पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
सूचना का अधिकार लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनता का मूलभूत अधिकार है लेकिन मोदी सरकार ने इसमें मनमाने बदलाव कर जनता के अधिकार पर प्रहार किया गया है. आपको याद होगा कि जिस नोटबंदी के आंकड़े सरकार देने से मना करती रही, उसकी सूचनायें भी सिर्फ़ आरटीआई से बाहर आयी थी. राजस्थान में 10 लाख लोग जालसाजी करके पेंशन ले रहे थे लेकिन वे सभी ज़िंदा थे (मरे नहीं थे जैसा कि सरकारी काग़ज़ों में दिखाया गया और फर्जी तरीके से पेंशन उठाई जा रही थी), ये जानकारी भी आरटीआई के माध्यम से ही आई थी. उसके बाद उनकी पेंशन तो बंद हुई ही उन पर कार्यवाही भी हुई. इस तरह की न जाने कितनी ही जानकारियां आरटीआई के माध्यम से निकाली गयी थी, जिसमें सरकारी धन का दुरूपयोग हो रहा था और मिलीभगत से धोखाधड़ी भी की जा रही थी.
कितनी ही ऐसी जानकारियां भी निकाली गयी थी जो सरकारी धांधली के बारे में थी और जिनकी जानकारी सिर्फ इस आरटीआई के चलते ही बाहर आ पायी. बाद में जिन्हें सरकार के खिलाफ इस्तेमाल किया गया और सरकारों की धोखेबाज़ी को सार्वजनिक कर खुलासा किया गया. लेकिन अब वो सब बंद हो जाएगी क्योंकि इस कानून के चलते सरकार की जवाबदेही तय होती थी लेकिन इससे बचने लिये मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में चोरी-छिपे इस कानून में बदलाव किया और इसके बारे में सिर्फ 2 दिन पहले सांसदों को बताया गया. किसी भी बिल के बारे में सांसदों को सिर्फ दो दिन पहले बताना, क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया है ?
आप में से बहुत से लोग नहीं जानते कि पुरे देश में 60 से 80 लाख आम लोग इस सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर रहे थे और मात्र 15 सालों से भी कम समय में अब तक 80 आरटीआई एक्टिविस्ट इसके लिये अपनी जान भी गंवा चुके हैं. क्योंकि जैसे-जैसे लोग शिक्षित और जागरूक हो रहे हैं, वे सरकार से पूरे देश का हिसाब मांग रहे हैं लेकिन मोदी सरकार ने एक ही झटके में जनता के इस अधिकार को खत्म कर दिया !
बीजेपी हमेशा से ही इस कानून के खिलाफ थी. 2002 में वाजपेयी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव से कानून तो पास किया लेकिन इसे लागू नहीं किया. फिर 2005 में मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में इस कानून को पास भी किया गया और लागू भी किया गया लेकिन मोदी बहुमत के नशे में तुगलक बन जनता के अधिकारों को खत्म करने में लगा हुआ है. वैसे भी मोदी को सवाल पसंद नहीं और जवाब देना तो कतई पसंद नहीं. और जो जनता को जवाब देना पड़े, ऐसा कानून क्या काम का ? इसलिये इस में संशोधन किया गया ताकि अपने कार्यकाल के स्याह को सफ़ेद झूठ में छुपाया जा सके.
संशोधन के जरिये मोदी सरकार ने विधायिका की शक्ति छीनकर उसे कार्यपालिका का गुलाम बना दिया है. मुख्यतः इसकी धारा 13, 16 में बदलाव किये गये हैं, जिसके तहत मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते एवं अन्य सेवा शर्तों के निर्धारण का अधिकार केंद्र सरकार के अधीन कर दिया गया है तथा इनकी नियुक्ति भी केंद्र सरकार की सिफारिशों के अनुसार ही होगी. संशोधन बिल के पैरा-नंबर 3 और 5 में उद्देश्य और कारण वाले खंड में भी बहुत सी नयी बातें जोड़ी गयी हैं. संविधान में किसी भी संशोधन को लाने के लिए भी कायदा है, सेक्शन 27 में निर्दिष्ट है मगर सरकार ने उसमें भी संशोधन कर दिया. आरटीआई की स्वायत्तता और स्वतंत्रता का संबंध सेक्शन 12 (3) से था, उसमें भी छेड़छाड़ कर संशोधन कर दिया ताकि इन दोनों बदलावों को लागू किया जा सके.
