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नोटबंदी-जीएसटी-जीएम बीज के आयात में छूट देना-टीएफए, सभी जनसंहार पॉलिसी के अभिन्न अंग

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[ केन्द्र की मोदी सरकार खम ठोककर देश की भ्रष्ट औद्योगिक घरानों की वकालत करने की बात करने वाली देश की पहली सरकार है, जिसने खुलेआम मंच से इस बात का ऐलान किया था. औद्योगिक घरानों की सेवा में दण्डवत् मोदी सरकार औद्योगिक घरानों की सेवा में देश की जनता के ऊपर नोटबंदी जैसा आत्मघाती कानून ठोंक कर रातों-रात न केवल बर्बाद ही कर दिया बल्कि डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों को मौत के घात उतार डाला. वहीं रातो-रात जीएसटी को जबरन लागू कर व्यवसाय को खत्म कर दिया. प्रस्तुत आलेख एक बंगला पत्रिका में 2017 के अंतिम माह में प्रकाशित किया गया था. इसका हिन्दी अनुवाद पाठकों के लिए प्रस्तुत है. यह आलेख बताता है कि किस प्रकार मोदी सरकार आम जनता की जिन्दगी की कीमत पर औद्योगिक घरानों की हिफाजत कर रहा है. ]
नोटबंदी-जीएसटी-जीएम बीज के आयात में छूट देना-टीएफए, सभी जनसंहार पॉलिसी के अभिन्न अंग

बीते 13 अप्रैल, 2017 को रात 12 बजे वस्तु एवं सेवा कर संक्षेप में जीएसटी (गुड्स एण्ड सर्विस टैक्स) बिल पूरे देश भर में पास हो गया, जिसका लक्ष्य संपूर्ण देश के लिए एक व एकीकृत बाजार गठन करना है- यह नई कर व्यवस्था केन्द्रीय व राज्य स्तर में विभिन्न तरह के परोक्ष टैक्सों को मिला कर बनेगी- फिलहाल जीएसटी में जिन केन्द्रीय टैक्सों को एकीकृत किया जाएगा, वह है:-

(1) केन्द्रीय आंतर्शुल्क (2) अतिरिक्त आन्तर्शुल्क (3) सेवा टैक्स (4) अतिरिक्त सीमा शुल्क (5) विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क (6) विशेष उत्पादन शुल्क.

इसके अलावा राज्य सरकार के जिन सभी करों को जीएसटी में शामिल किया जाएगा, वह है:-

(1) राज्य के मूल्य युक्त कर (वैट-वैल्यू एडेड टैक्स)/विक्रय कर) (2) विनोदन (मनोरंजन) कर (3) केन्द्रीय कर जो राज्यों तहशील करते हैं (4) चुंगी (प्रवेश) कर (5) भ्रमण पर (पर्यटन) कर (6) विलासिता (ऐयाशी) कर (7) लॉटरी आदि पर निर्धारित कर.

चूंकि जीएसटी को लागू करने की प्रक्रिया बहुत जटिल और बहुत समय की जरूरत है इसलिए उसे लागू करने के लिए स्व-शासित जीएसटी काउन्सिल (परिषद) गठन किया गया, जहां केन्द्रीय वित्त मंत्री सहित राज्य सरकार और केन्द्र शासित राज्य सरकारों के वित्त मंत्री हाेंगे. उन मंत्रियों में किसी विषय पर मतविरोध होने पर तीन चौथाई भाग की सम्मति के आधार पर निर्णय लिया जा सकता है. इस टैक्स व्यवस्था को लागू करना और राजस्व अदा करने के लिए ‘‘जीएसटी नेटवर्क नामक और एक स्वशासित संस्था गठन किया जाएगा, जिसमें केन्द्र सरकार की भागीदारी 24-5 प्रतिशत, राज्य सरकारों और केन्द्र शासित राज्य सरकारों की सम्मिलित भागीदारी भी 24-5 प्रतिशत होगी. बाकी 51 प्रतिशत भागीदारी आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, एनएसई स्टैटेजिक इंवेस्टमेंट कंपनी और एलआईसी हाउसिंग फाइनांस के जैसे 5 गैर सरकारी संस्थाओं के हाथ में होगी.

