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एनडीटीवी पर मोदी का दल्ला सेबी का हमला

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पहले से ही रेंग रही मीडिया, जिसकी विश्वसनीयता आम जनता के बीच लगभग खत्म हो चुकी है, के बीच आम जनता की आवाज बन चुकी एनडीटीवी पर मोदी सरकार द्वारा हालिया हमला बेहद संगीन है. मोदी सरकार ऐन केन प्रकारेण एनडीटीवी की आवाज को कुचल देना चाह रही है. इसके लिए बार बार प्रयत्न किया जाते रहे हैं. अभी मोदी की दलाल एजेंसी सेबी के माध्यम से एनडीटीवी पर किस तरह हमला बोला गया है, श्याम मीरा सिंह सोशल मीडिया पर लिखे हैं, पाठकों के लिए यहां प्रस्तुत है. हम आम जनों से अपील करते हैैं कि मोदी के इस दलाल सेबी द्वारा एनडीटीवी केे खिलाफ की गई इस अनैैैतिक कार्रवाई का पुरजोर प्रतिरोध करेंं.

एनडीटीवी पर मोदी का दल्ला सेबी का हमला

एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय और उनकी पत्नी को सेबी ने एनडीटीवी चैनल के डायरेक्टर पद से 2 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है. इसका मतलब एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय को एनडीटीवी के डायरेक्टर पद से तत्काल ही इस्तीफा देना होगा. सेबी यहीं नहीं रुका उसने एनडीटीवी के प्रमोटर्स को स्टॉक मार्केट से 2 साल तक लोन लेने से भी प्रतिबंधित कर दिया है.

सेबी ने यह निर्णय एनडीटीवी के खिलाफ एक मामले में सुनाया है जिसमें एनडीटीवी पर आरोप है कि उसने अपने पुराने लोन के बारे में अपने इन्वेस्टर्स को नहीं बताया था, जो कि सेबी अधिनियम के विरुद्ध था.

हालांकि निर्णय इतने आनन-फानन में लिया गया है कि जैसे मामला केवल इसी केस से रिलेटेड नहीं था बल्कि सेबी (सरकार) का उद्देश्य एनडीटीवी को सरकारी ताकत का अहसास कराना था. पिछले कुछ घटनाक्रमों से साफ हो चुका है कि सरकार एनडीटीवी को झुकाने में नाकाम रही है. ऐसे में ये भी संभव है कि सरकार इस केस के बहाने प्रतिरोध की अंतिम आवाज एनडीटीवी को घुटनों पर गिराने के एक वैध मौके के रूप में इस केस को यूज कर रही हो.




अब एक बात बताइए अगर एक चैनल बाजार से पैसे ही नहीं ले सकेगा तो उसके पास चैनल चलाने के लिए संसाधन लाने का साधन क्या बचता है ? अगर मार्केट से पैसे लेने पर प्रतिबंध ही लगा दिया जाएगा तो उसके कर्मचारियों के लिए तनख्वाह कहांं से आएगी ?

राजस्व के एक विकल्प के रूप में बस विज्ञापन ही बचते हैं. विज्ञापनों का बड़ा हिस्सा भी सरकारी विज्ञापनों से आता है. सरकार अपने विज्ञापन उन्हीं अखबारों और टीवी चैनलों को देती है, जो सरकार की गोद में बैठकर मूंगफली खाते हैं. साफ है इस निर्णय के क्या परिणाम आ सकते हैं, आप अंदाजा लगा सकते हैं.

एक ऐसे दौर में जबकि लगभग सभी न्यूज चैनल एक खास पार्टी एक खास विचारधारा के कार्यालय बन चुके हैं, ऐसे में एनडीटीवी का बचा रहना कितना जरूरी था, इसका अंदाजा आपके लिए लगाना अभी मुश्किल है.

एनडीटीवी मीडिया के भक्ति काल में हिरोशिमा बम धमाके के बाद बची एकमात्र इमारत शांति स्मारक की तरह है. एनडीटीवी सरकार के प्रति प्रतिरोध का अंतिम स्मारक है. इस निर्णय के बाद क्या परिणाम आने वाले हैं, इसका अनुमान लगाना बहुत कठिन नहीं है.




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