Home ब्लॉग आम आदमी के साथ गद्दारी करते अन्ना हजारे

आम आदमी के साथ गद्दारी करते अन्ना हजारे

10 second read
4
7
2,091

मीडिया के एक ग्रुप की बातों पर भरोसा किया जाये तो बकौल उक्त मीडिया* अन्ना हजारे ने स्वीकारोक्ति की है. हम उस स्वीकारोक्ति को हू-ब-हू यहां पेश कर रहे है ताकि घटनाओं को ठीक से समझा जा सके. अन्ना हजारे कि स्वीकारोक्ति इस प्रकार है: ‘‘मेरी जिन्दगी लगभग पूरी होने को है. मैंने इस जिन्दगी में गरीबी देखी, फौज की जिन्दगी देखी, फिर एक लम्बे समय तक मैंने कई आन्दोलन भी किये. इस जिन्दगी में मैंने राजनेताओं को बड़े करीब से देखा. मैं नेताओं की फितरत से अच्छी तरह वाकिफ हुआ और जिस प्रकार का नेता अरविन्द केजरीवाल निकला वैसा तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था.

अन्ना हजारे ने आगे कहा, ‘‘मैंने देश के भले के लिए एक आन्दोलन किया था. मैं दिल्ली में आन्दोलन करने गया था. वहां अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया जैसे लोग मुझे मिले और उन्होंने मुझे बताया कि वो सालों से ईमानदारी और स्वच्छता, समाज में बदलाव के लिए काम कर रहे हैं. मैं उनकी बातों में आ गया और मैंने अपने आन्दोलन में उनको प्रमुख जिम्मेदारी दी.

‘‘आन्दोलन काफी कामयाब हुआ और पूरे देश में आन्दोलन की चर्चा हुई. पूरे देश से लाखों लोगों ने आन्दोलन में हिस्सा लिया. पर मैं कभी समझ ही नहीं सका कि अरविन्द केजरीवाल और उसके लोग मुझे इस्तेमाल कर रहे हैं. वो आन्दोलन के जरिये राजनीतिक प्लेटफार्म की तलाश कर रहे हैं. और हुआ भी बिल्कुल वैसा. आन्दोलन को बीच में ही छोड़कर इन लोगों ने राजनीतिक पार्टी बना ली और मुझे भी शामिल करना चाहा. पर मैं कैसे भी इनसे दूर हो गया.

‘‘अरविन्द केजरीवाल और उसके लोगों जैसा कीचड़ उन्होंने कभी नहीं देखा … मैं देश से क्षमा मांगना चाहता हूं कि अरविन्द केजरीवाल जैसी गन्दगी मेरे आन्दोलन से निकली और उसके बाद इस गन्दगी ने पूरे देश में गन्दगी फैलायी. देश को क्षति पहुंचाया गया. मैं इन सब से बहुत दुखी हूं और आखिर में मैं अपने देश के लोगों से क्षमा चाहता हूं. देश के लोग मुझे क्षमा कर दें.’’

अन्ना हजारे की इस लम्बी स्वीकारोक्ति को देने के पीछे वजह यह है कि पाठक घटनाक्रम के विकास को नजदीक से समझ सके. महाराष्ट्र के एक गांव से आये अन्ना ने अपनी दबी हुई आकांक्षा को उकेर कर रख दिया है और जिस प्रकार उनके स्वीकारोक्ति के आखिरी अल्फाज हैं उससे आम आदमी पार्टी के तीसरी एन0सी0 मीटिंग के समय योगेन्द्र यादव के पार्टी से निकाले जाने के समय उनके द्वारा की गयी अपने समर्थकों से अपील की बात याद हो आती है, जिसमें वे कहते हैं कि ‘‘वे यहां – एन0 सी0 मीटिंग स्थल पर – न आये’’. दरअसल यह उनके राजनीतिक दिवालियेपन के कारण अकेले पड़ जाने की पीड़ा थी. उनके इस अपील पर हंसे वगैर नहीं रहा जा सकता. ठीक उसी तरह अन्ना भी आज अकेले पड़ गये अपने पीड़ा को ही साझा किया है, जिस पर केवल हंसा जा सकता है और अफसोस के कुछ शब्द मात्र कहे जा सकते हैं.