सुनने में आ रहा है कि जीएसटी नेटवर्क की कार्यवाही संसद के कंट्रोलर एण्ड आडिटर जेनरल (कैग) के ओहदे के बाहर होंगे. वास्तविक में मोदी सरकार कर अदायगी के क्षेत्र को भी गैर सरकारीकरण करने की ओर एक कदम आगे बढ़ाकर ले गए. ज्ञात रहे, जीएसटी लागू करने का मामला कोई नयी बात नहीं है बल्कि इसे लेकर चर्चा 2003 से ही चलते आ रही है.




सरकार की जीएसटी के पक्ष में तथ्य निम्न प्रकार की है –

(1) जीएसटी के माध्यम से एक साफ व सरल कर व्यवस्था लागू की जाएगी.
(2) कर की दर और कर के ढांचा में सार्विकता लायी जा सकेगी.
(3) एक ही माल पर बारंबार कर थोपने का पथ बंद हो जाएगा.

असल में हमारे देश के संचालक लोग की नीयत कभी भी साफ नहीं होती है. फलस्वरूप वे जनता के स्वार्थ में कुछ भी नहीं कर सकते हैं इसलिए हमारे देश के किसी भी तरह की आम जनता ‘सरकार जनता के लिए कुछ कर सकती हैं’ ऐसी बात पर कभी भी विश्वास नहीं करती है.

कुछ दिन पूर्व ही मोदी सरकार देश के काला धन उद्धार के नाम पर ‘‘नोट बंदी’’ की घोषणा की थी. हमलोगों ने देखा कि उसने कितना बड़ा एक शर्मनाक धोखा जनता को दिया. आम जनता की भंयकर क्षति करने के बाद, आखिर में देखा गया कि जरा सा भी काला धन गिरफ्त में तो नहीं आया बल्कि इस मौके पर किसी-किसी को ‘‘काला धन’’ को सफेद (कानूनी) करने का मौका मिल गया. इधर नोट बंदी के धक्का से उद्योग वृद्धि दर 5-59 प्रतिशत (नवम्बर 2016) से घट कर 1-2 प्रतिशत में लुढ़क गए. अनेकों व्यक्ति आत्महत्या किए, खरीफ फसल की खेती नहीं हुई, अनेकों मजदूर बेरोजगार हो गए, मछली पालन के कारोबार ने भी काफी क्षति का सामना की. इतना जनता को हानि पहुंचाने के बाद काला धन उद्धार का क्या फल मिला. मोदी सरकार को आज इस सवाल का जवाब देना पड़ेगा.




ये मोदी सरकार नोटबंदी जैसा जीएसटी लाने के मामले में भी कुछ-कुछ धोखा दे रही है. दरअसल नोटबंदी और जीएसटी के बीच अंतरसंबंध भी है. आम जनता को जीएसटी बिल लागू होने से जिन सभी की हानियां होगी, वह है –

प्रथमतः, आम छोटे व मध्यम स्तर के व्यापारी, जो इस कर व्यवस्था के बारे में वाकिफ नहीं है, फलस्वरूप उनलोगों को अतिरिक्त खर्च की मार झेल कर इस कर व्यवस्था के अंदर जगह बनाना पड़ेगा. सुनने में आ रहा है कि उक्त व्यवस्था में टैक्स देने के लिए एक नई सॉफ्रटवेयर की जरूरत है जिसे उनलोगों को खरीदना होगा.

इसके अलावे एकाउन्ट प्रस्तुत करने के लिए इसी बीच में ही चार्टर्ड फर्म (एकाउन्ट प्रस्तुत करने वाली कानूनी अधिकार प्राप्त कंपनी) उनलोगाें से ज्यादा रूपये मांग रही है. इसके अलावे उक्त साफ्रटवेयर को हर वर्ष खरीदना होगा या उतना रूपया खर्च कर सॉफ्टवेयर को अपडेट करवाना होगा. फलस्वरूप पहला धक्का में ही छोटे व मध्यम स्तर के व्यापारियों (दुकानदार से शुरू कर कुटीर उद्योग तक के व्यापारियों) के माथे पर खर्च की बीड़ा दबाते जा रहा है.

