पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
बेहतर होता कि मोदी वोटो की राजनीति तीन तलाक इत्यादि के बजाय मुस्लिम समाज से इस कुप्रथा को समाप्त करने की पहल करते.
अगर मैं आपसे पुछुंं कि क्या आप जानते हैं इस्लाम में खतने का रिवाज़ है ? तो आप में से ज्यादातर लोग जवाब देंगे – हांं, हमें पता है. लेकिन अगर मैं आपसे फिर से ये पुछुंं कि क्या आप जानते हैं कि इस्लाम में महिलाओ का भी खतना होता है, तो आप में से ज्यादातर लोगों का जवाब ‘नहीं’ में होगा और शायद कुछ तो ये भी पूछ लेंगे – ‘महिलाओं का खतना ? वो भला कैसे होता है ?’
तो मैं आप सब को बता दूंं कि भगनासा को बिलकुल निकाल देना (removal clitoris), भगोष्ठ को छील देना या काट देना (trimming of labia majora or cutting) महिलाओं का खतना कहलाता है. इस्लाम में फैले पाखंडों में खतना सबसे ज्यादा क्रूर कुप्रथा है, जो ज्यादातर बच्चों (लड़कों और लड़कियों दोनों) की नादानीयत में अंजाम दिया जाता है. महिलाओं का खतना इसलिये किया जाता है ताकि मैथुन प्रक्रिया में उसे किसी तरह की अनुभूति न हो और वो सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन ही बनी रहे !
दुनिया भर के इस्लामिक देशों अथवा मुस्लिम अनुयायियों के साथ ये हो रहा है और ये कुप्रथा भारत में भी है. दुनिया भर में एक बार फिर से महिलाओं के शारीरिक शोषण के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र ने आवाज उठायी है. उसका कहना है कि खतने के नाम पर महिलाओं के सेक्स ऑर्गन को नुकसान पहुंचाना, उनके साथ एक घनघोर अन्याय है, जिसे तत्काल प्रभाव से रोकना जरूरी है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) का कहना है कि हर रोज़ 6 हजार लड़कियांं इस कुप्रथा की शिकार हो रही है, वैसे तो पूरी दुनिया के मुसलमानों में लगभग महिला खतना होता है, मगर ये अरबदेशों में सबसे अधिक है और सच कहुंं तो भारत के मुसलमान तो महिलाओं का खतना इसलिये भी कराते हैं ताकि वो किसी गैर-मुस्लिम के साथ न भाग सके (ऐसा होने पर जब भी उनका संबंध बनने की नौबत आयेगी तो मुस्लिम महिला का खतना जान गैर-मुस्लिम उसे छोड़ देगा).
चूंंकि महिलायें कोमल मानसिकता वाली होती है, अतः महिला खतना महिलाओं में लंबे समय तक मनोवैज्ञानिक हानिकारक प्रभाव छोड़ सकता है और उनकी यौनिकता को हानि तो पहुंचा ही रहा है. ये खतना भी बिना किसी अनुभवी डॉ. के पारम्परिक तरीके से किया जाता है, जो बिल्कुल भी हाईजीन नहीं होता अर्थात खतना कोई प्रशिक्षित नहीं करता बल्कि नीम-हकीम सांसत-ए-जान की तरह बूढ़ी औरतें ब्लेड की सहायता से करती है. एक ही ब्लेड को कई-कई बार और बिना गर्म पानी से धोये अनेक स्त्रियों के लिये प्रयोग किया जाता है, जिससे उन महिलाओं को कई यौनांग संबंधी समस्या भी उत्पन्न होती है और कुछ तो किसी इन्फ़ेक्सन के कारण या अत्यधिक खून बहने से मर भी जाती है. ब्लेड से काटने पर जो दर्द महिलाओं/बच्चियों को होता है, उसकी तो कोई सीमा ही नहीं है.
क्या किसी भी इंसान की जान इतनी सस्ती हो सकती है कि ऐसी मूर्खतापूर्ण क्रूर धार्मिक क्रियाकलापों के नाम पर ली जा सके ? कदापि नहीं ! किसी भी इंसान को किसी धार्मिक मूर्खता के नाम पर इस तरह की क्रूरता से किसी इंसान के किसी अंग काटने का अधिकार नहीं है, ये बिल्कुल अनफेयर है !
