पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
आपने मेरी पिछली आलेख में पढ़ ही लिया होगा कि मदरसों में किस तरह धार्मिक कट्टरता और धार्मिक अंधविश्वासों को पोषित कर मुर्ख तैयार किये जा रहे हैं, ताकि इस्लामिक पाखंड चलता रहे. क्योंकि जैसे-जैसे मुस्लिम शिक्षित होगा, वो इन अंधविश्वासों पर सवाल उठायेगा और जवाब न मिलने पर वो धर्म के पाखंड को समझ जायेगा और अपने बच्चों को भी वो इस पाखंडों से दूर रखकर उसे व्यवहारिक और तार्किक शिक्षा दिलायेगा.
अब आगे पढ़िये, यथा – 22 अरबों के देश – जो मुस्लिमों के दिग्गज या तुर्रुम खान अरबदेश कहलाते हैं – भी मिलकर भी यहूदियों के देश इजरायल की एक ईंट नहीं उखाड़ पाते, क्यों ?
(आगे पढ़ने से पहले मदरसों में तैयार मजहबी मुर्ख यहीं रुक जाये क्योंकि आगे जो आप पढ़ेंगे, उससे आपकी भावनायें आहत होंगी और आपका इस्लाम खतने से खतरे में आ जायेगा. अतः मेरी पोस्ट छोड़कर किसी अपने जैसे दूसरे जगहों पर चले जाये.)
एक सर्वे के मुताबिक सिर्फ पाकिस्तान में ही 285 धार्मिक दल काम कर रहे हैं जिनमें से 28 राजनीति में भी शामिल हैं. इन 285 में से 124 ने तो अपना टार्गेट सिर्फ जिहाद को ही बना रखा है. और इनका काम जिहादी तैयार करना है, जो इस्लाम के नाम पर कहीं भी जाकर आंतक फैलाये या बम बांधकर दुसरों के साथ खुद को भी उड़ा ले. पाकिस्तान तो सिर्फ एक देश है तो सोचिये बांंकियों की क्या हालत होगी क्योंकि वे तो शिक्षास्तर में पाकिस्तान से ज्यादा गये-गुजरे और ज्यादा कट्टरवादी हैं.
मुस्लिमों की शिक्षा स्तर का अंदाज सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन 22 मुस्लिम देशों में 1.5 अरब से भी ज्यादा मुसलमानों पर सिर्फ 498 युनिवर्सिटियांं हैं, जबकि सिर्फ अमेरिका में ही 5,758 है और भारत में तो अमेरिका से भी ज़्यादा 8500 युनिवर्सिटियांं हैं.
दुनिया भर में लगभग 76 इस्लामिक या मुस्लिम बहुल देश है लेकिन उनमें साक्षरता दर 25 से 28 फीसद के बीच ही है. और कुछ देशों (लगभग 25 देशों) में तो साक्षरता सिर्फ दस फीसद ही है. दुनिया में एक भी ऐसा मुस्लिम देश नहीं है जहांं साक्षरता दर सौ फीसद हो ?
एक रिपोर्ट के अनुसार और ओआईसी (OIC) में 76 मुस्लिम देश शामिल हैं और उनमें अंतरराष्ट्रीय स्तर की केवल पांच युनिवर्सिटियांं हैं, यानी तीस लाख मुसलमानों के लिए एक युनिवर्सिटी, जबकि अमेरिका में लगभग 6 (5,758) हजार, जापान में नौ सौ पचास, चीन में नौ सौ और भारत में 8,500 निजी और सरकारी विश्वविद्यालय काम कर रहे हैं.
पूरी दुनिया में यहूदियों की संख्या डेढ़ करोड़ है और मुसलमान डेढ़ अरब अर्थात एक यहूदी सौ मुसलमानों के बराबर है. दूसरे शब्दों में एक यहूदी सौ मुसलमानों पर भारी है क्योंकि पिछले सौ सालों में 71 यहूदियों को अनुसंधान विज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के बदले नोबेल पुरस्कार मिल चुका है जबकि मुस्लिम दुनिया में सिर्फ तीन लोग ये इनाम प्राप्त कर पाये. यहां तक कि ‘किंग फैसल इंटरनेशनल फाउंडेशन सऊदी अरब’ (ये एक मुस्लिम संगठन है) की तरफ से दिये जाने वाले ‘किंग फैसल पुरस्कार’ के लिये भी मेडिकल साइंस (चिकित्सा विज्ञान) और अनुसंधान और साहित्य के क्षेत्र में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार उसकी शर्तों को पूरा नहीं कर पाया ! क्या ये नील नदी के तट से लेकर काशिगर की मिट्टी तक के मुसलमानों के लिए शर्म का कारण नहीं है ?
