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धारा 370 पर संघी विलाप क्यों ?

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धारा 370 पर संघी विलाप क्यों ?

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

आख़िरकार धारा 370 पर क्यों बार-बार बवाल पैदा किया जाता है ? क्यों कश्मीर का विलाप किया जाता है ?
क्या सिर्फ इसलिए कि ये मुसलमानों से जुड़ा मसला है ?वरना अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड जैसे कई अन्य राज्यों के दूसरे राज्य के बासिंदे भारतीय नागरिक को भी ‘इनर लाइन परमिट’ के बिना एंट्री भी नहीं है  लेकिन इसके बारे में कोई भी बात नहीं करता. कल एक सज्जन मित्र का कहना था कि ‘धारा 370 की वजह से ही पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है. इसके लिए पाकिस्तानियों को केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है.’

मैं उन्हें बताना चाहता हूंं कि जरा अपने ज्ञान में वृद्धि करे. जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने धारा 370 के द्वारा उस भू-भाग (जो कश्मीर आज पाकिस्तान के कब्जे में है) को भी भारत का अविभाज्य अंग माना है) और उस भू-भाग के लोगों को जो तारीख 14.05.1956 को या उससे पहले कश्मीर की प्रजा थी, को ही नागरिकता मिल सकती है उसके अलावा नहीं. क्यूंं फालतू सांप्रदायिक फसाद खड़ा कर रहे हैं ? या तो कह दो कि पकिस्तान के कब्ज़े वाला कश्मीर भारत का भू-भाग नहीं है या फिर ऐसी बेसिर-पैर की बात करना बंद करो.

26 जनवरी, 1950 से लागू भारतीय संविधान के खंड 7 में सभी राज्यों का अलग संविधान है जबकि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की पहली बैठक ही तारीख 31.10.1951 को हुई थी और उसी संविधान सभा के नेतृत्व में 1954 में जम्मू-कश्मीर विधान सभा ने भारत में विलय की मान्यता दी गयी थी.

क्या आप ये कहना चाहते है विलय के अनुमोदन को शून्य कर दिया जाये ???

संविधान सभा कभी भी परमानेंट नहीं होती श्रीमान. 370 धारा को समाप्त नहीं किया जा सकता. उसमें संशोधन भले हो. उसके समाप्त होने का अर्थ है कश्मीर को भारत ने आजाद कर दिया. अर्थात जिस दिन भारत ने धारा 370 समाप्त की, उसी दिन कश्मीर से भारत का झंडा उतर जायेगा क्योंकि तब वो एक आजाद राष्ट्र होगा इसलिए पहले कश्मीर के मसले को अच्छे से पढ़े. गहन मंथन करें तब समझेंगे कि उसी धारा 370 के तहत कश्मीर का भारत में विलय हुआ था.

इतना पढ़ने के बाद भी अगर आप धारा 370 ख़त्म करने के पक्षधर हैं तो आपको बता देता हूंं कि धारा 370 के खंड (3) में राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गयी है कि लोक अधिसूचना कर के इसे समाप्त कर सकता है. तो सांप्रदायिकता बढ़ाने और जातिगत विद्वेष उत्पन्न करने वाली बहस क्यों ?? बीजेपी का बहुमत है. राष्ट्रपति बीजेपी का है और (न भी हो तो भी राष्ट्रपति की संवैधानिक बाध्यता है) उखाड़ फेंकिये धारा 370. कौन रोकता है ?

राष्ट्रपति की घोषणा से पहले एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, राज्य विधानसभा की सहमति. दूसरे शब्दों में यदि केन्द्रीय सरकार इस धारा को रद्द भी करना चाहे तो ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि इसके लिए राज्य की विधानसभा की अनुशंसा आवश्यक होगी और तब धारा-368 के अन्तर्गत संशोधित प्रावधान भी कोई सहायता नहीं कर सकेगी.

तो गठबंधन टूटने के बाद तो अभी विधान सभा शून्य है इसलिए इसकी मंजूरी जरूरी नहीं, सिर्फ ‘धारा के पूर्ववर्णित विधान के बावजूद, राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना के द्वारा यह घोषणा कर सकता है कि इस धारा को रद्द कर दिया गया है.’ (राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना जारी करने से पहले राज्य विधानसभा की सहमति भी (जैसा कि खण्ड (2) में बताया गया है) जरूरी नहीं होगी.)

आप सांप्रदायिक तर्क कितने ही प्रभावी ढंग से दे दें, लेकिन संविधान का कोई भी विधान अलग से नहीं पढ़ा जा सकता. और चूंंकि राज्य की संवैधानिक सभा अब नहीं है तो धारा-370 के अन्तर्गत इसकी सहमति का सवाल ही नहीं उठता. इसलिए, धारा-368 के अन्तर्गत केन्द्रीय संसद द्वारा जो प्रदेश के लोगों का भी प्रतिनिधित्व करती है, संविधान को संशोधित किया जा सकता है. इसके बाद, राज्य की संविधान सभा की सहमति का विधान भी हटाया जा सकता है. यह विधान हटाये जाने के बाद राष्ट्रपति आवश्यक घोषणा कर सकता है और इस तरह धारा 370 को रद्द किया जा सकता है.

जहांं तक बात 35 ए को रद्द करने की है, मैं उसके पक्ष में हूंं क्योंकि धारा-370 की तीव्रता को 35 ए को रद्द करके ही समाप्त किया जा सकता है. यदि यह रद्द होती है तो धारा 19(1) (ई) और (जी) का पूरा-पूरा प्रयोग होगा. धारा 19 (1) (ई) और (जी) घोषणा करती है – ‘भारत के हर नागरिक को
(अ) भारत के किसी भी क्षेत्र में रहने और बसने का, तथा
(ब) कोई भी पेशा, व्यवसाय या व्यापार करने का अधिकार होगा.’

धारा 19 (1) (ई) (जी) को निर्बाध रूप से लागू करने पर कोई भी भारतीय जम्मू-कश्मीर में जाकर बस सकता है और इस तरह बसने और नागरिकता के संदर्भ में जम्मू-कश्मीर संविधान के जितने अतार्किक और अन्यायपूर्ण नियम हैं, जो भारतीय संविधान के अयोग्य है, खत्म हो जाएंगे. लेकिन आज राजनीतिक स्वार्थी इरादों से न केवल कश्मीर को खतरे में डाला जा रहा है बल्कि देश की संवैधानिक सुरक्षा को भी चुनौती दी जा रही है.

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