जो ब्राह्मण अपने आप को आर्य कहते थे, उन्हीं ब्राह्मणों ने 1922 में हिन्दू महासभा की स्थापना की और 1925 में आरएसएस की स्थापना की. 1922 तक जो ब्राह्मण अपने आप को आर्य कहते थे, उन्होंने अपने आप को हिंदू कहना शुरू कर दिया.
ब्राह्मणों का धर्म हिन्दू है और अब उन शूद्रों (ओबीसी) का धर्म भी हिन्दू हो गया है. गुलामों का धर्म और गुलाम बनाने वालों का धर्म एक नहीं हो सकता परन्तु आज ऐसा है और यही गम्भीर समस्या है, इसका समाधान करना होगा. हिन्दू शब्द ब्राह्मणों के किसी भी धर्म ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं है. वेद, शास्त्र, स्मृति, पुराण उपनिषद इनमें कहीं पर भी हिन्दू शब्द नहीं है. हिन्दू शब्द आक्रमणकारी मुसलमानों का दिया हुआ शब्द है. ब्राह्मण लोग बाबर, हुमायूं को गाली देकर मस्जिद गिराते हैं इसलिए उन लोगों का दिया हुआ नाम पवित्र कैसे हो सकता है ? अगर बाबरी मस्जिद कलंक है तो मुसलमानों का दिया हुआ, हिन्दू नाम भी कलंक है. उसे क्यों स्वीकार किया जाता है ?
गीता में भी हिन्दू शब्द नहीं है. गीता में कहा गया है, यदा-यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवतिभारत, इसके भारत शब्द को पूजने के बजाय आक्रमणकारी मुसलमानों के दिए हुए शब्द को क्यों पूजते हैं ? (भारत में आज 99 % मुसलमान आक्रणकारी मुसलमान नहीं है, वे एससी, एसटी, ओबीसी के धर्मान्तरित हुए हैं, इसलिए एससी, एसटी, ओबीसी, और धर्मान्तिरित अल्पसंख्यक एक ही खून के भाई भाई है). ब्राह्मण कहता है कि हिन्दू शब्द सिन्धू से बना है, इसका समर्थन करने के लिए कहते हैं कि पार्शियन भाषा में ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ होता है इसलिए सिन्धू का हिन्दू उच्चारण हुआ. अगर बारहवीं शताब्दी में मुसलमानों ने यह शब्द दिया था तो ब्राह्मणों ने उस वक्त हिन्दू शब्द को क्यों नहीं स्वीकार किया ?
मुसलमान शासकों ने जब जजिया कर लगाया था, तब ब्राह्मणों पर जजिया कर लागू नहीं था, तो सिद्ध हो जाता है कि उस समय के ब्राह्मण हिन्दू शब्द को नहीं मानते थे, जो पहले अपने आप को हिन्दू नहीं मानते थे, वे आज अपने आप को हिन्दू क्यों मानते हैं ? ब्राह्मण उस समय हिन्दू शब्द को अस्वीकार इसलिए करते थे क्योंकि आक्रमणकारी मुसलमानों ने यह नाम दिया हुआ था और अरबी भाषा में इसका अर्थ है – पराजित, गुलाम, चोर, काला, लुटेरा इसलिए अपने आप को हिन्दू मानने से इन्कार कर दिया परन्तु वह अब अपने आप को हिन्दू क्यों मानते हैं ? यह अहम् सवाल है.
आप लोग शायद यह नही जानते होंगें कि गुजरात के ब्राह्मण दयानन्द सरस्वती ने 1875 में मुम्बई में जाकर आर्य समाज की स्थापना की थी. ब्राह्मण 1875 तक अपने को आर्य मानते थे. बाल गंगाधर तिलक ने लिखकर यह सिद्व किया कि ब्राह्मण आर्य हैं और आर्यों ने यहां की प्रजा को पराजित किया, यह बात गर्व से सिद्ध की. अगर ब्राह्मण आज भी अपने आप को आर्य कहते तो हमारा कार्य और आसान होता. हमारे लोग बाह्मणों के झांसे में न फंसते. जो ब्राह्मण अपने आप को आर्य कहते थे, उन्हीं ब्राह्मणों ने 1922 में हिन्दू महासभा की स्थापना की और 1925 में आरएसएस की स्थापना की. 1922 तक जो ब्राह्मण अपने आप को आर्य कहते थे, उन्होंने अपने आप को हिंदू कहना शुरू कर दिया.
सभी हिंदू धर्म ग्रंथ 1875 के पहले लिखे गये हैं, इसी कारण उनमें हिंदू शब्द नहीं आया है. 1875 से 1922 तक ऐसा क्या हुआ ? ऐसा कौन सा कारण हुआ कि ब्राह्मणों ने अपने आप को आर्य कहना बन्द करके हिंदू कहना शुरू किया ? 1875 से 1925 के 50 सालों में कोई बहुत गम्भीर बदलाव हुआ होगा जिस वजह से आरएसएस ने आर्य समाज बनाने के बजाय हिंदू समाज का नारा लगाया. इसका यह मतलब हुआ कि 1875 और 1922-25 के बीच में कोई ऐतिहासिक बदलाव हुआ होगा जिस वजह से ब्राह्मणों को अपने आप को आर्य कहना छोड़ देना पडा़, ऐसा क्यों हुआ ?
इसी बीच इग्ंलैण्ड में एडल्ट फ्रचाईस (प्रौढ़ मताधिकार) का आंदोलन शुरू हुआ. इसके पहले इग्लैंड में भी प्रौढ़ मताधिकार नहीं था. वहां जब आन्दोलन शुरू हुआ तो भारत के ब्राह्मणों को यह लगा कि यदि इग्लैण्ड में प्रौढ़ मताधिकार का अधिकार मान्य हो जायेगा तो चूंकि इण्डिया-ब्रिटिश इण्डिया है, इसलिए ब्रिटेन का हर कानून आज नहीं तो कल भारत में लागू होगा ही. इस तरह से प्रौढ़ मताधिकार भी भारत में लागू होगा और भारत में लागू हुआ तो भारत के प्रत्येक 21 साल के व्यक्ति को मताधिकार मिलेगा. भारत में शूद्र और अतिशूद्रों की संख्या 85 % है.
बहुसंख्यकों को वोट का अधिकार मिलेगा और लोकतंत्र में जिनकी बहुसंख्या होगी राज भी उसी का होगा. ब्राह्मण अल्पसंख्यक होने की वजह से उनको कुछ नहीं मिलेगा और उनका वर्चस्व खत्म हो जायेगा. प्रौढ़ मताधिकार का आन्दोलन इग्लैण्ड में चला और उसकी घंटी भारत में ब्राह्मणों के घर बजने लगी कि मामला बहुत खतरनाक है. ब्राह्मण अपने आप को आर्य मानते थे और आर्य की प्रचार थ्योरी यह थी कि आर्य लोग भगवान द्वारा चुने हुए लोग है, लोगों द्वारा उनको दुबारा चुनने की जरूरत नहीं है.
- साथी आई. जे. राय
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