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पहलू लिंचिंग केस और अदालत की ‘निष्पक्षता’

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पहलु खान को हिन्दुत्ववादी संगठनों के गुंडों ने पीट-पीट कर मार डाला. देशभर में मिली कड़ी प्रतिक्रिया के बाद  मामला पुलिस-थाने पहुंचा. गुंडों की गिरफ्तारी हुई, जिसे न्यायालय में महज दो साल के अंदर ही निर्दोष करार दे दिया गया. इतनी तेज न्याय शायद ही किसी गरीब-असहाय लोगों को मिलता है, उसे तो केवल डेट मिलता है, ताकि विरोधी गुंडें राह चलते उसकी कभी भी हत्या कर दें. उन्नाव बलात्कार पीड़िता का उदाहरण देश के सामने है.

पहलु हत्याकांड में हिन्दुत्ववादी गुंडें को न्यायालय की ओर से मिली क्लीनचिट देश में न्याय और न्यायपालिका के नाम पर खुला और गंदा मजाक है, जहां बिका हुआ जज पेश किसी भी सबूत को सबूत मानने से न केवल इंकार ही करता है, बल्कि वह अपराधियों की तरफ सीधे तौर पर बिक गया लगता है. न्यायपालिका के नाम पर न्याय का मजाक उड़ाते इस मुकदमे से जुड़े असद हयात की रिपोर्ट यहांं प्रस्तुत हैै.

कल अदालत का फैसला आया है. 6 आरोपी संदेह का लाभ देकर बरी किये गये हैं. राज्य सरकार इसके विरुद्ध अपील दाखिल करने जा रही है. पहलू खान के पुत्रों इरशाद और आरिफ और दो अन्य घायल अज़मत व रफ़ीक़ की ओर से जल्द अपील हाई कोर्ट जयपुर में दाखिल की जाएगी. इसकी तैयारी हो रही है. मीडिया में इस केस को लेकर भारी जिज्ञासा है. आइये इस पर चर्चा करते हैं.

घटना 1 अप्रैल, 2017 की है. विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों की ओर से घटना के विरोध में धरना-प्रदर्शन किये गये. उस वक़्त मैंने और मेरे मित्र जनाब नूरदीन नूर साहब ने पहलू के गांंव जाकर पहलू के पुत्रों और हस्तक्षेप कर रहे संगठनों को कहा था कि निष्पक्ष जांच कराने हेतु जयपुर हाई कोर्ट में रिट लगायी जाए ताकि इन्वेस्टीगेशन को हाई कोर्ट मॉनिटर करे, लेकिन हमारी बात नहीं मानी गयी. थक कर मैं और नूर साहब बैठ गये. कुछ दिनों बाद हाई कोर्ट से मुल्जिमान की ज़मानत हो गयी. ज़मानतों का विरोध पहलू खान के पुत्रों ने हाई कोर्ट में किया था, मगर इन्वेस्टीगेशन को हाई कोर्ट मॉनिटर करे, इसके लिये कोई रिट दाखिल नहीं हुई. कुछ दिन बाद चुप्पी छा गयी और धरने / प्रदर्शन भी बंद हो गये. इन्वेस्टीगेशन पर किसी की भी नज़र नहीं थी और पुलिस मनमाने तरीके से इन्वेस्टीगेशन करती रही.
पहलू के पुत्र कानूनी जानकर नहीं थे. मनोबल इनका टुटा हुआ था. कौन-कौन सलाहकार थे, ये भी कुछ साफ नहीं था.

मेरी और नूर साहब की सक्रियता दोबारा अगस्त 2018 के आखिर में फिर से हुई. उस वक़्त पता चला कि बहरोड़ कोर्ट में गवाही शुरू होने जा रही है. बहरोड़ कोर्ट से केस को अलवर ट्रांसफर कराने के लिये अलवर ज़िला जज की कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी, जिस पर कई महीने सुनवाई चलती रही. ये याचिका अलवर से जनाब क़ासिम खान एडवोकेट और जनाब अमजद अली एडवोकेट द्वारा, मेरे मशवरे से लगायी गयी थी. इसके बाद केस में जनाब अख़्तर हुसैन एडवोकेट अलवर भी वकील नियुक्त हुए.

अभी कुछ ही दिन पूर्व केस में जनाब नूरदीन नूर एडवोकेट नूह, जनाब सलामुदीन एडवोकेट (अध्यक्ष , मेवात विकास सभा ) का भी वकालतनामा कोर्ट में दाखिल हुआ. मेवात एक्शन ग्रुप के ज़िम्मेदार साथियों का भी सक्रिय सहयोग इस केस पर था. मैं लगातार पैरवी कर रहा था.

