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सेना, अर्ध-सैनिक बल और पुलिस जवानों से माओवादियों का एक सवाल

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आप जो अनाज खाते हैं वह किसान की मेहनत से उपजायी गई फसल है, आप हर समय जिन वस्तुओं का उपभोग करते हैं वे मजदूरों के खून-पसीना के फल हैं, आपके हाथ में जो हथियार है उसे मजदूरों ने ही बनाया है, आपको जो वेतन मिलता है वह उन्हीं किसान-मजदूर और मेहनतकश जनता की कमाई का ही हिस्सा है. आप क्या सचमुच में उनकी सेवा कर रहे हैं ? क्या सचमुच में उनके हित की रक्षा कर रहे हैं ? क्या उनको इज्जत-सम्मान देते हैं ? सचमुच में अगर आप जनता यानी किसान-मजदूर सहित 90 प्रतिशत मेहनतकश जनता की सेना, अर्ध-सैनिक बल और पुलिस समझते हैं तो उनकी सेवा करें, उनके हित की रक्षा करें, उनको इज्जत-सम्मान दें. सचमुच में आप 90 प्रतिशत जनता की सेना व पुलिस बनो.

[ हमारे देश में लगतार अघोषित युद्ध चल रहा है. इस युद्ध के एक तरफ शोषक-शासक वर्ग है, तो वहीं दूसरी तरफ इस शोषित-शासित वर्ग है. इस युद्ध में लगतार लाशें गिर रही है. जिसकी गिनती करना भी अब कठिन होता जा रहा है. इन गिरे लाशों को अगर आप ध्यान से देखें तो ये सभी लाशें देश के सामान्य गरीब जनता की है. ये सभी लाशें या तो शोषक-शासक वर्ग की नौकरी में चंद रूपये कमा कर अपने व अपने परिवार का पेट भरने वाले सेना, अर्ध-सेना और पुलिस जवानों की लाशें होती है, अथवा अपने हक अधिकार की मांग करने वाले गरीब शोषित-पीड़ित औरतें-मर्दों की होती है.

दमन अभियान के दौरान आप में से कुछ अपराधिक प्रवृति के जवान भी होते हैं, जो गरीब, लाचार और विवश महिलाओं के साथ अश्लील हरकतें और बलात्कार बे-परवाह ढंग से करते हैं. उनके घरों को उजाड़ दिया जाता है, बर्तनों को तोड़-फोड़ दिया जाता है, खस्सी-मुर्गा आदि को मार कर खा जाते हैं, रुपए-पैसे, जेवरत को लूट लिये जाते हैं, अनाजों व खाद्य सामग्रियों को मिट्टी में मिला दिया जाता है. इतना ही नहीं, माओवादी बताकर फर्जी मुठभेड़ में उन्हें गोली मार कर हत्या कर दी जाती है. ये सब भाकपा (माओवादी) के नेतृत्व में जारी न्यायपूर्ण संघर्ष को कुचलने के नाम पर किया जाता है क्योंकि शोषक-शासक वर्ग को अच्छी तरह से मालूम है कि माओवादी आन्दोलन को कुचले बिना यहां के खनिजों और प्राकृतिक संपदाओं को लूटना आसान नहीं है, इसीलिए हमारी पार्टी के विरूद्ध उनके द्वारा तरह-तरह का दुष्प्रचार भी किया जाता है.

