धन 6 महीने तक भूल जाने के लिये कह दिया गया हो.

खैर. अब तकनीकी कारण, यथा – इस साल के मार्च तक जिस बैंक की हालत ठीक थी और जिसने साल 2018-19 में 17 हज़ार करोड़ रुपये का कारोबार कर मार्च 2019 की बैलेंसशीट में 99 करोड़ रुपये का मुनाफ़ा भी दिखाया है और जिस बैंक को मार्च 2019 में खुद रिजर्व बैंक ने ‘ए-ग्रेड’ की रेटिंग दी थी, उसी बैंक में अचानक ऐसा क्या हुआ जो मार्च से सितंबर तक के 6 महीनो में बैंक को प्रतिबंधित कर दिया गया और 35-ए लगाकर आरबीआई का प्रशासक बिठा दिया गया ?

रिजर्व बैंक ने अपने प्रतिबंधित करने के कारणों में एचडीआईएल (हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड) नाम की कंपनी को ढाई हज़ार करोड़ रुपये के कर्ज को बताया है. एचडीआईएल दिवालिया होने वाली है. जिस तरह से आईएलएफ़स में समस्या चल रही है उसी तरह से एचडीआईएल ने भी दिवालिया होने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. और इसका सीधा असर पीएमसी पर पड़ा इसलिये आरबीआई को लग रहा है कि बैंक अब चल नहीं पायेगा, अतः उस पर अपना प्रशासक बिठा दिया है.

पीएमसी की स्थापना साल 1984 में मुंबई के सियान इलाक़े में हुई थी और अब इस बैंक की देश के छह राज्यों (महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, गोवा, गुजरात, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश) में 137 शाखायें हैं. पीएमसी के कुल खाताधारक 50,000 (पचास हज़ार) के आसपास है, जिनके मार्च 2019 के अंत तक बैंक में 11,617 करोड़ रुपए जमा थे. और उनमे से ज्यादातर फिर से लाइनों में लगे हुए है ताकी वे बैंक में जमा अपने पैसों की बाबत बैंक की ब्रांचों में उपस्थित स्टाफ से दरयाफ्त कर सके. लेकिन उनमें से ज्यादातर लोग नहीं जानते कि उनका पैसा डूब चूका है क्योंकि रिजर्व बैंक का अब तक का रिकॉर्ड रहा है कि जब भी उसने किसी बैंक पर 35-ए लगाया है, उसके बाद किसी भी राज्य का कोई भी बैंक पुनर्जीवित नहीं हुआ है और अंततः उस बैंक का दिवालिया घोषित हुआ है.

सिर्फ इसी बैंक पीएमसी की ही बात करूं तो ये बैंक तो ऐसी हालत में भी नहीं है कि कोई दूसरी बैंक इसको अपने में विलय करने में भी रूचि दिखाये क्योंकि इन 2500 करोड़ के अलावा भी बैंक ने 8383 करोड़ का लोन बांट रखा है अर्थात खाताधारकों का कुल जमा धन 11,617 करोड़ और ऋण निवेश 10,883 करोड़ यानि बैंक का सरप्लस 1000 करोड़ से भी कम है.

रिजर्व बैंक की नियमावली और विधि कानून के हिसाब से किसी भी भारतीय बैंक के डूबने की स्थिति में खाताधारक के खाते में जमा रकम का अधिकतम एक लाख ही भुगतान मिल सकता है अर्थात अगर आपके खाते में एक लाख से कम रकम जमा है तो आपका 100% धन रिकवर हो जायेगा, मगर आपके खाते में एक लाख से ज्यादा रकम जमा है तो आपको सिर्फ एक लाख ही मिलेगा बाकी का सारा पैसा डूब जायेगा.

इससे आरबीआई की कार्यप्रणाली, विनियमन प्रक्रिया और पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है क्योंकि जो पीएमसी में हुआ है, उससे स्पष्ट ये संकेत मिल रहा है कि आरबीआई ने बड़े अधिकारियों को जनता से असल जानकारियां छुपाने दी और उन अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नहीं की. जबकि आरबीआई मार्च में ए-ग्रेड की रेटिंग देते समय भी ये बात जानता था कि आने वाले 6 महीनों में ये बैंक डूब जायेगी. आरबीआई का काम आम लोगों का पैसा डूबने से बचाना है मगर पीएमसी प्रकरण से ये भी स्पष्ट हुआ है कि आरबीआई के ऑडिटरों ने अपनी जांच सही से नहीं की.

बैंक से अपना ही पैसा निकालने के लिए रोता अंधभक्त

नोट : मेरी पोस्ट से कोई भी ये न समझे कि पीएमसी बैंक बंद हो जायेगा क्योंकि रिज़र्व बैंक ने फिलहाल बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 35-ए के तहत पीएमसी बैंक को सिर्फ अपनी निगरानी में लिया है लेकिन बैंक का लाइसेंस रद्द नहीं किया है. मेरी आप सब को यही सलाह है कि चाहे आपके दस बैंकों में अकॉउंट हो मगर किसी भी बैंक के खाते में एक लाख से ज्यादा की रकम न रखे और न ही फिक्स डिपॉजिट के रूप में रखे (ये मेरी निजी सोच है और आप इसके लिये बाध्य नहीं है). धन्यवाद !

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ROHIT SHARMA

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