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जम्मू-कश्मीर : धारा 370 में संशोधन और उसका प्रभाव

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जम्मू-कश्मीर : धारा 370 में संशोधन और उसका प्रभाव

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

पिछले दो दिनों से सोशल मिडिया पर काफी मिथक और भ्रम प्रचारित किये जा रहे हैं, जिससे असमंजस की स्थिति बनी हुई है. अतः स्पष्ट कर देना चाहता हूंं कि धारा 370 भारत के संविधान का अंग है. अतः इसके मूल आलेख में किसी भी तरह का संशोधन नहीं किया जा सकता और जो लोग 370 ख़त्म कर दी, बोल बोलकर भ्रम फैला रहे हैं, उन्हें बताना चाहता हूंं कि असल में 370 तीन मुख्य भागों में बांटी गयी धारा है, जो संविधान के भाग XXI में मसौदा लेख के रूप में लिखित है. वे तीन भाग अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान हैं. अर्थात
ये संविधान के 21वें भाग में समाविष्ट है, जिसका शीर्षक है- ‘अस्थायी, परिवर्तनीय और विशेष प्रावधान’ (Temporary, Transitional and Special Provisions) जिसके पास संविधान की किताब हो वो देख कर तसल्ली कर लेवे !

अस्थायी प्रखंड और उपखण्ड : इसके तहत जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा को इसकी स्थापना के बाद भारतीय संविधान के उन लेखों की सिफारिश करने का अधिकार दिया गया था, जिन्हें राज्य में लागू किया जाना चाहिये या अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से निरस्त करना चाहिये. बाद में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के संविधान का निर्माण किया और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश किये बिना खुद को भंग कर दिया. तब इस लेख को भारतीय संविधान की एक स्थायी विशेषता माना लिया गया, लेकिन असल में ये अस्थायी ही थी और मोदी सरकार ने इसी में संशोधन किया गया है, न कि मूल अनुच्छेद 370 में (और जो लोग 370 बोल-बोल कर उछल-कूद मचा रहे हैं, उन्हें बड़ी निराशा होगी अगर वे इसकी हकीकत जानेंगे. हकीकत जानने के लिये आगे पढ़ना जारी रखे लेकिन जिसके दिमाग पर मोदी का भूत सवार हो वो आगे न पढ़ें).

असल में मोदी सरकार द्वारा इसी अस्थायी उपधारा को संशोधित किया गया है, जिसे संशोधित करना बहुत ही आसान है और इसमें पहले भी कई संशोधन हो चुके हैं, जो आप आगे पोस्ट में पढ़ेंगे. अर्थात मोदी सरकार ये बात अच्छे से समझ रही है कि मूल धारा में कोई भी गड़बड़ की तो कश्मीर भारत से अलग हो जायेगा, लेकिन चुप रहकर भ्रम की स्थिति जान-बूझकर बनाये हुए है क्योंकि इससे बीजेपी को फायदा मिल रहा है और सपोर्टर से लेकर विरोधी तक सब तारीफ करने में लगे हैं. सब वाह-वाह कर रहे हैं, जबकि ये कोई वाह-वाही वाला काम है ही नहीं. क्योंकि इसी संशोधन को करने के लिये 1954 से सतत प्रयास जारी थे और इसे इस बदलाव की स्थिति में लाने के लिये कितनी ही बार अलग-अलग संशोधन करके इसकी ताकत को कमजोर किया गया ताकि इसे कोई भी सरकार इसे इसी प्रारूप में ला सके जैसे मोदी सरकार लेकर आयी है. हांं, जो लद्दाख को अलग किया गया वो जरूर इस धारा से अलग हुआ संशोधन है और इसका खामियाजा आने वाले दिनों में आप सब देख ही लेंगे !

शायद आपको पता नहीं (क्योंकि आप में से ज्यादातर तो अपने मूलभूत अधिकारों के कानून को भी नहीं जानते हैं, तो 370 जैसी पेचिदा और कानून की बारीकियों से भरी आर्टिकल के बारे में क्या जानेंगे) कि अब भी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन लेना होगा और अब भी जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होगी और सबसे खास बात यह कि अब भी राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं होगा.