द्वितीयतः, पूर्व में ही कहा जा चुका है कि कर अदायगी का जिम्मा देश की सरकार के पास होना चाहिए था, लेकिन वह गैर सरकारी संस्थाओं के पास चला जाएगा. इस प्रक्रिया से बहुत ही स्वाभाविक एक सवाल उठ खड़े होते हैं कि जीएसटी नेटवर्क में गैर सरकारी फाइनांस संस्थाओं को जिम्मा दिया गया, लेकिन घरेलू सरकारी बैंकों को क्यों नहीं शामिल किया गया ?

तृतीयतः, निर्यातकारी संस्थाओं के हिसाब का आंकड़ा कहता है कि फलस्वरूप निर्यात के खर्च में कम से कम 1 प्रतिशत बढ़ोत्तरी होगी.

चतुर्थतः, चूंकि जीएसटी एक परोक्ष टैक्स है, इसलिए जनता पर ही इसका बोझ पड़ेगा. आम तौर पर जनता पर टैक्स का बोझ और बढ़ेगा और अमीरों पर टैक्स का बोझ घटेगा. मोदी सरकार इतना दिन से विभिन्न दांव-पेंच अपनाकर अमीरों पर टैक्स का बोझ कम करने के लिए प्रयास चलाते आ रहे हैं, इसलिए 2009 से 2010 तक जहां प्रत्यक्ष कर 61 प्रतिशत था, 2015 से 2016 तक वह घटकर 51 प्रतिशत में आ खड़ा हुआ. इसके बावजूद मोदी सरकार इस देश के अमीरों को सीधा-सीधा प्रत्यक्ष रूप से कर माफी करते जा रही है, कर्ज के दायरे से माफी की छूट दे रही है फिर भी उनलोगों की आश नहीं मिट रही है इसलिए जीएसटी के माध्यम से सरासर प्रत्यक्ष कर के दायरे से अमीरों को मुक्ति देकर वह परोक्ष कर के माध्यम से आम जनता के कंधे पर करों के बोझ को थोप रहे हैं.

पंचमतः, अतिरिक्त सीमा शुल्क व विशेष अतिरिक्त सीमांत शुल्क में जीएसटी लागू होने के फलस्वरूप अतिरिक्त आयात रोकने का पथ भी बंद हुआ क्योंकि कर का बोझ घट जाने से विदेशी माल धड़ल्ले से आकर घरेलू बाजार से घरेलू कृषि उत्पाद व औद्योगिक उत्पाद को आसानी से ही बाजार से हटा देगा. फलस्वरूप बंग्लादेश के जूट (पटसन) या वियतनाम या थाइलैंड के चावल आकर घरेलू पाट या चावल के उत्पादनकारी किसानों के साथ प्रतियोगिता चला सकती है. इस तरह प्रतियोगिता के मौके का इस्तेमाल कर लूटेरा बहुराष्ट्रीय कार्पोरेट बीज, कीटनाशक, खाद कंपनियां देश में प्रवेश करेंगे. वे लोग कहेंगे कि प्रतियोगिता में टिकने के लिए जीएम सीड (बीज), उसके उपयोगी खाद, कीटनाशक इस्तेमाल करना होगा. वे लाेग इस रूप से हमारे देश के किसानों को और ज्यादा शोषण के जंजीरों में फंसा सकेंगे.




सरकार नोटबंदी के समय कथनी में कहे थे कि काला धन के व्यापारियों को दुरूस्त करना और देश के विद्रोहियों (उनके भाषा में आतंकवादियाें) के आर्थिक स्रोतों को ध्वस्त करने के लक्ष्य से ही इस कदम उठाया गया था, लेकिन जब वित्तमंत्री अरूण जेटली सच्ची बात को आम देशवासियों के पास उजागर किए कि सरकार का कैसलेश (नगद रहित) लेन-देन चालू करना यानी डिजिटल लेनदेन के घेरे में संपूर्ण देश की जनता को समेटना ही लक्ष्य है, तब झोली से बिल्ली निकल गई. दरअसल यही मोदी सरकार का घटिया इरादा था. इससे एक ओर कार्पोरेट पूंजी के जुआरी कारोबार का विशाल इलाका बनेगा, विपरीत में खुदरा व्यापारियों का नाश होगा.