परन्तु इन लाशों में वह लाशें कभी नहीं होती है, जो इन दोनों को लड़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. यह लाशें उन लोगों की कतई नहीं होती है, जो इन दोनों ही लाशों को गिराने के एवज में हजारों-लाखों करोड़ कमा कर देश-विदेश में अय्यासी पूर्ण जीवन शैली जीते हैं. यही कारण है भारत में आम गरीब मेहनतकश मजदूर के हित में क्रांतिकारी युद्ध चला रहे सीपीआई-माओवादी सेना, अर्ध-सेना और पुलिस के जवानों के नाम एक सवाल किया है, जिसकी एक प्रति हमें भी हासिल हुई है, जो यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत है. माओवादियों की यह अपील जो एक सवाल के शक्ल में है, बिहार-झारखण्ड स्पेशल एरिया कमेटी की ओर से जारी किया गया है. मालूम हो कि माओवादी समय-समय पर ऐसी अपीलें जारी करते रहते हैं. माओवादियों की यह अपील जो एक सवाल के शक्ल में है, बिहार-झारखण्ड स्पेशल एरिया कमेटी की ओर से जारी किया गया है. यह नहीं कहा जा सकता है कि इन अपीलों का संबंधित लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है ? पड़ता भी है या नहीं ? फिर भी इन अपीलों को पढ़ा जाना चाहिए – राजकिशोर ]

 

सेना, अर्ध-सैनिक बल और पुलिस जवानों से माओवादियों का एक सवाल

आप जो अनाज खाते हैं वह किसान की मेहनत से उपजायी गई फसल है, आप हर समय जिन वस्तुओं का उपभोग करते हैं वे मजदूरों के खून-पसीना के फल हैं, आपके हाथ में जो हथियार है उसे मजदूरों ने ही बनाया है, आपको जो वेतन मिलता है वह उन्हीं किसान-मजदूर और मेहनतकश जनता की कमाई का ही हिस्सा है. आप क्या सचमुच में उनकी सेवा कर रहे हैं ? क्या सचमुच में उनके हित की रक्षा कर रहे हैं ? क्या उनको इज्जत-सम्मान देते हैं ? सचमुच में अगर आप जनता यानी किसान-मजदूर सहित 90 प्रतिशत मेहनतकश जनता की सेना, अर्ध-सैनिक बल और पुलिस समझते हैं तो उनकी सेवा करें, उनके हित की रक्षा करें, उनको इज्जत-सम्मान दें. सचमुच में आप 90 प्रतिशत जनता की सेना व पुलिस बनो.

प्रिय सेना, अर्ध-सैनिक बल और पुलिस जवानो, सेना, अर्ध-सैनिक बल और पुलिस में कार्यरत साधारण जवानों के अंदर आम तौर पर कोई भी अमीर वर्ग से नहीं आये हैं, बल्कि आप शोषित-उत्पीड़ित मेहनतकश वर्ग से आये हैं इसलिए आप शोषित-उत्पीड़ित, दलित, आदिवासी, किसान-मजदूर, गरीब और मेहनतकश वर्ग की जिन्दगी से भलीभांति वाकिफ हैं. फिर भी, आप सामंतों व बूरे शरीफजादों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों और कॉरपोरेट घरानों के द्वारा मेहनतकश जनता की जल-जंगल-जमीन और खनिज सहित तमाम प्राकृतिक संपदाओं की लूट-खसोट के पहरेदार और रक्षक क्यों बने हुए हैं ? सेना और पुलिस में भर्ती होने के बाद आप अपने वर्ग हित को क्यों भूल जाते हैं ? जल-जंगल-जमीन से अपनी बे-दखली के खिलाफ संघर्ष कर रहे निर्दोष ग्रामीणों को आप मार-पीट, गिरफ्तार व गोलियों से क्यों छलनी कर रहे हैं ? आप मां-बहनों के साथ क्यों अश्लील आचरण व अत्याचार कर रहे हैं ? ये सवाल लाखों-करोड़ों शोषित-उत्पीड़ित मेहनतकश जनता के हैं.




विदित हो कि 15 अगस्त, 1947 की तथाकथित आजादी की घोषणा के बाद हमारे देश में जो शासन व्यवस्था अस्तित्व में आयी वह असल में प्रत्यक्ष औपनिवेशिक शोषण-शासन के स्थान पर अप्रत्यक्ष औपनिवेशिक शोषण-शासन के बतौर अर्ध-औपनिवेशिक, अर्ध-सामंती शासन व्यवस्था है, जो कि पुरानी सत्ता-संरचना को ही मामूली कुछ फेर-बदल करके न केवल बरकरार रखी गई है, बल्कि उसे और मजबूत बनायी गयी है तथा इसे लागू करने में तमाम तरह की सामाजिक रूढ़ियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. फलतः मेहनतकश किसान-मजदूर, गरीब, आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्गों की जिन्दगी में कोई बदलाव नहीं आया, बल्कि उनकी जिन्दगी आज भी 1947 के पहले से भी बदत्तर हो गई है.

