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माओवादी हमले में मारे गये पत्रकार पर माओवादियों की स्पष्टता

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माओवादी हमले में मारे गये पत्रकार पर माओवादियों की स्पष्टता

आम अपील कर रहे हैं कि कभी भी संघर्ष के इलाकों में पत्रकार, अलग-अलग कर्मचारी लोग पुलिस के साथ न आये. खासकर चुनाव ड्यूटी पर आने वाले कर्मचारी लोग किसी परिस्थितियों में भी पुलिसियों के साथ न आये. – सीपीआई (माओवादी)

छत्तीसगढ़ में चुनावी समीकरणों को कवर करने गये दूरदर्शन टीम के कैमरामैन अच्युतानन्द की माओवादियों के हमलों में मारे जाने को सरकार और पुलिस बल देश भर में इस प्रकार प्रचारित कर रहे हैं, मानो माओवादियों ने जानबूझकर पत्रकारों पर हमला कर दिया हो. कि माओवादी पत्रकारों के विरूद्ध हो. परन्तु सच्चाई कुछ और ही कह रही है. दरअसल संभव लगता है कि पुलिस बल माओवादियों से अपनी बचाव के तौर पर इन पत्रकारों को ढ़ाल की तरह प्रयोग किया हो क्योंकि आमतौर पर माओवादी कभी भी पत्रकारों पर हमला नहीं करता. इसी बात की पुष्टि माओवादियों द्वारा जारी किया गया यह हस्तलिखित पर्चा करता है, जिसे कई अशुद्धियों के बावजूद अच्छी तरह पढ़ा जा सकता है. यहां हम माओवादियों के द्वारा मौके पर जारी किये गये हस्तलिखित पर्चा को लिख रहे हैं.

माओवादियों के द्वारा यह हस्तलिखित पर्चा साईनाथ के नाम से जारी किया गया है. जाहिरा तौर पर यह नाम माओवादियों का छद्म नाम ही होगा, जिसे माओवादियों के दरभा डिवीजनल कमेटी के द्वारा डाला गया है. उनके द्वारा जारी किये गये इस पर्चे (प्रेस वक्तव्य) का शीर्षक ही सब कुछ बयां कर देता है. शीर्षक है –‘‘निलावाया एम्बुश के बाद हमारी पार्टी पर होने वाले दुष्प्रचार का खण्डन करें.’’ पर्चे का मजमून कुछ इस प्रकार है –

छत्तीसगढ़ राज्य बनाने के बाद अब चौथी विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है. इसके अन्तर्गत अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों ने जनता को गुमराह करने के लिए झूठे वादे कर रहे हैं. इस चुनाव को शांतिपूर्वक सफल करने का बहाना बनाकर आज तक करीबन 5 लाख पुलिस, कमाण्डों व अर्ध-सैनिक बलों के अलावा और 1 लाख अर्ध-सैनिक बलों को संघर्षरत् इलाकों में तैनात किया है.

हर दिन गांवों पर हमला करना, जनता को मार-पीट करना, फर्जी मुठभेड़ों में मारना, फर्जी केशों में जेल भेजना, फर्जी आत्मसमर्पण के नाम से दसियों ग्रामीणों को वारन्टी नक्सली बताकर मीडिया में दिखाना आम बात हो गया है.





इसी माहौल में ही दन्तेवाड़ा जिला मारनपुर से लेकर मुरगुम तक सड़क बनाने का काम अक्टूबर 1 तारीख से चल रहा है. इसी वजह से जनता की बोई हुई फसल कोदो, कुटकी, धान, तिलहन, दलहन के (बर्बाद हो गई है, इस) वजह से वहां कि जनता में आक्रोश ज्यादा हुआ है । मिलावाया, पोटाली, बाहड़ी, कुरगूम, रेवली पंचायतों के जनता सड़क निर्माण कार्य के विरोध में रैली निकाली थी. इस रैली में शामिल जनता को पुलिस ने मार-पीट कर जबर्दस्ती रोड निर्माण कार्य चल रहा है. इसी के अन्तर्गत हर दिन निर्माण में सुरक्षा के बहाने पुलिस आकर जनता के ऊपर फायरिंग करना, मार-पीट करना, गांवों में लूट-पाट कर रहे हैं.