हांं, लेकिन अब 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू हो जायेगा, जिससे कोई भी भारतीय नागरिक जम्मू और कश्मीर में भूमि ख़रीद सकेगा. हांं, लेकिन अब भारतीय संविधान की धारा 360 के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर में भी वित्तीय आपातकाल लागु किया जा सकेगा और हांं, अब 35ए की बाध्यता भी समाप्त हो जायेगी.

इसके अलावा आप ये भी जान लीजिये कि जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में जो अस्थायी प्रावधान में संशोधन किया गया है, वो कोई पहला संसोधन नहीं है बल्कि ऐसे कई संशोधन पहले भी हो चुके हैं, जिनमें 1954 का संशोधन सबसे महत्वपूर्ण था क्योंकि पहले ही संशोधन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उस समय के जम्मू और कश्मीर के वजीर-ए-आजम और अपने सबसे गहरे मित्रों में से एक शेख महम्मद अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर बंदी बनाया था और अपने संशोधन को जम्मू और कश्मीर की विधानसभा में भी पारित करवा लिया था, जबकि शेख अब्दुल्ला की पकड़ आवाम में हरिसिंह से ज्यादा थी, फिर भी विधानसभा में पारित करवा लिया (कमाल है नेहरू जी भी मोदी जी के हर काम में पहले ही भूत बनकर घुस जाते हैं और चिढ़ाते हैं कि ‘ये देख फेकू, ये तो मैं पहले ही कर चूका हूंं.’ आखिर ये नेहरूजी का भूत मोदीजी का पीछा क्यों नहीं छोड़ता ?).

ये पहला संशोधन 1954 में हुआ था और शेख अब्दुल्ला नेहरू जी के काफी गहरे मित्रों में से थे, मगर देशहित में नेहरू जी ने बिना कोई लिहाज किये इतना कड़ा फैसला लिया, जिसे आज मोदीजी जैसा बड़बोला प्रधानमंत्री तो सात जन्म में भी नहीं ले सकता. आप ही बताओ ले सकता है क्या ? अगर मोदीजी को ऐसा ही कड़ा फैसला लेते हुए अपने सबसे अंतरंग मित्र अमित शाह को जज लोया केस में गिरफ्तार करवाना पड़े और जेल भिजवाना पड़े, तो क्या मोदी जी ऐसा कर पायेंगे ? मैं आपसे ही पूछता हूंं मित्रोsss, कर पायेंगे क्या ? बोलो कर पायेंगे क्याssss. आप ही बताओ भाइयों और बहनों, कर पायेंगे क्याssss.

मैं जानता हूंं आप में से ज्यादातर लोग उत्तर दे या न दे, मगर मन ही मन जानते हैं और दिल से मानते भी होंगे कि ऐसा मोदीजी कभी नहीं कर पायेंगे. खैर, 2019 में मोदी जी के संशोधन से पहले इसमें कितनी बार संशोधन हुए और क्या-क्या संशोधन हुए, वो अब आप सिलसिलेवार पढ़िये. यथा,

