बच्चे तक के हाथ की ऊंगलियां काट ली पुलिस ने
हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ता
बलात्कारों और हत्या का विरोध करने के लिये किसी नागरिक पर कोई शर्त नहीं थोपी जा सकती. आप नागरिक से यह बिल्कुल नहीं कह सकते कि सरकारी बलात्कारों का विरोध करोगे, तो हम तुम्हें नक्सली समर्थक मान लेंगे इसलिये तुम बस नक्सलियों के विरुद्ध बोलते रहो और इस दौरान सरकारी सिपाही अडानी और अम्बानी के लिये ज़मीनें छीनने हेतु बेगुनाह आदिवासियों के सीने में गोलियां मारते रहें और उनकी बेटियों से बलात्कार करते रहें.
जब मानवाधिकार कार्यकर्ता सरकारी सुरक्षा बलों और पुलिस द्वारा आदिवासियों की हत्या का मामला उजागर करते हैं, तो भक्त-गण तुरंत आकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से कहते हैं कि तुम तब क्यों नहीं बोलते जब नक्सली मारते हैं ?
आजकल भक्तगणों के साथ कुछ पुलिस वाले और अर्धसैनिक बलों के अफसर भी फेसबुक पर आकर हमसे ऐसी ही बातें कहते हैं. हम नक्सलियों और सरकार को एक ही बराबर नहीं मान सकते. ऐसा नहीं हो सकता कि हर बार सरकार की क्रूरता और बलात्कार पर सवाल उठाने के लिये हमें नक्सलियों की भी निन्दा करनी पड़ेगी. हम एक बार स्पष्ट कर चुके हैं कि हम संवैधानिक राजनैतिक लड़ाइयों के समर्थक हैं. इसलिये सरकार के अपराधों को उजागर करते समय हर बार उस बात को दोहराने की हमें कोई ज़रूरत नहीं है.
हम सरकार को टैक्स देते हैं, वोट देते हैं, कोर्ट में जाते हैं, मतलब हम सरकार का ही हिस्सा हैं. अब मेरे वोट से, मेरे टैक्स के पैसे से तनख्वाह लेकर सिपाही अगर आदिवासी महिला से बलात्कार करेगा तो मुझे उस पर आपत्ति करने का अधिकार है या नहीं ? मैं अगर आपत्ति करता हूं कि मेरे वोट से बनी सरकार का सिपाही, मेरे टैक्स के पैसे की बन्दूक लेकर, मेरे पैसे की वर्दी पहन कर, मेरे पैसे से तनख्वाह लेकर, मेरे ही देश की आदिवासी लड़कियों से बलात्कार नहीं कर सकता, तो मुझसे यह नहीं कहा जा सकता कि पहले तुम नक्सलियों के विरुद्ध बोलो, वर्ना हम तुम्हें नक्सली समर्थक घोषित कर देंगे.
बाज़ार में यदि कोई सिपाही किसी की जेब काट रहा हो और मैं उसे पकड़ लूं तो वह सिपाही यह नहीं कह सकता कि तुम पहले दुनिया के सभी जेबकतरों की निन्दा करो, बाद में मुझे कुछ कहना. जनता की ज़मीन बन्दूक के दम पर छीनना सरकारों का पुराना काम है. यह काम तब भी चलता था जब नक्सलवादी नहीं थे और आज भी जहां नक्सलवादी नहीं हैं, वहां भी पुलिस बन्दूकों के दम पर ही ज़मीन छीनती है.
राजधानी की नाक के नीचे भट्टा पारसौल में भी ज़मीन के लिये किसानों के घर जलाये गये थे. सरकार अगर कानून तोड़ती तो इसका अर्थ है पूरा समाज कानून तोड़ता है. अगर आप अपने सिपाहियों द्वारा किये जा रहे बलात्कारों के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठाते, तो इसका मतलब है आप बलात्कारों का समर्थन कर रहे हैं.
बलात्कारों का विरोध करने के लिये किसी नागरिक पर कोई शर्त नहीं थोपी जा सकती. आप नागरिक से यह बिल्कुल नहीं कह सकते कि सरकारी बलात्कारों का विरोध करोगे, तो हम तुम्हें नक्सली समर्थक मान लेंगे इसलिये तुम बस नक्सलियों के विरुद्ध बोलते रहो और इस दौरान सरकारी सिपाही अडानी और अम्बानी के लिये ज़मीनें छीनने हेतु बेगुनाह आदिवासियों के सीने में गोलियां मारते रहें और उनकी बेटियों से बलात्कार करते रहें.
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