वर्षा डोंगरे ने अपने स्वास्थ्यगत कारणों से आवेदन प्रेषित कर काम से अनुपस्थित है. ऐसा आवेदन तो आपातकाल में भी अस्वीकृत नही होता है. यदि आवेदन अस्वीकृति होता है तो अस्वीकृति की सूचना के बाद कारण बताओ नोटिस जारी होगा. फिर जवाब आने के बाद और जवाब से संतुष्ट नहींं होने के बाद हीं निलम्बन हो सकता है । पर जहां तक हमारी जानकारी है ऐसा कुछ नहींं हुआ है.
मालूम हो कि सुकमा जिले में माओवादियों के हमले में सीआरपीएफ के 26 जवानों की मौत के बाद रायपुर जेल की जेलर वर्षा डोंगरे ने अपने फेसबुक पोस्ट पर सीआरपीएफ के जवानों द्वारा आए दिन आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, अत्याचार और युवाओं को फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर डालने, उसे प्रताड़ित करने और उसके मूलभूत मौलिक अधिकार से वंचित कर जल, जंगल, जमीन पर पूंजीपतियों के हित में अवैध तरीके से कब्जाने के खिलाफ जमकर लिखी थी, जिसके बाद से ही वर्षा डोंगरे प्रशासन के निशाने पर आ गयी थी. मालूम हो कि उनके द्वारा लिखित यह पोस्ट बड़े पैमाने पर वायरल हो गया था. वर्षा डोंगरे ने अपने फेसबुक पोष्ट पर जो बातें लिखी है वह “अपराध” को प्रकट कर रहा है, अर्थात जब तक मेडम के आक्षेप पर अपराध दर्ज होकर सम्बंधित अपराध करने वाले के पक्ष में न्यायालय का आदेश अंतिम नहींं हो जाता है, तब तक डोंगरे के खिलाफ कोई भी कार्यवाही शुरू नही हो सकती है. इसके बावजूद अगर डोंगरे के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की जाती है तो यह सरासर कानून का उल्लंघन है. इसका विरोध हर बुद्धिजीवी को करना चाहिए अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब लिखने बोलने की आजादी ही खत्म हो जाए और जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत ही चरितार्थ होगी.
शेखर सूबेदार.
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