गुजरात नए भारत का मॉडल राज्य है. गुजरात के इस मॉडल राज्य के 10 जिलों के 32 गांवों में दलितों की सुरक्षा के लिए स्थायी तौर पर पुलिस का पहरा बैठाया गया है. इसकी पुष्टि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने की ( दी इंडियन एक्सप्रेस. 20 जून, दिल्ली संस्करण, पृ.7). इन गांवों में सवर्णों और दलितों के बीच इतना तनाव है कि वह कभी भी हिंसक रूप ले सकता है, जिसका अक्सर मतलब होता है सवर्णों द्वारा दलितों की हत्या या उनका घर जलाना.
गुजरात नए भारत का मॉडल राज्य है. यह हिंदुत्व और कॉरपोरेट के गठजोड़ की प्रयोगशाला रहा है, जो अब पूरा भारत बन गया है. जिस जोड़ी ने इस प्रयोगशाला को मुकम्मल शक्ल दिया था, अब वे पूरे भारत को गुजरात मॉडल में ढाल चुके हैं. इस मॉडल में दलितों की क्या स्थिति है या होगी, इसे गुजरात से समझ सकते हैं.
अंग्रेजी पत्रिका फ्रंटलाइन के एक अंक ( 22 जून ) में गुजरात दलितों की स्थिति के संदर्भ में एक विस्तृत रिपोर्ट आई थी. इसके अनुसार गुजरात के करीब सभी गांवों में आज भी दलितों को, सभी गैर-दलित पुरूषों को ‘बापू’ और स्त्रियों को ‘बा’ कह कर बुलाना अनिवार्य है. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनका गांव में रहना नामुमकिन-सा है. 70 वर्ष के दलित बुजुर्ग को गैर-दलित बच्चे को भी बापू कहना है. 50 प्रतिशत स्कूलों में मीड-डे मील के समय दलित और गैर-दलित बच्चों को अलग बैठ कर खाना पड़ता है और दलित बच्चे अपने घर जाकर पानी पीते हैं. गैर-दलित बच्चों ने दलित के हाथ का बनाया मीड-डे मिल खाने से इंकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप इस काम के लिए दलित समाज से किसी का रखा जाना नामुमकिन है.
जिन 97 प्रतिशत गांवों का सर्वे किया गया, उनमें 40 प्रतिशत गांवों में रोजमर्रा के सामानों की दुकान में दलित प्रवेश नहीं कर सकते हैं, उन्हें बाहर ही सामान लेने के लिए प्रतीक्षा करना पड़ती है. 47 प्रतिशत गांवों में ग्राम पंचायत के दलित सदस्यों को बैठकों में नीचे जमीन पर बैठने के लिए बाध्य होना पड़ता है. इसके साथ इन सदस्यों के लिए पीने का पानी उपलब्ध नहीं होता है. ग्राम पंचायत के दलित सदस्य को बैठकों में या तो चाय दी ही नहीं जाती है या अलग तरह के कप में दी जाती है. इन गांवों में कोई भी दलित, गैर-दलित लड़की से शादी की करने की कल्पना भी नहीं कर सकता. दलितों के साथ गैर-दलितों द्वारा हिंसा की घटनायें साल-दर-साल बढ़ती जा रही है.
इतना ही नहीं गुजरात में दलित, गैर-दलित बस्तियों में रहने के लिए आवास भी नहीं ले सकते. उन्हें गैर-दलितों के बर्तनों को छूने की इजाजत नहीं है. 90.2 प्रतिशत गांवों में दलितों को मंदिरों में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है.
गुजरात में दलित अपनी रोजी-रोटी के लिए गांवों में पूरी तरह गैर-दलितों पर निर्भर हैं. वे तेजी से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, जहां उनको स्लम बस्तियां ही नसीब होती है. यह देखने में आ रहा है कि शहरों में रोजगार न मिलने पर वे पुन: गांवों की ओर लौटते हैं, जहां अपमान और गरीबी उनका इंतजार कर रही होती है.
गुजरात में हिंदुत्ववादियों और कॉरपोरेट गठजोड़ एक मुकम्मिल शक्ल अख्तियार कर चुका है, जिसकी सबसे अधिक मार दलितों और मुसलानों पर पड़ी है. गुजरात की कुल आबादी में 7 प्रतिशत दलित हैं, जो कि देश के कुल दलितों की आबादी का 2.33 प्रतिशत है.
गुजरात में एससी-एसटी के खिलाफ अत्याचार के 10 हजार मामले दर्ज हैं. 2018 में 933 मामले दर्ज हुए जिसमें 3 प्रतिशत मामलों में अभियुक्तों को ही सजा हुई है.
‘न्यूज क्लिक’ के अनुसार दलितों पर अत्याचार के मामलों में गुजरात पांच सबसे बुरे राज्यों में से एक है. इसी साल मार्च में गुजरात विधानसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में सरकार की ओर से बताया गया है कि साल 2013 और 2017 के बीच अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराधों में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वहीं अनुसूचित जनजातियों के ख़िलाफ़ अपराधों में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
गुजरात सरकार की ओर से बताया गया है कि साल 2013 से 2017 के बीच एससी व एसटी एक्ट के तहत कुल 6,185 मामले दर्ज हुए हैं. दी गई जानकारी के अनुसार साल 2013 में 1,147 मामले दर्ज किए गए थे जो 33 फीसदी बढ़कर साल 2017 में 1,515 हो गए.
पिछले साल मार्च महीने तक दलितों के खिलाफ अपराध के 414 मामले सामने आए, जिनमें से सबसे अधिक मामले अहमदाबाद में थे. अहमदाबाद में 49 मामले दर्ज होने के बाद जूनागढ़ में 34 और भावनगर में 25 मामले दर्ज हुए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार राज्य में अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराधों में भी तेजी आई है. साल 2013 से 2017 के बीच पांच सालों के दौरान अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध के मामलों की संख्या 55 फीसदी बढ़कर 1,310 पहुंच गई है. साल 2018 के शुरुआती तीन महीनों में भी एसटी समुदाय के खिलाफ अपराध के 89 मामले दर्ज हुए हैं. इसमें से सबसे अधिक मामले भरूच (14) में दर्ज हुए. भरूच के बाद वडोदरा में 11 व पंचमहल में 10 मामले दर्ज हुए हैं.
आखिर कथित बड़े बांधों, फ्लाईओवरों और विदेशी निवेश की बिना पर गुजरात को देश का सबसे उन्नत राज्य और उसके आर्थिक मॉडल को सर्वश्रेष्ठ बताने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामाजिक असमानता व अमानवीयता का पता देने वाली ऐसी घटनाओं पर शर्मिंदा क्यों नहीं होते हैं ?
– सिद्धार्थ रामू
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