  • 1954 के संशोधन में चुंगी, केंद्रीय आबकारी, नगरीय उड्डयन और डाक-तार विभागों के कानून और नियम जम्मू और कश्मीर राज्य में लागू किये गये थे.
  • उसके बाद 1958 के संशोधन में केन्द्रीय सेवा के आईएएस-आईपीएस अधिकारियों की नियुक्तियों संबंधी कानून को लागू किया गया तथा इसके साथ ही CAG के अधिकार भी लागू किये गये.
  • 1959 के संशोधन में भारतीय जनगणना का कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू किया गया.
  • 1960 के संशोधन में जम्मू और कश्मीर राज्य के उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई के लिये सर्वोच्च न्यायालय को अधिकृत किया गया.
  • 1964 के संशोधन में संविधान के अनुच्छेद 356 तथा 357 लागू किये गये, जिससे जम्मू और कश्मीर में संवैधानिक व्यवस्था के गड़बड़ा जाने पर राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सके.
  • 1965 के संशोधन में श्रमिक कल्याण, श्रमिक संगठन, सामाजिक सुरक्षा तथा सामाजिक बीमा सम्बन्धी केन्द्रीय कानून लागू किये गये.
  • 1966 के संशोधन में लोकसभा में प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजने का प्रावधान लागू किया गया तथा 1966 में ही जम्मू और कश्मीर राज्य की विधानसभा में जम्मू-कश्मीर संविधान में आवश्यक सुधार की प्रतिशंसा करते हुए ‘प्रधानमन्त्री’ के स्थान पर ‘मुख्यमन्त्री’ तथा ‘सदर-ए-रियासत’ के स्थान पर ‘राज्यपाल’ इन पद-नामों को स्वीकृत करा, उन पदनामों का प्रयोग करने का प्रावधान करवाया गया (इससे पहले ‘सदर-ए-रियासत’ का चुनाव विधानसभा द्वारा हुआ करता था, मगर इस संशोधन (जम्मू-कश्मीर के संविधान में) की प्रतिशंसा के बाद राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होने लगी.
  • 1968 के संशोधन में जम्मू और कश्मीर राज्य के चुनाव सम्बन्धी मामलों पर अपील सुनने का अधिकार जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की जगह भारत के सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया.
  • 1971 के संशोधन में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत विशिष्ट प्रकार के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार भी जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय को दिया गया, पहले ऐसा नहीं था.
  • 1986 के संशोधन में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 249 के प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू किये गये (इस धारा में ही उसके सम्पूर्ण समाप्ति की व्यवस्था बताई गयी है) और इसे धारा 370 के उप-अनुच्छेद 3 के रूप में जोड़ा गया, जिसके अंतर्गत ‘’पूर्ववर्ती प्रावधानों में कुछ भी लिखा हो मगर राष्ट्रपति द्वारा प्रकट सूचना से ये घोषित किया जा सकता है कि धारा 370 के कुछ अपवादों या संशोधनों को छोड़कर बाकी के सारे प्रावधान समाप्त किये जा सकते हैं (मैं इस विषय पर पहले भी लिख चुका हूंं.)).

मोदी जी ने इसी संशोधन के आधार पर अपना संशोधन 2019 लागू किया है अर्थात राष्ट्रपति द्वारा प्रकट घोषणा और भारत के राजपत्र पर राष्ट्रपति द्वारा लिखित (हस्ताक्षर युक्त) सूचना द्वारा संशोधन 2019 लागू किया गया है, जिसके तहत जो अधिकार जम्मू और कश्मीर के नागरिकों को कश्मीर के भारत में विलय करने के बाद जब जम्मू इत्यादि अन्य क्षेत्र को मिलाकर जब जम्मू और कश्मीर राज्य बनाया गया, तब दिए गये थे. उन अधिकारों में तथा कुछ विशेष अधिकारों में तब्दीलियांं हो गयी है, उसे भी समझ लीजिये. यथा,

1. पहले जम्मू और कश्मीर राज्य के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी लेकिन अब भारतीय अधिकार वाले कश्मीर क्षेत्र के नागरिकों के लिये ये समाप्त हो जायेगी, मगर पाक अधिकृत कश्मीरी भू-भाग के लिये वही पहले वाला अधिकार यथारूप बना रहेगा.

2. पहले जम्मू और कश्मीर राज्य का राष्ट्रध्वज अलग होता था (हालांंकि कई राज्यों का अपना अलग ध्वज है और शायद जम्मू और कश्मीर में अब भी अपना ध्वज बना रह सकता है), मगर अब इसकी बाध्यता समाप्त कर दी गयी है और केंद्र सरकार चाहे तो जम्मू और कश्मीर के ध्वज को ख़ारिज कर सकती है.

3. पहले जम्मू और कश्मीर राज्य की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था, मगर अब भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं के बराबर यानी 5 वर्ष का कार्यकाल होगा.

