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अंतरिम बजट बना आम लोगों के साथ भद्दा मजाक

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अंतरिम बजट बना आम लोगों के साथ भद्दा मजाक

यदि हम गौर करें तो 2017-18 में शिक्षा पर कुल प्रस्तावित खर्च 3.74 प्रतिशत से 2018-19 में संशोधित बजट में घटकर 3.40 प्रतिशत रह गया है और 2019-20 में 3.37 हो गया है. इसका मतलब यह है कि शिक्षा को और मजबूत नहीं किया जाए और शिक्षा के निजीकरण के लिए निरंतर अभियान चलाया जाए.

भारत सरकार ने 2019-20 के लिए 27,84,200 करोड़ रुपये का अंतरिम बजट पेश किया है, जो मध्य वर्ग के लिए 5 लाख तक की कर छूट के संदर्भ में लोकप्रिय लगता है, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए पेंशन, 6000 रुपये किसानों को वार्षिक आय का आश्वासन दिया है, लेकिन अगर कोई इससे थोड़ा आगे बढ़़ कर देखता है तो विभिन्न कर स्लैब में कोई बदलाव नहीं, छोटे और सीमांत किसानों की गरिमा के लिए महज 500 रुपये प्रति माह की आमदनी महज मजाक है.

यदि हम गौर करें तो 2017-18 में शिक्षा पर कुल प्रस्तावित खर्च 3.74 प्रतिशत से 2018-19 में संशोधित बजट में घटकर 3.40 प्रतिशत रह गया है और 2019-20 में 3.37 हो गया है. इसका मतलब यह है कि शिक्षा को और मजबूत नहीं किया जाए और शिक्षा के निजीकरण के लिए निरंतर अभियान चलाया जाए.

आयुष्मान भारत में स्वास्थ्य बीमा के लिए सबसे बड़ी योजना होने का दावा किया जा रहा है, लेकिन अगर कोई स्वास्थ्य के लिए बजटीय आवंटन के आंकड़ों पर गौर करता है, तो इसे 2017-18 के स्तर से घटा दिया गया है. 2017-18 में स्वास्थ्य व्यय, कुल व्यय का 2.47 प्रतिशत था, जो 2018-19 में घटकर 2.28 प्रतिशत हो गया और 2019-20 में अपरिवर्तित रह गया. निहितार्थों द्वारा यदि आप मुद्रास्फीति की छूट देते हैं, तो यह चालू वित्त वर्ष की तुलना में कम हो गया है.



ग्रामीण विकास व्यय प्रतिशत जो 2017-18 में 6.3 था, 2018-19 में 5.5 प्रतिशत और 2019-20 में 4.99 प्रतिशत हो गया इसलिए ग्रामीण विकास भी घटा दिया गया है. यहां तक ​​कि सामाजिक कल्याण के लिए खर्च चालू वित्त वर्ष में 1.89 प्रतिशत से घटकर 2019-20 में 1.77 प्रतिशत हो गया है. केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर प्रतिशत व्यय 2017-18 में 13.33 से घटकर 2018-19 में 12.41 हो गया है और 2019-20 में घटकर 11.77 प्रतिशत हो गया है.

स्थापना व्यय 2017-18 में 22.08 प्रतिशत से घटकर 2018-19 में 21.04 से 2019-20 में 19.44 प्रतिशत हो गया है इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत करने के लिए कोई उपाय नहीं है बल्कि उसे कमजोर किया जाएगा. उर्वरक सब्सिडी 2017-18 में कुल व्यय के 3.1 प्रतिशत से घटकर 2918-19 में 2.85 हो गई और 2019-20 में घटकर 2.69 प्रतिशत रह गई. खाद्य सब्सिडी पर खर्च 2018-19 में 6.97 प्रतिशत से घटाकर 2019-20 में 6.62 प्रतिशत कर दिया गया है.



वैज्ञानिक विभाग पर व्यय 2017-18 में 1.03 प्रतिशत से घटाकर 2018-19 में 1.02 और 2019-20 में मात्र 0.94 प्रतिशत किया गया है. ऊर्जा पर व्यय 2017-18 में 1.97 प्रतिशत से कम होकर 2018-19 में 1.88 और 2019-20 में 1.58 प्रतिशत हो गया है. समर्थन मूल्य का प्रचार तो बहुत हो रहा है पर उसे लागू करने के लिए न तो पिछले साल कुछ विशेष प्रावधान था और न इस वर्ष ही है. रक्षा के क्षेत्र में 2017-18 में 12.91 प्रतिशत खर्च हुआ जो 2018-19 में घटकर 11.69 प्रतिशत और 2019-20 में और भी कम होकर 10.97 प्रतिशत कर दिया गया है.

कहा भले ही जा रहा है कि रक्षा के मामले में बहुत सजग आ रही है यह सरकार. इसलिए न तो किसानों के लिए है, न ही ग्रामीण विकास केंद्रित है, न ही शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान, स्वास्थ्य के लिए, न ही सामाजिक कल्याण के लिए. यह दिशाहीन और लोकप्रियता का भ्रम फ़ैलाने वाला प्रतीत होता है. इस प्रकार यह सरकार चुनावी साल में भी सही माने में लोकप्रिय बजट पेश नहीं कर सकी है.

  • डी. एम. दिवाकरण
    ए. एन. सिन्हा इंस्टीच्यूट के भूतपूर्व निदेशक




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