अन्ना हजारे दिल्ली में जिस समय अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया से मिलने की बात करते हैं और जिस देशव्यापी आन्दोलन की बात साझा करते हैं दरअसल वह रामलीला मैदान में किये जाने वाले आन्दोलन का ही जिक्र है, जिसने देश को एकबारगी झकझोर कर रख दिया था. इस आन्दोलन के पहले अन्ना हजारे को कोई जानता भी नहीं था. इस आन्दोलन ने देश भर में जिस प्रकार का प्रभाव डाला वह बेमिसाल था. इस आन्दोलन के आधार में था जन लोकपाल बिल, लक्ष्य था भ्रष्टाचार मुक्त समाज और इसका सर्वाधिक गतिशील चालक शक्ति था अरविन्द केजरीवाल और जिसे तत्कालीन मीडिया मुखौटा कह कर प्रचारित कर रही थी वह थे अन्ना हजारे, जिसे बाद के घटनाक्रम ने साबित भी कर दिया. एक समय के बाद जिस प्रकार आन्दोलन धारासायी हो गया आन्दोलन को अवसान की ओर चली गयी, यहीं पर अरविन्द केजरीवाल की दूरदर्शिता और सैद्धांतिक परिपक्वता उभर कर सामने आती है जो अरविन्द केजरीवाल को बांकी तमाम लोगों से अलग बनाती है, और वह है आन्दोलन के एक स्तर के बाद सत्ता कब्जाने की लड़ाई की दिशा की ओर कदम बढ़ाना, जिसके लिए संसदीय वामपंथी दशकों से आज तक तरसते रहे हैं.

अरविन्द केजरीवाल की सैद्धांतिक परिपक्वता की महत्ता इसी बात में निहित है कि उसने वक्त रहते इस महत्वपूर्ण तथ्य को समझ लिया था कि कोई भी आन्दोलन एक चरण के बाद आगे नहीं बढ़ सकती अगर वह ‘‘सत्ता पर काबिज होने’’** का सपना नहीं देख पाती और उसे कार्यरूप में परिणत नहीं कर पाती. अरविन्द केजरीवाल की सैद्धांतिक परिपक्वता की महत्ता इस बात में भी निहित है कि वह भारत के इतिहास में तीसरे व्यक्ति हैं जिसके नेतृत्व में आम जनता ने सत्ता पर काबिज होने का अपना सफल सपना देखा. पहली बार देश की आम जनता ने अमर शहीद भगत सिंह के नेतृत्व में पूरी सत्ता कब्जाने की लड़ाई के सपने को जिया पर उनके असमय शहादत ने जनता को घोर निराशा में धकेल दिया. देश की आम जनता ने दूसरी बार 1967 ई0 में नक्सलबाड़ी किसान आन्दोलन के नेतृत्व में सत्ता पर कब्जा जमाने के सपने के साथ आन्दोलन किया पर उसे खून की नदियों में डूबो दिया. तीसरी दफा देश की आम जनता ने अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में सत्ता पर कब्जा जमाने का पहली वार न केवल सफल सपना ही देखा वरन् सत्ता पर काबिज होकर अपने आन्दोलन को और ज्यादा बल भी प्रदान दिया. जनता की यह सत्ता आज भी दलाल पूंजीपतियों और उसके रक्षक भ्रष्ट और लूटेरी राजनीतिक दलों और उसके गुर्गों से दो-दो हाथ कर रहा है. आम जनता का यह आन्दोलन और पूरी सत्ता कब्जाने की उनकी लड़ाई का अन्त क्या होगा यह तो नहीं कहा जा सकता, पर इस सत्ता ने जो अपनी अमिट छाप इस देश के जनमानस पर छोड़ी है वह निश्चित रूप से अद्वितीय है और इसे किसी भी कीमत पर खत्म नहीं किया जा सकता.