कानूनी प्रश्न : अभियुक्तों की पहचान

1. घटना 1 अप्रैल 2017 की है. पहलू खान ने 6 लोगों के नाम अपने बयान में लिये थे. उनका कथन था कि मारने पीटने वालेकुम आपस में अपना नाम ओम, हुकम, जगमाल व 3 अन्य का नाम ले रहे थे. CBCID ने बिना कोई कारण बताए इन 6 लोगों को क्लीन चिट दे दी और इनके खिलाफ आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल नहीं किया.

पहलू के पुत्रों और गवाहों में अज़मत, रफीक ने अपने अदालत के बयानों में 15 लोगों के नाम बताते हुए कहा कि मारने वाले आपस में अपना नाम ले रहे थे. इनमें वे नाम भी शामिल थे, जिनको पहलू खान ने अपने बयान में बताया था. और वे 6 भी शामिल थे जिन पर मुक़दमा चल रहा है. सभी 15 मुल्ज़िमों नाम इरशाद, अज़मत, रफ़ीक़, व आरिफ ने अपने बयानों में लिये.

अदालत ने सेक्शन 319 का प्रार्थना पत्र ख़ारिज कर दिया. इसके विरुद्ध भी अपील की जा रही है.

2. मुल्ज़िम के गिरफ्तार होने के 30 दिन के भीतर पुलिस मजिस्ट्रेट की निगरानी में, जेल के भीतर शिनाख्त परेड कराती है. मगर इस केस में पुलिस ने घटना के फ़ौरन बाद इरशाद, आरिफ, अज़मत, रफ़ीक़ के जो बयान अप्रैल, 2017 में अंतर्गत धारा 161 में लिखे, उन में झूठ लिखा की हम मारपीट करने वालों को पहचाने में असमर्थ हैं, जबकी इन्होंने पुलिस को ऐसा नहीं कहा था. इसी झूठे इंद्राज को आधार बना कर पुलिस ने मुल्जिमान की गिरफ़्तारी के 30 दिन के भीतर (यानि 10 मई, 2017) शिनाख़्त परेड नहीं कराई.

3. अदालत के समक्ष IO रमेश सिनसिनवार ने बयान दिया कि मुझे मुखबिर ने घटना का वीडिओ दिया था, जिसको मैंने अपने मोबाइल में ले लिया था और उससे मैंने करीब 42 फोटो तैयार कराये, जो अदालत के रिकॉर्ड पर है. उन पर मुल्जिमान के नाम लिखें जो घटनास्थल पर ओवर एक्ट कर रहे हैं. इन फोटोज को साबित करते हुए उनपर Exibit 57-99 डाला गया. अभियुक्तों की ओर से कोई ऐतराज़ इस पर नहीं किया गया. इसी तरह exibit 108-114 फोटोज़ साबित किये गये.

IO ने कहा की वो वीडियो मेरे मोबाइल से निकल गया.
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा की अगर वो डिवाइस जिससे सबूत लिया गया है, वह नष्ट हो जाये या खो जाये तो सेक्शन 65 बी का प्रमाणपत्र देना ज़रूरी नहीं है और ऐसे सबूत को सेकेंडरी एविडेंस सेक्शन 63, 65, माना जायेगा.

मगर अदालत ने इस स्थिति पर विचार नहीं किया और exibit हो चुके इन फोटोज़ को सबूत नहीं माना.

4.गवाही के दौरान मुल्जिमान के साथ अदालत के कटधरे में बाहरी 10-15 लोगों को भी खड़ा किया गया और तब इरशाद, अज़मत से असल मुल्जिमान की पहचान करने को कहा गया. ये कोई प्रक्रिया कानूनी नहीं थी, इस पर हमने एतराज़ किया, जो दर्ज नहीं किया गया.

5. NDTV ने स्टिंग ऑपरेशन किया था, जिसमें मुल्ज़िम विपिन ने ये स्वीकार किया था कि उसने अपने साथियों के साथ इन 2 पिकअप गाडियों को roka, उनकी चाबी निकाली और फिर मारपीट की.

हमने सेक्शन 311 के तहत ndtv चैनल और एंकर श्री सौरभ शुक्ला को पूरी सामग्री सहित गवाही को बुलाने के प्रार्थना पत्र दिया, मगर कोर्ट ने ये कहकर ख़ारिज किया की मीडिया रिकॉर्डिंग विश्वास करने के योग्य नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने ज़ाहिरा शेख केस में कहा है कि सेक्शन 311 के सेकंड पार्ट पर अमल करना कोर्ट के लिये Mandatory है.

इस प्रार्थना पत्र को ख़ारिज कर अदालत ने ख़ुद अहम सबूत को रिकॉर्ड पर लाने से रोक दिया, जबकि एक्स्ट्रा judicial confession के बाद फिर किसी सबूत कि ज़रूरत नहीं रह जाती है.

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