इसके विरोध में हमारा पीएलजीए ने पुलिसियों पर अक्टूबर 30 तारीख की सुबह निलावाया के पास एम्बुश किया था. इसमें एसआई रूद्र प्रताप सिंह, कान्स्टेबल मंगलराम के साथ दूरदर्शन के कैमरामैन अच्युतानन्द साहू मारे गये और दो पुलिस घायल हो गये. हर दिन कि तरह अक्टूबर 30 तारीख की सुबह हमारा एम्बुश साईट में पहुंच गये. एम्बुश शुरू हो गया. इस समय दूरदर्शन टीम भी पुलिसियों के गाड़ियों पर बैठकर एम्बुश में फंस गये.




हमें नहीं मालूम था कि उसमें दूरदर्शन टीम भी है. जबर्दस्त फायरिंग में अच्युतानन्द साहू का मरना दुःख की बात है. हम जानबूझकर पत्रकारों को हम नहीं मारेंगे. इस घटना के बाद राज्य के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय प्रचार-प्रसार शाखा मंत्री, पुलिस अधिकारी अवस्थी हमारे पार्टी को बदनाम करने के लिए दूरदर्शन टीम पर माओवादी हमला किया, ऐसा बोलते हुए मीडिया में दुष्प्रचार कर रहे हैं. पत्रकार के लोग हमारा दुश्मन नहीं है. हमारा मित्र है.

आम अपील कर रहे हैं कि कभी भी संघर्ष के इलाकों में पत्रकार, अलग-अलग कर्मचारी लोग पुलिस के साथ न आये. खासकर चुनाव ड्यूटी पर आने वाले कर्मचारी लोग किसी परिस्थितियों में भी पुलिसियों के साथ न आये.




झूठे छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों को बहिष्कार करो. जनविरोधी, देशद्रोही, साम्राज्यवादपरस्त, ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी संघ परिवार को, भाजपा को मार भगाओ. वोट मांगने आने वाली अन्य संसदीय पार्टियों को जन-अदालत के कटघरे में खड़ा करो. जनयुद्ध को तेज करके प्रतिक्रांतिकारी रणनीतिक दमन योजना ‘समाधान’ (2017-22) को हराए. जनता की जनवादी राज्यसत्ता के संगठन-क्रांतिकारी जनताना सरकारों को मजबूत करो. उनका विस्तार करो.

माओवादियों के द्वारा जारी किये गये इस हस्तलिखित पर्चे का मजमून यह साफ तौर दिखाता है कि माओवादी पत्रकारों पर हमला नहीं करता, बल्कि पुलिस बल माओवादियों के हमले से अपने बचाव में पत्रकारों को ढ़ाल के बतौर इस्तेमाल करता है क्योंकि पुलिस बल भी इस सच्चाई से वाकिफ से माओवादी पत्रकारों पर हमला नहीं करता.




ऐसे में शासन-प्रशासन द्वारा फैलाये गये इस दुश्प्रचार का कोई महत्व नहीं है वरना माओवादी अपने जारी किये गये पर्चे में आम अपील करते हुए यह कतई नहीं लिखते कि ‘‘कभी भी संघर्ष के इलाकों में पत्रकार, अलग-अलग कर्मचारी लोग पुलिस के साथ न आये. खासकर चुनाव ड्यूटी पर आने वाले कर्मचारी लोग किसी परिस्थितियों में भी पुलिसियों के साथ न आये.’’

ऐसे में एक चीज जो स्पष्ट हो रही है और वह यह कि पत्रकारों की हत्या पुलिस-बलों द्वारा जानबूझकर कराई जा रही है, जिसे हम सभी पत्रकार बन्धुओं को समझना होगा और चीजों को तथ्यों के आलोक में समझकर बलि का बकरा बनने से बचना होगा.




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