केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) के मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि पहले सभी हिन्दुओं, सिख, जैन और बौद्ध शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए नागरिकता (संशोधन) विधेयक पारित किया जाएगा. गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी साम्प्रदायिक सोच का प्रत्यक्ष परिचय देते हुए स्पष्ट कहा है कि सिर्फ गैर-दस्तावेजी मुस्लिमों को एनआरसी से डरने की जरूरत है. विदित हो कि इससे पहले असम में जब एनआरसी को लागू किया गया तब 19 लाख से ज्यादा लोगों को भारतीय नागरिकता से बेदखल कर दिया गया था, जिसमें बड़े पैमाने पर हिन्दु समुदाय के लोग शामिल थे.
शाह-मोदी की यह अपराधिक जोड़ी देश को टुकड़े-टुकड़े में विभाजित करने का हर संभव प्रयत्न कर रही है. मेदनीपुर से भाजपा का सांसद दिलीप घोष ने भरी सभा में घोषणा किये हैं कि एनआरसी के विरोधियों के लाश पर चढ़कर बंगाल में एनआरसी लागू करेंगे और यह लाशें सचमुच में गिर रही है. बंगाल में अबतक एनआरसी के आतंक से 17 लोगों ने आत्महत्या कर ली है. विद्वान ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यंत्र विशेषज्ञ पं. किशन गोलछा जैन इस सवाल को बड़े ही बेबाकी से उठाया है, जिसे हम अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं.
एनआरसी का ध्येय भारतीय नागरिकों के बीच से अवैध रूप से रह रहे विदेशियों की पहचान करना है. अतः नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटिजनशिप का मकसद ठीक है.
ज्यादातर विकसित और विकासशील देशों में ऐसा सिस्टम है, जिसके तहत वे अपने नागरिकों के लिये ऐसा नेशनल प्रमाण जारी करते हैं ताकि नागरिकों के अधिकारों को सुचारु रूप से उन्हें मुहैया करवाया जा सके.
भारत में जो भी एनआरसी में अपने कागज कम्प्लीट करवाना चाहते हैं, उन्हें निम्न 15 में से 10 प्रकार के ऐसे दस्तावेजों की जरूरत पड़ेगी, जो 24 मार्च, 1971 से पहले के हो अर्थात उन्हें निम्नोक्त 15 प्रकार के प्रमाणों में से 10 प्रमाण प्रस्तुत करने अनिवार्य होंगे, जिनसे ये साबित होगा कि वे या उनके पूर्वज 24 मार्च, 1971 के पहले से भारत के निवासी हैं.
1. बैंक या पोस्ट ऑफिस के खातों का ब्योरा
2. समुचित अधिकारियों की ओर से जारी जन्म प्रमाणपत्र
3. न्यायिक या राजस्व अदालतों में किसी मामले की कार्यवाही का ब्यौरा
4. बोर्ड या विश्वविद्यालय की ओर से जारी शैक्षणिक प्रमाणपत्र
5. भारत सरकार द्वारा जारी किया गया पासपोर्ट
6. भारतीय जीवन बीमा निगम की पॉलिसी
7. किसी भी प्रकार का सरकारी लाइसेंस
8. केंद्र या राज्य सरकार के उपक्रमों में नौकरी का प्रमाण-पत्र
9. सरकार द्वारा जारी नागरिकता प्रमाण-पत्र
10. राज्य द्वारा जारी स्थानीय आवास प्रमाण-पत्र
11. एनआरसी, 1951 का हिस्सा सबंधी प्रमाण
12. मतदाता सूची का हिस्सा या प्रमाणित प्रति
13. शरणार्थी पंजीकरण प्रमाणपत्र
14. आधिकारिक सील और हस्ताक्षर के साथ जारी किया गया राशन कार्ड
15. जमीन या संपत्ति से संबंधित दस्तावेज, जैसे -बैनामा अथवा भूमि के मालिकाना हक का दस्तावेज
एक खास बात और कि कोई यहांं पैदा हुआ, उससे वो भारत का नागरिक नहीं माना जायेगा बल्कि उसके लिये भी सिटीजनशिप एक्ट, 1955 के संशोधित सेक्शन 3 के मुताबिक कई अनुभाग कानून लागु होंगे अर्थात –
1) अगर किसी का जन्म 26 जनवरी, 1950 से 30 जून, 1987 के बीच हुआ है, तो उसे नागरिक माना जायेगा.