(पहले मूल आरटीआई कानून की धारा 13 के अंतर्गत केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच साल (65 साल की उम्र तक, इस में से जो पहले हो) को निर्धारित करती थी. साथ ही मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त और सूचना आयुक्त के समान रखने की बात करती थी. जबकि आरटीआई की धारा 16 के अंतर्गत राज्य स्तर पर केंद्रीय सूचना आयोग (ब्प्ब्) एवं सूचना आयोग (प्ब्) की सेवा शर्तों, वेतन भत्ते एवं अन्य सुविधाओं का निर्धारण करती थी और इस धारा के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के समान था.)
इस बदलाव के बाद आरटीआई कानून बेअसर हो जायेगा क्योंकि सरकार ’गवर्नमेंट सीक्रेट एक्ट’ के नाम पर लोगों को जानकारियों से दूर रखेगी और जनता के प्रति अपनी जवाबदेही से बचेगी. इन बदलावों से सूचना आयुक्त दबाव में काम करेंगे तथा 5 साल के लिये स्थाई रूप से उनकी नियुक्ति नहीं होगी क्योंकि सरकार जब चाहे तब सूचना आयुक्तों को पद से निकाल देगी. परिणामस्वरूप सूचना आयुक्त ऐसी किसी भी आदेश को देने से बचेंगे, जिससे सरकार को कठिनाई हो. इससे जहां सूचना आयोग की शक्तियां कम या खत्म होगी, वही पारदर्शिता पर भी असर पड़ेगा.
याद कीजिये चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने कई तरह की सूचनाओं को सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया था, ताकि सच जनता के सामने न आये, लेकिन उन सभी बातों को सरकार-2 में स्पष्ट रूप से माना. चुनाव के समय किसी भी आरटीआई का जवाब नहीं देने दिया गया और उसे रोक कर रखा गया ताकि चुनावी माहौल पर कोई असर न पड़े. जरा सोचकर देखिये कि सूचना के अधिकार के बिना लोकतंत्र का क्या मतलब होगा ? अब सरकारें हम जैसे लोगों से वो बातें आसानी से छुपा लेगी, जो हम आरटीआई से जानकर सरकार के विरुद्ध सोशल प्लेटफॉर्म पर इस्तेमाल करते थे और तथ्यों और सबूतों के साथ अपनी बात लिखते थे. अब जब ये संशोधन पास हो चूका है तो आगे से हमारे जैसे लोगो के पास सटीक तथ्यों और सबूतों का अभाव होगा, तो हम कैसे सच लिख पायेंगे ? अगर लिख भी देंगे तो आप कैसे बिना तथ्यों और सबूतों के हमारी बात का विश्वास करेंगे ? आज जब हम जैसे लोग लिखते हैं तब आप आंख मूंदकर विश्वास करते हैं कि ये बात फलां व्यक्ति ने लिखी है, मतलब वो सच है क्योंकि वो झूठ नहीं लिखता. मगर आगे से सच लिखने वालों के पास आंकड़े ही नहीं होंगे तो वे सटीकता से कैसे लिख पायेंगे ?
