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शादी के बाद महिला, पहले बहू हैं या पत्नी?

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[प्रस्तुत आलेख सोशल नेटवर्किंग मीडिया फेसबुक के सुधा सिंह के वाल से लिया गया है. यह आलेख स्त्री-पुरूष और समाज के बीच के आपसी स्वस्थ सम्बन्ध का बेहतरीन विश्लेषण करता है. अपने पाठकों के लिए यह आलेख साभार प्रस्तुत हैः]

शादी के बाद हर महिला का ख्वाब होता है की पति के साथ एक ऐसे बढ़िया घर में रहें जिसमें सब सुख सुविधा ऐशो आराम मौजूद हो. इस सोच में कोई बुराई तो नहीं है पर बुराई तब शुरू होती है जब महिला अपने पति और बच्चे के अलावा ससुराल के अन्य सदस्यों (जैसे – सास, ससुर, देवर, ननद आदि) को बोझ समझने लगे और उनके लिये कोई काम करना या सेवा करना उसे फिजूल मेहनत लगने लगे.

यहाँ मुख्यतः उन महिलाओं की बात नहीं हो रही जो किसी जरूरत या शौक की वजह से घर से बाहर जाकर नौकरी या बिज़नेस करती हैं. यहाँ बात हो रही है उन महिलाओं की जो शादी के बाद घर में ही रहती हैं और उनसे ये अपेक्षा होती है की वो घर की देखभाल समझदारी से करें. अगर कोई महिला घर की देखभाल के काम को छोटा काम समझती है और बाहर जाकर जॉब करना बड़ा काम समझती हैं तो ये सोच वाकई में बहुत ही गलत है. यहाँ पर ध्यान से समझने वाली बात है की सुखी घरों से ही एक सुखी राष्ट्र का निर्माण होता है और कोई घर सुखी अपने आप ही नहीं हो जाता है. घर को सुखी करना खुद एक फुल टाइम जॉब है और इसके लिए पति या पत्नी किसी को पर्याप्त समय देना ही पड़ेगा, खासकर बच्चों के पैदा होने के बाद.

घर को सुखी, सुन्दर रखने के लिए जिस क्रिएटिविटी और समझदारी की आवश्यकता होती है वो निश्चित तौर पर महिलाओं में पुरुषों से ज्यादा होती है और पैसा कमाने में जो कड़ी मेहनत करनी पड़ती है उसको पुरुषों का शरीर ज्यादा बेहतर तरीके से बर्दाश्त कर सकता है. अब चूंकि इस जमाने में सब नियम क़ानून लोगों ने अपनी पसन्द नापसन्द के हिसाब से बदल लिए हैं और उनकों दूसरों की सलाह की ज्यादा परवाह भी नहीं है तो ऐसे में पति पत्नी का, जॉब, घर की देखभाल आदि सभी विषयों पर खुद ही निर्णय लेना बेहतर होता है.

तो यहाँ हम बात कर रहें हैं सिर्फ उन महिलाओं की, जो शादी के बाद घर पर रहकर घर की जिम्मेदारियों को सम्भालने की बात सबसे गर्व से कहती फिरती हैं पर वास्तव में वे ऐसा करती हैं नहीं. जिनसे उनके पति और घर के अन्य सदस्य दुखी रहते हैं और उन्हें घर में आने व रहने पर कोई ख़ुशी या उत्साह महसूस नहीं होता है.

हालाँकि आजकल हालात तो इतने ज्यादा बिगड़ चुके हैं की बहुत से महिलाओं को शादी के बाद पति और बच्चे तो दूर की बात खुद अपना भी ख्याल रखना बहुत भारी लगता है और उन्हें हमेशा नौकर की जरूरत होती है तो ऐसी महिलाओं से किसी समझदारी की उम्मीद ही करना व्यर्थ है क्योंकि ये परिवार के मूल्य को तभी समझेंगी जब जीवन में किसी कठिन परिस्थित से गुजरेंगी.

ये भी देखा जाता है की कुछ महिलायें जो शादी के तुरन्त बाद से ही अपने ससुराल में तरह तरह के कोहराम, झगड़े, कलह करती है जिससे उनके ससुराल वाले उनसे तंग आकर उन्हें पति के साथ अलग घर में रहने के लिए भेज दें और वो सास ससुर देवर भाभी आदि की सेवा करने से बच जाय. ऐसी स्वार्थी महिलाओं को उन मेहनती और परोपकारी महिलाओं को देखकर सीख लेनी चाहिए जो अपने सेवा भाव से अपने सुसराल वालों का दिल ऐसा जीत लेती हैं की ससुराल का हर सदस्य, हर समय दिल से चाहता है की ऐसी महान स्त्री के लिए क्या अच्छा से अच्छा कर दें.

ये संसार का बहुत पुराना नियम है कि, जब बोये बबूल तो आम कहा से होये, मतलब सच्चा प्रेम व सेवा पाना हो तो दूसरों को सच्चा प्रेम व सेवा देना ही पड़ेगा. सो-काल्ड हाई सोसाइटी में देखने को अक्सर मिलता है की वहां महिलाओं को शादी के बाद ससुराल से अलग अपने पति के साथ रहने का फैशन ही बन गया है क्योंकि ये वहां का अंडरस्टुड कल्चर है की जैसे लड़के की शादी हो वैसे ही वो अपनी बीवी को लेकर अलग घर में रहना शुरू कर दे.