डेढ़ करोड़ ‘खुदा के दुत्कारे हुए’ यहूदी हर क्षेत्र में आगे हैं लेकिन सारे मुस्लिम मिलकर भी कभी इजरायल की एक ईंट नहीं उखाड़ सके, न विज्ञान में, न रिसर्च में और न मेडिकल में और न ही लड़ाई में. डेढ़ अरब से ज्यादा मुस्लिम पूरी दुनिया में सिर्फ एक चीज़ धार्मिक कट्टरवाद और अंधविश्वासों के पाखंड में सबसे आगे है और मतभेद के साथ-साथ फितना और फसाद में भी सबसे आगे हैं.
मूर्खता की हद तो ये है कि ज्यादातर मुस्लिम ये सोचते हैं कि इस्लाम के कारगर होने के कारण ‘दुनिया के लोग तेजी से इस्लाम के क़रीब या इस्लाम कुबूल करते जा रहे हैं.’ खुशफ़हमी एक हद होती है लेकिन मजहबी मूर्ख तो सारी हदे तोड़ कर काल्पनिक दुनिया में जी रहे हैं !
‘इस्लाम एक मोकम्मल ज़ाब्त ए हयात है’ अथवा तक़वा व खुदा के खौफ का ढिंढोरा पीटने वाले इन मजहबी मूर्खोंं से मेरा सवाल है कि क्या पश्चिम के आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बिना मस्जिदिल हराम में 30 लाख लोगों के एक समय में नमाज़ें पढ़ने का अमल मुमकिन हो सकता था ?
हरम शरीफ में बिजली की आधुनिक व्यवस्था, आसमान को छूती इमारतें क्या ये सब इस्लामी शिक्षाओं के कारण इस दुनिया में अस्तित्व में आईं ?
दर्जनों मंजिलों पर लाखों नमाज़ियों को चंद लम्हों में ले जाने वाले Escalaters (माफ कीजिये मुझे इसका उर्दू विकल्प शब्द मालूम नहीं है, शायद उर्दू की डिक्शनरी में भी नहीं होगा) क्या ‘मोमिनों’ का आविष्कार है ?
ये जो दुनिया का सबसे बेहतरीन साउण्ड सिस्टम हरम शरीफ में लगा है, जिसकी आवाज़ आसपास की दर्जनों इमारतों में स्थित हजारों कमरों में भी साफ सुनाई देती है. क्या ये साउण्ड सिस्टम किसी खुदा के प्यारे बंदे ने ईजाद किया है ? (यहांं ये बात भी याद रखे कि ये वही साउण्ड सिस्टम है जिसके अविष्कार पर हरम शरीफ से ‘हराम’ का फतवा जारी किया गया था, लेकिन अब उसी फतवे को दरकिनार कर अब हलाल हो चुका है.)
मुस्लिम औरतों को ककड़ी और केला खरीदने से रोकने वाली गर्दभ ज्ञान वाली तुम्हारी उन पुस्तकों में ये सब ज्ञान नहीं है बल्कि ये सब पश्चिमी शिक्षा (ईसाई और यहूदी वैज्ञानिकों) की मेहरबानी है !
वैश्विक स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में मुसलमानों का अनुपात 6.3 फीसदी है और इसी विश्व स्तर पर मुसलमान दूसरी क़ौमों से 85 साल पीछे हैं अर्थात दुनिया जहांं 21 सदी को पार कर 22 सदी में वैचारिक तौर पर प्रवेश कर चुकी है, वहीं मुस्लिम अभी भी 19 सदी में जी रहे हैं ! सातवीं सदी में हुई एक भयानक गलती के कारण आज मुसलमानो की ये हालत है (उस समय दीनी इल्म को समकालीन आधुनिक ज्ञान के सामने खड़ा किया गया और वहीं से आधुनिक ज्ञान तो खत्म हो गया लेकिन दीनी-इल्म के रूप में मजहबी मुर्ख तैयार होते चले गये).
