मोदी सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए अर्थव्यवस्था के सारे ही आंकड़ों को बदल रही है. उन्हें फर्जी बना रही है. अभी तक भारत सरकार द्वारा जारी अर्थव्यवस्था के आम आंकड़ों पर ज्यादा सवाल नहीं थे. इनको लेकर आर्थिक विशेषज्ञों में तो बहस होती थी पर आम तौर पर इन्हें ठीक माना जाता था. कम से कम इन्हें जानबूझकर ऊपर-नीचे करने के आरोप नहीं लगते थे लेकिन अब यह नहीं कहा जा सकता. मोदी सरकार जानबूझकर आंकड़ों में हेरा-फेरी कर रही है. ऐसे में सरकार द्वारा जारी सारे ही आंकड़े संदेह के घेरे में आ जाते हैं. सभी आंकड़ों की विश्वसनीयता संदेहास्पद हो जाती है.[ 2014 में बिल्कुल ही फर्जी वादे करके एक हत्यारे नरेन्द्र मोदी ने देश की सत्ता हथिया ली और अब उसका असली रंग देश को दीख रहा है. एक वक्त था जब किसी भी डकैत का सपना बैंकों को लूटना हुआ करता था, पर इस सपनों में हकीकत में बदल डाला है संघी हत्यारा और गुण्डा नरेन्द्र मोदी ने. इसने देश को बीते साढ़े चार सालों में न केवल बैंकों को ही वरन् बैंकों के बैंक रिजर्व बैंक को भी लूटकर अपने पूंजीपति आकाओं के चरणों में डाल दिया और 14 लाख करोड़ रूपया से अधिक बैंकों को लूटकर देश का दिवाला पिट दिया. 12 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर लिया. अब जब देश एक बार फिर चुनाव के दौर में पहुंच गया है, तब हत्यारे और लूटेरी यह मोदी सरकार बिना किसी लज्जा के देश को फर्जी आंकड़े पेश कर गुमराह कर रही है. प्रस्तुत आलेख एक न्यूज वेबसाईट से साभार ली गई है. ]
पुरानी कहावत है कि यदि किसी लकीर को छोटा करना हो तो उसके सामने एक बड़ी लकीर खींच दो. पहले वाली तब अपने आप छोटी लगने लगेगी. लेकिन यदि लकीर पेन्सिल से बनी हो और आपके पास मिटाने वाला रबर भी हो तो उसे मिटाकर भी छोटा किया जा सकता है. ऐसा लगता है कि केन्द्र की वर्तमान संघी सरकार इसी दूसरे वाले तरीके में विश्वास करती है.
अभी बीते 28 नवंबर को मोदी के अपने जेबी विभाग, जिसका उपाध्यक्ष एक संघी कारकून है, ने 2011-12 के आधार पर सकल घरेलू उत्पाद के नये आंकड़े जारी किये. इसके पहले आधार वर्ष 2004-05 था. इन नये आंकड़ों के अनुसार संप्रग सरकार के जमाने में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर औसत 6.7 प्रतिशत रही थी जबकि मोदी सरकार के पिछले चार सालों में यह 7.4 प्रतिशत रही यानी मोदी सरकार का काल अच्छा है. इसके पहले तक के आंकड़ों में संप्रग सरकार का काल अभी तक का सबसे तेज वृद्धि काल था, जिसकी चारों ओर वाह- वाही हो रही थी.
इन आंकड़ों के जारी होते ही बवाल मच गया. पहला सवाल तो यही उठा कि आंकड़ों को केन्द्रीय सांख्यिकी विभाग के बदले नीति आयोग ने क्यों जारी किया ? सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं था. यहां तक कि अखबारों में सरकार की रक्षा करने वाले सुरजित भल्ला को भी स्वीकार करना पड़ा कि यह ठीक नहीं था.
फिर आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठा. लोगों ने सवाल किया कि संप्रग सरकार के दौरान जब पूंजी निवेश और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात ऊंचा था और आयात-निर्यात में वृद्धि भी ज्यादा थी तब संप्रग सरकार के काल में अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर मोदी सरकार के काल से कम कैसे हो सकती है ? और वह भी नोटबंदी और जी.एस.टी. के नकारात्मक असर के बावजूद ? यानी नये आंकड़े प्रथमदृष्टया संदेहास्पद हैं.