पति अपने घर से दूर कहीं बाहर सर्विस करता हो तो तो पत्नी का पति के साथ रहना जरूरी है तो ऐसे में क्या उस महिला का अपने ससुराल के लिए जिम्मेदारियां केवल टेलीफोन पर हाल चाल या समय समय पर गिफ्ट या पैसा भेजने तक ही सीमित है ? क्या एक औरत के लिए बूढ़े सास ससुर की देखभाल, पति और बच्चों की देखभाल से कम महत्वपूर्ण हैं ?

कौन क्या समझता है यह उसके परवरिश पर निर्भर करता है पर यहाँ हम बात करते हैं हमारे धर्म शास्त्रों की. हमारे शास्त्र कहते हैं की शादी दो लोगों के बीच के सम्बन्ध का नाम नहीं हैं बल्कि शादी दो परिवारों के बीच के सम्बन्ध का नाम है इसलिए शादी के बाद महिला अपने पति की पत्नी से पहले, अपने ससुराल की बहू होती है. महिलाओं को पुरुष से ज्यादा सम्माननीय और आदरणीय इसलिए कहा जाता है क्योंकि महिलाओं से कर्तव्य और जिम्मेदारियों की अपेक्षा ज्यादा होती हैं. हमारे धर्म शास्त्रों में ये भी कहा गया है जहाँ महिलाओं को सम्मान दिया जाता है वहां सारे देवता खूब खुश होकर अनायास बार बार आशीर्वाद और वरदान प्रदान करते हैं. स्त्री को सम्मान तभी मिलता है जब उसके काम स्त्री जैसे हों, ना की केवल स्त्री की शरीर होने की वजह से उसे सम्मान मिल जाएगा. दया, क्षमा, सहन शक्ति, सेवा और जरूरत पड़ने पर अन्याय के खिलाफ सिंहनी की तरह हथियार उठाने की ताकत, ऐसे गुण हैं जो एक आदर्श स्त्री में होने चाहिए और ऐसे गुणों के होने पर स्त्री, पुरुषों के लिए उसी तरह पूज्यनीय होती हैं जैसे देवता.
एक महिला को अपने जीवन में दो-दो माँ बाप का प्यार मिलता है, एक शादी के पहले अपने जन्म देने वाले माता पिता का और दूसरा शादी के बाद अपने सास ससुर का इसलिए एक आदर्श महिला से अपेक्षा यही रहती है की वो शादी के बाद अपने बूढ़े और कमजोर सास ससुर की सेवा को ज्यादा महत्वपूर्ण समझे तुलना में अपने जवान पति और बच्चों के.

रामायण समेत अन्य सभी वेद पुराण की घटनाएं हमारे जीवन में मार्ग दर्शन के लिए ही होती हैं. रामायण का ही प्रसंग है की जब भगवान् राम को चौदह वर्ष का वनवास हुआ तो माता सीता भी उनके साथ जंगल में जाने की हठ करने लगी तब भगवान् राम ने समझाया की मेरा जंगल जाना जरूरी है क्योंकि मैंने अपने पिता को वचन दिया है पर तुम्हारा जाना जरूरी नहीं हैं. तब माता सीता ने कहा की पत्नी का असली सुख तो पति के चरणों में ही होता है भले ही पति जंगल में रहे या आलिशान महल में. तब भगवान् श्री राम ने कहा की तुम मेरी पत्नी होने से पहले इस घर की बहू हो और इस समय मेरे जंगल जाने की दुःख के वजह से तुम्हारे बूढ़े सास-ससुर भयंकर दुखी हैं इसलिए तुम्हारा पहला कर्तव्य है की तुम अपने बूढ़े सास ससुर के साथ रहकर उनके दुखी मन को बार बार सांत्वना दो. पर सीता जी ने कहा की सास ससुर को सांत्वना देने के लिए घर में दूसरी और बहुएं भी हैं इसलिए कृपया मुझे अपने साथ ले चलिए.

इस पर कुछ शास्त्रज्ञों का कहना है की माता सीता जी ने श्री रामजी का कहना नहीं माना और वो अपने बूढ़े दुखी सास ससुर को छोड़ कर वन गयी इसलिए ये भी एक कारण था की उन्हें पति से विछोह का दर्द झेलना पड़ा. ऐसी लीला जानबूझकर माता सीता ने की क्योंकि वो आने वाली पीढ़ियों को सामने एक उदाहरण रखना चाहती थी की शादी के बाद एक आदर्श महिला के लिए ससुराल के घर का हर सदस्य उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना की पति और बच्चे. घर में किसी भी तरह का भेदभाव या पक्षपात ही घरों में दरार और बँटवारे का कारण बनता है.

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One Comment

  1. Nitu Kumari

    May 5, 2017 at 5:21 pm

    shadi kay baad mahila pahly bahu phir patni. kyoki sadi kay baad ladki sirf apny pati ko laykar nahi chalti balki pury family uskay ley maynay rakti hai. sadi kay baad wo sabhi roop ka farz nibhana parta hai e5 ley sadi kay baad ladki ko bahut sary farz nibhana parta hai. meri to yahi rai hai

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