4. पहले जम्मू और कश्मीर राज्य के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता था, मगर अब ये संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आयेगा.

5. पहले भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू और कश्मीर राज्य में मान्य होने की बाध्यता नहीं थी, मगर अब ये बाध्यता होगी.

6. पहले भारत की संसद जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित (रक्षा, विदेश मामले और संचार) क्षेत्र में कानून बना सकती थी, मगर अब कुछ विशेष प्रावधानों को छोड़कर लगभग हर क्षेत्र में कानून बनाया और लागू किया जा सकेगा.

7. पहले जम्मू और कश्मीर राज्य की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर लेती थी तो उस महिला की कश्मीरी नागरिकता समाप्त हो जाती थी, मगर अब ऐसा नहीं होगा.

(इसके बारे में एक मिथक भी प्रचलित है जिसमे कहा जाता है कि यदि कोई स्त्री किसी पाकिस्तानी से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी. लेकिन मैं यहांं स्पष्ट करना चाहूंगा कि असल में ये प्रावधान सिर्फ उस भू-भाग के नागरिकों के लिये है, जो अभी पाकिस्तान के कब्ज़े में है. और इसमें एक शर्त ये भी है कि सिर्फ उस व्यक्ति को ही भारतीय नागरिकता मिल सकती है, जो 1956 से पहले वहां रहता हो क्योंकि उस पाक अधिकृत कश्मीर वाले कश्मीरी भू-भाग को भारत ने अपना ही माना और उसे ही ध्यान में रखकर ये अधिकार दिया गया, हालांंकि अब तो ये विवाह वाली बात का कोई मतलब ही नहीं क्योंकि कोई 1956 से रहने वाला बंदा मिल भी गया तो उसकी उम्र 2019 में उसकी विवाह लायक उम्र भी नहीं होगी. लेकिन ये सवाल मैं उनसे जरूर करना चाहूंगा जो लोग पाक अधिकृत वाले कश्मीरी भू-भाग के लोगों को पाकिस्तानी कहते हैं. क्या वे उस भूभाग को भारत का हिस्सा नहीं मानते हैं ?

(अगर नहीं मानते हैं तो अपनी जानकारी में इजाफा कर लीजिये कि वो भू-भाग भारत का है और उसके वे सारे वासिंदे और उनके वंशज भी भारतीय ही हैं, जो 1956 से पहले से वहां रह रहे हैं और उन्होंने अपनी अगली पुश्तों को जन्म दिया है अर्थात वो पाकिस्तानी नहीं है. इसलिये ही इसे मिथक लिखा क्योंकि ज्यादातर लोगों के मन में ये भ्रम बना हुआ है और आज मुझे संदर्भ मिल गया है तो उसे दूर कर लीजिये.)

8. पहले धारा 370 की वजह से जम्मू और कश्मीर राज्य में आरटीआई (RTI) कानून लागू नहीं होता था और अब तो वर्तमान मोदी सरकार इनमे भी संशोधन कर चुकी है. अतः अब लागु हो जाने पर भी इनका कोई औचित्य नहीं रहेगा क्योंकि अब सरकार जो चाहेगी वही सूचना जवाब में दी जायेगी.

9. पहले जम्मू और कश्मीर राज्य की मुस्लिम महिलाओं पर शरियत कानून लागू होता था, मगर अब अन्य राज्यों की तरह भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होगा.

10. पहले जम्मू और कश्मीर राज्य में पंचायत को अधिकार प्राप्त नहीं थे, अब इस संसोधन से अधिकार मिल जायेंगे, ये अभी स्पष्ट नहीं है. सरकार के स्पष्टीकरण के बाद ही इसके बारे में कुछ कहा जा सकता है.

11. पहले जम्मू और कश्मीर राज्य में न्यूनतम वेतन लागू नहीं होता था, और कश्मीर में चपरासी को 2500 रूपये ही मिलते थे. मगर अब बाकी के भारतीय हिस्सों की तरह न्यूनतम वेतन कानून लागू हो जायेगा, जिससे सरकारी चपरासी को सरकार द्वारा तय मानक के हिसाब से न्यूनतम वेतन में भी कम से कम ₹6000/- प्रतिमाह मिलेंगे.