इजारेदारी कार्पोरेट पूंजी के हमले के फलस्वरूप वर्तमान में भारत सहित विश्वव्यापी आम जनता की खरीदने की
क्षमता करीब खत्म होती जा रही है इसलिए उपभोक्ता सामग्री की मांग इतना कम है कि बढ़ती पूंजी का पहाड़ बनते जा रहा है और उसे उत्पादन के क्षेत्र में विनिवेश करने का कोई मौका नहीं है. इसलिए उक्त पूंजी का अभी विशाल आकार में आर्थिक कारोबार में ही विनिवेश हो रहा है, जिस विनिवेश में कोई संपदा सृष्टि नहीं होता है लेकिन मुद्रा (अर्थ) परिचलन व विभिन्न तरह के आर्थिक सामग्री खरीद-बिक्री के माध्यम से इन आर्थिक कारोबारी और अमीर बनते जाते हैं. फिलहाल इस आर्थिक कारोबार का क्षेत्र इतना विशाल होते जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय पृष्ठभूमि में माल लेकर व्यवसाय-वाणिज्य के लिए जितना मुद्रा की जरूरत है, उसके 70 गुना से भी ज्यादा मुद्रा विदेशी मुद्रा खरीदने के लिए हाथ बदली होता है.

बीते कई वर्षों से भारत में जितना विदेशी निवेश आया है, उसका बहुत गुना कम परिमाण ही औद्योगिक उत्पादन में शामिल हुआ है, ज्यादा से ज्यादा एफआईआई नामक जुआरी निवेश है. इस निवेश से सिर्फ शेयर सहित विभिन्न आर्थिक सामग्री का हस्तांतरण कर देश के करोड़ों-करोड़ रूपया लूट ले रहा है, बीते कई वर्षों से सरकार उनको मदद करने के लिए इस तरह के निवेश के उपर से सभी रूकावटों को खत्म कर दे रहा है.




इन आर्थिक क्षेत्रें के नियंत्रक कंपनियां चाहती है कि सभी तरह के आर्थिक लेन-देन विभिन्न तरह के क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, ई-वालेट (रूपये रखने का छोटा बैग) आदि के माध्यम से हो, जिन पर उनलोगों का एकाधिकार व नियंत्रण है. इस उद्देश्य से ही कई दशकों से हमारे देश में कार्पोरेट पूूंजीपतियों की बात मानकर व्यापक रूप से बैंक, बीमा के गैर सरकारीकरण का पहल चल रहा है और कृषि व छोटे उद्योगों को दिये जा रहे कर्ज को क्रमिक रूप से घटाते जा रहा है और अमीरों के लिए उपभोग की सामग्रियों (जैसे- गाड़ी, मकान खरीदने विदेश भ्रमण/सैलानी आदि) के लिए बैंक लोन में वृद्धि की जा रही है, ताकि फाइनांस कंपनियां खुलेआम आर्थिक मालों को लेकर जुआरी व्यवस्था चला सके (प्रासंगिक रूप से किसान व आम जनता की क्रय क्षमता वृद्धि होने पर जिस तरह के उपभोक्ता सामग्री की मांग में वृद्धि होती है, उससे आर्थिक माल का व्यापार बहुत ज्यादा होता नहीं है). दूसरी ओर, वित्तीय पूंजी किसी भी तरह के उत्पादन में अंशग्रहण नहीं करके भी उत्पादन व व्यापार-वाणिज्य के सभी आर्थिक लेन-देन पर कंट्रोल कायम कर सिर्फ विशाल परिमाण मुनाफा कमा रहा है. इतना ही नहीं बल्कि, विकासशील देशों के सम्पूर्ण आर्थिक क्षेत्र की बागडोर कंट्रोल करते हैं. फलस्वरूप ये लोग किसी भी संकट आने पर तत्काल अपनी वित्तीय पूंजी को हटा ले जाकर हमारे देश की आर्थिक नीति को ध्वस्त कर दे सकते हैं, देश को दिवालिया बना सकते हैं.

दूसरी ओर, जनता अगर कैशलेस (नगद रहित) विनिमय (आदान-प्रदान) करने के लिए मजबूर किया जा सके, तब बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल के देशी-विदेशी इजारेदार कारोबारियों व बड़े-बड़े सामानों को बेचनेवाली कंपनियों जैसे फ्लिपकार्ट, अमेजन, स्नैपडिल, अलिबाबा, क्विकर जैसी कंपनियां रिटेल मार्केट (खुदरा बाजार) से छोटे-मध्यम व्यापारी, दुकानदार व हॉकरों-फेरीवालों के समूचे व्यापार को लूट ले सकेगा. वे लोग जनता को ऑनलाइन पेमेंट करने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से षड़यंत्र रचकर प्रधानतः 2000 रूपये के नोट बाजार में छोड़े हैं जिसके माध्यम से आम जनता के लिए खरीददारी करना नामुमकिन है.




