पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
ये अंतिम भाग है क्योंकि उस झूठे आदमी के झूठ का कोई पारावार नहीं है, लेकिन हम उसके हर झूठ के पीछे समय तो बर्बाद नहीं कर सकते न ?
वो गुजराती झूठा आदमी जो लाल किले की प्राचीर से धड़ाधड़-धड़ाधड़ झूठे बोले जा रहा था और एक झूठ कश्मीर के बारे में भी बोल रहा था, लेकिन वो नहीं जानता कि जब नेहरूजी को देश मिला तब देश की सीमायें भी असुरक्षित और खुली थी. सेना के नाम पर कुछ नहीं था. नेहरू ने सेना बनाई. देश का ढांचा चिन्हित किया. जल थल वायु सेना को मजबूत किया. सीमायें सुरक्षित की.
पटेल के साथ मिलकर बहुत सारी छोटी-छोटी रियासतों को मिलाकर ये गणराज्यों का संघ भारत बनाया और पटेल की इच्छा के विरुद्ध कश्मीर को भारत का अंग बनाया और पटेल को भी मनाया. बाद में भी 70 सालों तक गोवा और सिक्किम ही नहीं, बल्कि उनके जैसे कितने ही स्थान दुश्मन देशों की नाक के नीचे से निकाल कर भारत में मिलाकर भारत का विस्तार होता रहा. जबकि जब मोदी को देश मिला तो भारत सबसे सुरक्षित और ताकतवर देश बन चुका था, जिसकी सेनायें वैश्विक स्तर पर चौथे नंबर पर थी और परमाणु शक्ति से संपन्न देश था. चीन जैसा राष्ट्र भी सीधे युद्ध से घबराता है और उस देश के एक राज्य के उस आदमी ने दो टुकड़े कर दिये और लाल किले से ‘मैं’ ‘मैं’ कर रहा है.
नेहरू को जब देश मिला था, तब भारत उन छोटी-छोटी रियासतों और राजाओं के गुटों में बंटा देश था और विभाजन की आग में जल रहा था. अलग-अलग जातियों, धर्मोंं, रियासतों को एक सूत्र में जोड़ना कोई हंसी-खेल नहीं था (संविधान में इसकी परिकल्पना को पढ़कर ही कल्पना किया जा सकता है कि उस समय देश की हालात क्या थी क्योंकि बनाये गये कानून उस समय की परिस्थिति का सटीक उदाहरण है). जबकि धर्म की अफीम पिलाकर और सांप्रदायिकता की राजनीति में उस आदमी ने उस एक सूत्र में पिरोये गये राष्ट्र के तमाम मोती छिटका दिये हैं और देश के सौहार्द्र को तो नष्ट किया ही, संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता को भी नष्ट कर दिया है.
देश के लिये इतना कुछ करने वाले नेहरूजी के नाम में बिना ‘जी’ लगाये (उन्हें बिना सम्मान दिये) बात करने वाले उस आदमी के मुर्ख भक्त मोदी-मोदी के नारे लगाते हैं और नेहरूजी और गांंधी जी का अपमान करते हैं. तभी तो मैं हमेशा कहता हूंं कि देश की सबसे मुर्ख युवा पीढ़ी इस समय मौजूद है, और इसी मूर्खो के कारण देश बर्बाद होगा क्योंकि उस आदमी को सिर्फ जी-हुजूरी करने वाले चापलूसों का शौक है, इसलिये उसे इन मुर्ख भक्तों की जरूरत है. और जब मतलब निकल जायेगा तो इन मुर्ख-भक्तों के स्थानविशेष पर किक मारकर भगा देगा.
वो गुजराती झूठा आदमी अपने विरोधियों को इन मुर्ख भक्तों की तरह 15 सेकेण्ड भी सहन नहीं कर सकता, जबकि नेहरू जी ने अपने कट्टर विरोधी बाबासाहब अम्बेडकर समेत चार विरोधियों को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी थी. क्या इस झूठे आदमी से ऐसी आशा की जा सकती है ?
जिस मनमोहन सिंह के पैर पकड़-पकड़ के उनके घर जाकर ज्ञान लेता है, उस मनमोहन सिंह को राज्यसभा से मनोनीत करने के लिये, जो अपने एक सांसद से इस्तीफ़ा न दिलवा सका, उससे ऐसी कोई आशा करने के बारे में सोचना भी व्यर्थ है. जबकि इंदिरा गांंधी ने आडवाणी और बाजपेयी के लिये अपने एक नहीं दो-दो सांसदों का इस्तीफ़ा दिलवाया था और राजीव गांंधी ने बाजपेयी को सरकारी खर्च पर इलाज के लिये विदेश भेजा था. लेकिन इस आदमी ने मनमोहन सिंह जैसे विशिष्ट व्यक्तित्व को भी तवज्जो नहीं दी.
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