ऑलवेदर सड़क परियोजना एक महत्वाकांक्षी काम है. वे समझते हैं कि पर्यावरण के कारणों पर आपत्तियां होंगी लेकिन वे दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिये अपनी पूरी कोशिश करेंगे. सभी मौसमों की सड़कों की परियोजना का निर्माण अन्तरराष्ट्रीय मानदंडों के सख्त पालन के साथ किया जा रहा है, ताकि उचित परिशोधन पर विशेष जोर दिया जा सके और उन्हें प्रतिरोधक बना दिया जा सके. अगले दो वर्षों में उत्तराखण्ड में 2019 तक लगभग 50,000 करोड़ रुपए की 70 सड़कों का निर्माण होगा, जिसमें चारधाम रोड परियोजना और भारतमाला योजना के अन्तर्गत मंजूरी दे दी गई हैं. उन्होंने ऑलवेदर सड़क परियोजनाओं पर सक्रिय रूप से काम करने की प्रशंसा की है, जो चार प्रसिद्ध हिमालयी तीर्थस्थलों को जोड़ती है. सभी मौसम सड़क परियोजनाओं से कुल 900 किमी में से 400 किमी के लिये काम किया जा रहा है – नितिन गडकरी, केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री.
सड़क बहुत चौड़ी होगी. चमकती हुई यह सड़क होगी. मोटर वाहन फर्राटे भरेंगे. कभी अवरोध नहीं होगा. ना ही मोटर दुर्घटना होगी. ना कभी भूस्खलन और आपदा के कारण सड़क बन्द रहेगी. वर्ष भर लोग चारों धार्मिक स्थलों का दीदार करते रहेंगे और पुण्य कमाएंगे. जहां-जहां से ऑलवेदर रोड जाएगी वहां-वहां स्थानीय लोगों को स्वरोजगार प्राप्त होगा.
पड़ोसी दुश्मन राज्य अपनी सीमाओं तक आधुनिक सुविधाओं को जुटा चुका है, इसलिये ऑलवेदर रोड की नितान्त आवश्यकता है. ऐसी सुन्दर कल्पना और सुहावना सपना हमारे प्रधानमंत्री मोदी ही देख सकते हैं. अब वह ऑलवेदर रोड के रूप में साकार होने जा रही है. ऐसा ऑलवेदर रोड महापरियोजना से जुड़े राजनेता और अफसरान गाहे-बगाहे कहते फिरते दिखते हैं.
उल्लेखनीय हो कि यहां ऑलवेदर रोड को लेकर एक दूसरा पक्ष भी सामने आ रहा है. लोगों का कहना है कि हमारे प्रधानमंत्री का यह भी सपना है कि गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाया जाये, इसलिये ‘नमामि गंगे परियोजना’ है. बताया जा रहा है कि नमामि गंगे परियोजना के तहत उत्तरकाशी से गंगोत्री तक 30 हजार हेक्टेयर में वृहद वृक्षारोपण होगा और इन्हीं क्षेत्रों से ऑलवेदर रोड गुजरेगी, जहां हजारों पेड़ों का कटान होना तय हो चुका है.
गफलत यह है कि पेड़ तुरन्त लगाएंगे भी और तुरन्त उनकी बलि ऑलवेदर रोड के लिये अन्य वृक्षों के साथ चढ़ जाएगी. बता दें कि ढ़ालदार पहाड़ों पर एक पेड़ गिराने का अर्थ है 10 अन्य पेड़ों को खतरे में डालना. जहां-जहां से ऑलवेदर रोड गुजरेगी वहां-वहां के स्थानीय लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि उनके लिये ऑलवेदर रोड जैसी परियोजना मौजूदा समय में चिन्ता का विषय बना हुआ है.
श्रीनगर गढ़वाल में बद्रीनाथ हाइवे पर वर्षों पुराने स्वस्थ पेड़ों पर ऑलवेदर रोड योजना के तहत खूब आरिया चल रही हैं. जैसे-जैसे पेड़ों की कटाई आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे श्रीनगर शहर की हालात निर्वस्त्र जैसी दिखने लग गई है.