इस देश में, उक्त नगदरहित लेन-देन की प्रक्रिया के बतौर ई-कामर्स का व्यापार व्यापक विस्तार किया है. मिसाल के बतौर, 2010 में ई-कामर्स के माध्यम से आर्थिक लेन-देन के परिमाण जहां 500 करोड़ मार्किन डालर था, वहां 2015 में वह वृद्धि होकर 2100 करोड़ मार्किन डालर में पहुंचा. उक्त दर से अगर वृद्धि होते जाय तब 2020 तक आर्थिक लेन-देन 11,900 करोड़ मार्किन डालर तक पहुंच जाएगा. इसके अलावा करीब सभी बैंकों के नेट बैंकिंग सिस्टम मौजूद है. फ्लिपकार्ट, अमेजन, ओला, उबेर, स्नैपडील, नौकरी डॉट कॉम, शादी डॉट कॉम जैसी कई उल्लेखनीय ई-कॅामर्स संस्था का नाम है- विसा, मास्टर कार्ड के अलावे भारत में दो बड़े ई-कॉमर्स संस्था अमेरिका के ‘टाईगर ग्लोबल’ और जापान के ‘साफ्रट बैंक’ संस्था कार्यरत है. इस साफ्ट बैंक संस्था में चीन के अलिबाबा सबसे बड़े हिस्सेदार हैं.

आंकड़े के अनुसार, टाईगर ग्लोबल ने विश्व स्तर पर 109 संस्था के माध्यम से 3400 करोड़ मार्किन डालर निवेश की है, जिसके अंदर भारत के फ्लिपकार्ट, अमेजन, ओला, उबेर, क्विकर- जैसे संस्थाएं भी हैं. इनलोगों ने भी भारत के बाजार में करीब 200 करोड़ मार्किन डालर निवेश किया है. वे लोग एक ओर जैसे ओला, स्नैपडील आदि संस्था के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप में निवेश कर रहे हैं, वैसे ही चीन अलिबाबा के माध्यम से परोक्ष रूप से निवेश कर रही है. ‘एक्सेल’ नामक और एक ई-कॉमर्स संस्था भी भारत में सक्रिय है. इसी बीच उस संस्थाओं के दादागिरी से इस देश के छोटे व्यापारियों को व्यापक हानि का सामना करना पड़ रहा है.

उक्त संस्थाओं को भारत के बाजार पर पकड़ बनाने के लिए अनेक समय क्षति होते हुए भी बड़े फायदे हुए हैं. जीएसटी लागू होने पर इन लोगों का मुनाफा कई गुणा बढ़ जाएगा, विपरीत में छोटे व मध्यम स्तर के व्यापारी और ज्यादा से ज्यादा बेरोजगार हो जाएंगे. इसी बीच यह प्रक्रिया शुरू हो गया है क्योंकि जीएसटी की घोषित नीति से पूरा कर व्यवस्था ही इनर्फोमेशन टेक्नोलॉजी तथा इन्टरनेट पर आश्रित हो जाएगी, फलस्वरूप देशी-विदेशी इजारेदार बड़े कारोबारी मालामाल हो जाएंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है.




इसके अलावा, जीएसटी लागू होने पर रोजमर्रा के सामग्री की कीमत आसमान छूने लगेगी, क्योंकि आम जनता पर परोक्ष टैक्स का बोझ 0 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 20 प्रतिशत, 40 प्रतिशत दर पर बढ़ेगा. फलस्वरूप कुछ सामानों के दाम कम होने के बावजूद अधिकांश वस्तुओं के दाम में बढ़ोत्तरी होगी. फिलहाल बाजार में दवा की किल्लत शुरू हो गयी है.

