Home गेस्ट ब्लॉग साम्प्रदायिक और जातिवादी कचरे का वैचारिक स्रोत क्या है ?

साम्प्रदायिक और जातिवादी कचरे का वैचारिक स्रोत क्या है ?

22 second read
0
0
1,138

साम्प्रदायिक और जातिवादी कचरे का वैचारिक स्रोत क्या है ?

आजकल संघ के आईटी सेल द्वारा जो सांप्रदायिक और जातिवादी कचरा भक्तों द्वारा फैलाया रहा है, यह कचरा उनके अपने दिमाग़ की उपज नहीं है. इस कचरे का मूल स्रोत तो धार्मिक पुनरुत्थानवादी संघ की विषैली और नफरत भरी विचारधारा में मौजूद है. आज यही सड़ी-गली पुनरुत्थानवादी शक्तियां संविधान का सहारा लेकर संवैधानिक तरीकों से शासनसत्ता पर काबिज़ होकर देश में जातिवादी और सांप्रदायिक माहौल पैदा करने के समाज और राष्ट्रविरोधी कार्यों में संलग्न हैं.

ये धार्मिक पुनरुत्थानवादी शक्तियां सिवाय हिन्दुओं के अन्य किसी भी समुदाय को भारत में रहने देने के योग्य नहीं मानती. इतना ही नहीं ये शक्तियां हिन्दुओं के ही 85% दलित शोषित श्रमिकवर्ग तक को हिन्दूधर्म का अंग मानने तक को राजी नहीं हैं. इसीलिए ये शक्तियां हिंदुत्व का राग अलापते हुए नक़ली राष्ट्रवाद का अलख जगाए हुए है.

भारत की आज़ादी की लड़ाई के दौरान जब ब्रिटिश साम्राज्यवादी भारत की जनता के बीच ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के अंतर्गत अपनी साम्प्रदायिकता, जातिवाद और पृथकतावादी नीतियों को प्रोत्साहित कर रहे थे, तब ये पुनरुत्थानवादी संघी उनके सुर में सुर मिलते हुए “हिंदी हिंदू हिन्दुस्तान” जैसे साम्प्रदायिक नारों को लेकर “राजनीति का हिंदूकरण और हिन्दू धर्म का सैन्यीकरण” करते हुए, समाज में फूट डालने का काम करते हुए ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की मदद कर रहे थे.




दूसरों को सम्मान, आदर, त्याग, प्रेम, भक्ति, सकारात्मक दृष्टिकोण का उपदेश देने वाले ये धार्मिक पुनरुत्थानवादी दूसरों के प्रति क्या दृष्टिकोण रखते है, इसकी बानगी देखिए. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता एमएस गोलवलकर ने घोषणा की कि भारतीय मुसलमान एक दूसरी नस्ल के हैं और फ़लतः उन्हें यहां के नागरिक अधिकारों का दावा करने का कोई हक़ नहीं. यही दोहराते हुए उन्होंने ज़हर उगलते हुए घोषणा की –

“…….हिंदुस्तान में बसने वाले गैर हिंदुओं को या तो हिन्दू संस्कृति और भाषा अपनानी होगी, हिन्दू धर्म का सम्मान और आदर करना सीखना होगा, हिन्दू नस्ल और संस्कृति के गौरव-गीत गाने के अलावा अन्य किसी विचार को निकट नहीं फटकने देना होगा, अर्थात उन्हें इस देश और यहां की दीर्घकालीन परंपराओं के प्रति न केवल असहिष्णुता और अकृतज्ञता की भावना त्यागनी होगी, बल्कि इसके प्रति प्रेम और भक्ति का सकारात्मक दृष्टिकोण सीखना होगा; एक शब्द में उन्हें विदेशीपन छोड़ना होगा, अथवा हिन्दू राष्ट्र का सेवक बनकर इस देश में रहना होगा, उन्हें कोई दावा करने का अधिकार नहीं होगा, किसी सुविधा के योग्य उन्हें नहीं समझा जाएगा, अधिमान्य व्यवहार की तो बहुत दूर रही—उन्हें नागरिक अधिकार मांगने का भी हक़ नहीं होगा. इसके सिवा …कोई दूसरा मार्ग उनके सामने नहीं.”– एमएस गोलवलकर, वी और दि नेशनहुड डिफाइंड, पृष्ठ 55, 1939




हिन्दू महासभा के अध्यक्ष भाई परमानंद ने न केवल हिन्दू-मुस्लिम एकता के नारे का परिहास किया बल्कि नीची जाति के हिंदुओं को उन मंदिरों में घुसने देने के अधिकार के लिए गांधीजी के आंदोलन का भी विरोध किया, जिनमें ऊंची जाति के हिन्दू पूजा करते थे. मुस्लिम और कथित नीची जाति के प्रति ज़हर उगलते हुए उन्होंने कहा-

“हिन्दू महासभा, जो सदा धार्मिक मामलों में निष्पक्षता की नीति बरतती आई है, किसी विशेष पंथ के अनुयायियों पर दबाव नहीं डाल सकती कि वे अपने मंदिरों के दरवाज़े, किसी ऐसे दूसरे वर्ग के लिए खोल दें, जिनके लिए वे वर्जित माने जाते रहे है.” – भाई परमानंद, अजमेर में हिन्दू महासभा
के अधिवेशन में भाषण देते हुए, अक्टूबर 1933.

