फोटो प्रतीतात्मक है, इसे कश्मीर की न समझे और न ही कश्मीर से जोड़े
पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
कृष्ण के सामने दो विकल्प थे – द्रौपदी की चीर लम्बी करें या सुदर्शन चक्र से द्रौपदी को निरावरण कर रहे दुःशासन के हाथ काट डालें. कृष्ण ने अगर दूसरा विकल्प चुना होता तो महाभारत न होता, लेकिन कृष्ण को ‘भगवान कृष्ण’ बनने के लिये महाभारत का होना जरूरी था.
राजनीतिज्ञ भी भगवान ऐसे ही बनते हैं इसलिये ही रक्तपात करवाया जाता है. लोगों को भड़काया जाता है, उन्हें धार्मिक जाहिल और अशिक्षित बनाया जाता है ताकि वक़्त पड़ने पर वे अपने-अपने राजनीतिक भगवानों के लिये अपनी जान दे सके अथवा दुसरों की जान ले सके (ताज़ा उदाहरण के रूप में मोदी को ही देख लो).
मोदी अब भगवान बनने की तरफ अग्रसर है. मोदी चाहते तो बिना कश्मीर को तोड़े (लद्दाख को अलग किये बिना और कश्मीर के साथ-साथ लद्दाख को भी केन्द्र शासित प्रदेश में लाये बिना भी कश्मीर में अलगाववादियों को इसी तरह गिरफ्तार कर तिहाड़ भेजा जा सकता था अथवा नजरबन्द किया जा सकता था, मगर मोदी ने भी दूसरा ही विकल्प चुना क्योंकि मोदी को ‘भगवान मोदी’ बनने के लिये इसी विकल्प को चुनना था, वरना मोदी कभी ‘भगवान मोदी’ नहीं बन पाते. अब से वो ‘भगवान मोदी’ कहलाये जायेंगे !
मोदी सरकार की तरफ से जो पहल की गई है वो बहुत खतरनाक है क्योंकि आने वाले समय में कोई भी ऐसा नेता जिसके पास बहुमत वाली सरकार होगी, वो अन्य राज्यों में भी ऐसी ही तोड़-फोड़ दोहरायेगा ताकि वो भी ‘भगवान’ बन सके !
भारत को फिर से मनुवाद में धकेलने के लिये शिक्षित हो रहे भारत को फिर से अशिक्षा और युद्ध की त्रासदी की तरफ धकेला जा रहा है. इससे सरकार को दो फायदे भी हो जायेंगे. एक तो शिक्षित बेरोजगार कम हो जायेंगे (अभी शिक्षित बेरोजगारी का आंकड़ा अपने चरम पर है). और जब शिक्षित बेरोजगार कम हो जायेंगे तो सरकारी नौकरी नहीं मांगेंगे ? और जब युवा नौकरी ही नहीं मांगेगे तो सरकारी आंंकड़े अपनी श्रेष्ठता का ढोल पीटेंगे क्योंकि सरकार तब ये कहेगी कि सरकारी नौकरियों में वेकेंसी है, मगर योग्यता वाले लोग नहीं है !
दूसरा, अशिक्षित लोगों को धार्मिक जाहिल या भक्त बनाना आसान होता है और के राजनीति चमकाने के लिए ऐसे ही धार्मिक जाहिलों और भक्तों की जरूरत होती है ताकि उन्हें जो भी कहा जाये, चुपचाप बिना कोई सवाल उठाये वो मानते चले जाये.
शिक्षित भारत से शासक वर्ग पूरी तरह से डर चुका है और जब शासक वर्ग डरपोक हो तो प्रशासन व्यवस्था भी कमजोर हो जाती है. ऐसी व्यवस्था में सिर्फ बोल-बच्चन होता है. लम्बा-लम्बा फेंका जाता है और अपने-आपको बलशाली और पराक्रमी बतलाया जाता है, लेकिन असल में होता है सब फुस्स.
कल कश्मीर पर दिया गया भाषण सिर्फ औपचारिकता थी ताकि देश के लोगों को लगे कि सब कुछ व्यवस्थित है. मगर सब कुछ ठीक नहीं है बल्कि ये भयानक तबाही से पहले होने वाली शांति है (ये मेरी आशंका है).
जिस सेना को आवाम की आवाज़ दबाने के लिये तैनात किया गया है, अगर उसी सेना को गिलगित और बाल्टिस्तान पर अटैक करने भेजा जाता तो शायद ये एक सटीक कदम होता (वहां के लोग भी पाकिस्तान के विरोध में और भारत के साथ हैं. और तब कश्मीर के लोग भी भारत सरकार और सेना के साथ होते और उनके कंधे से कन्धा मिलाकर लड़ रहे होते. मगर अब ऐसी आशंका होती है कि जैसे ही सेना हटाई जायेगी तब, तब क्या होगा ??
सेना और हथियारों के बल पर बगावत को कब तक रोका जा सकता है ? मुझे लगता है कि कश्मीर में ऐसा ही जन-सैलाब देखने को मिल सकता है. और ऐसे जन-सैलाब को न तो सरकार रोक सकती है और न ही मोदी जी की सेना रोक पायेगी.
अपने आकाओं की सुविधा के लिये कानून में संशोधन तो कर ही दिया मोदीजी ने, मगर कोई भी कानून तब तक तामील में नहीं आता, जब तक लोग उसे दिल से स्वीकार न करें.
मोदी सरकार ने आरटीआई में भी संशोधन इसलिये ही किया, ताकि आप हम जैसे लोग ये न जान सके कि आने वाले 6-12 महीनों में किसने, कितनी जमीनें खरीदी क्योंकि अब तो सरकार जो चाहेगी केवल वही सूचना बाहर आयेगी.
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