पहली फोटो में आप एक हंसती-खिलखिलाती हुई लड़की को अपनी मां के साथ देख रहे हैं लेकिन ठीक वही लड़की अगली फोटो में फ्रेम में जड़ गई है और उसके ऊपर माला चढ़ा दी गई है. मोमबत्तियां जल रही है. बाकि की दो फोटो में लड़की अपनी मां और बाबा (पिता) के साथ है.
दरअसल ये फोटो डॉ. पायल तड़वी की है, जो महाराष्ट्र के जलगांव जिले के आदिवासी परिवार से थी. वर्तमान में वी वाई एल नायर हॉस्पिटल से संबद्ध टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज के गायनोकॉलॉजी विभाग में पोस्ट ग्रेजुएट (एम.डी.) कोर्स में द्वितीय वर्ष की अपनी पढाई कर रही थी और यही इसका गुनाह था.
पिछले वर्ष एडमिशन में उसे आरक्षण का लाभ मिला था लेकिन यह संविधान प्रदत्त अधिकार उसी कॉलेज की कुछ सीनियर सवर्ण इलीट महिलाओं जिनमे डॉ. हेमा आहूजा, डॉ. अंकिता खंडेलवाल और डॉ. भक्ति महर को पसंद नहीं आया और जाति के नाम पर डॉ. पायल तड़वी को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. व्हाटसअप ग्रुप में उसकी जाति को लेकर मजाक उड़ाया जाने लगा. लैब में उसे काम करने से रोका जाने लगा. उसकी योग्यता पर सवाल खड़ा किया जाने लगा. उसके इलाज से मरीजो के अशुद्ध हो जाने की बात की जाने लगी. उसके आदिवासी होने की पहचान ने उसे जंगली की श्रेणी में रख दिया. खाने की टेबल पर उसे इस तीनों सवर्ण इलीट महिलाओं ने गॉशिप-पॉइंट बना दिया.
टॉर्चर जब ज्यादा बढ़ने लगा तब उसने अपनी मां जो की एक कैंसर पेसेंट हैं और उसी हॉस्पिटल में इलाज कराने आती हैं, को ये बात बताई. तब दोनों मां-बेटी ने कॉलेज के अधिकारियों को इसकी शिकायत दिसम्बर, 2018 में ही की थी लेकिन किसी ने उनकी शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. इन सवर्ण इलीट महिलाओं द्वारा डॉ. पायल पर टॉर्चर दिनों-दिन बढ़ता गया. तब एक बार फिर 10 मई, 2019 को डॉ. पायल अपनी मां-बाबा के साथ मिलकर लिखित शिकायत भी दर्ज करा दी लेकिन इन इलीट महिलाओं पर कोई कार्यवाही नहीं की गई यानी परोक्ष रूप से उन इलीट महिलाओं को डॉ. पायल को प्रताड़ित करने के प्रोत्साहित किया गया.
21 मई, 2019 को डॉ. पायल पड़वी ने अपनी मां को फोन किया और बताया कि ये टॉर्चर अब और बर्दाश्त नही होता है. घरवालों ने अगले दिन हॉस्पिटल आने की बात कही लेकिन अगले ही दिन 22 मई, 2019 को डॉ. पायल तड़वी अपने पेसेंट की सफल सर्जरी के बाद लंच के लिए हॉस्टल आयी और अपने ही रूम में अपने ही दुपट्टे से फांसी लगा ली.
अब सवाल ये है डॉ. पायल तड़वी की संस्थानिक हत्या के लिए जिम्मेदार कौन है ?
1. उसका आदिवासी होना ?
2. एक आदिवासी लड़की का सवर्णों के वर्चस्व वाले डॉक्टर जैसे पेशे को अपनाना ?
3. आरक्षण के संवैधानिक अधिकार का उपयोग करना ?
ये तीनों ही डॉ. पायल तड़वी की संस्थानिक हत्या के कारण हैं.
आखिर क्यों इन तीनों सवर्ण महिलाओं (जिसे डॉक्टर कहना तो दूर एक सामान्य इंसान भी नहीं माना जा सकता) हेमा आहूजा, अंकिता खंडेलवाल, भक्ति महर जैसी महिलाओं के खिलाफ कोई भी कार्यवाही पिछले 6 महीने में क्यों नही की गई ? क्यांकि वे सवर्ण इलीट परिवार से थी ?
क्यों नही विभाग या कॉलेज के अधिकारियों ने इस जातिगत टॉर्चर के खिलाफ कोई कार्यवाही की ? क्यांकि जाति का नाम आते ही कॉलेज बदनाम हो सकता था.
क्यों डॉ. पायल तड़वी की मां और पिताजी के शिकायत पर ध्यान नहीं दिया गया ? क्यांकि वे आदिवासी परिवार से आते थे और उनकी कोई औकात नहीं थी ?
इस हृदयविदारक घटना के चार दिन बाद भी तीनों सवर्ण इलीट महिलाओं को गिरफ्तार नहीं किया गया है और कार्यवाही के नाम पर डॉ. तड़वी की यूनिट हेड डॉ. यी चिंग-लिंग और विभाग के हेड डॉ. एस. डी. शिरोडकर को पद से हटा दिया गया है यानी दोषियों को मुक्त करने की पूरी कवायद कर ली गई है और बलि का बकरा कॉलेज प्रशासन इन्हें बना दिया है. अभी तक इन तीनों महिलाओं के खिलाफ कोई कार्यवाही पुलिस ने नहीं की है. यहां तक की ये तीनों दोषी महिलाएं फरार है और मामले को कॉलेज प्रशासन रैगिंग का मसला बनाने में जुटा हुआ है.
पुलिसिया कार्यवाही का कोई परिणाम निकलेगा ? या डॉ. पायल की संस्थानिक हत्या के खिलाफ और उनके न्याय के लिए लोगों को सड़क पर आना होगा ? हम लोग भी एक दलित छात्र रोहित बेमुला की ही भांति एक आदिवासी डॉक्टर की संस्थानिक हत्या को भुला देंगे ? तो हमारा जबाब है नहींं. जब तक तीनों सवर्ण महिलाओं को गिरफ्तार करके जेल नहीं भेज दिया जाता और उसमें संलिप्त लोगों सहित कॉलेज को दण्डित नहीं किया जाता, हम लोगों को चुप नहीं बैठना चाहिए. अन्यथा, छात्रों के संस्थानिक हत्याओं का यह सिलसिला लगातार चलता रहेगा, संभवतः और ज्यादा बड़े पैमान पर.
(सोशल मीडिया के माध्यम से आये एक आलेख के आधार पर)
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