इस पर हेमवती नन्दन बहुगुणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल में भूगोल विभागाध्यक्ष डॉ. मोहन पंवार ने कहा कि अभी तक ऑलवेदर रोड की जानकारी विशेषज्ञों को नहीं मिली है. वे चाहते हैं कि इस सड़क के चौड़ीकरण के लिये टिकाऊ डिजाइन यहां की भूगर्भिक संरचना के अनुसार बनाया जाय. हे.न.ब. केन्द्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर, गढ़वाल में पर्वतीय शोध केन्द्र के नोडल अधिकारी डॉ. अरविन्द दरमोड़ा ने कहा कि जंगल बचाकर सड़क बनाने की नई तकनीकी पर विचार किया जाना चाहिए.
ऑलवेदर रोड के कारण ऋषिकेश से बद्रीनाथ और रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड मार्गों पर सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक कुल 9105 पेड़ काटे जा चुके हैं. इसके अलावा 8939 और नए पेड़ ऋषिकेश बद्रीनाथ हाइवे पर चिन्हित किये गए हैं, जिसके कटान की स्वीकृति ऑनलाइन ली जा रही है, जबकि उत्तराखण्ड सरकार के अपर मुख्य सचिव (लोनिवि) ओम प्रकाश का दावा है कि इस परियोजना से लगभग 43 हजार पेड़ों का कटान होगा. तिलवाड़ा-गौरीकुण्ड मार्ग पर पीपल के पेड़ भी काट दिये गए हैं।
होटल व्यवसायी जे. पी. नौटियाल ने कहा कि उनके होटल के आगे तीन पीपल के बड़े पेड़ यात्रा सीजन में देशी-विदेशी पर्यटकों को छांव प्रदान करते थे. पीपल के पेड़ों के दोनों ओर गाड़ियां जा सकती थी. उन्हें दुःख है कि इन पेड़ों की बलि भी ऑलवेदर रोड के कारण चढ़ गई. इसके अलावा उनका होटल भी 2-3 मीटर तक सड़क चौड़ीकरण की जद में आ चुका है, लेकिन उन्हें मुआवजे की राशि का अभी तक ठीक-ठीक पता नहीं है.
बताया जा रहा है कि सड़क चौड़ीकरण से केदारनाथ हाइवे में रुद्रप्रयाग से लेकर फाटा तक तिलवाड़ा, रामपुर, सिल्ली, अगस्तमुनि, विजयनगर, गंगा नगर, बेड़ूबगड़, सौड़ी, गबनीगांव, चन्द्रापुरी, भीरी, कुण्ड, काकड़ागाड़, सिमी, गुप्तकाशी, नाला, हयूनगांव, नारायण कोटी, आदि स्थान आधे अथवा पूर्ण क्षतिग्रस्त हो सकते हैं. जबकि लोगों का विरोध देखकर रुद्रप्रयाग जिले के जिलाधिकारी मंगलेश घिल्डियाल को कहना पड़ा कि बस्तियों के आस-पास 24 मीटर के स्थान पर केवल 12 मीटर भूमि का अधिग्रहण होगा, लेकिन इसकी सच्चाई अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाई है.
यहां फाटा में हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले रघुवरशाह और गुप्तकाशी में कमल रावत का कहना है कि मुख्य मार्ग को छोड़कर नए स्थानों से प्रस्तावित सड़क का एलाइनमेंट भारी नुकसान का कारण बनेगा. केदारनाथ मार्ग पर काकड़ा गाड़ से सेमी होते हुए गुप्तकाशी तक के मार्ग को छोड़कर 10 किमी से अधिक सिंगोली के घने जंगलों के बीच से नया एलाइनमेंट लोहारा होकर गुप्तकाशी तक किया जाएगा. इसी तरह फाटा बाजार को छोड़कर मैखण्डा से खड़िया गांव होते हुए नई रोड का निर्माण किया जाना है. फाटा और सेमी के लोग इससे बहुत आहत हैं. यदि ऐसा होता है तो इन गांवों के लोगों का व्यापार और सड़क सुविधा बाधित होगी. इसके साथ ही फाटा के पास पौराणिक मन्दिर, जलस्रोत भी समाप्त हो जाएंगे इससे लोगों की आस्था को नुकसान पहुंचेगा. उनका कहना है कि जिस रोड पर वाहन चल रहे हैं उसी रोड पर सुविधा मजबूत की जानी चाहिए. नई जमीन का इस्तेमाल होने से लम्बी दूरी बढ़ेगी और चौड़ीपत्ती के जंगल भारी मात्रा में नष्ट होंगे. इसी प्रकार रुद्रप्रयाग, अगस्तमुनि दो अन्य ऐसे स्थान हैं जहां पर लोग सड़क चौड़ीकरण नहीं चाहते हैं.
