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अब भी आप चाहते हो कि ऐसा तानाशाह ही दुबारा चुन कर आए !

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अब भी आप चाहते हो कि ऐसा तानाशाह ही दुबारा चुन कर आए !

बहुत से लोग पूछते हैं कि आखिर मैं मोदी के खिलाफ इतना क्यों लिखता हूं. उन्हें आज भी कांगेस से बेहतर मोदी लगते हैं. बोलते हैं, ‘विकल्प क्या है ?’

कल नोटबन्दी से संबंधित एक आरटीआई से यह खुलासा हुआ है कि 8 नवम्बर को रात आठ बजे यानी मोदीजी द्वारा नोटबन्दी की घोषणा के कुछ घंटों पहले शाम 5.30 बजे दिल्‍ली में आरबीआई के निदेशक मंडल की बैठक हुई थी. इस बैठक में नोटबंदी के फैसले को लेकर आरबीआई ने मोदी सरकार के काले धन वाले तर्क से असहमति दर्शाई थी. आरबीआई इस तर्क से सहमत नहीं था कि काले धन का लेन-देन कैश के जरिए होता है. आरबीआई का मानना था कि काला धन कैश के बजाए सोना और रियल एस्‍टेट जैसी संपत्तियों में लगा है.

यानी साफ है कि देश मे करंसी नोटों का नियमन करने वाली एकमात्र संस्था, जिसे बैंकों का बैंक भी कहा जाता है, वह इस निर्णय के खिलाफ थी. उसके बावजूद एक व्यक्ति जो स्वयं को संविधानेत्तर मानता है उसने अपना निर्णय लिया और देश को सालों पीछे धकेल दिया.




डेढ़ साल बाद जब रिजर्व बैंक ने नोटबन्दी पर अपनी फाइनल रिपोर्ट दी तो यह साफ हो गया कि वह बिल्कुल सही कह रही थी. 8 नवंबर, 2016 को 15,417.93 अरब रुपये की वैल्यू के 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट सर्कुलेशन में थे. उसमें से जितने नोट वापस आए, उनकी कुल वैल्यू 15,310.73 अरब रुपये है. यानी कुल 99.30 फीसदी 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट वापस आ गए. तो कहां गया काला धन ? क्या सिर्फ 0.7 फीसदी ही काला धन था ?

हर छोटा-बड़ा आदमी नोटबंदी से बुरी तरह प्रभावित हुआ. सैकड़ों लोग मर गए. छोटे व्यापार का बहुत बुरी तरह से नुकसान हुआ. बच्चों की गुल्लक, गृहिणी की बड़े जतन से की गयी बचत, सब मिट्टी हो गयी. लाखां-करोड़ों लोग बेरोजगार हुए. चलते हुए कारखाने बन्द हो गए. पूरा देश नोट बदलवाने की लाइनों में खड़ा रहा इस उम्मीद में कि देश का कुछ भला हो जाएगा. लेकिन कुछ भी अच्छा नहीं हुआ बल्कि हजारों करोड़ श्रम-घण्टे इस मूर्खतापूर्ण कवायद में बर्बाद हो गए.




इस डिजास्टर पर जितना लिखो, उतना कम है. आज भी किसी व्यापारी के कंधे पर हाथ रख कर पूछ लो, वो आपको बताएगा कि वह नोटबन्दी से पहले कितना कमाता था और आज कितना कमा रहा है जबकि आज चलन में कुल मु्द्रा नोटबन्दी से पहले से कहीं अधिक है.

यानी एक आदमी ने किसी की नही सुनी. … सवा सौ करोड़ लोगों को लाइन में लगने पर मजबूर कर दिया. आज कहां है आपका डिजिटल इंडिया ? ….इकनॉमी को बर्बाद कर दिया और अब भी आप चाहते हो कि ऐसा तानाशाह ही दुबारा चुन कर आए ! …आपकी अक्ल क्या घास चरने गयी है ?

  • गिरीश मालवीय की रिपोर्ट




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