मनमोहन से शुरू कर आज तक मोदी सरकार उदारवादी नीति के पथ पर चल कर तो ग्रामीण बैंकों को सही मायने में निकम्मा बनाकर किसानों पर पशु के जैसा हमले चला रहा है. प्रसंगतः विभिन्न कंपनियाें के साथ समझौता के मुताबिक कृषि कार्य में बहुत ही कम किसान शामिल हुए हैं और ऐसा कोई मिसाल नहीं है जहां समझौता के अनुसार कृषि कार्यों से किसानों को लम्बे समय का फायदा हुआ है. ग्रामीण सहकारी बैंकों पर हमले चलाने का एक विशेष उद्देश्य है व्यापक संख्या में किसानों को बेसहारा कर कृषि कार्य के मामले में उनकी सारी आजादी लूट लेकर समझौता के अनुसार कृषि कार्य करने के लिए ही बाध्य करना है.

हमलोग पूर्व में ही कह चुके हैं कि अतिरिक्त सीमांत शुल्क, विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क जीएसटी में शामिल करने के बाद भारत राष्ट्र सस्ते में कृषि सामग्री आयात को कंट्रोल कर किसानों की रक्षा करने का जो हथियार था, उसे नष्ट कर दिया है. इस देश के किसानों के ऐसे ही माली हालत है. वास्तविक में हर रोज इस देश के अखबार में किसानों की आत्महत्या की खबर सुनने में आती है. आत्महत्या के इस सिलसिले से मौत की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रही है. निर्लज्ज सरकार का इससे कोई हिल-डोल दिखाई नहीं पड़ रहा है. ब्रिटिश जमाना से ही साम्राज्यवाद के खिदमतगार आरएसएस और उसके दलाल मोदी सरकार देश के किसानों के स्वार्थ को साम्राज्यवाद के पैरों के नीचे परोस कर ‘देशप्रेम’ का गीत सुना रहा है.

इसलिए वे लोग विमुद्रीकरण-जीएसटी के साथ ही साथ बीते पहली जुलाई से जेनेटिकली (जीन परिवर्तित) बीज का आयात करने की प्रक्रिया की पहल किया है. बाजारू मीडिया इसे दूसरी हरित क्रांति नाम देकर स्वागत किया है. जेनेटिक ईंजीनियरिंग एप्रुवल कमेटी ने पहली जुलाई 2017 को जीन परिवर्तित (जेनेटिक/मोडिफाइड) तेल का बीज इस्तेमाल करने के लिए अनुमति दी है. दरअसल मोदी सरकार उक्त प्रक्रिया से विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए देश के कृषि उत्पाद के बाजार को मुक्त-द्वार करने के लिए और एक कदम आगे बढ़ गए. 56 इंच का सीना से दलाली करने के लिए दुःसाहस की कमी नहीं है !




आवें, अब ट्रेड फेसिलिटेशन एग्रिमेन्ट संक्षेप में टी.एफ.ए. (व्यापार सहायताकारी समझौता) के बारे में जानें !

दरअसल, नोटबंदी तथा विमुद्रीकरण-जीएसटी-जीएम बीज को व्यवहार करने के लिए छूट देना और टीएफए लागू करना एक ही पॉलिसी का अलग-अलग हिस्सा है. ये सभी प्रोग्राम हमारे देश को बहुराष्ट्रीय संस्था यानी कार्पोरेट घराना और उनके घरेलू दलालों के हाथों में सुपुर्द करने के कुप्रयास के अलावे और कुछ भी नहीं है. इस देश के दलाल मोदी सरकार और उसके गुर्गे देश की जनता को विभिन्न तरह के मीठी-मीठी बातों से सिर्फ धोखा ही दे रहा है.

साम्राज्यवादी इजारेदार वित्तीय पूंजी हमारे देश में और बेरोकटोक पथ से प्रवेश कर सके, इसी प्रयास में टीएफए और एक कदम मात्र है. 1996 के विश्व व्यापार संगठन के सिंगापुर बैठक में दुनिया में व्यापार-वाणिज्य को सुगम करने के लिए 4 प्रस्ताव पेश हुआ था –

(1) आमतौर पर दो देशों के द्विपक्षीय समझौता के माध्यम से जो पूंजी निवेश होता था, अभी एक बहुपक्षीय समझौता करने की नीति ग्रहण करने का प्रस्ताव पेश हुआ,

(2) देशी-विदेशी हर संस्था को ही समान मौका मिले, इसलिए प्रतियोगिता मूलक पॉलिसी ग्रहण करने की बात आयी,

(3) विदेशी संस्था की सरकारी संसाधन क्रय करने के लिए समान अधिकार होगा,

(4) अनियंत्रित व्यापार-वाणिज्य की सुविधा के लिए कानून की समता करना चाहिए.