इस सम्बन्ध में विश्व हिन्दू परिषद की कार्यकर्ता उमा जोशी का कहना है कि अगस्तमुनि बाजार को छोड़कर नए स्थान से यदि ऑलवेदर रोड बनाई गई तो वनों का बड़े पैमाने पर कटान होगा और यहां का बाजार सुनसान हो जाएगा. काकड़ा गाड़ में चाय की दुकान चलाने वाले वन पंचायत सरपंच दिनेश रावत का कहना है कि सरकार केवल डेंजर जोन का ट्रीटमेंट कर दें, तो सड़कें ऑलवेदर हो जाएगी. उनकी चिन्ता है कि सड़क चौड़ीकरण से उनका होटल नहीं बच सकता है और वे बेरोजगार हों जाएंगे.
इधर चार धामों में भूस्खलन व डेंजर जोन बेतरतीब निर्माण एवं अन्धाधुन्ध खनन कार्यों से पैदा हुए हैं. रुद्रप्रयाग जिले में रामपुर, सिल्ली सौड़ी बांसवाड़ा सेमी, कुंड, फाटा, बड़ासू आदि स्थानों में लगातार भूस्खलन वाले डेंजर जोन बने हुए हैं. बद्रीनाथ मार्ग पर देवप्रयाग, सिरोहबगड़, नन्दप्रयाग के पास मैठाणा, चमोली से पीपलकोटी के बीच 10 किमी सड़क और बिरही, गुलाबकोटी, हेलंग, हाथी पहाड़, पाण्डुकेश्वर, गोविन्दघाट, लामबगड़, विष्णु प्रयाग के निकट भी डेंजर जोन बने हुए हैं. इनके आस-पास से बाईपास के लिये भी कहीं से सड़क नहीं बन सकती है.
गुप्तकाशी के आगे खुमेरा गांव में सामाजिक कार्यकर्ता आत्माराम बहुगुणा और जिला पंचायत की पूर्व सदस्या उर्मिला बहुगुणा ने बताया कि केदारनाथ के लिये लगभग 23 हेली कम्पनियों को मिले लाइसेंस के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है. गुप्तकाशी, नारायणकोटी, फाटा से जाने वाली हेली कम्पनियों के हेलीकाप्टर प्रतिदिन 28 बार उड़ान भरते हैं. इस तरह 23 कम्पनियों के हेलीकाप्टर कुल 644 बार उड़ान भरते हैं. इसके कारण हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है. इस तरह बढ़ रहे वायु प्रदूषण के कारण यहां पालतू और वन्य पशु खतरे में पड़ गए हैं. इस तरह न जाने कितने ही जानवरों की पहाड़ों से कूद कर मृत्यु हो चुकी है.
मौजूदा समय में ऑलवेदर रोड के नाम पर बेहिचक सैकड़ों पेड़ कट रहे हैं. लोगों का कहना है कि बद्रीनाथ हाईवे के दोनों ओर कई ऐसे दूरस्थ गांव हैं, जहां बीच में कुछ पेड़ों के आने से मोटर सड़क नहीं बन पा रही है. कई गांवों की सड़कें आज भी 2013 की आपदा के बाद से नहीं सुधारी जा सकी है.
गोपेश्वर के नगरपालिका अध्यक्ष संदीप रावत ने बताया कि सम्पूर्ण परियोजना को शुरू करने से पहले पहाड़ों की भूगर्भीय और भौगोलिक जांच की जानी जरूरी थी. ताकि भविष्य में लामबगड़ और सिरोहबगड़ जैसे नए भूस्खलन जोन न बन सकें. उन्होंने ने कहा कि गौचर, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली और पीपलकोटी में स्थानीय जनता की परिसम्पतियों पर क्षरण मूल्य लागू न किया जाय. निर्माण के दौरान मार्ग अवरुद्ध होने पर जनता को होने वाली परेशानी के हल को हाईवे पर मौजूदा वैकल्पिक मार्गों की व्यवस्था से की जाय. वन सम्पदा को होने वाले नुकसान के आंकड़ों को सार्वजनिक किया जाय, साथ ही योजना का निर्माण सुनिश्चित तरीके से हो, जिससे कम-से-कम वनस्पतियों को नुकसान हो, सड़क चौड़ीकरण शुरू होने से क्षेत्र के लोगों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिये योजना सुनिश्चित की जानी चाहिए. चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों को निर्माण कार्यों से कोई दिक्कत न हो, इसके लिये यात्रा शुरू होने से पहले ही रोडमैप तैयार किया जाये और बद्रीनाथ हाईवे पर तीन धारा और जोशीमठ में पिकनिक स्पॉट जैसे प्राकृतिक स्थलों के साथ कोई छेड़-छाड़ न की जाय.