सेना, अर्ध-सैनिक बल और पुलिस में नौकरी करने वाले अधिकांश जवान झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंग, ओड़िशा, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और महाराष्ट्र सहित देश के अन्य देहाती क्षेत्रों के रहने वाले हैं. अब भी आप और आपके परिवार के सदस्यों को किसी न किसी रूप में साम्राज्यवादी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों और जमीन्दारों, महाजनों, सूदखोरों और बड़े-बड़े गुण्डों व माफियाओं के शोषण व दमन का शिकार होना पड़ रहा है. अतः मेहनतकश किसान-मजदूर, गरीब, आदिवासी, दलित और धार्मिक अल्पसंख्यकों का असली दुश्मन आज भी इन्हीं लोग ही हैं.




साथ ही इन्हीं क्षेत्रों में ही विभिन्न तरह के खनिज और प्राकृतिक संपदाएं प्रचुर मात्र में हैं, जिसे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों और कॉरपोरेट घरानों के द्वारा अपने दलाल पार्टियों की सरकारों की सहायता से लूट-खसोट की जा रही है और अब भी ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी भाजपा की मोदी सरकार द्वारा उक्त लूट-खसोट को और कई गुणा वृद्धि की गयी है तथा उन क्षेत्रों से लूटेरे वर्गों द्वारा खनिज और प्राकृतिक संपदाओं की लूट-खसोट हेतु केन्द्र व राज्य सरकारों के साथ सैकड़ों समझौता करार (एमओयू) किया जा चुका है. परिणामस्वरूप उन इलाकों से लाखों की संख्या में मेहनतकश किसान-मजदूर, गरीब, आदिवासी, दलित और धार्मिक अल्पसंख्यकों को आप जैसे सेना, अर्ध-सैनिक बल और पुलिस की मदद से बलपूर्वक उनकी अपनी ही जल-जंगल-जमीन से बे-दखल और विस्थापित किया जा रहा है. जिसकी पूरे भारत के पैमाने पर अनेकों जीती-जागती मिसालें मौजूद हैं.

उपरोक्त शोषण-जुल्म और दमन-अत्याचार से मुक्ति पाने और जल-जंगल-जमीन पर अपना हक, सच्ची इज्जत-आजादी और आर्थिक-राजनीतिक अधिकार हासिल करने का एकमात्र रास्ता नई जनवादी क्रांति तथा जनक्रांति के जरिए जनता की जनवादी व्यवस्था वाला समाज का निर्माण के जरिए ही हो सकता है। इसलिए उन क्षेत्रों में शोषित-उत्पीड़ित मेहनतकश जनता भाकपा (माओवादी) के नेतृत्व में शोषक-शासक वर्गों की लूट को हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त करने के लिए हथियारबन्द संघर्ष चला रही है, जिसे आपलोगों के द्वारा शोषक-शासक वर्ग कुचलने का असफल प्रयास चला रहा है. आपलोग जब हमारे संघर्ष के प्रभावित क्षेत्रों में दमन अभियान चलाने के लिए आते हैं तो आप गरीबों की दुखभरी जिन्दगी से अच्छी तरह से अवगत हो जाते हैं. जबकि इन्हीं गरीब लोग हमारे देश के खनिजों और प्राकृतिक संपदाओं की रक्षा सदियों से करते आ रहे हैं. पर, उनकी ही जिन्दगी आज बदत्तर है.