बेहतर होता कि मोदी वोटो की राजनीति तीन तलाक इत्यादि के बजाय मुस्लिम समाज से इस कुप्रथा को समाप्त करने की पहल करते. इस प्रथा के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपना पहला निंदा प्रस्ताव साल 2010 में पारित कर दिया था और उस समय के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके मुताबिक सिर्फ साल 2010 में ही 7 करोड़ लड़कियां इस क्रूर कुप्रथा की शिकार बनीं थी. जून, 2019 तक यह आंकड़ा लगभग दस गुना बढ़ कर लगभग 70 करोड़ पहुंच चुका है अर्थात दस सालों में ही 70 करोड़ महिलायें / बच्चियांं इस क्रूर कुप्रथा का शिकार हो चुकी है.
अगर इन आंकड़ों के हिसाब से देखा जाये मुस्लिम आबादी की महिला आबादी लगभग पूरी तरह इसका शिकार हो चुकी है और जो बची हुई है, वो या तो नयी जन्म लेने वाली बच्चियांं हैं या फिर वे वृद्ध औरतें जिनका पहले खतना नहीं हुआ. कुछ भारतीय मुस्लिम समुदायों में महिलाओं का खतना नहीं किया जाता है, वे भी इन्ही में शामिल है.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने कहा है कि हम विश्व के सभी देशों से अपील करते हैं कि वो महिलाओं के साथ हो रहे सभी अपराधों को तो नियंत्रित करे ही, मगर इस घनघोर अपराध के खिलाफ हमारा दिल से साथ दें ताकि इस कुप्रथा को ख़त्म किया जा सके.
जिस खतने को धार्मिक प्रक्रिया माना जाता है, असल में वो धार्मिक प्रक्रिया है ही नहीं, बल्कि कुरान के हिसाब से जिसका भी खतना हुआ है, उसे सिर्फ दोजख की आग में जलाया जायेगा और जिसका खतना नहीं हुआ है उसे ही जन्नत नसीब होगी ! (आपको बता दूंं कि मुहम्मद ने कभी खतना नहीं करवाया और न ही कुरान (सभी 6 क़ुरानों ) की किसी आयत में लिखा है और न ही कोई हदीस इस बारे में है). खुद अल्लाह ने भी खतने को नकारा और ये बात अपनी ही धार्मिक किताब के हिसाब से यह समझ लो, यथा –
‘हमने तुम्हें बनाया तो ठीक अनुपात और आकार में बनाया और इस प्रकार की रचना बनाई जैसी होना चाहिये. (सूरा अल इनफितार 82 :7-8)
‘तुम क्यों नहीं मानते कि हमने ही तुम्हें पैदा किया और तुम्हारा आकार देने वाले हम हैं या तुम आकार देने वाले हो. (सूरा अल वाकिया – 56:57)
‘हमने तुम्हारा आकार बनाया और अच्छा आकार बनाया. (सूरा अल मोमिनीन -40 :64)
‘अल्लाह ने जो भी चीज बनाई व्यर्थ नहीं बनाई. (सुरा आले इमरान -3 :191)
‘हमने इन्सान को अच्छे से अच्छी स्थिति में बनाया. (सूरा अत तीन -95 :3)
अब बताओ ?
अगर अल्लाह को तुम्हें छीला हुआ फल ही बनाना होता तो वो पहले से ही अर्थात जन्मजात ही खतना करके ही पैदा करता न ?
जब अल्लाह खुद कह रहा है कि हमने तुम्हें जो आकार दिया है और शरीर में जो भी चीज़े दी है, वो कोई भी व्यर्थ नहीं है तो फिर अल्लाह की दी हुई चीज़ को काटकर फेंकना तो अल्लाह की हुक्मउदूली हुई न ?
मैं ये आपके विवेक पर छोड़ता हूंं आप स्वयं अपने विवेक से फैसला करो कि आपको अल्लाह का आदेश मानना है या इन शैतान का ?