12. पहले कश्मीर में अल्पसंख्यकों (हिन्दू-सिख-जैन इत्यादि) को 16% आरक्षण नहीं मिलता था (ज्ञात रहे जम्मू और कश्मीर राज्य में मुस्लिम बहुसंख्यक है), अब भी मिलेगा या नहीं इसका खुलासा नहीं किया गया है. पर शायद ये लागू हो जायेगा (अगर संशोधन से लागु नहीं हुआ तो भी केंद्र सरकार के आदेश से राज्य सरकार को लागू करना पड़ेगा).

13. पहले धारा 370 की वजह से जम्मू और कश्मीर राज्य में बाहर (दूसरे राज्यों) के लोग जमीन नहीं खरीद सकते थे मगर अब 35ए की बाध्यता समाप्त होने से आर्टिकल 19 (1) (ई) और (जी) पूरी तरह से लागू हो जायेगी, जिससे दूसरे सभी राज्यों के लोगों को जम्मू और कश्मीर राज्य में (लद्दाख में भी) जमीन खरीदने और वहां बसने का अधिकार मिल गया है.

14. पहले धारा 370 की वजह से जम्मू और कश्मीर में अनाधिकृत रूप से रहने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी, मगर अब ऐसा नहीं होगा. मगर जो पाक अधिकृत कश्मीर का नागरिक है (उपरोक्त में बता ही चुका हूंं), उस पर ये लागु होगा या नहीं, ये अभी स्पष्ट नहीं है.

तो देखा आपने इस संसोधन में ऐसा खास कुछ नहीं है, जैसा ढोल पीटा जा रहा है. मोदी जी जब पैदा भी नहीं हुए थे, तब तक 6 संशोधन हो चुके थे और भक्तों द्वारा अफवाहें तो ऐसी फैलाई जा रही है, जैसे मोदी जी ने लंका में आग लगा दी हो.

(असल में ये मोदी का प्रचार तंत्र है, जिसमें ब्रांड मोदी को ऐसे ही प्रचारित किया जाता है. बात कुछ खास होती नहीं मगर प्रचारित ऐसे किया जाता है जैसे ये काम पहली बार ही हुआ है अथवा इसे मोदी के अलावा और कोई कर नहीं सकता था. अर्थात राई जितनी बात भी पहाड़ बना दी जाती है.)

मैंने तो पहले लिखा ही था कि धुंधलाहट छंटने दो. स्थिति स्पष्ट होते ही पता लगेगा कि खोदा पहाड़ और निकली चुहिया, वो भी मरी हुई.

इस धारा का एक परन्तुक (Proviso) भी है, जो कहता है कि इसके लिये राज्य की संविधान सभा की मान्यता भी चाहिये किन्तु अब राज्य की संविधान सभा ही अस्तित्व में नहीं है और जो व्यवस्था अस्तित्व में नहीं है, वह कारगर कैसे हो सकती है ? अर्थात ये परन्तुक भी निरर्थक ही हो गया है लेकिन ब्रांड मोदी के प्रमोट में इसे भी खूब भुनाया जा रहा है !

ब्रांड मोदी चाहे अपना कितना ही प्रचार करवा ले, वो नेहरू जी के घुटने तक भी नहीं पहुंंच सकता क्योंकि नेहरू जी ने बिना प्रचार के वो काम कर दिये, जो मोदी तो क्या मोदी जैसे एक लाख भी सात जन्मों में, सपने में भी नहीं सोच सकते.

जिस धारा को हटाने की बात कहकर मोदीजी वाह-वाही लूटने की कोशिश कर रहे हैं, असल में उसके संदर्भ में बहुत पहले ही पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा जम्मू और कश्मीर राज्य के एक नेता पं. प्रेमनाथ बजाज को 21 अगस्त, 1962 को एक पत्र लिखा गया था, जिससे स्पष्ट होता है कि उनकी कल्पना में भी यही था कि कभी न कभी धारा 370 समाप्त कर दी जायेगी और उसके लिये उन्होंने 1954 से ही सतत प्रयास चालू कर दिये थे.

