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आरक्षण पर बहस करवाने वाला भागवत दलितों की स्थिति पर बहस क्यों नहीं करता

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आरक्षण पर बहस करवाने वाला भागवत दलितों की स्थिति पर बहस क्यों नहीं करता

बहुत से लोगों की दलील सुनता हूंं कि अब जातिवाद नहीं हो रहा है, या है ही नहीं. समाज में जातिवाद करने की मानसिकता बदल गई है, पर जातिवाद हिन्दुस्तान में वैसे ही फैला है, जैसे 50 साल पहले या 500 साल पहले या फिर 1500 साल पहले था. अगर कुछ बदला है तो वो है जातिवाद को खुलेआम करने या न करने की आज़ादी.

अगर आज क़ानून न हो, संविधान में प्रायोजन ना हो, तो कुछ ही दिनों में भारत फिर से सपनों का वही बहुमूल्य सनातनी परंपरा वाला देश बन जाएगा, जिसकी कल्पना हमारे बहुत से कट्टरपंथी हिंदू नेता किया करते थे और करते हैं. दलित फिर किसी वर्ण हिंदू का पड़ोसी नहीं होगा. उसका उठा सर फिर से काट कर लेवेल में कर दिया जाएगा. उसे उसकी औकात दिखा दी जाएगी. गांंवों में क़ानून से दूर रहकर आये दिन ‘औकात’ दिखाई भी जा रही है.

कहा जाता है कि मरने के बाद व्यक्ति भेदभाव रहित हो जाता है, किन्तु कम से कम हिन्दू धर्म में तो ऐसा नहीं होता है. प्रसिद्ध स्तम्भकार और माकपा की सदस्य सुभाषिनी सहगल अली लिखती है कि ‘तमिलनाडु में दलितों को मरने के बाद भी छुआछूत से मुक्ति नहीं मिलती. तमिलनाडु के सेरागुड़ी गांव में दलितों को अपने परिवार की लाशों को ‘आम रास्ते’ से ले जाने की मनाही है.’

प्रसाशन से कई बार शिकायत की गई. उन्होंने गैर-दलितों और दलितों के बीच बातचीत करवाई, जिसमें यह तय हुआ कि दलितों की लाशों को आम रास्ते से ले जाने पर आपत्ति नहीं की जाएगी. आज़ाद भारत में इस तरह की बैठक की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए थी. अग्रिम जाति के लोगों को नैतिकता और शर्म दिखाते हुए यह समझना चाहिये था कि आम रास्ते से चलने से किसी को कैसे रोका जा सकता है ?

किन्तु, बीते 14 तारीख को गैर-दलित बिरादरी के लोगों ने फिर मानवता और संवैधानिक अधिकारों की धज्जियां उड़ाते हुए दलित की शव-यात्रा को रोका. सिर्फ रोका ही नही बल्कि शव-यात्रा में शामिल लोगों पर पत्थर भी बरसाए, जिसमें सात दलित घायल हो गए.

सेरागुड़ी में दलितों के पास अपनी जमीन नहीं है, उनकी बस्ती में केवल चार-पांंच लोगों के घरों में शौचालय है. उनकी बस्ती में नल-कूप भी नहीं है. ऐसे में सारी जमीनें गैर-दलितों की है, जहांं दलितों को मजदूरी करने पर बहुत कम मजदूरी दी जाती है. हालांकि अब दलित पुरुष केरल की तरफ रुख कर रहे हैं, जहांं उन्हें उचित मजदूरी भी मिलती है और जातिवाद से छुटकारा भी.

उच्च जाति के खेत में महज शौच हेतु जाने के कारण युवती की बर्बर पिटाई करता उच्च जाति के गुंडे (यह वीडियो कहां का है इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है)

तमिलनाडु के ही वेल्लूर जिले में भी जातिवाद का ऐसा ही घृणित मानसिकता का खेल चलता है. वहांं भी किसी दलित की लाश को गैर-दलित की जमीन से ले जाना निषेध है. दो दिन पहले एक दलित व्यक्ति की लाश को श्मशान ले जाया जा रहा था. रास्ते में भारी बारिश के कारण गैर-दलित के खाली पड़े खेतों से ले जाने लगे तो उन्होंने जबरन शव-यात्रा रोक दी. दलील यह दी गई कि प्रथा के अनुसार दलित की लाश ले जाने से जमीन अपवित्र हो जाएगी. आखिरकार उन्होंने लाश को पुल से नीचे फेंकने के बाद फिर नीचे जाकर उसे उठाकर आगे बढ़ना पड़ा.

मोहन भागवत आरक्षण पर बहस करवाना चाहते हैं, क्या उनमें दम है कि दलितों की ऐसी स्थिति पर बहस करवा सके ?

– संजय कुमार

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