उपरोक्त प्रस्तावों को सुनने से समतावादी बात जैसे लगने पर भी असल में यह समतावाद ‘तिमी मछली के साथ पुट्ठी मछली’ की प्रतियोगिता में दोनों पक्ष को ही समान दृष्टि में देखने का ‘समतावाद’ है. असल उद्देश्य समता के नाम पर देश के व्यापार-वाणिज्य की रक्षा करनेवाले सभी संरक्षण को खत्म कर देना है. पहले भारत इसका विरोध किया था. उस समय वाजपेयी सरकार का जमाना था. 2003 के दोहा राउण्ड (बैठक) में यह मामला फिर से सामने आया. उस समय भारत, चीन सहित अनेकों देश इसका विरोध करने पर अभी पीछे हट गए.

2013 के विश्व व्यापार संस्था का बाली राउण्ड में यह मुद्दा फिर ट्रेड फेसिलिटेशन एग्रिमेंट (टीएफए) नामक एक बहुराष्ट्रीय समझौता के बतौर पेश हुआ. भारत सरकार इस समझौता को मान लिए. उनलोगों ने देश को
बिक्री करने के बदले ‘खाद्य अधिकार सुरक्षा’ बिल पारित कर देशवासियों के लिए मरहम पट्टी करने की व्यवस्था किया. 2015 में मोदी सरकार उस समझौता को मान्यता देने के लिए तत्पर हुई. 2016 में विश्व व्यापार संगठन के 76 नम्बर देश के बतौर भारत सरकार समझौता पर दस्तखत की




2017 के मार्च में ट्रेड फेसिलिटेशन इन सार्विज’ नामक एक मसविदा प्रस्तुत कर कार्पोरेट घराने के विश्वस्त ताबेदार के बतौर वाहवाही मिलने के बावजूद पिछड़े व अविकसित देशों के सामने उनके दलाली का चेहरा साफ हो गया. बात यह है कि इस टीएफए को मान्यता देने से उनके लिए एकीकृत कर संरचना लागू करना छोड़कर और कोई पथ खुला नहीं है इसलिए मोदी सरकार जीएसटी के मामले में इतनी तत्परता दिखा रही है.

विमुद्रीकरण, जीएसटी, मॉडिफायड जीन का व्यापक प्रसार और टीएफए- इन सभी का एक लक्ष्य के साथ दूसरे का लक्ष्य जुड़ा हुआ है. लक्ष्य बहुत साफ है हमारे देश के घरेलू व्यापार को नष्ट कर देश के मजदूर-किसान को भूखा रखकर विदेशी बहुराष्ट्रीय संस्था, कार्पोरेट घराना और उसके देशीय दलालों को शक्तिशाली बनाना ही लक्ष्य है. जुआरी पूंजी के कारोबारियों के ‘अच्छे दिन’ लाना है. इसी का नाम ‘देश प्रेम’ है- इसी का नाम ‘विकास’ है- इसी का नाम ‘अच्छे दिन’ है. यही मोदी की ‘मन की बात’ है. हमें याद रखना होगा कि मानव को कत्ल करने की यह हत्यालीला एक दिन की कार्यसूची नहीं है और सिर्फ मोदी सरकार ही गोरखधंधे के कारोबारी हैं, ऐसा भी नहीं है.

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के जमाना से ही मानव की हत्या करने की इस नीला नक्शा (ब्लू-प्रिंट) तैयार किया गया है. मोदी छप्पन इंच की छाती फूलाकर उसमें सिर्फ सील-मोहर लगा रहा है. आज सभी जनवादप्रिय लोगों को एकताबद्ध होकर उन देशद्रोहियों को उखाड़ फेंकना होगा. वर्ग संघर्ष के साथ अस्मिता की लड़ाई एकजुट होगी. जनवाद की मांग की लड़ाई के साथ मुक्त विचार की लड़ाई गोलबंद होगी. सभी के मेलबंधन से व जनता की मुखर दोस्ती से आज नया सबेरा लाना होगा.




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