दमन अभियान के दौरान आप में से कुछ अपराधिक प्रवृति के जवान भी होते हैं, जो गरीब, लाचार और विवश महिलाओं के साथ अश्लील हरकतें और बलात्कार बे-परवाह ढंग से करते हैं. उनके घरों को उजाड़ दिया जाता है, बर्तनों को तोड़-फोड़ दिया जाता है, खस्सी-मुर्गा आदि को मार कर खा जाते हैं, रुपए-पैसे, जेवरत को लूट लिये जाते हैं, अनाजों व खाद्य सामग्रियों को मिट्टी में मिला दिया जाता है. इतना ही नहीं, माओवादी बताकर फर्जी मुठभेड़ में उन्हें गोली मार कर हत्या कर दी जाती है. ये सब भाकपा (माओवादी) के नेतृत्व में जारी न्यायपूर्ण संघर्ष को कुचलने के नाम पर किया जाता है क्योंकि शोषक-शासक वर्ग को अच्छी तरह से मालूम है कि माओवादी आन्दोलन को कुचले बिना यहां के खनिजों और प्राकृतिक संपदाओं को लूटना आसान नहीं है, इसीलिए हमारी पार्टी के विरूद्ध उनके द्वारा तरह-तरह का दुष्प्रचार भी किया जाता है.




अतः आप गहराई से सोचकर देखें, आप जो अनाज खाते हैं, जो वस्त्र पहनते हैं, विभिन्न वस्तुओं का उपयोग करते हैं वो किसकी मेहनत से बनी है ? जमीन्दरों, महाजनों, दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों की मेहनत से बनी है या किसान-मजदूर मेहनतकश जनता की मेहनत से ? आपको जो नौकरी के एवज में वेतन मिलता है वह किसकी कमाई का हिस्सा है ? क्या वह जमीन्दारों, महाजनों, दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों की कमाई का हिस्सा है या किसान-मजदूर, मेहनतकश जनता की कमाई का हिस्सा है ? इमानदारीपूर्वक विचार करेंगे तो अवश्य ही ये सारी चीजें किसान-मजदूर और मेहनतकश जनता की मेहनत का ही फल है, सारी संपदा उन्हीं की मेहनत व कमाई का ही हिस्सा है. आप जिनके मेहनत से उपजाये अनाज को खाते हैं और विभिन्न वस्तुओं का उपभोग करते हैं. क्या सचमुच में उन किसान-मजदूर और मेहनतकश वर्ग की सेवा तथा उनके हित की रक्षा करते हैं ?

सच कहा जाय तो आप उनकी न तो सेवा करते हैं और न ही उनके हित की रक्षा करते हैं बल्कि शोषक-शासक वर्ग के हुक्मरान अफसरों के निर्देश पर उनके ऊपर जुल्म ढाते हैं. क्या यह अन्याय नहीं है ? जिन किसानों का जीने का एकमात्र आधार अपनी जमीन ही है उसे जोर-जबरन अधिग्रहण किये जाने का वे विरोध करते हैं तो उनको गोली मारना क्या जायज है ? नहीं, किसी भी हालत में यह जायज नहीं हो सकता, यह नजायज है. आप जैसे अर्ध-सैनिक बल और पुलिस के जवानों ने गोला और बड़का गांव गोलीकाण्ड की घटना को अंजाम दिया है, जो सरासर नजायज है. हम तो मिसाल के तौर पर इन ताजा-तरीन घटनाओं का यहां उल्लेख कर रहे हैं. ऐसे तो इस तरह की अनगिनत घटनाएं हैं. आपसे आग्रह है कि आप कोई यंत्र व मशीन नहीं हैं.




आप एक विवेकशील प्राणी व चेतनशील एक मानव हैं। इसलिए एक मानव होने के नाते आपका फर्ज बनता है कि आपको अवश्य ही एक यंत्र व मशीन की तरह काम न करके न्याय-अन्याय और जायज-नजायज पर विचार करते हुए काम करना चाहिए और अन्याय और नजायज का विरोध करना चाहिए तथा न्याय और जायज का समर्थन व पक्ष लेना चाहिए. चन्द रोटी के टुकड़े की खातिर अपनी इज्जत-आजादी और अपना अधिकार को बेचकर हुक्म का गुलाम बनकर नहीं रहें.