चिपको आन्दोलन से जुड़े रहे मुरारी लाल ने कहा कि पहाड़ों में निर्माण कार्य का मलबा आपदा का कारण बन रहा है. उनका सुझाव है कि मलबा बंजर जमीन को आबाद कर सकता है, जिस पर वृक्षारोपण करके सड़क को भी टूटने से बचाया जा सकता है. डॉ. गीता शाह का मानना है कि पर्यावरण और विकास दोनों की चिन्ता साथ-साथ करनी चाहिए. विकास की अन्धी दौड़ से पर्यावरण को खतरा न पहुंचे. उन्होंने कहा कि इस दिशा में शोध व अध्ययन की आवश्यकता है. श्रीनगर, रुद्रप्रयाग से होते हुए कर्णप्रयाग, चमोली, पीपलकोटी, जोशीमठ तक टू-लेन सड़क कुछ जगहों को छोड़कर सम्पूर्णतः बनी हुई है. यहां पर नन्दप्रयाग से चमोली पीपलकोटी के बीच ऐसे डेंजर जोन हैं, जहां यात्रा सीजन में सड़कें टूटती रहती हैं. श्रीनगर से आगे भी सिरोहबगड़ एक बड़ा भूस्खलन क्षेत्र है, जहां पर जान माल का खतरा बना रहता है. ऐसे डेंजर जोनों से गाड़ियों की आवाजाही रखने के लिये लगातार काम होता रहता है लेकिन हर बरसात में इनकी संवेदनशीलता कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है।. इन स्थानों पर चौड़ी सड़क बनाना बहुत बड़ी चुनौती होगी.
प्रधानमंत्री मोदी ने ऑलवेदर रोड बनाने की घोषणा उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव प्रचार के वक्त की थी. तब से अब तक यह चर्चा रही है कि पहाड़ों के दूरस्थ गांव तक सड़क पहुंचाना अभी बाकी है. सीमान्त जनपद चमोली में उर्गम घाटी के लोग सन 2001 से सुरक्षित मोटर सड़क की मांग कर रहे हैं. यहां कल्प क्षेत्र विकास आन्दोलन के कारण सलना आदि गांवों तक जो सड़क बनी है, उस पर गुजरने वाले वाहन मौत के साये में चलते हैं.
यहां पर सड़क की मांग करने वाले प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और वर्तमान में ग्राम प्रधान लक्ष्मण सिंह नेगी कहते हैं कि यहां 3500 कि जनसंख्या वाले क्षेत्र में कोई पलायन नहीं है. वे अपने जंगल लगा रहे हैं और गांव तक पहुंचने के लिये कठिन रास्तों के कारण दोनों ओर 35 किमी सड़क चाहते हैं. पिलखी गांव निवासी बलवीर सिंह नेगी का कहना है कि चीन सीमा पर मलारी से आगे रोड बहुत चौड़ी है. वे कहते हैं कि बद्रीनाथ मार्ग पर भूस्खलन क्षेत्रों का ट्रीटमेंट हो जाय तो बाकी रोड टू-लेन बनी हुई है. ग्रामीण नन्दन सिंह नेगी दुःखी होकर कहते हैं कि सड़कों पर डामरीकरण के बाद बार-बार केबिल बिछाने के नाम पर सड़कें टूटती रहती हैं, जिसके कारण डामर भी उखड़ते हैं और सरकारी धन का दुरुपयोग होता है. उनका कहना है कि डामरीकरण से पहले ही सड़कों के किनारों के काम सभी विभागों को सामंजस्य के साथ पूरे कर लेने चाहिए. महिला नेत्री कलावती और हेमा का कहना है कि जोशीमठ से होकर बद्रीनाथ जाने वाली सड़क को ही ऑलवेदर का हिस्सा मान लेना चाहिए, क्योंकि यहां सड़क पहले से ही चौड़ी है.