चर्चा उठी तो और भी तथ्य सामने आये. पता चला कि तीन साल पहले केन्द्रीय सांख्यिकी आयोग ने 2011-12 के नये आधार पर सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े तैयार किये थे. उसमें संप्रग सरकार के काल में वृद्धि दर और भी ऊंची निकल कर आ रही थी. तब नीति आयोग ने उन आंकड़ों पर बस एक नजर डालकर उन्हें खारिज कर दिया था. यही नहीं अभी अगस्त में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा गठित एक कमेटी ने संप्रग सरकार के काल के आंकड़ों को ऊपर की ओर संशोधित करते हुए बताया था कि तत्कालीन बाजार भाव पर 2004-05 से 2008-09 में वृद्धि दर 8.37 प्रतिशत तथा 2009-10 से 2013-14 के बीच वृद्धि दर 7.69 प्रतिशत रही थी. इसे भी सरकार ने खारिज कर दिया था और नीति आयोग के संघी कारकून राजीव कुमार ने कहा था कि ये आंकड़े गड़बड़झाले हैं.
इन तथ्यों की रोशनी में स्पष्ट है कि नीति आयोग द्वारा जारी किये गये वर्तमान आंकड़े फर्जी हैं. इनका एकमात्र उद्देश्य यह है कि मोदी सरकार को बेहतर रोशनी में पेश किया जाये.
इसका व्यापक पहलू ज्यादा खतरनाक है. एक लम्बे समय से मोदी सरकार द्वारा जारी अर्थव्यवस्था के आंकड़ों पर सवाल उठते रहे हैं. उन्हें संदेह की नजरों से देखा जाता रहा है. तब लगता था कि वह सब तात्कालिक है और साल-दो-साल बाद जब अर्थव्यवस्था के पक्के आंकड़े आयेंगे तो सही होंगे क्योंकि तात्कालिक खबर न होने के चलते उनमें गड़बड़झाला करने की जरूरत नहीं होगी. अब स्पष्ट है कि ऐसा नहीं है. मोदी सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए अर्थव्यवस्था के सारे ही आंकड़ों को बदल रही है. उन्हें फर्जी बना रही है.
अभी तक भारत सरकार द्वारा जारी अर्थव्यवस्था के आम आंकड़ों पर ज्यादा सवाल नहीं थे. इनको लेकर आर्थिक विशेषज्ञों में तो बहस होती थी पर आम तौर पर इन्हें ठीक माना जाता था. कम से कम इन्हें जानबूझकर ऊपर-नीचे करने के आरोप नहीं लगते थे लेकिन अब यह नहीं कहा जा सकता. मोदी सरकार जानबूझकर आंकड़ों में हेरा-फेरी कर रही है. ऐसे में सरकार द्वारा जारी सारे ही आंकड़े संदेह के घेरे में आ जाते हैं. सभी आंकड़ों की विश्वसनीयता संदेहास्पद हो जाती है.
वैसे कहना होगा कि यह संघी सरकार की आम कार्यशैली रही है. मोदी ने 2014 के चुनाव में हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वायदा किया था. इसको पूरा करने का उन्होंने तरीका यह निकाला कि सरकार ने 2015 से बेरोजगारी के आंकड़े जारी करने बन्द कर दिये. अब ठोस आंकड़ों के अभाव में कोई भी दावा किया जा सकता है और मोदी से लेकर जेटली तक पिछले महीनों में रोजगार को लेकर एक से बढ़कर एक दावे करते रहे हैं. विशेषज्ञ उनके एक दावे की पोल खोलते हैं तो वे दूसरा दावा पेश कर देते हैं.
मोदी एंड कम्पनी यह उम्मीद कर रहे हैं कि वे इस तरह के झूठे आंकड़ों की मदद से अगले चुनावों में अपनी नैय्या पार लगा सकते हैं. पर मजदूर-मेहनतकश आंकड़ों से नहीं बल्कि जिन्दगी की कठोर सच्चाईयों से हालात का आंकलन करते हैं और यहां उन्हें धोखा नहीं दिया जा सकता.
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