आपको मालूम है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मंगल पाण्डेय के नेतृत्व में सेना के वीर सिपाहियों ने ऐतिहासिक विद्रोह किया था जिसे आज भी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से गर्व के साथ याद किया जाता है. अगर हम अपना देश को आजाद मानते हैं तो फिर पुलिस और फौजी विभाग में जनवादी अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी क्यों नहीं है ? इससे आपको समझना होगा कि वास्तव में हमारा देश आजाद नहीं है, हम मेहनतकश जनता और पुलिस-फौज आजाद नहीं हैं. बड़े-बड़े जमीन्दार, महाजन, दलाल नौकरशाह पूंजीपति, उसका दलाली करने वाले एमएलए, एमपी, मंत्री और नौकरशाह अफसर जो सैकड़े में 10 प्रतिशत हैं, वे आजाद हैं और उन्हीं की आजादी है.




शायद आपको मालूम होगा कि हमारे देश का पुलिस कानून 1862 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया पुलिस कानून ही है और वही आज भी लागू है, जिसे अंग्रेजों ने विद्रोह को दमन करने के लिए बनाया था. आज भी हमारे देश के शासन का एक महत्वपूर्ण व मुख्य अंग पुलिस-फौज अभी भी अंग्रेजों के उस दमनात्मक कानून पर चलता है. यही असली सच्चाई है. अंग्रेजों ने यह कानून किसान-मजदूर और मेहनतकश जनता की हक की आवाज को दमन करने के लिए पुलिस और फौज को जनता के ऊपर लाठी-डण्डा और गोली चलाने की छूट इस कानून के तहत दे रखा था. तथाकथित आजादी के बाद भी उस कानून में कोई बदलाव नहीं करने के पीछे आखिर राज क्या है ? एक साधारण आदमी अगर वो पागल नहीं हो तो समझ सकता है कि आज भी उस दमनात्मक कानून को इसलिए नहीं बदला गया है क्योंकि शोषक-शासक वर्ग को आज भी मेहनतकश जनता की आवाज को दबाने की उसकी आवश्यकता है.

जोर-जबरन भूमि अधिग्रहण का विरोध करने वाले किसानों की हक की आवाज को पुलिस की गोलियों से दबाने की घटना और सीएनटी-एसपीटी एक्ट को बदलने का विरोध करने वाले तथा गांवों में ग्रामसभा का राजनीतिक शासन स्थापित करने के लिए आंदोलन कर रहे आदिवासी-मूलवासियों की हक की आवाज को तथा किसानों की जमीनों को छीन कर बहुराष्ट्रीय कंपनी व कारपोरेट घरानों के हाथ में देने की साजिशपूर्ण कार्यवाही, किसानों के फसल का उचित मूल्य न मिलना, कर्ज माफी न देना तथा किसानों की आत्महत्या के खिलाफ लड़ रहे आम किसानों की हक की आवाज को पुलिस की गोलियों से दबाने की अनगिनत घटना उसको ही प्रमाणित करता है.




प्रिय वर्ग दोस्तों, आपको मालूम है कि हमारे देश का शोषण-गुलामी और अन्याय के खिलाफ संघर्ष की गौरवशाली परम्परा और वीरतापूर्ण संघर्ष का इतिहास रहा है. हमारे पूर्वजों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद और सामंतवाद के लूट-शोषण के खिलाफ आखिरी सांस तक संघर्ष किया है, जिसका नेतृत्व अलग-अलग समय में झारखण्ड में वीर तिलका मांझी, सिद्धू-कान्हू-चांद-भैरो, नीलाम्बर- पीताम्बर, सिंगराय-बिंदराय, मुंडल सोय और बिरसा मुण्डा तथा देश के अन्य हिस्सों में मंगल पाण्डेय, कर्तार सिंह सर्राभा, भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव जैसे वीर क्रांतिकारियों ने किया, लेकिन आप जैसे हुक्म के गुलाम सिपाहियों, जो अपना जमीर बेच दिया था के बदौलत शोषक-शासक वर्गों ने उसे कुचल दिया. पर आज भी हम उन वीर शहीदों का नाम बड़े गर्व के साथ लेते हैं. उनकी सच्ची देशभक्ति शोषण और जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए हमें प्रेरित करता है क्योंकि उन्होंने अपना निजी हित के लिए नहीं, बल्कि अपनी मातृभूमि से शोषण-जुल्म को मिटाने के लिए अपने आप को कुर्बान कर दिया था.