जो मुस्लिम भीमटो के साथ मिलकर आज ब्राह्मणों को गरियाते हैं कि ब्राह्मणों ने उन्हें शिक्षा नहीं लेने दी और अछूत बनाया इसीलिये दलित और पिछडों ने इस्लाम स्वीकार किया था, वे अच्छे से इस तथ्य को समझ ले कि सबसे ज्यादा अशिक्षा मुसलमानो में ही थी और मुसलमानों को सबसे ज्यादा अशिक्षित मुर्ख बनाने में इस्लाम के चार खलीफा (खुल्फाए राशिदीन) सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं क्योंकि उनके दौर में सिवाय क़ुरान के और किसी इल्म पर पाबंदी थी. यहां तक कि उन्होंने उस समय हदीसों का संकलन भी नहीं करने दिया था अर्थात उस समय तक हदीसों का कोई भी संकलन नहीं था और न ही मान्यता थी. सिर्फ कुरआन को आसमानी किताब बताकर उसके हिसाब से जीवन जीने को पाबंद किया गया और मजहबी मुर्ख तैयार किये गये. और ऐसा होने से उस समय मुसलमान वैचारिक दुनिया में 700 साल पीछे चले गये अर्थात जब दुनिया 7वीं सदी में जी रही थी, तब मुसलमान पहली सदी से भी पीछे वाले लोगों की तरह हो गये थे.
यहां कोई ‘स्वर्णिम काल’ के नाम पर सवाल उठा सकता है तो उसका जवाब भी पहले ही लिख देता हूंं. तो जान लीजिये कि स्वर्णिम काल में गुलाम थे, लौंडियांं थीं, हाथ काटने की सज़ा थी, संगसार (मौत तक पत्थरों से मारने की सज़ा) थी, माले ग़नीमत था, मोता था, साजिशों का अंबार था, क़बायली परंपरा थी, अलोकतांत्रिक सत्ता थी, तीन खलीफाओं की शहादत थी … क्या-क्या नहीं था. अर्थात जो मूर्खोंं के लिये होना चाहिये, वो सब था. तो क्या अब ऐसी मूर्खतापूर्ण कु-प्रथाओं की तारीफ में कशीदे लिखूं ?
स्पेन में मुसलमानों के आठ सौ साल के शासन के बावजूद आज ग्रेनाडा कोर्डोबा के खंडहरों, अलहुमरा के अवशेषों के अलावा इस्लाम के पैरोकारों और इस्लामी संस्कृति के अवशेष का कोई निशान नहीं मिलता. (यही हाल सोने की चिड़ियांं भारत-पाकिस्तान का भी है. भारत में आगरा का ताजमहल, दिल्ली का लाल किला और पाकिस्तान में लाहौर की जामा मस्जिद आदि के सिवा मुसलमानों के हजार साल के शासन और संस्कृति का कोई निशान नहीं मिलेगा !
मुस्लिम शासन में शासकों ने शिक्षा क्षेत्र पर कभी ध्यान दिया ही नहीं और 1350 ईस्वी सन के बाद तो मुसलमानों का पतन तेज़ी से हुआ जबकि दूसरी कौमों और दूसरे शासकों ने अपनी जनता को शिक्षित करने के लिये शिक्षा व्यवस्था मजबूत की. तब के भारत (अब भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश) में तो आधुनिक शिक्षा प्रणाली के रूप में कायम शिक्षा-क्रांति अंग्रेजों की देन है जबकि मुसलमान शासकों ने कभी भी शिक्षा को वो महत्व दिया ही नहीं, जो दिया जाना चाहिए था. हांं, मदरसों पर खूब ध्यान दिया गया जिसमें धार्मिक जाहिलों के रूप में मजहबी मुर्ख तैयार किये जाते थे ताकि वे इस्लाम के नाम पर बिना अपने दिमाग का इस्तेमाल किये, अपनी जान भी दे दे. यही परंपरा आज भी मदरसों में बदस्तूर जारी है. अर्थात एक तरफ जहांं यहूदी, ईसाई, यूनानी, तोरानी इत्यादि लोग आधुनिक शिक्षा से फायदा उठाते रहे और बाद में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के अनुसंधान केंद्र भी बनवाये, जिन्हें ‘शमिया’ के नाम से जाना जाता था, वहीं मुसलमानों ने जो आधुनिक शिक्षा प्रणाली खासकर विज्ञान के प्रति जो बेरूखी बरती, वो आज भी बरकरार है.