पं. नेहरू ने अपने पत्र में लिखा- ‘वास्तविकता तो यह है कि संविधान का यह अनुच्छेद जो जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिलाने के लिये कारणीभूत बताया जाता है, उसके होते हुये भी कई अन्य बातें की गयी हैं और जो कुछ और किया जाना है, वह भी किया जायेगा. मुख्य सवाल तो भावना का है ! उसमें दूसरी और कोई बात नहीं है. कभी-कभी भावना ही बड़ी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है.’

पंडित नेहरू की लिखी हुई ये पंक्तियांं और उनका प्रयास आज सफल हो गया और भारत की केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को संशोधित करने के लिये संसद में जो प्रस्ताव रखा, उसमें पहले किये जा चुके संशोधनों को ही आधार बनाया गया और संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति द्वारा आदेश जारी किया गया, जिसमे कहा गया कि –

इस आदेश का नाम संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 है. यह तुरंत प्रवृत्त होगा और इसके बाद यह समय-समय पर यथा संशोधित संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू) आदेश 1954 का अधिक्रमण करेगा. समय-समय पर यथा संशोधित संविधान के सभी उपबंध जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में लागू होंगे और जिन अपवादों और अशोधानों के अधीन ये लागू होंगे, ये निम्न प्रकार होंगे :

अनुच्छेद 367 में निम्नलिखित खंड जोड़ा जायेगा अर्थात न'(4) संविधान, जहांं तक यह जम्मू और कश्मीर के न में लागू है, के प्रयोजन के लिए –

(क) इस संविधान या इसके उपबंधों के निर्देशों को उक्त राज्य के सम्बन्ध में यथा लागू संविधान और उसके उपबंधों का निर्देश माना जायेगा.

(ख) जिस व्यक्ति को राज्य की विधानसभा की शिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा जम्मू एवं कश्मीर के सदर-ए-रियासत, जो ततस्थानिक रूप से पदासीन राज्य की मंत्री परिषद् की सलाह पर कार्य कर रहे हैं, के रूप में ततस्थानिक रूप से मान्यता दी गयी है, उनके लिये निर्देशों को जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल के लिये निर्देश माना जायेगा.

(ग ) उक्त राज्य की सरकार के निर्देशों को उनकी मंत्री परिषद् की सलाह पर कार्य कर रहे जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल के लिये निर्देशों को शामिल करता हुआ माना जायेगा !

(घ) इस संविधान के अनुच्छेद 370 क़े परन्तुक में ‘खंड (2) में उल्लेखित राज्य की संविधान सभा’ अभिव्यक्ति को ‘राज्य की विधान सभा’ पढ़ा जायेगा.

अब आप तय कीजिये, इसमें मोदी ने ऐसा क्या खास किया है जो और कोई नहीं कर सकता था. और जो किया है वो भी मोदीजी का निर्णय नहीं बल्कि पहले की सरकारों द्वारा किये जा रहे सतत प्रयास था, जिसे मोदीजी ने भुनाया है !

यहांं इंदिरा गांंधी की कही गयी बात को भी कोट करूंंगा कि ‘दुनिया में दो तरह के लोग होते हैंं, एक वे जो सिर्फ श्रेय लेते हैं और दूसरे वे जो चुपचाप अपना काम करते हैं. पहले लोगों में एक अजीब होड़ होती है, जो दूसरे के कामों का श्रेय भी ले लेना चाहते हैं, मगर मुझे (इंदिरा गांंधी को) दूसरे वाला ज्यादा पसंद है क्योंकि वहां कम्पीटिशन नहीं है.’

(मोदीजी हमेशा यही तो करते हैं कि दूसरे के किये कामों का श्रेय खुद लेते हैं और ब्रांड मोदी को प्रमोट करते हैं.)

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ROHIT SHARMA

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