नसीरुद्दीन शाह : ये जहर फैल चुका है और दोबारा इस जिन्न को बोतल में बंद करना बड़ा मुश्किल होगा खुली छूट मिल गई है कानून को अपने हाथों में लेने की. कई इलाकों में हम लोग देख रहे हैं कि एक गाय की मौत को ज़्यादा अहमियत दी जाती है, एक पुलिस ऑफिसर की मौत के बनिस्बत. मुझे फिक्र होती है अपनी औलाद के बारे में सोचकर क्योंकि उनका मजहब ही नहीं है. मजहबी तालीम मुझे मिली थी, रत्ना (रत्ना पाठक शाह-अभिनेत्री और नसीर की पत्नी) को बिलकुल नहीं मिली थी, वो एक लिबरल परिवार से आती हैं.
हमने अपने बच्चों को मजहबी तालीम बिलकुल नहीं दी क्योंकि मेरा ये मानना है कि अच्छाई और बुराई का मजहब से कुछ लेना-देना नहीं है. अच्छाई और बुराई के बारे में जरूर उनको सिखाया. हमारे जो बिलीफ हैं, दुनिया के बारे में वो हमने उन्हें सीखाए. कुरान-शरीफ की एक-आध आयत याद ज़रूर करवाई क्योंकि मेरा मानना है उससे तलफ्फुज़ सुधरता है उसके रियाज़ से. जिस तरह हिंदी का तलफ्फुज़ सुधरता है रामायण या महाभारत पढ़के.
खुशकिस्मती से मैंने बचपन में अरबी पढ़ी थी इसलिए कुछ आयतें अब भी याद हैं. उसकी वजह से मेरे खयाल से मेरा तलफ्फुज़ है. तो फिक्र मुझे होती है अपने बच्चों के बारे में कि कल को उनको अगर भीड़ ने घेर लिया कि तुम हिंदू हो या मुसलमान, तो उनके पास तो कोई जवाब ही नहीं होगा. इस बात की फिक्र होती है कि हालात जल्दी सुधरते तो मुझे नज़र नहीं आ रहे.
इन बातों से मुझे डर नहीं लगता गुस्सा आता है और मैं चाहता हूं कि राइट थिंकिंग इंसान को गुस्सा आना चाहिए डर नहीं लगना चाहिए हमें. हमारा घर है हमें कौन निकाल सकता है यहां से.”
फरीदी अल हसन तनवीर : आज नसीरुद्दीन शाह डरे हुए हैं कि कोई उनके बच्चों का धर्म न पूछ ले. उन बच्चों का जिनको उन्होंने और उनकी हिन्दू पत्नी रत्ना शाह ने कोई धर्म दिया ही नहीं ! अफ़सोस ये कि ये डर पैदा करने में खुद शाह साहब ने भी बड़ी मेहनत की है – अपनी फिल्मों में एक समुदाय के भयावह चित्रण से दूसरे समुदाय के दंगाइयों को नफ़रत भड़काने का मसाला देकर !
आपको सरफ़रोश याद है नसीर भाई ? आपने पाकिस्तानी गायकों को ही आतंकी बना दिया था – बावजूद इसके कि आज तक एक भी मामला ऐसा नहीं हुआ ! तब से पहले किसी मनसे या शिसे का बॉलीवुड में पाकिस्तानी कलाकारों का विरोध याद है आपको ? या फिर आपकी वेन्सडे भी ? कैसी शानदार कलाबाजी से आपने टोपी को आतंक का प्रतीक बना दिया था, वो भी उस मुंबई में जिसने दाऊद देखा था तो छोटा राजन भी, और बम धमाके देखे थे तो दंगे भी.
क्या लगता था आपको नसीर साहब ? भड़कती भीड़ सड़कों पर ही रहेगी – ठेले वालों, ऑटो वालों, पंक्चर वालों को मारते हुए ? किसी रोज आपके ऊंची दीवालों और सिक्योरिटी गार्ड्स वाले बड़े से बंगले में न घुस आएगी ? और न न – ‘मैं तो बस कलाकार हूं’ वाली सफाई न दीजियेगा. आप ये भूमिकाएं तब कर रहे थे जब शाहरुख़ खान कि ‘माय नेम इस खान एंड आई एम नॉट अ टेररिस्ट’ तो छोड़िये ही – सलमान खान जैसे भी बजरंगी भाईजान में पाकिस्तानी अवाम का अमनपसंद चेहरा दिखा रहे थे, किसी और फिल्म में पाकिस्तानी एजेंट्स के साथ साझा मिशन कर रहे थे. आगे के लिए सीख लीजिये नसीर साहब – क्या है कि आवारा भीड़ किसी को नहीं पहचानती.
