Home गेस्ट ब्लॉग 17वीं लोकसभा के चुनाव में खड़े तमाम प्रत्याशियों के नाम एक खुला पत्र

17वीं लोकसभा के चुनाव में खड़े तमाम प्रत्याशियों के नाम एक खुला पत्र

29 second read
0
0
738

[ बेलसोनिका ऑटो कम्पोनेंट इंडिया इम्पलॉइज यूनियन की ओर 17वीं लोकसभा के चुनाव में खड़े तमाम प्रत्याशियों के नाम एक खुला पत्र जारी किया है. इस पत्र में उसने अपने साथ-साथ देश की मजदूर, किसान और मेहनतकशों की ओर से अधिकांश समस्याओं को उठाया है और इन प्रत्याशियों से जवाब मांगा है. हम उम्मीद करते हैं लोकसभा चुनाव में बने प्रत्याशी इन सवालों का जवाब देने का जहमत उठायेंगे. अगर वे इन सवालों का जवाब देने का जहमत नहीं उठाते तो यह सीधा माना जा सकता है कि वे इस देश के तमाम मेहनतकश मजदूर-किसान, छात्र-नौजवानों के विरोध में हैं. आईये हम आपको सीधे उनके द्वारा जारी किये गये पर्चे की ओर ले चलते हैं.]

17वीं लोकसभा के चुनाव में खड़े तमाम प्रत्याशियों के नाम एक खुला पत्र

हमारे सवालों की सूची इतनी लम्बी है कि कागज कम पड़ जायेंगे. देश को आजाद हुए 70 साल से अधिक हो चुके हैं लेकिन हम मजदूर-मेहनतकश जनता के जीवन के हालात आज भी गुलामी के बने हुए हैं. हमें भरमाने के लिए देश के संविधान में दर्ज करर दिया गया कि भारत एक समाजवादी गणतंत्र है लेकिन असलियत में इसे पूंजीवादी शोषण की चक्की में पीस दिया गया. सरकारें इस पूंजीवादी निजाम को चलाने का यंत्र बन गई.

देशी-विदेशी पूंजी के गठजोड़ के परिणामस्वरूप लागू हुई उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण की नीतियों के तहत तो मजदूर-मेहनतकश जनता पर पूंजीपति वर्ग के हमले कहीं अधिक बढ़ गये हैं. इन जनविरोधी नीतियों ने अमीर और गरीब के बीच की खाई को भयानक रूप से बढ़ा दिया है. पिछले 30-40 सालों में आज सबसे अधिक बेरोजगारी है. एक तरफ सरकार हमें राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ा रही है लेकिन वही दूसरी तरफ बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हमारा खून-पसीना निचोड़ रही है.

हम मजूदर हैं और हम भली-भांति जानते हैं कि प्रकृति के बाद उत्पादक श्रम ही सभी तरह की सम्पदा का स्त्रोत है. उत्पादक श्रम हम मजदूर मेहनतकश करते हैं लेकिन हम ही गरीबी-कंगाली, भूखमरी-बीमारी और अधिकारविहीनता का जीवन जीने को मजबूर हैं. इन हालातों को अब हम चुपचाप नहीं सहेंगे. हम इस शोषणकारी पूंजीवादी व्यवस्था को ध्वस्त कर समाजवादी व्यवस्था कायम करने के क्रांतिकारी संघर्ष को पुरजोर तरीके से आगे बढ़ायेंगे.

आज जबकि आप लोकसभा प्रत्याशी देश की बहुसंख्यक मजदूर – मेहनतकश जनता के पास वोट मांगने आ रहे हैं और बड़े-बड़े वायदे कर रहे हैं, तो हम मजदूर – मेहनतकशों के भी आपसे कुछ सवाल हैं. आपमें से कोई भाजपा का प्रत्याशी हैं तो कोई कांग्रेस का, कोई सपा – बसपा, इनेलो अथवा आम आदमी पार्टी के टिकट पर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं तो कोई निर्दलीय ही अपनी ताल ठोक रहा है. हमारे सवाल चुनावी समर में मौजूद आप सभी लोकसभा प्रत्याशियों से हैं :

स्थायी प्रकृति के कामों पर ठेका प्रथा गैर-कानूनी है. इसके बावजूद देशी-विदेशी, छोटी-बड़ी सभी फैक्ट्रियों में यह धड़ल्ले से जारी है. सभी जगह ठेका प्रथा के तहत बहुत कम वेतन पर मजदूरों को खटाया जा रहा है. क्या आपने कभी ठेका प्रथा को खत्म किये जाने की मांग की है ? क्या आपने कभी समान काम का समान वेतन दिये जाने की मांग की ?

