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मोदी का हिन्दू राष्ट्रवादी विचार इस बार ज्यादा खतरनाक साबित होगा

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अमेरिका स्थित विख्यात अन्तर्राष्ट्रीय अंग्रेजी पत्रिका टाईम डॉट कॉम पर प्रकाशित भारत में हुए लोकसभा चुनाव परिणामों पर राना अयूब की एक रिपोर्ट, जिसका अनुवाद राजनैतिक मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार विनय ओसवाल ने किया है.

मोदी का हिन्दू राष्ट्रवादी विचार इस बार ज्यादा खतरनाक साबित होगा

जब गुरुवार 23 मई, 2019 को प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और उनकी राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में प्रचण्ड बहुमत को दिखाने वाले परिणाम आने लगे तो मुझे आश्चर्य नही हुआ क्योंकि ऐसे ही परिणामों की आशा में समाज के लिए विभाजनकारी और ध्रुवीकृत करने वाला चुनावी अभियान चलाया गया था. एक पत्रकार के रूप में, मैंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के करियर को कवर किया है और उस समय की उनकी रणनीतियों को भी अच्छी तरह से जानता हूं.

चुनाव परिणामों में 23 मई को मोदी द्वारा दिये गए भाषण का प्रतिबिम्ब नहीं बल्कि उस लहराते हुए भगवा वस्त्र का झलक रहा था जो साधी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने विशाल चुनावी जीत के बाद एक बड़ी भीड़ का अभवादन करते हुए लहराया था. ठाकुर, हिन्दू पुजारी जो उत्तरी भारतीय राज्य मध्य प्रदेश से आकर महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल शहर में साजिश रचने और 2008 के बम विस्फोटों जिसमें 10 मुस्लिम मारे गए थे, में आरोपित है.




वह ‘अभिनव भारत’ नामक एक कट्टरपंथी हिंदू संगठन के प्रति निष्ठा की कसम खाती है, जिसका उद्देश्य एक हिंदू राष्ट्र (राज्य) स्थापित करना है और हिंदुओं का वर्चस्व सिर्फ भारत में ही नहीं है, बल्कि पड़ोसी राज्यों पाकिस्तान और नेपाल तक भी फैलाना है. अपने निर्वाचन क्षेत्र में वोट देने के एक हफ्ते पहले, ठाकुर ने महात्मा गांधी की हत्या करने वाले व्यक्ति नाथूराम गोडसे का महिमा मण्डन किया – एक देशभक्त के रूप में किया. (विश्वभर के हिंदू दक्षिणपंथी, गांधी को मुस्लिमों से सहानुभूति रखने वाले के रूप में देखते हैं).

यह विडंबना है कि भारतीय जनता पार्टी और उसके हिंदू राष्ट्रवादी नेता ठाकुर की जीत को देश के बहुसंख्यकों की भावनाओं के अनुरूप नीतियों की जीत बताते हुए जिस वर्ष संसद में पहुंचने पर उसका स्वागत करेंगे, उसी वर्ष यह देश महात्मा गांधी की 150 वीं वर्षगांठ मनाएगा.

मोदी का हिन्दू राष्ट्रवादी विचार इस बार ज्यादा खतरनाक साबित होगा

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उम्मीदवार प्रज्ञा सिंह ठाकुर, जिन्हें साध्वी प्रज्ञा के रूप में जाना जाता है, 23 मई, 2019 को भोपाल में अपने निवास पर भारत के आम चुनाव के लिए वोट परिणाम दिवस पर अन्य भाजपा समर्थकों के साथ

लगभग एक दशक पहले मैंने जो कुछ देखा था, उसके अनुसार (2019 की) कथा काफी हद तक समान है.  2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों में राज्य की जटिलता और आतंकवादियों के रूप में लेबल किए गए मुसलमानों की अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं की जांच के लिए 2010 में मैं, आठ महीने के लिए अंडरकवर हो गया था. मैंने खुद को अमेरिकन फिल्म इंस्टीट्यूट कंजरवेटरी के एक छात्र के रूप में प्रस्तुत किया. मैंने मोदी के अधीन काम करने वाले लगभग हर नौकरशाह और अधिकारी से बात की.




