पाकिस्तान पर आरोप है कि वहां की सत्ता आतंकवाद को संरक्षण देती आई है. आरोप पूरी तरह सही भी है. उसने विदेश में ही नहीं खुद अपने देश के नागरिकों की बेरहमी से हत्या करने वाले आतंकवादियों को खुले आम संरक्षण दिया है.
पर खुद भारतीय राजसत्ता क्या आतंकवादियों को संरक्षण देने में पीछे रही है ? समझौता, मालेगांव, मक्का मस्जिद, गोवा में बम ब्लास्ट करने वालों में किसको सजा हुई ? दाभोलकर, पनसारे, कालबुर्गी, गौरी के हत्यारों को सजा हुई ? 84 के सिख जनसंहार से 2002 के गुजरात के जनसंहारों में कितनी सजायें हुईं ? मणिपुर में खुद सुप्रीम कोर्ट की जांच में पाई गई 1500 से अधिक फर्जी मुठभेड़ की हत्याओं में किसे सजा हुई ? बिहार, महाराष्ट्र से तमिलनाडु तक सामूहिक दलित हत्याकांडों में किसको सजा मिली ? छत्तीसगढ़ झारखंड के आदिवासियों के कौन से हत्यारे सजा तक पहुंचे ? फिर लिट्टे, भिंडरावाले आदि को खडा करने का इतिहास भी है ही. कितने उदाहरण गिनाये जायें ? इस सबका हिसाब लाखों हत्याओं का है.
यहां सिर्फ बीजेपी सरकार का ही सवाल नहीं है, हालांकि अपने फासिस्ट चरित्र के अनुरूप वह इस काम को सबसे अधिक बेशर्मी से कर रही है. लेकिन बीजेपी के अतिरिक्त कांग्रेस से लेकर समाजवादी, लोहियावादी, पेरियारवादी, सामाजिक न्याय वाली सरकारों के वक्त भी यही होता रहा है. अतः यह पूरी राजसत्ता का ही चरित्र है.
भारत और पाकिस्तान ही नहीं आज दुनिया भर के पूंजीवादी साम्राज्यवादी सत्ताधारी दूसरे ही नहीं खुद अपने देशों में भी किस्म-किस्म के आतंकवाद को खडा करते हैं, प्रशिक्षण संरक्षण देते हैं. इसके जरिये एक ओर तो जनता में आपसी वैमनस्य खडा किया जाता है, दूसरी ओर इसे कुचलने के बहाने जनसंघर्षों के दमन के लिए काले कानूनों से जनवादी अधिकारों को कुचला जाता है तथा पुलिस अर्धसैनिक बलों की दमनकारी मशीनरी को मजबूत बनाया जाता है. आतंकवाद जनता के न्यायपूर्ण संघर्षों के दमन के लिए पूंजीवादी शासक वर्ग का एक प्रमुख औजार है.
- मुकेश असीम के पोस्ट से
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