खतना करवाने का हुक्म अल्लाह ने कभी नहीं दिया. असल में ये कुप्रथा किसी ऐसे सनकी शैतान का बनाया नियम है जो अपनी बीवी को संतुष्ट नहीं कर पाता होगा और बदले की भावना से उसने ये कुप्रथा चला दी होगी क्योंकि ये बात अपनी जगह अकाट्य है कि लड़कियों के सेक्स ऑर्गन यानी जननांग के क्लिटोरिस को काट देने पर महिलाओं के अंदर सेक्स करने की इच्छा समयांतराल में खत्म हो जाती है और वो सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन बनी रह जाती है (ये थोड़ा अटपटा और अश्लील लग सकता है लेकिन असलियत समझाने के लिये इसे ऐसे ही लिखना जरूरी लगा, अतः ऐसे लिखा. हालांंकि फिर भी इसमें शब्दों के साथ-साथ गरिमा का भी ध्यान रखा गया है).
मुस्लिम समाज में, इस कुप्रथा के समर्थन में जो कुतर्क दिया जाता है वो ये कि खतना करने से महिला या लड़की पाक-साफ रहती है, वो जल्दी वयस्क नहीं होती है. जबकि असलियत ये है कि ऐसा महिलाओं की सेक्स की इच्छा ख़त्म करने के लिये किया जाता है. और थोड़ा स्पष्ट शब्दों में लिखूं तो क्लिटोरिस काट देने के बाद कोई भी व्यस्क महिला अपनी सेक्स की भावना की संतुष्टि कभी नहीं कर पाती क्योंकि ये प्रकृति प्रदत वो नेचुरल अंग है, जिससे महिलायें अपनी यौनेच्छा की संतुष्टि प्राप्त करती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट को देखकर जहांं मैं हतप्रभ हूंं, वहीं दूसरी ओर इंसानी नर द्वारा, इंसानी मादा के प्रति ये जो क्रूरता बरती गयी है, वो प्रकृति के नियमों से छेड़छाड़ भी है. उसे क्या हक़ है कि प्रकृति की नियमों में छेड़छाड़ करे ?
मुस्लिम समुदाय के लोग मेरी इस पोस्ट का विरोध कर सकते हैं क्योंकि उनकी नजर में धर्म से जुड़ी किसी भी कुप्रथा में उन्हें कोई बुराई नजर नहीं आती और मूर्खता की हद तक धार्मिक होने और अशिक्षा होने से वो कभी भी अपनी धार्मिक परंपराओं के खिलाफ नहीं जाते और उसे यथारूप स्वीकार कर लेते हैं.
क्या ऐसे में आपको सभ्य कहलाने का हक़ है ? आपको सोचना होगा कि आप किसी आदिवासी समाज का हिस्सा है या 21वीं सदी के सभ्य समाज का ?
अगर मुसलमान ये मानते हैं कि इंसान को अल्लाह ने बनाया है और उसका अकार, रूप संतुलित और ठीक-ठाक बनाया है तथा उसे किसी तरह की कमी नहीं रखी, तो मेरा ये लेख पढ़ने के साथ ही वे अल्लाह का वास्ता ले कि आइंदा उसके परिवार में कभी किसी का खतना नहीं होगा.