2) 1 जुलाई, 1987 से दिसंबर, 2004 के बीच किसी भी भारतीय नागरिक के बच्चों को भारतीय नागरिक माना जायेगा, अगर बच्चे के जन्म के वक्त माता या पिता में से कोई एक भारत तो वह बच्चा भी भारत देश का निवासी माना जायेगा.
3) 3 दिसंबर, 2004 के बाद जन्म होने पर अगर कोई भारतीय नागरिक की संतान है और या तो माता-पिता दोनों का जन्म भारत में हुआ हो या दोनों में से एक भारतीय नागरिक हो और दूसरा बच्चे के जन्म के वक्त गैरकानूनी प्रवासी ना हो तो उसे भी यहां का बाशिंदा माना जायेगा.
ये पढ़कर शायद आप कन्फ्यूज हो जायेंगे और सोचेंगे कि क्या हम सभी को एनआरसी के लिए अप्लाई करना होगा ?
नहीं, एक आम भारतीय नागरिक को सिटीजनशिप साबित करने के लिये आपको ज्यादा हाय-तौबा मचाने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये असल में उनके लिये ज्यादा जरूरी है, जो विभाजन के समय ट्रांसफर हुए और एनआरसी 1951 में किसी कारण से उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ अथवा बाद में अन्य देशो (बांग्लादेश, बर्मा, पाकिस्तान इत्यादि) से भारत में आकर बसे लेकिन उन्होंने भारतीय नागरिकता का आवेदन नहीं किया, अर्थात आपको ऐसे किसी रजिस्टर में अपना नाम दर्ज नहीं करवाना होगा (हालांंकि सिटीजनशिप रूल्स, 2003 में देश के सभी नागरिकों के रजिस्टर की कल्पना की गयी थी लेकिन इसको अभी तक अमल में नहीं लाया गया है. अतः एनआरसी के तहत सिर्फ विदेशों से आकर भारत में बसे लोगों को ही रजिस्टर करना होगा).
जिन लोगों का नाम एनआरसी लिस्ट में सत्यापित नहीं होगा अर्थात वे विदेशी लोग जो वैध या अवैध तरीके से भारत में आकर बस तो गये मगर नागरिकता संबंधी आवेदन आज तक नहीं किया, उनको डिपोर्ट किया जा सकता है. हालांंकि इस बारे में अभी तथ्य स्पष्ट नहीं है क्योंकि एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिस्ट फाइनल होने तक किसी भी शख्स पर कार्रवाई नहीं की जायेगी, वहीं दूसरी तरफ सरकार के अनुसार जिनके नाम फाइनल लिस्ट में नहीं होंगे, उनका फैसला फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल कमेटी तय करेगी कि कौन भारत में रह सकता है और किसे डिपोर्ट करना है ? कमेटी प्राधिकरण के तय करने के बाद भारत की केंद्र सरकार द्वारा उन सभी विदेशियों को डिपोर्ट करने का अधिकारिक आदेश भी जारी करना होगा, मगर सिर्फ भारत के डिपोर्ट कर देने से सामने वाला देश उन लोगों को अपने देश में रहने की इजाजत दे देगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि ज्यादातर संदर्भो में सामने वाला देश ऐसी इजाजत नहीं देता है और टर्मिनेटेड लोगों को एक से दूसरे देशों में शरणार्थी बनकर भटकना पड़ता है !