और इसी के साथ अन्ना हजारे की एक सीमा बंध जाती है. वह सत्ता कब्जाने की लड़ाई से खुद को नहीं जोड़ पाते हैं. वह इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी से खुद को ‘‘कैसे भी’’ दूर कर लिया. घोर संसदीय वामपंथियों की ही तरह वह भी किसी आन्दोलन के चरित्र को समझने में न केवल पूरी तरह नाकाम रहे वरन् ढीठतापूर्वक समझने से इंकार भी कर दिया. घोर संसदीय वामपंथियों की ही तरह वह भी केवल आन्दोलन करना ही अपना ध्येय समझने लगे. फलतः वे आन्दोलन में आये गुणात्मक विकास के बाद स्वयं जनता के ही द्वारा नकार दिये गये. आज अन्ना की पीड़ा इसी बात में निहित है कि वे अपने बंद दिमाग के साथ प्रतिक्रियावादी खेमे में जा पहुंचे और आन्दोलन के खिलाफ होकर सीधे गद्दारी पर उतर आये और अब उसे केवल अरविन्द केजरीवाल ही समस्या के रूप में नजर आने लगा. उसे भारतीय जनता पार्टी जैसी भ्रष्ट और लूटेरी सरकार और यह भ्रष्टाचार और लूट पर टिकी यह व्यवस्था अच्छी दिखने लगी है.

अतएव अब साफ तौर पर कहा जा सकता है कि अवसरवादी अन्ना हजारे का मकसद अरविन्द केजरीवाल के युवा और गतिशील टीम के सहारे भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाना और उसके लूट में साथ देना या पर्दा डालना भर था, जो किसी हद तक उसने सफलतापूर्वक पूरा भी कर लिया. आन्दोलन से निकले दो चेहरे किरण वेदी और वी0 के0 सिंह जैसे अवसरवादी अपने मुखौटे के साथ आन्दोलन से जुड़े रहे और अवसर मिलते ही भ्रष्ट सत्ता के साथ हो लिया. परन्तु अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम जनता जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी के लूट का लगातार पर्दाफास कर रही है यह अन्ना हजारे को नागवार गुजर रहा है. अब अन्ना हजारे के लिए भ्रष्टाचार और जन लोकपाल बिल कोई मायने नहीं रखता. उनकी प्रासंगिकता अब केवल भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ बोलने के अलावा और कुछ नहीं रह गया है. वह ठीक ऐन मौकों पर अपने बिल से निकलकर अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ घृणित हमला बोल कर फिर से अपने बिल में जा छुपते हैं. ऐसे में अब वह वक्त आ गया है जब भारतीय जनता पार्टी के दलाल गद्दार अन्ना हजारे को सार्वजनिक तौर पर बेनकाब कर इसे इतिहास के कुड़ेदान में फेंक दिया जाये.

Related Links:
*http://www.dainikbharat.org/2017/04/blog-post_575.html

**http://www.pratibhaekdiary.com/satta-par-kaabiz-hona-buniyaadi-shart

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

4 Comments

  1. S. Chatterjee

    April 18, 2017 at 5:08 pm

    अन्ना आखिर मोदी के दलाल ही निकल गया।

    Reply

  2. Krishna sarkar

    May 2, 2017 at 3:15 pm

    गद्दार अन्ना हजारे

    Reply

  3. game of thrones s07e01 amzn

    August 11, 2017 at 3:45 pm

    I’d love to see an article on the episode
    where Podrick returns with unused gold from the brothel!
    😛

    Game of Thrones Season 7 Episode 3 Stream

    Reply

  4. cours de theatre

    September 30, 2017 at 6:43 pm

    Wow, great blog post.Really looking forward to read more. Fantastic.

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…