आरएसएस के एक अन्य नेता वीडी सावरकर का दावा था कि केवल हिन्दू ही भारतीय राष्ट्र के संघटक हैं. यही ज़हर उगलते हुए घोषणा की –

“उनकी हिंदुओं की समान संस्कृति है, क्योंकि हिंदुओं का ही अपना समान राष्ट्र है, समान संस्कृति है और वे भारत को न केवल अपनी मातृभूमि और पितृभूमि मानते हैं, वरन अपनी पुण्यभूमि भी मानते हैं. एकमात्र वे ही भारतीय राष्ट्र हैं.” – भारतीय चिंतन परंपरा, के दामोदरन, पृष्ठ 490 में उद्धृत.




आजकल ये धार्मिक पुनरुत्थानवादी शक्तियां नेहरूजी के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रही हैं. उसका कारण भी इन संघियों की विचारधारा में ही मौज़ूद है. निष्पक्ष और तमाम पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर देखें तो पता चलेगा कि पूरे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जितने भी नेता हुए नेहरूजी उन सब में सबसे अधिक प्रगतिशील, अति आधुनिक और वैज्ञानिक विचारों के नेता थे. पूंजीवाद के प्रवक्ता होने और अपनी तमाम राजनैतिक सीमाओं के बावजूद उन्होंने रूसी क्रांति और लेनिन की जमकर सराहना की और उन्होंने रूसी क्रांति से प्रभावित होकर ही भारत में समाजवादी विचार पर आधारित समाज व्यवस्था की कल्पना की और उसको लागू करने की असफल कोशिश भी की. आज़ादी के पहले और बाद उन्होंने सड़ी-गली पुनरुत्थानवादी शक्तियों से जमकर लोहा लिया. इसीलिए आज सारा संघी जगत हाथ धोकर नेहरुजी का चरित्र हनन करने जैसे घिनौने कामों में लगा हुआ है. इन्हीं धार्मिक पुनरुत्थानवादी शक्तियों को लताड़ते हुए नेहरुजी ने कहा था –

“वे (सम्प्रदायवादी) किसी गुज़रे जमाने के अवशेष मात्र हैं. उनकी जड़ें न तो अतीत में हैं, न वर्तमान में, वे बीच हवा में लटके हैं. भारत हर चीज़ को और हर किसी को बर्दाश्त करता है, पागलों को भी बर्दाश्त करता है, पागल भी कायम रहते हैं और अपनी हरकतें करते रहते हैं. लेकिन हमें यह नहीं भूलना है कि उनका (सम्प्रदायवादियों का) सोचने- समझने का तरीक़ा बहुत ख़तरनाक तरीक़ा है यह दूसरों की तरफ़ जबर्दस्त नफ़रत का तरीक़ा है. यह तरीक़ा ऐसा है जो आज के भारत के लिए बहुत बुरा है. अगर हम इस क़िस्म के सम्प्रदायवाद को कायम रहने देते हैं, फिर यह चाहे हिन्दू या मुस्लिम, सिक्ख या ईसाई सम्प्रदायवाद हो, तो भारत वह नहीं रहेगा, जो आज है. भारत के टुकड़े- टुकड़े हो जाएंगे.” – जवाहरलाल नेहरू, दि डिस्कवरी ऑफ इंडिया, 1955




Read Also –

भाजपा-आरएसएस के साथ कौन से तत्व हैं, जो उसे ताकत प्रदान करती है ?
अज्ञानता के साथ जब ताकत मिल जाती है तो न्याय के लिए सबसे बड़ा खतरा खड़ा हो जाता है
मुख्यधारा के नाम पर संघ के सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का पर्दाफाश करने की जरूरत है
भारत में हर समस्‍या के लिए जवाहर लाल नेहरू जिम्‍मेदार हैं ?
पुलवामा में 44 जवानों की हत्या के पीछे कहीं केन्द्र की मोदी सरकार और आरएसएस का हाथ तो नहीं ?
मनुस्मृति : मनुवादी व्यवस्था यानी गुलामी का घृणित संविधान (धर्मग्रंथ)




प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]




Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…