मोदी सरकार का रुख हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिखों के प्रति नरम रहेगा, अतः हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिखों को ज्यादा परेशानी नहीं होगी. पारसी और यहूदी इत्यादि बहुत कम संख्या में हैं, अतः उन्हें भी ज्यादा परेशानी नहीं होगी. एंग्लोइंडियन और ब्रिटिशर्स तो सत्ता हस्तांतरण के बाद से वैसे भी देश में आरक्षित श्रेणी में है और संविधान में विशेष कानून भी इनके लिये है. अतः उन्हें तो सरकार छु भी नहीं सकती. बचे दूसरे देशों में रहने वाले वे प्रवासी जिनके पूर्वज विभाजन के समय या उनके बाद भारत में आकर बसे, मगर उनके पूर्वजों ने नागरिकता का आवेदन नहीं किया था. तो ऐसे सभी प्रवासियों के सारे दस्तावेज़ तो खुद सरकार के द्वारा ही सत्यापित होते हैं, अतः उन्हें भी कोई परेशानी नहीं होगी.
तो फिर परेशानी किसे होगी ?
परेशानी होगी भारत में रहने वाले चाइनीज मूल के भारतीयों को क्योंकि वे मूल रूप से चाइना के जरूर हैं, मगर उनमें से कुछ यहांं दशकों से तथा कुछ तो सदियों से यहांं रह रहे हैं. और उनके पास चाइना की नागरिकता भी नहीं है और यहांं पैदा होने के बाद भी चूंंकि उन्होंने कभी नागरिकता के लिये सरकार को आवेदन नहीं किया, अतः उनके पास भारत की नागरिकता भी नहीं है. सो उन्हें थोड़ी परेशानी होगी.
इसके बाद परेशानी होगी उन लोगों को जो पाकिस्तान और बंगलादेश के साथ-साथ तिब्बत, नेपाल, भूटान, बर्मा इत्यादि दूसरे देशों से आकर यही बस गये मगर उन्होंने कभी नागरिकता का आवेदन नहीं किया.
उसके बाद थोड़ी ज्यादा परेशानी ईसाइयों को होगी. अंग्रेजों से आज़ादी के बाद अथवा आज़ादी के आस-पास बसे ईसाइयों अथवा कन्वर्टेड ईसाइयों के पास अगर पुरे कागजात नहीं हो तो उन्हें अपने कागजात अभी से कम्प्लीट करवा लेने चाहिये ताकि बाद में उन्हें परेशानी न झेलनी पड़े.
सबसे ज्यादा परेशानी मुसलमानों को होनी है क्योंकि इनकी नफरत मुसलमानोंं के प्रति बहुत ज्यादा है. अतः मुसलमानों को भी अपने सभी कागजात अभी से ही कम्प्लीट करवा लेने चाहिये, वरना उन्हें तो सीधा जेलों में ठूंस दिया जायेगा ताकि बाद में वे राष्ट्रवाद की बलि के रूप में काम आ सके. अर्थात उनके आंतकवादी कनेक्शन बताकर समय-समय पर उनका एनकाऊंटर किया जायेगा. इसके अलावा उन्हें जबरन बांग्लादेश या पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर भेज दिया जायेगा (दिखावे के लिये थोड़े बहुत मुसलमानों को शरणार्थी केम्पों में रखा जायेगा या फिर उन विशेष जेलों में भी जो विदेशी नागरिकों के लिये बनायी जा रही है).
सरकार की परेशानी से भी ज्यादा परेशानी उन्हें भगवा आंतकियों और हिन्दू कट्टरतावादियों से होगी क्योंकि वे भीड़ के रूप में आयेंगे और जुल्म करेंगे. क्योंकि ऐसा पहले भी कई अन्य संदर्भो में ऐसा हो चूका है. ये हिन्दूू कट्टरतावादी छुटभैयेे नेेेता उस समय बहुत फायदा उठायेंगे और ऐसे सभी मुसलमानों की सम्पत्तियों पर अपना कब्ज़ा कर लेंगे (ऐसा पहले बहुत बार हो चुका है जिनमें 1948, 1984, 1992 और 2002 प्रमुख हैंं). अतः मुसलमानों को विशेष सावधानी रखकर अपने सभी कागजात कम्प्लीट करवा लेने चाहिये.
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