पूंजीपति श्रम कानूनों को खुलेआम उल्लंघन करते हैं. इस कारण औद्यौगिक दुर्घटनायें बढ़ती जा रही है. इनमें बड़ी संख्या में मजदूरों की मौतें हो रही है. सरकार भी मान रही है कि औद्यौगिक दुर्घटनाओं में प्रतिदिन 3 मजदूरों की मौत एवं 47 अपाहिज हो रहे हैं. हालांकि वास्तविक स्थिति कहीं ज्यादा भयावह है. क्या आपने कभी पूंजीपतियों की मुनाफे की हवस के कारण होने वाली मजदूरों की इन मौतों पर पूंजीपतियों पर हत्या का मुकदमा चलाने की मांग की ?

मोदी सरकार के अपने कार्यकाल में श्रम कानूनों में एक के बाद एक कई मजदूर विरोधी बदलाव किये हैं. आज नीम परियोजना के तहत ट्रेनिंग के नाम पर बेहद सस्ते और अधिकारविहीन मजदूर पूंजीपतियों को उपलबध करवाये जा रहे हैं. साथ ही फिक्स टर्म इम्पलॉयमेंट (एफटीई) का कानून बनाकर स्थाई रोजगार पर सीधे – सीधे हमला बोल दिया है. क्या आपने श्रम कानूनों में किये जा रहे इन मजदूर विरोधी बदलावों का कभी कोई विरोध किया ?

एक बार सांसद – विधायक बनने पर ता-उम्र मोटी पेंशन मिलती है. इसके बरक्त व्यापक मजदूर-मेहनतकश जनता के लिए बुढ़ापे की सामाजिक सुरक्षा की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है. 2004 से सरकार ने पुरानी पेंशन स्कीम से भी कर्मचारियों एवं अर्द्धसैनिक बलों को वंचित कर दिया है. क्या आपने कभी सभी मजदूरों-कर्मचारियों एवं अर्द्धसैन्यबलों हेतु समुचित पेंशन की व्यवस्था की जाने की मांग की ताकि हम अपना बुढ़ापा सम्मन से जी सके ?

यूनियन बनाना मजदूरों का कानूनी-संवैधिनिक अधिकार है लेकिन मजदूर जैसे ही अपने अधिकार को हासिल करने की कोशिश करते हैं, उनके साथ अपराधियों सरीखा व्यवहार किया जाता है. पूंजीपति उन्हें नौकरी से निकाल देते हैं, पुलिस लाठियां भांजती है, गुण्डे हमला करते हैं और अंततः मजदूरों पर ही गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज कर उन्हें जेलों में ठूंस दिया जाता है. प्रिकॉल (कोयम्बटूर) से लेकर मारूती-सुजूकी (मानेसर) और डाइकिन (नीमराणा) तक मजदूर दमन के ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं. क्या आपने कभी यूनियन बनाने के अपराध की सजा भुगत रहे इन मजदूरों को अविलंब जेल से रिहा करने की मांग की है ?

हमारे देश में महिला मजदूरों के काम के हालात बेहद बुरे हैं. उन्हें पुरूष मजदूरों की तुलना में बहुत कम वेतन दिया जाता है. अक्सर कार्यस्थल पर प्रबधकों के अभद्र व्यवहार, यहां तक कि यौन-उत्पीड़न का भी उन्हें सामना करना पड़ता है. क्या आपने कभी महिला मजदूरों को पुरूष मजदूरों के बराबर वेतन दिये जाने एवं उनके मान-सम्मान और सुरक्षा को सुनिश्चत किये जाने की मांग की ?

