जीडीपी की ग्रोथ रेट पिछले पांच सालो में सबसे कम है और बेरोजगारी पिछले 45 सालों में सबसे अधिक. सरकारी मुहर भी लग गयी. वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में देश का आर्थिक विकास दर घटकर 6 प्रतिशत से भी नीचे चला गया है. अभी-अभी जारी हुए आंकड़ों के मुताबकि, जनवरी-मार्च तिमाही में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) मात्र 5.8 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, पिछले पांच साल की किसी भी चौथी तिमाही में 6 प्रतिशत से कम की विकास दर नहीं रही थी. साथ ही, 5.8% का ग्रोथ रेट पिछले 17 तिमाहियों की विकास दर में सबसे कम है, जो पिछले दो वर्षों में पहली बार चीन की विकास दर से भी नीचे है.
इस विषय में लगातार आगाह कर रहा था कि अंदर ही अंदर अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहद खराब है. बेरोजगारी अपने चरम पर है लेकिन 31 प्रतिशत वाले लोगों के लिए यह कोई मुद्दा नहीं था. आज लेबर सर्वे के आंकड़े भी सामने आए हैं, जिसके मुताबिक बेरोजगारी पिछले 45 सालों के चरम पर पुहंच गयी है. पिछले वित्त वर्ष में देश में बेरोजगारी दर भी 6.1% पर रही है.
ध्यान रहे कि जनवरी महीने में ठीक यही आंकड़ा लीक हुआ था और तब कहा गया था कि देश में बेरोजगारी का आंकड़ा वर्ष 1972-73 के बाद पहली बार इतनी ऊंचाई को छू लिया है. लेकिन तब चालाकी दिखाते हुए मोदी सरकार ने यह आंकड़ा छुपाए रखा लेकिन वो कहते हैं न कभी न कभी वो चीज सामने आकर ही रहती है, जिसे छुपाया जाता है. चुनाव में खोखले राष्ट्रवाद को आगे कर दिया गया और हर नौजवान की पहली जरूरत एक निश्चित आय को कहीं दूर नेपथ्य में धकेल दिया गया.
आज यह खबर जब नवभारत टाइम्स के वेब पेज पर पढ़ रहा हूं तो साइड में टॉप कमेंट के सेक्शन में लिखा आ रहा है, ’क्या अंतर पड़ता है कि जीडीपी 7% से घटकर 5.8% पर आ जाये या 3.8% पर. भारत में चुनाव जीतने के लिए केवल जुमलों की बारिश ही काफ़ी है. भारत की जनता के दिमाग जब तक कीचड़ प्रचुर मात्रा में मौजूद रहेगा KAMAL खिलता ही रहेगा’.
बेरोजगारी के जो आंकड़े सरकार ने जारी किए हैं, उसको देखते हुए हमें यह मान लेना चाहिए कि भारत दुनिया में सर्वाधिक बेरोजगारों वाला देश बन चुका है, लेकिन समस्या यह है कि हमारी नींद खुल नहीं रही है. वो कहते हैं न कि सोते हुए को जगाया जा सकता है लेकिन जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे आप कैसे जगाओगे ? शुरू से कह रहे थे कि नोटबन्दी ने उद्योग-धन्धों की कमर तोड़ दी है लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं था. अब यह रिपोर्ट उन्हीं बातों की पुष्टि कर रही है. ध्यान दीजिए यह रिपोर्ट जुलाई, 2017 से जून, 2018 के बीच जुटाए गए डेटा पर आधारित है यानी यह नोटबंदी के बाद का पहला आधिकारिक सर्वेक्षण है. इससे पता चलता है कि उद्योग-धंधों में कामगारों की जरूरत कम होने से ज्यादा लोग काम से हटाए गए. सेंटर फॉर इंडियन इकॉनोमी ने भी उस वक्त कहा था कि ‘2017 के शुरुआती चार महीनों में 15 लाख नौकरियां खत्म हो गई.’
एनएसएसओ की रिपोर्ट दिसंबर 2018 में जारी की जानी थी लेकिन रिपोर्ट को दबा दिया गया. सरकार पर यही आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष सहित दो सदस्यों ने जनवरी में इस्तीफा दे दिया था. उनका कहना था कि रिपोर्ट को आयोग की मंजूरी मिलने के बाद भी सरकार जारी नहीं कर रही.
झूठे लोग अपने झूठ दावे करते रहे और बिका हुआ मीडिया उनकी हां में हां मिलाता गया और सच बोलने वालों को झूठा साबित करने में लग गया. नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने उस वक्त कहा था कि ‘हम 70 से 78 लाख नौकरियों के अवसर पैदा कर रहे हैं, जो देश के कार्यबल में शामिल होने वाले नए लोगों के लिए पर्याप्त है.’ अरुण जेटली अपना अलग राग अलापते रहे कि ‘पिछले तीन सालों में आंदोलन तो हुआ ही नहीं इसलिए हम जो कह रहे हैं, उसे ही सच मान लो.’
एनएसएसओ रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘2017-18 में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 5.3% और शहरी क्षेत्र में सबसे ज्यादा 7.8% रही. पुरुषों की बेरोजगारी दर 6.2% जबकि महिलाओं की 5.7% रही. इनमें नौजवान बेरोजगार सबसे ज्यादा थे, जिनकी संख्या 13% से 27% थी लेकिन उन्हें सस्ता डाटा, हिंदुत्व और अन्धे राष्ट्रवाद की चरस की सप्लाई बदस्तूर जारी थी तो नौकरियों की किसे परवाह थी. लेकिन आप यह स्थिति बहुत देर तक बनाए नहीं रख सकते. कभी न कभी तो डोज का असर खत्म हो जाता है और हकीकत की दुनिया में लौटना पड़ता है. हम जानते हैं कि हम अंधों के शहर में आईने बेच रहे हैं लेकिन किसी न किसी को यह काम करना ही होगा. बहुसंख्यक वर्ग के लिए यह ’मियाकल्प’ का समय है. यह गलती मानने का समय है.
- गिरीश मालवीय
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Shahid
June 8, 2019 at 2:40 pm
2018-19 की पहली तिमाही में GDP ग्रोथ रेट 8.2%, दूसरी तिमाही में 7.1%, तीसरी तिमाही में 6.6% और चौथी तिमाही में 5.8% रही. पूरे साल गिरावट रही – 8.2% से 5.8%. बुरी खबर…!!!