शासन चाहे हिंदुस्तानी मुग़लों का हो, ईरानी सफवी शासकों का हो, उस्मानी तुर्कों का हो या दूसरे सुल्तानों का हो अथवा वर्त्तमानिक इस्लामिक व्यवस्थाओं का हो, सवाल ये है कि इस्लामी दुनिया में विज्ञान को क्यों खत्म किया गया ? मुसलमान दूसरे लोगों की तरह उस विज्ञान के विकास से क्यों लाभांवित न हो सके ?
अगर मुस्लिम स्वयं ही इस सवाल का जवाब दे पाये तो बहुत बेहतर रहेगा. मेरे हिसाब से तो ऐसी ही न जाने कितनी लंबी और कड़वी सच्चाईयों के विवरण में जाये बिना कोई भी मुसलमान इल्म के दरवाज़े पर दस्तक भी नहीं दे सकेगा. और हमेशा याद रखिये ‘दरवाज़ा उसी के लिये खुलता है, जो दस्तक देता है’. सच लिखूं तो आज मुस्लिमों को धर्म से ऊपर उठकर शिक्षा क्षेत्र में जाना चाहिये, वरना पढ़-लिख कर वे विज्ञान समझने के बजाय किताबी बोझ से दबे हुए गधे ही बनेंगे और आसमानी किताब को विज्ञान से जस्टिफाय करते फिरेंगे.
नोट : किसी भी धर्म का मखौल उड़ाना मेरा ध्येय नहीं है बल्कि धर्म में फैली अंधी आस्था और कुरीतियों के खिलाफ समाज को जागरूक करना मेरा लक्ष्य है. मैं सभी धर्मोंं की कुरीतियों और रूढ़ियों पर अक्सर मैं ऐसे ही तथ्यपूर्ण चोट करता हूंं इसीलिये बात लोगों के समझ में भी आती है और वे मानते भी हैं कि मैंने सही लिखा है. जो लोग दूसरे धर्मो का मखौल उड़ाते हैं उनसे मैं कहना चाहता हूंं कि मखौल उड़ाने से आपका उद्देश्य सफल नहीं होगा और आपस की दूरियांं बढ़ेंगी तथा आपसी समझ घटेगी. अतः मूर्खतापूर्ण विरोध करने के बजाय कुछ तथ्यात्मक लिखे.
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Rohit Sharma
July 3, 2019 at 1:37 pm
किशन गोलछा जैन का एक टिपण्णी पर जवाब : फालतू कमेंट फ़िल्टर कर दिए गए है ! अपनी पूरी बात को एक ही कमेंट में तथ्यपूर्ण तरिके (कमेंट बॉक्स को चैट बॉक्स न समझे) से लिखे और आपके इस आंकड़े के जवाब में ये सरकारी सूचि देखे (सिर्फ भारत की है) और अपनी कौम की शिक्षा का स्तर जान ले और दुसरो का भी (खासकर जैनो की शिक्षा का स्तर जरूर देख ले) इससे आपको अपनी मूर्खता और दुसरो की विद्धता का अनुभव हो जायेगा !
और अपने धर्म को जस्टिफाय करने की जगह खुद को इस सच्चाई से सामना करने के लिये तैयार करे दुनिया में सबसे ज्यादा अशिक्षित और मजहबी मूर्खो की कौम मुसलामानों की है…अब पढ़ लीजिये दुनिया की सबसे टॉप युनिवर्सिटीयो में पहले नंबर पर अमेरिकी यूनिवर्सिटी है जिसका नाम मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी है और ये पूरी दुनिया की अर्थात अंतर्राष्ट्रीय स्तर की रेंक वन वाली यूनिवर्सिटी है और इसके बाद दूसरे तीसरे नंबर पर भी अर्थात रेंक 2 में भी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी अमेरिका और रेंक 3 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी अमेरिका ही है !