उदारीकरण के पिछले करीब 30 सालों में शिक्षा-चिकित्सा जैसी बुनियादी सेवाओं को भी बाजार के हवाले किया जा चुका है. पांच सितारा स्कूल एवं अस्पताल उदारीकृत भारत के नए लूट के अड्डे हैं. निजीकरण की नीतियों ने शिक्षा-चिकित्सा की सकारी व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया है. क्या आपने कभी शिक्षा-चिकित्सा के निजीकरण पर रोक लगा सभी को एक समान और निःशुल्क शिक्षा एवं चिकित्सीय सुविधा दिये जाने की मांग की ?

उदारीकरण के पिछले करीब 30 वर्षों में सभी सरकारें देश की अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के दरवाजे विदेशी साम्राज्यवादी पूंजी हेतु खोलती चली गई है. देश में अन्धराष्ट्रवादी उन्माद फैलाने वाली वर्तमान मोदी सरकार इसमें सबसे आगे रही है. क्या आपने कभी सरकारों को उनके इन देश विरोधी कृत्यों पर कटघरे में खड़ा किया ?
उदारीकरण के पिछले लगभग 30 सालों में देश में कई लाख किसान कर्ज की जाल में फंस कर आत्महतया कर चुके हैं. जो सबका पेट पालता है, आज वही राजधानी में सड़कों पर प्रदर्शन कर अपने लिये रोटी मांग रहा है. सरकार किसानों के प्रदर्शनों-आन्दोलनों का निर्ममतापूर्वक दमन कर रही है. उदारीकरण की नीतियों के परिणामस्वरूप गरीब किसान तबाह-बर्बाद हो रहे हैं, जबकि पूंजीवादी फार्मर मालामाल हो रहे हैं. क्या आपने कभी उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण की इन पूंजीपरस्त नीतियों को रद्द करने की मांग की ?

साम्प्रदायिक फासिस्ट ताकतें पूरे समाज में जहर घोल रही है. इजारेदार पूंजीपति वर्ग और उसके द्वारा संचालित मीडिया इनका भरपूर सहयोग कर रहा है. क्या आपने कभी राजनीति में धर्म के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की ? क्या आपने कभी मीडिया के कॉरपोरेट चरित्र पर सवाल खड़ा किया ?

कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही इजारेदार पूंजीपति वर्ग की पार्टियां हैं. भाजपा के ही एक वरिष्ठ नेता अरूण शौरी के शब्दों में ‘कांग्रेस और भाजपा में फर्क सिर्फ गाय का है.’ बाकी राजनीतिक पार्टियां सपा, बसपा, इनेलो, आम आदमी पार्टी इत्यादि कांग्रेस-भाजपा के ही छोटे भाई-बंधु हैं. ये सभी वोट लेने हम मजदूर मेहनतकश जनता के पास आते हैं लेकिन शासन अंबानी-अदानी का चलाते हैं. लेकिन इस घोखाधड़ी को हम अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे. जो कोई लोकसभा प्रत्याशी हमारे बीच वोट मांगने आयेगा, उसे हमारे सवालों का जवाब देना होगा. हम सभी मेहनतकशों का आह्वान करते हैं कि चाहे किसी भी पार्टी का प्रत्याशी आपके बीच आये उससे उक्त सवाल अवश्य करे. इन टोपी वाले बगुलों के जनविरोधी चरित्र को बेनकाब कर दें.




Read Also –

लोकसभा चुनाव 2019 : सुप्रीम कोर्ट के जजों, फिल्मकारों, लेखकों और वैज्ञानिक समुदायों का आम जनता से अपील
उड़ीसा : कॉरपोरेट लुट के लिए राज्य और वेदांता द्वारा नियामगीरी के आदिवासियों की हत्याएं और प्रताड़ना; जांच दल की रिपोर्ट
राजनीतिक दलों से क्या चाहते हैं किसान ?
मोदी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान से खिलवाड़ को चौकीदारी बता रहे हैं
किसानों को उल्लू बनाने के लिए बहुत ज़रूरी हैं राष्ट्रवाद के नारे




प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]




Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…