आज शोषक वर्ग के द्वारा देशभक्ति के नाम पर उन सेना, अर्ध-सैनिक बल और पुलिस में कार्यरत जवानों की कीमत लगाई जा रही है, वह भी मरने के बाद. लेकिन हम जानते हैं कि देशभक्ति की कोई कीमत नहीं होती है क्योंकि देशभक्ति कोई वस्तु (माल) नहीं है. देशभक्ति तो अनमोल है. देशभक्तों का अपना कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं होता, जबकि आप तो चंद व्यक्तिगत स्वार्थों और शोषक वर्ग के हित के लिए नौकरी (गुलामी) कर रहे हैं.

देशभक्त लोग किसी के अधीन नौकरी नहीं करते, बल्कि वे तो शोषण और गुलामी से मुक्ति चाहते हैं और उसके लिए निःस्वार्थ भाव से संघर्ष करते हैं. जैसाकि हमारे पूर्वजों ने देश की सच्ची आजादी और मेहनतकश अवामों की खातिर अपनी जान को कुर्बान कर देने की अदम्य साहस और त्याग की भावना के जरिए सच्ची देशभक्ति को दर्शाया है. अतः आज हमारी मातृभूमि से शोषक वर्गों के लूट-शोषण को पूरी तरह खत्म करके नव जनवादी समाज निर्माण करने के लिए हमें फिर से सच्ची देशभक्ति की जज्बा दिखाने की आवश्यकता है.




शोषक वर्ग की दलाल मोदी सरकार ने तानाशाही फरमान जारी कर 8 नवम्बर, 2026 की मध्यरात्रि से 500 और 1000 रुपयों के नोटों को अवैध घोषित कर दिया. उससे मेहनतकश गरीब जनता के जीवन में कितना बुरा प्रभाव पड़ा वह तो आपलोग देख चुके हैं. सौ से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और न जाने कितने लोग कई दिनों तक भूखे पेट सोने को विवश हो गये. चुनावी वादों के मुताबिक विदेशों से काला धन वापस लाने में नाकाम मोदी अपनी नाकामयाबी छुपाना चाहता है क्योंकि उसने वादा किया था विदेशों में जमा काला धन वापस लाकर सभी के खातों में 15-15 लाख डालेंगे. मूल बात यह है कि अमीरों को फायदा पहुंचाने और वास्तव में काला धन को सफेद करने के लिए ही नोटबन्दी किया है.

इतिहास के पन्नों पर आपने पढ़ा होगा कि हमारा देश विश्व में सोने की चिड़िया कहलाता था क्योंकि हमारे देश में विभिन्न तरह की खनिज और प्राकृतिक संपदा प्रचुर मात्र में है. पर, आज सोने की चिड़िया जैसा देश के 90 प्रतिशत शोषित-उत्पीड़ित मेहनतकश जनता की हालत कैसी है इस पर कभी गौर किया है आप ने ? खनिज और प्राकृतिक संपदाओं से समृद्ध देश की मेहनतकश जनता की ऐसी दशा क्यों हुई ? क्योंकि इन संपदाओं को पहले अंग्रेजों द्वारा लूटा गया और अब साम्राजयवाद, दलाल नौकरशाह पूंजीपति वर्ग और कॉरपोरेट घरानों द्वारा लूटा जा रहा है. और यह लूट आप जैसे भाड़े के सिपाहियों के बदौलत की जा रही है. आप क्षणिक स्वार्थ के लिए ये सब कर रहे हैं. जबकि आपको शोषक-शासक वर्ग के हित के लिए नहीं, बल्कि अपना वर्ग के हित में काम करना चाहिए क्योंकि सेवानिवृत होकर घर आते हैं तो यही शोषित-उत्पीड़ित लोग आपका हर सुख-दुःख में साथ देते हैं. जबकि पूंजीपति (शोषक) लोग आपको एक नौकर के सिवा कुछ नहीं समझता है. नौकरी के दौरान आपको भारी अपमानित भी होना पड़ता है.




