केन्द्र की मोदी सरकार देश की दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं समेत तमाम राष्ट्रीयताओं का विरोधी है. उन सबों को या तो ब्राह्मणवाद के ढ़ांचे में दास या गुलाम के बतौर बनाना चाहती है अथवा मिटा देना चाहती है. कश्मीरी राष्ट्रीयता पर मोदी सरकार के भयानक हमले जो आम तौर पर भयानक नरसंहार के तौर पर देखे जा रहे हैं, जिसके प्रतिकार में कश्मीरी राष्ट्रीयता ने भी अपनी बुलंद आवाज अब रायफल की नाल से देना सीख गया है. इसी कड़ी में केन्द्र की मोदी सरकार (पहले की सरकार की तुलना में ज्यादा खतरनाक तरीके से) ने देश से आदिवासियों को मिटा देने के लिए नये सरंजाम किये हैं. इसमें उनका हथियार बनता है गरीबों के बेटों के हाथों में हथियार थमा कर आदिवासी युवाओं की हत्या और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करने के लिए छुट्टा छोड़ देना.
उत्पीड़ित दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं समेत तमाम राष्ट्रीयताओं पर केन्द्र की आरएसएस के ऐजेंट मोदी सरकार के हमले इतने भयानक और हृदयविदारक हैं कि उन लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए अब हथियार बंद आन्दोलन ही एक मात्र रास्ता बच पा रहा है, चाहे उसे जिस किसी नाम से क्यों न पुकरा जा रहा हो. अलगाववादी, आतंकवादी, पत्थलगढ़ी, पत्थरबाज, नक्सलवादी, माओवादी वगैरह इन्हीं उत्पीड़ित जिन्दा लोगों के प्रतिरोध का एक नाम है, जिसे कुचलने के लिए केन्द्र की मोदी सरकार देश की तमाम संवैधानिक-गैर संवैधानिक संस्थाओं का उपयोग करती है, जिसमें दोनों ओर से ही गरीब-उत्पीड़ितों का ही लहू बह रहा है, जिसका एक उदाहरण पुलवामा में इन्हीं उत्पीड़ित राष्ट्रीयता का प्रतिकारात्मक स्वर था, जिसे सुनने से सत्ता बुरी तरह इंकार कर रही है.
अब इस नृशंस केन्द्र सरकार ने आदिवासियों को निशाना बनाने के लिए केन्द्र में सुप्रीम कोर्ट का बखूबी इस्तेमाल कर आदिवासियों को उनके जमीन से ही उखाड़ फेंकने का निर्णय सुनाया है, जिसकी मूढ़ता के कारण लाखों आदिवासी अपनी जमीन से उखाड़ फेंके जायेंगे और अंबानियों-अदानियों समेत विदेशी कम्पनियों को लाखों करोड़ का मुनाफा पहुंचाया जायेगा. भारत के इतिहास में ऐसा दूसरी बार हो रहा है, जब आदिवासियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का ऐसा निर्णय आया हो, जिनकी जिंदगी ही जंगलों पर निर्भर रहती है.
झारखंड वनाधिकार मंच की संयोजक मंडली के सदस्य सुधीर पाल के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 27 जुलाई तक जंगलों से आदिवासियों को हटाया जाये. इस निर्णय में आदिवासियों को अतिक्रमणकारियों की तरह पेश किया गया है, जो गलत है. आदिवासी कभी अतिक्रमणकारी नहीं हो सकते. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की नजरअंदाजी के कारण ऐसा एकपक्षीय निर्णय आया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 13 लाख से ज्यादा परिवारों को देश भर में जंगल से हटाया जायेगा. यह अभूतपूर्व फैसला है, जिसे जस्टिस अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने कुछ स्वयंसेवी संगठनों द्वारा वनाधिकार अधिनियम, 2006 की वैधता को चुनौती देने वाली दायर एक याचिका पर सुनाई करते हुए सुनाया है. इन संगठनों में वाइल्डलाइफ फर्स्ट नाम का एनजीओ भी शामिल है.
वनाधिकार अधिनियम को इस उद्देश्य से पारित किया गया था ताकि वनवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक नाइंसाफी को दुरुस्त किया जा सके. इस कानून में जंगल की ज़मीनों पर वनवासियों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता दी गई थी, जिसे वे पीढ़ियों से अपनी आजीविका के लिए इस्तेमाल करते आ रहे थे. परन्तु, तथाकथित इन स्वयंसेवी संगठनों ने इस कानून को चुनौती दी थी और वनवासियों को वहां से बेदखल किए जाने की मांग की थी.
बीती 13 फरवरी को हुई सुनवाई में अदालत ने एक विस्तृत आदेश पारित करते हुए इक्कीस राज्यों को आदिवासियों से वनभूमि खाली कराने के जो निर्देश जारी कर दिए, इसका इस्तेमाल करके अब एक बार फिर देश के आदिवासियों को अपनी ही जमीन से बेदखल करते हुए केन्द्र सरकार और उनके सरकारी गुंडों के द्वारा हत्या और बलात्कार का कहर बरपाया जायेगा. आइए, देखते हैं इन 21 राज्यों में कितने आदिवासियों की जिंदगी भाजपा नियंत्रित सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तबाह होने जा रही है.
