कांस्य पदक जीतने वाली पी. वी. संधू को 4 करोड़ हरियाणा सरकार ने, 2 करोड़ दिल्ली सरकार ने, तेलंगाना सरकार ने 1 करोड़ का जमीन और फ्लैट, 50 लाख बैडमिंटन असोसिएसन ने, 50 लाख फुटबाल एसोसिएशन ने, 50 लाख और BMW कार, मध्य्प्रदेश सरकार ने 50 लाख, सत्कार, सम्मान सहित शिवाय न्यूज़ चैनल सेलिब्रेटी. राजकीय सम्मान भी खूब मिला. ये सब कांस्य पदक लाने पर था, और इधर सब उल्टा. 6 गोल्ड मैडल लेकर इतिहास रचने वाली उड़नपरी हिमादास को 50 हजार रुपये केंद्र सरकार से और एक लाख रुपये असम सरकार दे रही है. अब सवाल यह है इसे क्या कहेंगे ? जातिवाद, भेदभाव या छुआछुत ? क्या यही है हमारा राष्ट्रवाद ? बहरहाल हिमादास के बारे में पं. किशन गोलछा जैन बता रहे हैं.
शायद ही कोई भारतीय ऐसा बचा हो जो आज इस नाम से वाक़िफ़ न हो. मात्र 20 दिनों में 6 स्वर्ण पदक जीतकर भारत की इस बेटी ने नया इतिहास रच दिया है लेकिन आप में से बहुत से लोग ये नहीं जानते होंगे कि हिमा दास कौन-सी स्कूल में और कहां तक पढ़ी-लिखी है, हालांकि जानता तो मैं भी नहीं हूं, परन्तु मैं ऐसा बहुत कुछ जानता हूं, जो आप में से बहुत से लोग नहीं जानते होंगे.
हिमा का जन्म 9 जनवरी, 2000 को हुआ था अर्थात वो अभी 19 वर्ष की हो चुकी है और उसका वजन 55 किलोग्राम और ऊंचाई 5.5 इंच है, रंग गेंहुआ, आंखें गहरी भूरी, बालों का रंग काला और बॉडी स्ट्रक्चर 36-32-34 है. हिमा का जन्म असम राज्य के नौगांव (नंगाव) जिले के कांधूलिमारी गांव में ढिंग नामक स्थान पर हुआ था और उनके पिता का नाम रणजीत दास तथा माता का नाम जोनाली दास है. उनके पिता चावल की खेती करते हैं और माता हाउस वाइफ है. हिमा अपने चार (पांच) भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. जब वो छोटी थी तो अपने पिता के साथ चावल के खेतों में जाती थी, मगर स्पोर्ट्स की तरफ उसका झुकाव तब भी था (आज की भाषा में स्पोर्ट्स उसका पैशन था) और हिमा का स्टैमिना भी शुरू से ही काफी मजबूत था और इसी वजह से वो दौड़ते समय जल्दी से नहीं थकती थी. और इसी वजह से उसे उसकी जन्मभूमि के नाम से आने वाली एक एक्सप्रेस ट्रेन के नाम पर उसका उपनाम ‘ढिंग एक्सप्रेस’ (स्पीड के लिये) बुलाया जाता है.
अपने स्कूल के दिनों में लड़कों के साथ मिलकर फुटबॉल और अन्य कई खेल खेला करती थी. वो अपने गांव के छोटे फ़ुटबॉल क्लब मे स्ट्राईकर की जगह पर खेलती थी और उसका सपना था कि भारत के लिये वह फ़ुटबॉल खेले. एक दिन स्कूल में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलते समय वह तेजी से दौड़ रही थी और उस समय पीटी शिक्षक ने उसकी स्पीड देखकर हिमा से खेल के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसे फ़ुटबॉल पसंद है लेकिन पीटी शिक्षक को पता था कि भारत में फ़ुटबॉल के लिये कैरियर नहीं है और महिलाओं के लिये तो शून्य ही है. अतः उन्होंने हिमा को रेसिंग में हिस्सा लेने को प्रोत्साहित किया अर्थात हिमा को एक रेसर बनने की सलाह सबसे पहले जवाहर नवोदय विद्यालय के फिजिकल एजुकेशन के टीचर ने दी. हिमा ने अपने पीटी शिक्षक की बात मानकर अपना ध्यान रेसिंग में लगाना शुरू कर दिया और गांव में रनिंग ट्रैक की सुविधा मौजूद नहीं होने के चलते हिमा ने अपने करियर के शुरुआती दिनों में रेसिंग की प्रैक्टिस फुटबॉल के मिट्टी के मैदान से की थी. बाद में कई रेस से जुड़ी प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेने लगी. उसके कुछ दिनों बाद पीटी शिक्षक ने हिमा की मुलाकात नंगावो स्पोर्ट्स एसोसिएशन के गौरी शंकर रॉय से करा दी. फिर हिमा की जो रेसिंग लाइफ शुरू हुई, वो आज विश्वस्तरीय हो चुकी है.