उपरोक्त में मैंने आपको इस्लामिक धार्मिक किताबों के हवाले से बता दिया कि अल्लाह ने कभी खतने का नहीं कहा. अब आपको बताता हूंं कि अल्लाह के दिये इंसानी शरीर में काट-छांट कर आकार को बदलना शैतान की चाल कैसे है ? यथा –
‘शैतान ने अल्लाह से कहा- मैं तेरे बन्दों को बहकाऊंंगा, उनको वासना के मायाजाल में फंसाऊंंगा, फिर वे अपने चौपायों के कान फडवाएंगे और अल्लाह की रचना में बदलाव करेंगे और ऐसा करने वाले शैतान के मित्र होंगे.’ (सूरा अन निसा -4 :119)
इस आयत की तफ़सीर में ‘अल्लाह की रचना’ में बदलाव का उदाहरण दिया गया है और वो बदलाव किसी की खस्सी करना, नसबंदी करना, किसी को बांंझ करना, परिवार नियोजन करना, आजीवन ब्रह्मचारी रहना और किसी को हिजड़ा बनाना इत्यादि के रूप में है. जब इसी आयत की बदौलत हरेक मुसलमान नसबंदी नहीं करवाते और परिवार नियोजन नहीं करते हैं और इसे गुनाह मानते हैं, तो इसी आयत में जब खस्सी करने को अथवा शारीरिक अवयवों में छेद करना (नाक-कान इत्यादि में जेवर पहनने के लिये छेद करना) या फड़वाने (पशुओं के कान फड़वाना), काटना या शारीरिक अवयवों में छेड़छाड़ (खतना) को कैसे जायज मानते हैं ? क्या ये उस अल्लाह की रचना में बदलाव नहीं है ?
छोटे-छोटे बच्चों (लड़के और लड़कियांं दोनों) की नादानियत में खतना कर अल्लाह के आदेश का मुखाफलत करने वाले मुस्लिम ये जान ले कि खतने की परम्परा यहूदियों में थी, जो बाद में उनके ईसाई कन्वर्जन में भी चालू रही. इसका सबूत खतने का आदेश बाईबिल में है, यथा – ‘खुदा ने कहा, तू और तेरे बाद तेरे वंशज पीढी दर पीढी हरेक बच्चे का खतना कराये और उनके लिंग की खलाड़ी काट दे, जो तेरे में पैदा हो या जिसे मोल से खरीदा हो, सबका खतना कर.’ (बाइबिल -उत्पत्ति अध्याय -17 : 9 से 14)
लेकिन ईसाइयों ने ये कुप्रथा कब की बंद कर दी. और आज तो शायद ही कहीं अपवाद के रूप में भी देखने को मिले. मिस्र से निकालने बाद जितने लोग पैदा हुए किसी का भी आज तक खतना नहीं हुआ और ये बात यहोशु-5 :5 से स्पष्ट है और बाद में बाइबिल व्यवस्था-10 :16 में सुधार करके लिख दिया गया कि ‘खतना अपने शारीरिक अंग का नहीं बल्कि अपने ह्रदय के विकारों का करो.’
खतने का कोई भी आदेश न तो कुरान में है और न ही किसी हदीस में लेकिन फिर भी कुछ लोग खतने को मुहम्मद के आदेश से जोड़ते हैं और कहते हैं कि औरतों के खतने का आदेश भी मुहम्मद ने दिया था. अबू दाऊद-किताब 41 हदीस 5149 ,5151 और 5152 में लिखा है कि ‘एक दिन मदीना में उम्मे अत्तिया लड़कियों का खतना करने जा रही थी तो मुहम्मद ने उससे कहा कि लड़की की योनी को गहराई से मत छीलना. ऐसा न हो कि वह उसके पति को अच्छी ही न लगे. फिर रसूल ने कहा कि लड़कियों की सिर्फ भगनासा (clitoris) और आस-पास के भगोष्ठ छील दो.’ (बुखारी जिल्द 7 किताब 72 हदीस 779)
मुहम्मद तो यहूदियों से बेइंतेहा नफरत करता था और क्योंकि मुहम्मद ने हमेशा यहूदियों से उल्टा किया, अतः हो सकता है कि ये मुहम्मद की खुराफात हो और उसने यहूदियों से उल्टा करने की चाह में औरतों के खतने की खुराफात को अंजाम दे दिया हो. और ये बात बुखारी -जिल्द 7 किताब 72 हदीस 780 से भी स्पष्ट होती है जिसमें मुहम्मद ने कहा कि ‘काफिर और यहूदी जैसा करते हैं, तुम उसका उलटा करो.’
लेकिन मैं मुस्लिमो से पूछना चाहता हूंं कि इस्लाम अल्लाह से है या मुहम्मद से ? आपके लिये अल्लाह बड़ा है या मुहम्मद ?