हार्वर्ड का नाम पूरी दुनिया में फेमस है रेंक 4 में कैम्ब्रिज (UK) और रेंक 5 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी इंग्लैंड आता है…. वे भी टॉप में नहीं है और आप बात लिख रहे है कि सबसे टॉप पर सऊदी अरब की मुस्लिम यूनिवर्सिटी है (मूर्खता की हद है महाशय क्योंकि वो दुनिया की टॉप 10 में भी नहीं है)
मैंने अपनी पोस्ट में भी लिखा है कि डेढ़ अरब मुस्लिमो पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सिर्फ पांच विष्वविधालय है और उसमे वो सऊदी अरब की युनिवेर्सिटी को भी गिन लिया था लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो टॉप में है….(मुझे आपकी प्रोफाइल देखकर ही अंदाज हो गया कि आप मदरसे में तैयार मजहबी मुर्ख है लेकिन आपको प्रत्युत्तर इसलिये दिया है ताकि आपको ये अहसास हो जाये कि आप वास्तव में क्या है और खुद को क्या समझने की भूल कर रहे है) आपकी जानकारी में एक इजाफा और कर ले कि भारत का हर चौथा भिखारी मुस्लिम है
और एक खास बात मैं विकिपीडिया हिंदी का रजिस्टर्ड सदस्य हूँ तो आपको बता दू कि सब कुछ गूगल पर नहीं मिलता है और जो मिलता है वो सच होने की गारंटी नहीं होता अतः अपनी जीके को थोड़ा अपडेट कर ले और आइंदा के लिये निजी आक्षेपों से बचे क्योंकि मूर्खतापूर्ण तरिके से कही गयी आक्षेपपूर्ण बात आपकी मूर्खता दर्शाता है लेकिन अगर तथ्य को शालीनता के साथ तर्कपूर्ण रूप में प्रस्तुत करते है तो वो सामने वाले के दिल में ठीक ऐसे ही लगती है जैसे आपको मेरी पोस्ट में लिखी बाते लग रही है !
Rohit Sharma
July 3, 2019 at 1:39 pm
पं. किशन गोलछा जैन का एक टिपण्णी पर जवाब :: अगर मैंने दुनिया के दूसरे मुसलमानो को जाहिल बताया तो इसमें आपको पीड़ा क्यों हुई महाशय ? वे दूसरे मुसलमान तो आप जैसे मुसलमानो को अपनी किक पर रखते है और काफिर कहते है…खासकर अरबी मुसलमान तो भारतीय, पाकिस्तानी और बंगलादेशी मुसलमानो को तो नाली का कीड़ा समझते है और आप अपनी बेकार की कौमी एकता दिखाने के लिये उनके लिये पीड़ा व्यक्त कर रहे है ! अगर मैंने भारतीय मुसलमानो के बारे में कुछ लिखा हो तो आपको पीड़ा होने की बात समझ में भी आती है लेकिन ये जो आपके दिल में उन जाहिलो के लिये सहानुभूति है न उसकी जगह उसे बाकी की भारतीय कौमो के लिये सौहार्दपूर्ण में परिवर्तित करिये ! जिन ब्राह्मणो और हिन्दुओ के बिना आप की रोजीरोटी नहीं चल सकती उनको आप गरियाते है और जो आपको किक मारने वाले लोग उनके प्रति आप सहानुभति दिखाते है…आपके लिये ये बड़ी शर्म की बात है (अगर थोड़ी बहुत भी शर्म हो या जमीर जिन्दा हो तो सबसे पहले अपना कवर हटाइये…क्योंकि भाई भाई में कितनी ही लड़ाई हो इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि कोई बाहरी आकर एक को नुकसान पहुंचाये तो दूसरा बोले भी नही…मेरे ख्याल से इतना काफी है !
और हाँ रही बात भारतीयों के शिक्षा स्तर वाली लिस्ट की तो वो इसीलिये लगाई है ताकि आप को ये सनद रहे कि आपकी खुद की हालत क्या है मने खुद भारत के मुस्लमान भी शिक्षा में पिछड़े है और चिंता आप बाकी के देशो के मुसलमानो की कर रहे है ? पहले खुद तो शिक्षित हो जाइये….!