राज्य कुल दावा खारिज (आदिवासी और वनवासी)
आंध्र प्रदेश 66,351
असम 27,534
बिहार 4354
छत्तीसगढ़ 20095
गोवा 10130
गुजरात 182869
हिमाचल प्रदेश 2223
झारखंड 28107
कर्नाटक 176540
केरल 894
मध्यप्रदेश 354787
महाराष्ट्र 22509
ओडिशा 148870
राजस्थान 37069
तमिलनाडु 9029
तेलंगाना 82075
त्रिपुरा 68257
उत्तराखंड 51
उत्तर प्रदेश 58661
बंगाल 86144
मणिपुर
कुल खारिज दावे 13,86,549
केन्द्र की मोदी सरकार किस प्रकार देश की सर्वोच्च न्यायपालिका को डरा-धमकाकर, गलत तथ्य प्रस्तुत कर यहां तक की उनकी हत्या कर (जज लोया की हत्या देश के सामने एक उदाहरण है), अब न्यायपालिका की आड़ में देश के तमाम उत्पीड़ितों के खिलाफ हमला बोल दिया है क्योंकि केन्द्र की मोदी सरकार ने देश के तमाम संवैधानिक संस्थानों को इस कदर बदनाम कर दिया है कि उसकी प्रतिष्ठा देश की जनता के सामने बुरी तरह खत्म हो चुकी है, चाहे वह सीबीआई हो, पुलिस हो, चुनाव आयोग हो, वगैरह-वगैरह. बंगाल सरकार के अधिकारी के खिलाफ सीबीआई की कार्रवाई और बदले में सीबीआई के अधिकारियों को गिरफ्तार कर थाने में बिठा लेने से उसकी प्रतिष्ठा तो इस कदर खत्म हो चुकी है कि नृशंस मोदी सरकार अब उसका और ज्यादा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल नहीं कर सकती.
यही कारण है कि पुलवामा में 44 सैनिकों के मौत से मोदी सरकार खुशी से इतना चीख रही है मानो उसकी मनमांगी मुराद पूरी हो चुकी है, जिसका इस्तेमाल अब वह देश भर में वोटों में की खेती करने में लगा रही है. वहीं अब आदिवासियों के खिलाफ न्यायपलिका की संजोयी प्रतिष्ठा का इस्तेमाल देश के आदिवासियों के खिलाफ की है. मोदी सरकार यह जानती है कि आदिवासियों के हितों की हिफाजत में देश भर के बुद्धिजीवी आ जुटेंगे, आदिवासियों के हितों के साथ संघर्ष करने वाली नक्सलवादी और माओवादियों का सशस्त्र दस्ता आसानी से नहीं मानेंगे, जिसके लिए केन्द्र की हत्यारी मोदी सरकार इन्हीं पुलिसों, सैनिकों को उनकी हत्या करने, उनकी मां-बहनों के साथ बलात्कार करने के लिए भेजेंगी, जिसके परिणाम में एक बार फिर इन सशस्त्र ताकतों (नक्सवादी-माओवादी) के द्वारा बड़े पैमाने पर इन सिपाहियों की हत्या होगी, जिसको केन्द्र की हत्यारी मोदी सरकार देश भर में प्रचारित-प्रसारित कर चुनाव जीतने के लिए मुद्दों की तरह इस्तेमाल करेगी.
साहेब कश्मीर जाकर कह रहे थे, "भाइयों और बहनों ! ! !
30 साल में पहली बार,
30 साल में पहली बार मैंने दो फौजियों पर केस करवाया और उन्हें जेल भिजवाया ! ! !
(वीडियो कश्मीर में चुनाव के समय का है । जब कश्मीरियों से वोट लेना था, तब वहां सेना की बुराई करके वोट ?? ! ! !) pic.twitter.com/zSMhuRyhGN— Sonia Saini #WithRG (@soniassini) February 20, 2019
देशवासियों को इस हिंसक फासिस्ट मोदी सरकार के चेहरे पर पड़े राष्ट्रवाद का नकाब, तथाकथित सैनिक प्रेम, न्यायपालिका का देश के खिलाफ इस्तेमाल की साजिशों को पर्दाफाश करना होगा, वरना इंसानियत के दुश्मन बने इस फासिस्ट मोदी-सरकार और अंबानियों-अदानियों जैसे लोग अरबों-खरबों की कमाई करने वाले ठहाके लगाते रहेंगे, फिल्मों की शूटिंग करते रहेंगे और देश को गुमराह करते रहेंगे.
पुलवामा हमले के दिन डाक्यूमेंट्री के लिए पोज़ देते प्रधानमंत्री मोदी। विपक्ष इस आचरण पर सवाल खड़े कर रहा है। pic.twitter.com/P0oUWd1caw
— Anurag Dhanda (@anuragdhanda) February 21, 2019
Read Also –
लाशों पर मंडराते गिद्ध ख़ुशी से चीख रहे हैं ! देशवासियो, होशियार रहो !
आक्रोशित चीखें ऐसा कोलाहल उत्पन्न करती हैं, जिसमें सत्य गुम होने लगता है
पुलवामा : घात-प्रतिघात में जा रही इंसानी जानें
आम लोगों को इन लुटेरों की असलियत बताना ही इस समय का सबसे बड़ा धर्म है
जब सरकार न्याय और सच्चाई की बातें बनाती है तो मैं चुपचाप मुस्कुरा कर चुप हो जाता हूं-हिमांशु कुमार
ईवीएम और हत्याओं के सहारे कॉरपोरेट घरानों की कठपुतली बनी देश का लोकतंत्र
लेधा बाई का बयान : कल्लूरी का “न्याय”
70 साल के इतिहास में पहली बार झूठा और मक्कार प्रधानमंत्री
106वीं विज्ञान कांग्रेस बना अवैज्ञानिक विचारों को फैलाने का साधन
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]