ये क्रूर कुप्रथा दुनिया के बहुत से देशों में प्रतिबंध हो चुकी है. और भारत में भी अब इसके ख़िलाफ़ आवाज़ें उठनी शुरू हो गई हैं. वे महिलायें जो इस पीड़ा से गुजर चुकी हैं वे अपनी बेटियों को बचाने के लिये संघर्ष कर रही है और ऐसी ही अनेक महिलाओ ने मिलकर चेंजडॉटओआरजी (change.org) नाम की वेबसाइट के जरिये एक याचिका डालकर सरकार से महिला खतना अर्थात एफजीएम (Female Genital Mutilation) पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है और कहा गया है कि
इस क्रूर कुप्रथा के पीछे का कारण मुस्लिम पुरुषों की महिला विरोधी सोच है. उनका ऐसा विश्वास है कि ‘महिला यौनिकता पितृसत्ता के लिए घातक है और महिलाओं को सेक्स का आनंद लेने का कोई अधिकार नहीं है. और जिस महिला का खतना हो चुका होगा, वो अपने पति के प्रति अधिक वफ़ादार होगी और घर से बाहर नहीं जायेगी. इसका एकमात्र उद्देश्य महिला की यौन इच्छा को ख़त्म करना और सेक्स को उसके लिये कम आनंददायक बनाना है.’ और इसी को आधार बना याचिका डाली गयी है जिसमें महिला अधिकारों और इंसानी मुलभूत अधिकारों का संदर्भ भी दिया गया है.
दिसंबर, 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर एफ़जीएम को दुनिया भर से ख़त्म करने का संकल्प लिया था. और उसके प्रयासों से अब 2019 तक में बहुत से देशों ने इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया है लेकिन भारत में अभी तक ऐसा कोई क़ानून नहीं है. भारत की राजनीति सिर्फ वोट बैंक भुनाने के लिये तीन तलाक और बुर्के और हलाला में उलझी है, जबकि जरूरत महिला खतना पर सख्त कानून बनाकर इसे प्रतिबंधित करने की है.
आज भारत में महिला खतना के खिलाफ उठती मुस्लिम महिलाओं की आवाज़ें भले ही फुसफुसाहट के रूप में है, मगर आने वाले समय में एक स्पष्ट संदेश देगी और एक बड़ी क्रांति में बदलेगी. मैं इसको अपना पूर्ण समर्थन देता हूंं और आज ये भी नहीं लिखूंगा कि मैं किसी धर्म के खिलाफ नहीं हूंं. बल्कि आज ये लिखूंगा कि मैं ऐसे सभी धर्मोंं के सख्त खिलाफ हूंं, जो धर्म के नाम पर क्रूरता और हिंसा करते हैं. और जो ऐसी क्रूर और हिंसक कु-प्रथाओं को समाप्त करने के बजाय पोषित करते हैं. मैं ऐसे सभी पाखंडी और निर्दयी धर्मोंं का सिर्फ विरोध ही नहीं करूंंगा बल्कि जरूरत पड़ी तो इनको समाप्त करने के प्रयासों में अपना पूर्ण सहयोग भी दूंगा.
उपरोक्त लेख में दी गयी जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित कर संशोधन के साथ पोस्ट की गयी है और इसे इस क्रूर कुप्रथा के विरोध में मेरा समर्थन भी समझ सकते है क्योंकि प्राकृतिक शरीर के साथ छेड़छाड़ करना ह्यूमेन राइट्स के खिलाफ है, चाहे फिर वो धर्म के नाम पर हो या अन्य किसी कारण से हो. चाहे वो मर्द का शरीर हो या फिर औरत का शरीर हो. और इसको लिखने के पीछे मंशा ये है कि आप सब भी इस कुप्रथा को ख़त्म करने में अपना अपना मोरल सपोर्ट दें.
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Rohit Sharma
July 23, 2019 at 3:00 pm
ऐसे बहुत से रिवाज़ सभी धर्मो में होते है जैसे हिन्दू धर्म की देवदासी प्रथा आज भी मौजूद है और पण्डे पुजारी इस प्रथा के नाम पर नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण करते है और बाद में उन्हें वैश्यावृति में धकेल दिया जाता है