मुझे पता चला कि मोदी खुद को एक ऐसे हिन्दू नेता के रूप में दिखना चाहते थे जिस पर मुस्लिम हमले कर रहे हैं.  गुजरात में उनका 12 साल का कार्यकाल गुजराती अस्मिता (गुजराती गौरव) की जीत के रूप में देखा गया, जिसमें भीड़ चुनावी रैलियों में उनका स्वागत कर रही थी. लोकप्रिय नारा था, ‘देखो कहो कौन, गुजरात का शेर आया.’ (देखिए, गुजरात का शेर आ गया है.)

मैंने मोदी पर पहली बार रिपोर्ट नहीं की थी. गुजरात दंगों के बाद 2007 में राज्य विधानसभा के लिए हुए पहले चुनाव में पहली रैली की आगे की पंक्ति में शुमार रह चुका हूंं. मोदी अपने तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह के बगल में बैठे, जो अब सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष हैं. उन्होंने मंच पर माइक रखा और भीड़ जिसमें मुख्य रूप से महिलाएं और उच्च मध्यम वर्ग के गुजराती व्यापारियों शामिल थे, से पूछा, ‘आप मुझे सोहराबुद्दीन जैसे आदमी के साथ कैसा बर्ताव करते हुए देखना चाहते हैं ?’

भीड़ ने एक साथ और सर्वसम्मति से उत्तर दिया- ‘उसे मार डालो.’




2005 में एक छोटे-मोटे अपराधी सोहराबुद्दीन शेख जिसे मोदी की सरकार ने आतंकवादी के रूप में पेश किया था, ऐसा लगता था कि गुजरात पुलिस ने शेख और उसकी पत्नी की हत्या कर दी थी.

लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाने के बाद, भारत की केंद्रीय जांच एजेंसी को पता चला कि हत्या एक फर्जी मुठभेड़ थी, राज्य द्वारा एक अतिरिक्त न्यायिक हत्या. एजेंसी के निष्कर्षों का सम्मान करने के बजाय, मोदी ने दिल्ली में स्पष्ट रूप से कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का शिकार है.

तब से अपने हर चुनावी अभियान में, उन्होंने भीड़ को बताया कि दिल्ली सल्तनत (कांग्रेस सरकार) मुस्लिम आतंकवादी जो गुजरात की सार्वभौमिक राज्य की सीमाओं के भीतर उस पर हमला करने के लिए घुस आए हैं, से उन्हें बचाने वाले अधिकारियों और उनके मंत्रियों को सजा देना चाहती है. न्यायायिक प्रक्रिया कैसा उपहास बनाया और एक मुसलमान को राज्य का दुश्मन बना दिया गया, और उस गर्मी में वह फिर से मुख्यमंत्री चुने गए.

मोदी ने भारत में 2019 के आम चुनाव उन्हीं दांव-पेंचों के सहारे जीता जिन्हें उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन के दो दशकों में आजमा लिया और टेस्ट कर लिया था. ‘घुसपैठिए’, ‘दीमक’, ‘बाहरी’ आदि-आदि शब्दों का उच्चारण करना एक ऐसी रणनीति है जो राष्ट्रवादी भारतीय जनमानस को परोक्ष रूप से खतरों से घिरा महसूस कराने लगती है.




जैसा कि मैंने महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक के 2019 के चुनावों को कवर किया था, मोदी के भाषणों में संदेश ज्यादा जटिल थे और उनकी तुलना में जमीन पर भावना कम जटिल थी. मुम्बई में एक टैक्सी ड्राइवर से लेकर लालगंज में सरकारी कैंटीन चलाने वाले आदमी तक, सब खुश थे कि ‘टोपीवालों’ (मुस्लिम) को उनकी जगह दिखा दी गई है.

अभियान के परिणाम मिले. असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जहां मुसलमानों की अच्छी-खासी आबादी है, बीजेपी ने संघर्ष करने के लिए संघर्ष किया, पार्टी दोहरे अंक में जीत गई, यह एक ऐतिहासिक जनादेश है.

उन दोनों राज्यों में, अभियान भाजपा के नए संशोधित नागरिकता संशोधन बिल के आसपास केंद्रित है, जो पड़ोसी देशों से आये शरणार्थियों में से मुसलमानों को छोड़ कर वहां सताये गए बाकी सभी अल्पसंख्यकों (जैन, बौद्ध, हिन्दू आदि) को भारत की नागरिकता प्रदान करता है. पड़ोसी देशों के प्रवासियों की आमद के कारण असम और पश्चिम बंगाल का सामाजिक परिदृश्य ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण बना हुआ है. इसे एक सांप्रदायिक कोण देकर और राज्य में मुस्लिम शरणार्थियों को अनुमति नहीं देने का वादा करके, भाजपा वहां के असंतुष्ट हिंदू मतदाता को एकजुट करने में कामयाब रही.





नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स (NRC) जिसे पार्टी ने घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए असम में पेश किया जहां बंगाली मुसलमानों की एक बड़ी आबादी रहती है, भाजपा ने अब असम में अधिकांश सीटें जीत ली हैं.

उत्तर प्रदेश में भी ऐसी ही कहानी है. यहांं भाजपा के मुख्यमंत्री हैं, जिनकी चुनाव अभियान के दौरान उनकी साम्प्रदायिक बयानबाजी और पाकिस्तान में सैन्य कार्यवाहियों को लेकर मोदी के अतिसक्रियतावादी भाषणों के लिए आलोचना की गई थी. आज कुल 80 लोकसभा सीटों में से 64 भाजपा ने जीत ली है.

मोदी के कुछ प्रमुख कार्यक्रम, जिनमें प्रत्येक घर में एक शौचालय आवंटित करने के लिए उनका अभियान शामिल है, ने उत्तर प्रदेश में काम किया. कई भाजपा रैलियों में लोक गीतों के माध्यम से सफलता की गाथा बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश की गई. एक विशेष लोक गीत में, मुख्य गायक ने मोदी को एकमात्र ऐसा नेता होने की बात कही हैं, जो पवित्र हिंदू धरती से गद्दारों और देशद्रोहियों को हटा सकते हैं.





लिंचिंग और घृणास्पद अपराधों में सजा न होने और हिन्दू गर्व की बात कर अल्पसंख्यक समुदाय को मुख्यधारा से अलग-थलग कर दिए जाने से भारत में बीते पांच वर्षों से मुसलमानों में भय का वातावरण बन गया और हिन्दू वोट एकजुट हो गया. इसका असर मुसलमानों के वोटिंग पैटर्न पर पड़ा. अधिकांश सीटों पर मुस्लिम आबादी के साथ, मुस्लिम वोट ने विपक्षी दल कांग्रेस की परंपरागत पसंद के विपरीत निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के लिए सबसे मजबूत विपक्ष को वोट किया है. इसके बावजूद 2019 में भारतीय संसद में 19 करोड़ की आबादी वाले मुस्लिम समुदाय के केवल 26 सदस्य जीते हैं, जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी से कोई नहीं है.

इस बीच, हड़बड़ी में लागू नोटबन्दी, 45 सालों में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंची बेरोजगारी, आर्थिक सुधारों की पतली हालत, किसानों के संकट जैसी तमाम विफ़लताओं और भौतिक शास्त्र को दरकिनार कर एक प्रधानमंत्री के बयान कि बादलों में रडार काम नहीं करते और वायु सेना को दी गयी उनकी टिप ने बालकोट में काम किया जैसी बातों के बावजूद भाजपा ने 2019 में पहले से ज्यादा सीटें जीती.





मोदी की भाजपा ने कांग्रेस को उसके सबसे मजबूत गढ़ों में ही पराजित नहीं किया बल्कि अमेठी के पारिवारिक गढ़ में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी हराया. कांग्रेस पार्टी ने खुद को राफेल रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार और गरीबों के लिए एक बुनियादी आय जैसे कार्यक्रम मोदी की मजबूत अपील की तुलना में फीका पड़ गए.

नरेंद्र मोदी को एक ऐसे आक्रामक नेता के रूप में फिर से चुना गया है, जो देश के लिए राष्ट्रवादी गौरव को भुना सकने में सक्षम है. नरेंद्र मोदी की 2019 में अपने विरोधियों के मजबूत किले ध्वस्त कर देने वाली जीत के पीछ ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदुत्व ही वह विचारधारा है, जो हिंदू मूल्यों के संदर्भ में भारतीय संस्कृति को परिभाषित करती है. मोदी ने इसे देश के सामने पूरी आक्रामकता और स्पष्टता के साथ रखा है. अगर इस विचारधारा को अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो अगले पांच वर्षों में यह खतरनाक निष्कर्ष की ओर बढ़ सकती है.

(राना अय्यूब एक भारतीय पत्रकार और गुजरात फाइल्स के लेखक हैं: एनाटॉमी ऑफ ए कवर अप)




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