Home गेस्ट ब्लॉग “शांति की तलाश में“, इस विडियो को जरूर देखिये

“शांति की तलाश में“, इस विडियो को जरूर देखिये

18 second read
1
0
1,282

“शांति की तलाश में“, इस विडियो को जरूर देखिये

भारत देश के छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग में शांति स्थापना के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों को दखल देना होगा. अन्तराष्ट्रीय संगठनों ने दखल नहीं दिया तो भारत देश की सरकार आदिवासियों को नक्सलवाद के नाम पर नामो निशान मिटा देगी. भारत देश में अंतरराष्ट्रीय संगठनों को मिलकर शांति सेना भेजना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र संघ और यूरोपीय देशों के संगठनों को भी हस्तक्षेप करना चाहिए. अंतराष्ट्रीय संगठनों ने भारत देश में हस्तक्षेप नहीं किया तो हो सकता हैं कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो जाये.

बस्तर संभाग के जिलों की अनकही-अनसुनी या सुनाई हुई सच्चाई की कहानी हैं. यह उस देश व उस राज्य की कहानी है जहां आदिवासी कहे जाने वाले आदिमानव अर्थात आदिवासी भारत देश के ( मुलबीज ) जीवन जीते हैं. इस राज्य का नाम हैं छत्तीसगढ़. वैसे भारत के कई राज्यों में मुलनिवासी जीवन जीते हैं. इन आदिवासियों के पास कुछ नहीं होता हैं लेकिन देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के सबसे अमीर आदिवासी ( मुलनिवासी ) हैं.

आदिवासियों के पास जंगल, जमीन, जल है. यह संसाधन ही आदिवासियों का घर, सम्मान, इज्जत हैं. इन आदिवासियों के पास जल, जंगल, जमीन न रहे तो इन आदिवासियों का दुनिया में कोई वजूद ही नहीं रहेगा. जिस जंगल, जमीन, जल में आदिवासी निवास करते हैं, उस जमीन में कई तरह के मंहगे धातु हैं, शायद यही वजह है कि बस्तर संभाग में आदिवासी किसी न किसी तरह से मारे जा रहे हैं.

बस्तर संभाग में सबसे पहले राज्य सरकार द्वारा सन् 2000 में ‘सलवा जुडूम’ शांति अभियान के नाम पर नक्सल संगठन के खिलाफ अभियान चलाया गया. इस अभियान में कई आदिवासी मारे गए, कई आदिवासी परिवार बस्तर संभाग छोड़कर अलग राज्यों में जीवन जीने चले गये. जो आदिवासी मारे गए हैं और बस्तर संभाग छोड़कर गये हैं, उनका न तो सरकार के पास हिसाब है और न ही कोई दस्तावेज.

बस्तर संभाग में आदिवासियों की आबादी 32 प्रतिशत थी, सलवा जुडूम अभियान के चलने से आबादी घट कर 26 प्रतिशत हो गयी है. आदिवासियों का नक्सलवाद (माओवादियों) के नाम पर आज भी बस्तर में मरना और आदिवासियों का विस्थापन बरकरार है. सिर्फ छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग में ही आदिवासियों की आबादी कम नहीं हो रही है बल्कि पूरे भारत देश में आदिवासियों की आबादी तेजी से घट रही है.




आदिवासियों के पक्ष में ऐसी कोई राजनैतिक पार्टी नहीं है जो भारत देश में आदिवासियों के संरक्षण की बात करती हो. भारत देश में आदिवासियों का आरक्षण कितना है ? आदिवासियों को आरक्षण हैं तभी तो आदिवासी प्रतिनिधी चुनाव लड़ते हैं. बस्तर संभाग की बात करें तो विधायक, सांसद, आदिवासी हैं लेकिन इन नेताओं को आदिवासियों की आबादी घटने से कोई मतलब नहीं है. ये सोचते हैं कि वे खुद के दम पर नेता बने हैं, लेकिन यह बात भूल गये हैं कि आदिवासियों की आबादी रहेगी तो विधायक, सांसद सीट लड़ पायेंगे. बस्तर संभाग में 12 विधानसभा सीटें हैं, इन सीटों में एक विधानसभा सीट से सामान्य हो गया हैं. बस्तर संभाग में जिस तेजी से आदिवासियों की आबादी घटती जा रही है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बहुत जल्द 11 विधानसभा सीटें भी सामान्य हो जायेगी और आज जो नेता अपने आप को आदिवासी जनप्रतिनिधी होने का दावा करते हैं, किसी किनारे लाईन में सबसे पीछे ताली बजाते दिखेंगे.




आदिवासियों के संरक्षण के लिये भारत देश के राष्ट्रपति, राज्य के राज्यपालों को जनप्रतिनिधि चुना गया हैं, लेकिन आज तक किसी प्रकरण में राष्ट्रपति व राज्यपालों द्वारा कोई पहल नहीं किया गया है. जब स्थानीय आदिवासी जनप्रतिनिधि ही आदिवासियों को अनसुना करते हैं तो राष्ट्रपति और राज्यपालों पर इल्जाम मढ़ना व बोलना उचित नहीं होगा.

यह कोई नहीं जानता कि मरने वाला आदिवासी हैं या नक्सलवादी ? जिला सुरक्षा बल ने आदिवासी को मारा या नक्सलवादी को ? पुलिस का जो बयान होता है, राज्य व केंद्र की गृह मंत्रालय उसी बयान पर विश्वास करता हैं. सच्चाई का पता कोई नहीं लगाता. आदिवासियों को नक्सल के नाम पर मारने वाला पुलिस, जांच करने वाला पुलिस. भारत देश में जितने भी जांच ऐजेंसियां हैं वे सारे किसी न किसी तरीखे से सरकार के अधीन हैं, तो इन जांच एजेंसियों से ये उम्मीद नहीं कि जा सकती कि निष्पक्ष जांच करेंगी.




भारत देश के छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग में शांति स्थापना के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों को दखल देना होगा. अन्तराष्ट्रीय संगठनों ने दखल नहीं दिया तो भारत देश की सरकार आदिवासियों को नक्सलवाद के नाम पर नामो निशान मिटा देगी. भारत सरकार की ऐजेंसियां यह कहते नहीं थकती कि भारत के संविधान अनुसार हम देश के नागरिकों के साथ समान न्याय कर रहे हैं. न्याय के नाम पर भारत देश के नागरिकों को युद्ध की ओर अग्रसर किया जा रहा हैं. भारत देश में अंतरराष्ट्रीय संगठनों को मिलकर शांति सेना भेजना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र संघ और यूरोपीय देशों के संगठनों को भी हस्तक्षेप करना चाहिए. अंतराष्ट्रीय संगठनों ने भारत देश में हस्तक्षेप नहीं किया तो हो सकता हैं कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो जाये.

  • लिंगाराम कोडाप्पी

Read Also –

नागरिकों की हत्या और पूंजीतियों के लूट का साझेदार
छत्तीसगढ़ः आदिवासियों के साथ फर्जी मुठभेड़ और बलात्कार का सरकारी अभियान
दन्तेवाड़ाः 14 साल की बच्ची के साथ पुलिसिया दरिंदगी
9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस : छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा 15 आदिवासियों की हत्या




[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

One Comment

  1. S. Chatterjee

    December 26, 2018 at 7:00 am

    बस्तर या अन्य आदिवासी इलाक़ों में संसाधनों पर कब्जा करने की जो लडाई चल रही है उसमें सभी सरकारें पूँजीपतियों के साथ हैं । कॉंग्रेस आ जाने से कोई फ़र्क़ नहीं पडेगा

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…