आप हमारा वर्ग दुश्मन नहीं हैं और न हमारी पार्टी की आपसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी है. आप हमारा दुश्मन तभी तक हैं जब तक आपके हाथों में शोषक वर्ग की सेवा और रक्षा के लिए बन्दूक रहती है. हमने निहत्थे अर्ध-सैनिक बल व पुलिस जवानों को कभी भी अपना निशाना नहीं बनाया क्योंकि वर्ग दृष्टिकोण से आप हमारे दोस्त हैं.

आप में से अधिकांश जवान हमारा संघर्ष वाले क्षेत्रों से आते हैं. कभी छुट्टी में जब आप अपना घर आते हैं, उस समय हम कितनी मित्रतापूर्ण ढंग से आप लोगों से बातें करते हैं. आप हमारी पार्टी के लक्ष्य-उद्देश्य से अच्छी तरह से अवगत हैं.

अतः सेना, अर्ध-सैनिक बल और पुलिस में कार्यरत साधारण जवानों से भाकपा (माओवादी) की बिहार-झारखण्ड स्पेशल एरिया कमेटी आह्नान करती है कि आप अपने चन्द स्वार्थों के लिए भाड़े की फौज व पुलिस की तरह या हुक्म के गुलाम की तरह काम न करके न्याय-अन्याय का विचार कर अन्याय का विरोध करें और न्याय का पक्ष लें.




आप जिन किसानों का उपजाये अनाज खाते हैं, जिन मजदूरों व मेहनतकश जनता की मेहनत से बनी वस्तुओं का उपभोग करते हैं, उन मेहनतकश जनता का सेवक बनें, उनके हित की रक्षा करें और उनका रक्षक बनें. आप अपने चन्द रोटी के टुकड़े व स्वार्थों की खातिर अपना इज्जत-अधिकार को न बेचें. साम्राज्यवाद, सामंतवाद और दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों के शोषण-जुल्म और दमन-अत्याचार से मुक्ति पाने तथा सच्ची इज्जत-आजादी और आर्थिक-राजनीतिक अधिकार हासिल करने हेतु संघर्ष करने वाले किसान-मजदूर, मेहनतकश जनता जो आपके वर्ग दोस्त हैं, उनको उग्रवादी-आतंकवादी का लेबल लगाकर शोषक-शासक वर्ग की सेवा व रक्षा में उन्हें बन्दूक का निशाना बनाकर उनके ऊपर बर्बर जुल्म न ढाएं, बल्कि बन्दूक के निशाने को शोषक-शासक वर्ग की तरफ घुमाकर वर्तमान शोषणमूलक समाज व्यवस्था को उखाड़ फेंकने हेतु जारी न्यायपूर्ण क्रांतिकारी आन्दोलन व जनयुद्ध में शामिल होकर नव जनवादी क्रांति को सफल करते हुए नव जनवादी भारत का निर्माण करते हुए समाजवादी समाज व्यवस्था यानी सचमुच में शोषणमुक्त किसान-मजदूरों का अपना राज्य की स्थापना में जनता के सच्चे सेवक, रक्षक के रूप में व सचमुच में जनता के फौज के रूप में आप अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभाएं.




ऐसा चीनी नव जनवादी क्रांति व वियतनाम की नव जनवादी क्रांति के दौरान हो चुका है. वहां की क्रांति के दौरान भाड़े के सैनिकों ने जो मूलतः शोषित-उत्पीड़ित मेहनतकश वर्ग के थे, लालफौज में शामिल होकर न्यायपूर्ण युद्ध लड़ा और नव जनवादी समाज व समाजवादी समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया था. आप भी वही भूमिका अदा करें, समय की यही पुकार है.

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