उसके वैश्विक स्तर कैरियर की शुरुआत साल 2017 में हुई, जब वो युवा कल्याण निदेशालय की ओर से आयोजित किए गये इंटर-डिस्ट्रिक्ट कम्पीटीशन की जिला स्तरीय दौड़ प्रतिस्पर्धा में 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ में सस्ते से जूते पहनकर दौड़ने वाली हिमा ने इन दोनों दौड़ों में प्रथम स्थान हासिल किया और जिस गति से वो दौड़ी, उससे सब हैरान रह गये. उस समय वो एक ऐसी तूफानी रेसर बन चुकी थी, जिससे जीतना शायद पी. टी. उषा और मिल्खासिंह के बस में भी नही था. इसी प्रतिस्पर्धा के दौरान हिमा को उसके वर्तमान कोच निपोम दास ने देखा और हिमा की स्पीड देखकर निपोम दास ने उसे ट्रेनिंग के लिये गुवाहाटी चलने को कहा, तो उसने बाबा (पिता) से पूछने को बोला. और जब कोच ने उसके पिता को गांव से 140 किलोमीटर दूर गुवाहाटी में ट्रेनिंग पर भेजने को कहा तो उसके पिता ने मना कर दिया क्योंकि उसके पिता तो गरीबी रेखा के निम्नस्तर पर आजीविका चलाने वाले साधारण किसान थे और सपने भी छोटे थे. वे हिमा को दिन में तीन बार चावल खिलाने से ही संतुष्ट थे और फिर उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वे हिमा को गुवाहाटी भेजकर उसकी ट्रेनिंग का खर्च उठा सके.
निपोम दास ने उन्हें बार-बार समझाया क्योंकि वे हिमा रुपी हीरे को एक ही नजर में परख चुके थे और निपोम दास ने ये उक्ति फिर सही साबित कर दी कि हीरे की परख सिर्फ असली जौहरी ही कर सकता है. निपोम दास वो असली जौहरी निकले जिसने हिमा जैसे हीरे (जो कोयले की खान में छुपा हुआ और कार्बन चढ़ा हुआ हीरा था) को तराश कर आज चमकदार और बेशकीमती हीरा बना दिया है. हिमा का नाम अगर आज पूरी दुनिया में गूंज रहा है तो इसका एक मात्र कारण निपोम दास है. निपोम दास ने हिमा की क़ाबलियत को जान लिया था. अतः पिता को समझा-बुझाकर अपने साथ गुवाहाटी भेजने को राजी कर लिया और उसका सारा खर्च निपोम दास और डॉ. प्रतुल शर्मा ने बहन किया. गुवाहाटी आने से पहले हिमा ने कभी शूज पहन के दौड नहीं लगाई थी.
शुरू शुरू में निपोम दास ने हिमा को 200 मीटर रेस के लिये ही तैयार किया था, मगर जब उन्हें हिमा के असली स्टैमिना को देखा तो 200 मीटर की जगह 400 मीटर के ट्रैक पर दौड़ना शुरू कर दिया. आज वो एक सफल धावक और आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं, जिसने 400 मीटर की दौड़ स्पर्धा में 51.46 सेकेंड का समय निकालकर स्वर्ण पदक जीता है. गुवाहाटी में ट्रेनिंग के बाद नेशनल गेम्स में उसने 100 मीटर में ब्रॉन्ज और 200 मीटर में सिल्वर हासिल किया. वहां से उसका चुनाव हैदराबाद अंडर 18 नेशनल की प्रतियोगिता के लिए हुआ, जहां उसने फिर से पदक हासिल किये. 200 मीटर की रेस में 24.85 सेकेण्ड का समय लेने से उसका चुनाव एशियन यूथ चैंपियनशिप बैंकांक के लिये हुआ. वहां पर अपने पुराने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए हिमा ने 200 मीटर की दौड़ में 24.52 सेकेण्ड का समय लिया. एशियन गेम्स में अच्छे प्रदर्शन के कारण वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप के लिये चुनी गयी. उस समय तक वह एक ऐसी पहली महिला भारतीय धावक बन चुकी थी जो ट्रैक इवेंट मे भी मेडल, फिर उसके बाद नेशनल कैंप पटियाला. उसके बाद एशियन गेम्स जकार्ता में गोल्ड और उस समय तक उसने अपना पिछले टाइमिंग के रिकॉर्ड को तोड़कर 23.59 सेकेण्ड कर लिया था. फेडरेशन कप पटियाला में जब हिमा ने गोल्ड हासिल किया, तब उनका टाइमिंग 51.97 सेकेण्ड था और एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया का कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए कम से कम टाइमिंग 52 सेकेण्ड था.
