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बिकने के लिए तैयार बीएसएनएल

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बिकने के लिए तैयार बीएसएनएल

खबरों की खबर हमेशा लेते रहना चाहिए. अब सरकार बता रही है कि हमने बीएसएनएल के रिवाइवल का नया प्लान तैयार किया है. आपको यह पता ही होगा कि बीएसएनएल के कर्मचारियों को जून की तनख्वाह के भी लाले पड़े हुए हैं. एमटीएनएल और बीएसएनएल मिलाकर 1.85 लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं.

2016 में केंद्र सरकार के थिंक-टैंक माने जाने वाले नीति आयोग ने बीएसएनएल को घाटे में चलने वाले PSUs की लिस्ट में डाल दिया और आयोग ने बीएसएनएल को दुरूस्त करने की जगह, बंद करने का प्रस्ताव दे भी दिया था. तब भी यही बात उठी थी कि इसका रिवाइवल किया जाए. लेकिन इन चार सालो में उस योजना पर कितना काम किया गया किसी को नहीं पता. कोई पूछता भी नहीं है. मीडिया तब से अब तक हजारों बहस हिन्दू-मुस्लिम आदि पर चला चुका है, लेकिन 1 लाख 85 हजार कर्मचारियों का भविष्य क्या होगा, इस पर कोई बहस नही की जा सकती. बहरहाल अब जो यह नया रिवाइवल प्लान क्या है, इसे भी देख लेते हैं. इसके तहत सरकार बीएसएनएल की संपत्ति बेचकर इसे बचाने की कोशिश करने जा रही है.

देश भर में बीएसएनएल के लगभग 15 हजार भवन और 11 हजार एकड़ भूमि है. इस संपत्ति के एक-तिहाई हिस्से की कीमत एक बार 65 हजार करोड़ के आसपास आंकी गई थी यानी कुल संपत्ति दो से ढाई लाख करोड़ होगी. लेकिन आपको यह जानकर बहुत बड़ा झटका लग सकता है कि कंपनी ने अपने बही-खाते में देश भर में फैली हुई संपत्ति की कीमत मात्र 975 करोड़ ही तय कर रखी है. आप सोचेंगे कि अकेले अगर दिल्ली के जनपथ स्थित मुख्यालय के भू-खंड की कीमत का आकलन करें तो यही 2500 करोड़ के आसपास बैठेगी, लेकिन बड़ी-बड़ी कंपनियों को डुबोने के पीछे यही तो असली खेल खेला जाता है, जिससे सब अनजान बने रहना चाहते हैं. उनकी संपत्तियों के मालिकाना हक ओर वेल्युएशन में घपले किये जाते हैं, और इस तरह से सस्ते सौदे करके हजारों करोड़ का लाभ उन संपत्तियों पर काबिज होने वाली निजी कंपनियों को पहुंचाया जाता है. अब चार सालों में मोदी सरकार को यही खेल खेलना है.




बीएसएनएल की संपत्तियों की विषय में यह करना और आसान है. हम सब जानते हैं कि बीएसएनएल के सभी कर्मचारी दरअसल दूरसंचार विभाग के ही कर्मचारी हैं. डॉट को ही निगमित कर के बीएसएनएल का रूप दिया गया लेकिन क्या उसकी संपत्तियों को सही तरीके से बीएसएनएल को ट्रांसफर किया गया ? जवाब है : नहीं किया गया. हालांकि इससे संबंधित आदेश कैबिनेट ने सन 2000 में स्पष्ट रूप से दिए थे और 2011 में इन आदेशों को दुबारा जारी किया गया.

दरअसल भू-राजस्व नियमों के मुताबिक, दूरसंचार विभाग (डॉट) की संपत्तियों को बीएसएनएल को ट्रांसफर करने पर विभिन्न राज्यों में स्टाम्प ड्यूटी देना अनिवार्य है. यह स्टाम्प ड्यूटी डॉट को अदा करनी होती है, लेकिन बहुत से राज्यों में दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) की यह प्रक्रिया पूरी नहीं की गई. हालांकि सालों से इन संपत्तियों की देख-रेख बीएसएनएल ही करता आ रहा है लेकिन कागजों में मालिकाना हक आज भी दूरसंचार विभाग के पास ही है. बस इसी का फायदा उठाकर मोदी सरकार धड़ाधड़ बीएसएनएल की संपत्तियों को निजी कंपनियों को लीज पर देने की तैयारी कर रही है, और हजारों करोड़ का घोटाला किया जा रहा है. और बीएसएनएल के कर्मचारी अपनी ही संपति को लुटते हुए देख रहे हैं, और अपनी तनख्वाह के लिए केंद्र सरकार की तरफ उम्मीदों से देख रहे हैं !

– गिरीश मालवीय




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