जोशीमठ के लोग हेलंग-मरवाड़ी बाईपास बनाने का विरोध कर रहे हैं. जबकि वर्षों से बद्रीनाथ का रास्ता जोशीमठ से बना हुआ है. जोशीमठ में तीर्थयात्री नृसिंह मन्दिर का दर्शन करते हैं और यहां हजारों स्थानीय लोगों की आजीविका होटल, रेस्टोरेंट आदि से चलती है. दूसरा अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य और सीमान्त क्षेत्र का यह मुख्य स्थान है. पत्रकार कमल नयन का कहना है कि सड़क निर्माण का मलबा सीधे अलकनंदा में उड़ेला जा रहा है. जबकि यहीं पर जोशीमठ और बद्रीनाथ के बीच आधा दर्जन से अधिक डेंजर जोन पाण्डुकेश्वर, गोविन्दघाट, लामबगड़, बलदौड़ा पुल आदि स्थानों पर देखे जा सकते हैं.
जहां वर्षों से निरन्तर भूस्खलन है. इसको सुधारने का जितना भी काम अभी हो रहा है, उससे ऊपरी हिस्से के जंगल और ग्लेशियर द्वारा बने मलबों के ढेर लगातार गिरते जा रहे हैं. यहां दोनों ओर की ट्रैफिक हरेक घंटे में रोकनी पड़ती है. लोगों का कहना है कि यहां 20 किमी के क्षेत्र में कहीं भी दो लेन सड़क नहीं बन सकती है. पीपलकोटी के राकेश शाह बताते हैं कि सड़क चौड़ी होगी, यातायात सुलभ हो जाएगी मगर सड़क के ऊपरी साइड की दुकानें हमेशा के लिये समाप्त इसलिये हो जाएगी कि उसके बाद ऊपरी हिस्से में कोई भूमि नहीं बचती है. सड़क चौड़ीकरण के नाम पर दो बार सर्वे हो चुका है लेकिन यह भी तय नहीं हुआ कि प्रभावित लोगों को मिलने वाले मुआवजे की व्यवस्था कैसी होगी ?
इस यात्रा मार्ग पर होटल व्यवसाय से जुड़े विवेक नेगी को चिन्ता है कि निर्माण कार्यों का मलबा नदी में गिराया जा रहा है, जबकि नदी सूख रही है. अब तो नदी भी ऑलवेदर रोड के कारण मलबे के लिये उपयुक्त डम्पिंग यार्ड बन गया है. बताया कि इस मार्ग पर दुकान, ठेली, चाय का ढाबा चलाने वाले छोटे व्यवसायों को ऐसा कोई नोटिस नहीं आया कि सड़क चौड़ीकरण के कारण उनकों उक्त स्थान से हटना पड़ेगा.
आम लोगों में दहशत भी फैला रही है, जबकि होना यह चाहिए कि इस दौरान जिला पंचायत की भूमि पर ऐसे व्यापारियों के लिये दुकानों की व्यवस्था करनी भी सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए. उनका यह भी कहना है कि केवल दिल्ली में बैठकर सड़क चौड़ीकरण का गूगल मैप सामने रखकर के चारों धामों के जन जीवन पर संकट पैदा करने जैसी स्थिति बना रहे हैं. यहां सड़क किनारे होटल चलाने वाले व्यवसायी कहते हैं कि सीमा सड़क संगठन और कम्पनियों के काम करने का तरीका बिल्कुल भिन्न है इसलिये राष्ट्रीय राजमार्ग विस्तारीकरण में प्रभावित परिवारों की अनदेखी भारी पड़ सकती है.
पीपलकोटी में नाम ना छपवाने बाबत कुछ शिक्षिकाएं कहती है कि पहाड़ों की भूगर्भिक स्थिति को बाहर की निर्माण कम्पनियां नजरअन्दाज कर देती हैं. वे निर्माण करते समय भारी विस्फोटों का इस्तेमाल करते हैं. पहाड़ों के जलस्रोत प्रदूषित हो रहे हैं और भूस्खलन की समस्या दिनों दिन बढ़ रही है. कहा कि तीर्थयात्रियों के लिये पहाड़ केवल सैरगाह बन रहा है, जो ऑलवेदर रोड बनने के बाद और अधिक बढ़ जाएगा. उनका कहना है कि पीपलकोटी से चमोली राजमार्ग के बीच कुछ स्थानों पर सक्रिय बड़े भूस्खलनों की एक सूची है. अच्छा हो कि ऐसे खतरनाक जोन पहले आधुनिक तकनीकी से ठीक किये जाने चाहिए.
- प्रेम पंचोली (इंडिया वाटर पोर्टल)
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