हिमा को फुटबॉल और रेस के अलावा बाइक चलाना भी बहुत पसंद है. हिमा के बारे में कहा जाता है कि वो जल्दी से किसी से घुलती-मिलती नहीं और भीड़ से अलग रहना पसंद करती है. मगर कोई उसे एक बार कह दे कि आओ रेस लगाये तो बिना सोचे समझे रेसिंग कर लेती है और जीत कर ही आती है. यही बात उसने अभी हाल ही में चेक गणराज्य में आयोजित ट्रैक एंड फील्ड प्रतिस्पर्धा में साबित करके दिखाई और 20 दिन में 6 गोल्डमैडल लेकर इतिहास रच दिया. हिमा दास का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन – 100 मीटर (11.74 सेकेंड में), 200 मीटर (23.10 सेकेंड में), 400 मीटर (50.79 सेकेंड में) तथा 4 गुना 400 मीटर रिले (3ः33.61 में).
आप में से बहुत से नहीं जानते होंगे कि असम में जहां दरिद्रता एक बड़ी समस्या है, वहीं पुरानी रूढ़ि पर चलने वाले पुरुष वर्ग द्वारा महिलाओं के प्रति घरेलु हिंसा और यौन उत्पीड़न सबसे बड़ी समस्या है. इसके साथ ही बालाश्रम और अशिक्षा भी असम में एक बड़ी समस्या है लेकिन असम में रणजीतदास और जोनाली दास जैसे माता-पिता भी होते हैं, जो निर्धन और अशिक्षित होने पर भी अपनी बेटियों को आगे बढ़ाते हैं और उनके सपनों को साकार करते हैं.हिमा दास जैसी बेटियां भी होती है, जो एक निर्धन परिवार की लड़की होते हुए भी दुसरों की मदद का जज्बा अपने अंदर समेटे हुए रखती है (शायद आप में से ज्यादातर लोग नहीं जानते होंगे कि हिमा ने 17 जुलाई, 2019 को बाढ़ पीड़ित लोगों की सहायता के लिये के लिए उसने अपना आधा वेतन दान कर दिया था).
हिमा ने जब अपने कॉमनवेल्थ गेम्स में सेलेक्शन की बात बताने के लिये जब अपने घर फोन किया तो उसकी मां ‘कॉमनवेल्थ गेम्स’ भी ठीक से नहीं बोल पायी और उससे पूछा- ‘ये क्या होता है ?’ हिमा ने समझाने की कोशिश की लेकिन तब भी उसकी मां समझ नहीं पायी लेकिन उसने तब हिमा को ये कहा था कि “तु टीवी पर आई ना, फिर वह अच्छी ही बात होगी.’ (इस संदर्भ से आप अंदाज लगा सकते हैं कि उसका परिवार कितना भोला, अशिक्षित, निर्धन होगा, मगर उसने जो रेस शुरू की है, वो असम में ही नहीं बल्कि भारत के कई राज्यों की कितनी ही बेटियों के सपनों को साकार करेगी और आईडल तो वो बन ही चुकी है).
Hima Das, a Golden shower for India. Congratulations and Blessings. -Sg @HimaDas8 #HimaDas https://t.co/lKtlDWkUFd
— Sadhguru (@SadhguruJV) July 18, 2019
यहां एक संदर्भ का जिक्र और करना चाहूंगा जो सद्गुरु जग्गी वासुदेव का है. दुनिया का सबसे नीच इंसान ये सद्गुरु जग्गी वासुदेव है जिसने हिमा जैसी भारत की महान बेटी के लिये ऐसे शब्दों का प्रयोग किया, जो उसकी असली मानसिकता दर्शाते हैं. इस आध्यात्मिक सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने हिमा को बधाई देने के ट्वीट में ‘गोल्डन शॉवर’ शब्द का इस्तेमाल किया, जो एक स्लैंग की तरह इस्तेमाल होता है. और इसका मतलब सेक्शुअल डिजायर के लिये किसी के ऊपर पेशाब करना होता है (जग्गी वासुदेव का ट्वीट – ‘हिमा दास, भारत के लिए एक गोल्डन शावर की तरह. बधाई और आशीर्वाद’).
लगता है भारत का अध्यात्म अब चुक गया है इसलिये लगभग सारे आध्यात्मिक गुरु पतन के मार्ग पर हैं. उन्हें शब्दों तक का ज्ञान नहीं रहा कि किस समय कौन-सा शब्द प्रयोग करना चाहिये.
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