बेरोजगारी का डाटा, जीडीपी, रोजगार, किसानों की मौत, एनसीआरबी और न जाने दूसरे कितने विभाग, जिनकी सूचनायें हम जैसे लोगों को पहले समय रहते इस आरटीआई के जरिये मिलती रहती थी, वे अब नहीं मिलेगी क्योंकि ये बिल राज्य सभा में भी पास हो चूका है और इसके लिये विपक्ष के भारी विरोध को नकार दिया गया और धांधली करके बिल पास कर दिया गया. राज्य सभा उच्च सदन होता है क्योंकि भारत के सभी राज्यों के प्रतिनिधि इस सदन में होते हैं. लेकिन विपक्ष के 75 वोटों को नजरअंदाज कर बिल पास कर दिया गया. उस पर भी बीजेपी की धांधली सदन में स्पष्ट रिकॉर्ड हुई, जिसमें उच्च सदन में इस प्रस्ताव पर मतदान के समय बीजेपी के सी. एम. रमेश को कुछ सदस्यों को मतदान की पर्ची देते हुए देखा गया, जिसके बाद सरकार पक्षीय 117 वोटों की धांधली से इस बिल को मंजूरी दे दी गयी. विपक्ष ने इसका कड़ा विरोध किया और गुलाब नबी आज़ाद ने पुरे विपक्ष की तरफ से सदन में कहा कि ‘आज पूरे सदन ने देख लिया कि आपने (सत्तारूढ़ बीजेपी) ने चुनाव में 303 सीटें कैसे प्राप्त की थी ?’ उन्होंने दावा किया कि ‘सरकार संसद को एक सरकारी विभाग की तरह चलाना चाहती है.’ उन्होंने इसके विरोध में विपक्षी दलों के सदस्यों के साथ वॉक आउट की घोषणा की. इसके बाद विपक्ष के अधिकतर सदस्य सदन से बाहर चले गये लेकिन झूठे बहुमत के नशे में मोदी सरकार ने बिल को पास कर दिया.
ये उच्च सदन के साथ-साथ लोकतंत्र पर एक बड़ा हमला है क्योंकि ये राज्य सभा के सदस्यों के अधिकार का उलंघन था क्योंकि इतने भारी विरोध होने पर उस पर विचार और चर्चा आमंत्रित करने का कानून है ताकि बिल में व्याप्त विरोध या भ्रांतियों का निराकरण किया जा सके, लेकिन बीजेपी ने इतने भारी विरोध की परवाह नहीं की और सभी कानूनों और व्यवहारों को धत्ता बता कर हिटलरशाही की तरह इस बिल को पास कर लिया.
इसे दूसरे शब्दों (क्योंकि मोदी सरकार बलात्कार में माहिर होती है और उसे पसंद भी है) में कहें तो नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने बहुमत के नशे में पहले नाबालिग आरटीआई के साथ छेड़छाड़ की, लेकिन जब जनता ने इसका विरोध किया तो नरेंद्र मोदी सरकार ने विपक्ष के साथ मिलकर आरटीआई का सामूहिक बलात्कार किया, फिर यूएपीए के तेज धारदार हथियार से आरटीआई को ख़त्म कर दिया. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार आरटीआई के अनुरुदनी अंगों पर काटने और नोचने के निशान थे और उसके नाजुक अंगों में यूएपीए के टुकड़े पाये गये, जिससे उसके आंतरिक अंग पूरी तरह डैमेज हो गये और आरटीआई ने बहुत ही दर्द सहते हुए तड़प-तड़प कर अपनी जान दी.
ज्ञात रहे आरटीआई अभी 15 साल की भी नहीं थी और इसके जिन्दा रहने से मोदी सरकार को खतरा था और मोदी सरकार ने इस खतरे को हमेशा के लिये मिटा दिया. आप सब भी अब तालियां बजाइये क्योंकि आप भी यही चाहते थे न कि मोदी आये (रोज कहते थे न आयेगा तो मोदी ही), लो आ गया मोदी और शुरू कर चूका है भारत को बर्बाद करने का एजेंडा, ताकि आप सवाल न कर सके. अब धीरे-धीरे धार्मिक अपराध बढ़ेंगे. अभी तो रोजगार ख़त्म किये जा रहे है बाद में आपको शिक्षा से दूर रखा जायेगा, ताकि आप फिर से 1947 के पुराने युग में पहुंच जाये और ये आपको फिर से गुलाम बनाकर आप पर राज कर सके. अभी तो शुरुआत है. आगे-आगे देखते जाइये.
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