आज सफ़ीर / दूत/ एम्बेसडर आपकी गाली, भर्त्सना, फतवे, आक्रमण, मोब सलदबीपदह सब सहन कर लेगा. उखाड़ लो जी जो उखाड़ सको.
पोस्ट स्क्रिप्ट : एक पायेदार अदाकार होने के नाते आपकी यह जिम्मेदारी बनती है कि आप अपनी सृजनात्मकता से कहीं कोई फॉल्स खलनायक तो नहीं गढ़ रहे. नसीर ने वास्तविक कहानी पर परजानिया भी की लेकिन सरफरोश और वेडनेसडे के काल्पनिक चरित्र और कथानक झूठे थे लेकिन मुसलमानों को कटघरे में खड़ा करने के साथ-साथ उनका एक गलत इम्प्रैशन भी समाज को दे गए थे. आपके दौनों तरह के कामों का योगदान और प्रभाव तो आकलित किया जाएगा शाह साहब.
पोस्ट स्क्रिप्ट 2 : और अब नई खबर ये है कि नसीर ने खुद को डरा हुआ नहीं बल्कि गुस्से से भरा बताया था.
गोदी मीडिया इसे गोल कर गया. नसीर नफरत से डरे नहीं अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, के समान गुस्सा हैं.
विनय ओसवाल :
हम खुद कोई गर्व करने वाला कार्य भले ही न कर सके पर ऐसी सरकारें बनाने में विश्वास करते हैं, जो समाज, यानी व्यक्तियों के समूह को गर्व करने के अवसर उपलब्ध कराएं –
“गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’’
‘‘राम मंदिर “वहीं“ बनेगा’’
‘‘गौ-माता की रक्षा के लिए सर्वस्व बलिदान करने का प्रण’’
‘‘संविधान से अनुच्छेद 370 की समाप्ति’’
‘‘अखण्ड भारत बनाने (अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश आदि सम्मिलित)’’ वगैरह वगैरह
हमारी बनाई सरकारों की चिंता होती है मुद्दे कायम रहें और वे बार-बार इन्ही मुद्दों पर चुनी जाती रहे. राजस्थान की हिंगोनिया गौशाला की हकीकत ज्यादा पुरानी नहीं है. जिस देश में इंसान भूख से मरते हों, करोड़ों बच्चों को पौष्टिक भोजन न मिलता हो, उस देश की अधिकांश गो-शालाओं की स्थिति कैसे सुधर सकती है ? सभी की स्थिति कमोवेश एक-सी ही है, प्रदेश कोई भी हो, शहर-कस्बा कोई भी हो.
देश के अधिसंख्य कट्टी खानों के मालिक या साझीदार हिन्दू यहां तक कि जैन भी है. हम धर्मात्मा दिखना चाहते हैं, होना नहीं.
सुब्रतो चटर्जी :
देखते देखते उसका
भोला भोला हंसता हुआ चेहरा
सख्त होता गया
शरीर का रोम रोम
तीखे नाख़ून बन गये
सर के बाल, दाढ़ी, मूंछें
पतले लंबे नाख़ून
नाख़ून जैसे दांत
अब जब वह हंसता है
तो सान चढ़े तलवारों के बीच से
सनसनाती हुई गुज़रती
सर्द हवाओं की आवाज़ आती है
यह किसी आदमी के
राक्षस बनने की प्रक्रिया नहीं है
यह एक हारे हुए तानाशाह के चेहरे का
अंतिम पड़ाव है.
Read Also –
क्या देश और समाज के इस हालत पर गुस्सा नहीं आना चाहिए ?
राजसत्ता बनाम धार्मिक सत्ता
महान शहीदों की कलम से – साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज
आरएसएस का देश के साथ गद्दारी का इतिहास
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]