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अपनी लड़ाई फिर वही से शुरू करनी होगी, जहां से छूट गई

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अपनी लड़ाई फिर वही से शुरू करनी होगी, जहां से छूट गई

बीजेपी जाएगी कांग्रेस आ जायेगी. सिर्फ एक चीज से राहत मिलेगी और वह है लुटेरे खुद को राष्ट्रभक्त कह देशभक्ति को बदनाम तो नहीं करेंगे और जबरन अपने मन की बात पर हामी भराने पर मजबूर नहीं करेंगे.कांग्रेस को जम कर कोसने पर गाली-गलौज करने तो नहीं आएंगे और सबसे अधिक मुस्लिम, दलित समुदाय खुश होगा, क्योंकि उनको बाकी देशवासियों से डबल ट्रिपल झेलना पड़ा. इसके सिवाय कुछ नहीं बदलेगा.

किसान, मजदूर, युवा, महिलाओं को अपनी लड़ाई फिर वही से शुरू करनी होगी, जहां से छूट गई. भ्रष्टाचार पर फिर से बात करनी होगी. विकास के चश्मे को कॉर्पोरेट और विदेशी संस्थागत निवेश के बजाय 120 करोड़ की नजर से देखने पर कांग्रेस को बाध्य आपको ही करना पड़ेगा.




उनके पास तो मनमोहन सिंह ने जो चश्मा 1992 में पहनाया था, वही आज तक पहनकर वाजपेई-मनमोहन-मोदी राज में 3 लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके. बेरोजगारी और अर्ध-बेरोजगारी के मामले में देश कम से कम 20 करोड़ युवाओं का बोझ झेल रहा है, जो कभी गौ रक्षक, तो कभी मंदिर मस्जिद बनाने पर काम आता है इनके.

देश के बेरोजगारों का एक अखिल भारतीय संगठन की जरुरत है. देश के सभी ग्रामीण आबादी जो प्रतिदिन 2500 परिवार शहरों में पलायन कर रहा है, और उनका हाल लेने वाला शहरों में कोई नहीं. पूरे देश में एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन हर वर्ष लाखों की संख्या में हो रहा है, लेकिन उसे नियोजन करने वाला और उनकी देखभाल करने वाला न होम स्टेट है और न वह राज्य जहां ये लाखों लोग प्रवासी बन रहे हैं.

शहरी नागरिकों को बढ़ती आबादी और प्रदूषण से जूझने के लिए केंद्र, राज्य सरकार और नगर निगम के पास ढेले की योजना नहीं है.




यह सब काम कौन करेगा ?

इस बार की मोदी सरकार के पास तो हर राज्य और जिला चुनाव लड़ते-लड़ते साढ़े चार साल गुजर गए. पूरा देश इन पांच साल यही सब देखता रहा. मोदी जी भी पिछली योजनाओं का उद्घाटन कम भाषण झड़ते रहे.

सबसे बड़ी बात, आज कॉरर्पोरेट के कब्जे में हमारी चुनी हुई सरकारों की गर्दन इतनी ज्यादा कसी है कि चाहकर भी ये कुछ नहीं बदल सकते. सिर्फ देश के नागरिक ही कर सकते हैं. लेकिन उन्हें हिन्दू-मुस्लिम-पंडित-ठाकुर-अहीर-दलित की जगह भारतीय होना पड़ेगाऔर यह कोई पार्टी नहीं कर सकती.

लेफ्ट इसे कर सकती थी लेकिन उसके पास वह बड़ा फलक 50 के दशक के बाद फिर देखने को नहीं मिला. लेकिन क्या हम सब मिलकर यह विज़न देश को दे सकते हैं ? नहीं देंगे तो यह देश बड़ी तेजी से बहुत गरीब होने जा रहा है, अम्बानी अडानी को छोड़कर.

  • रविन्द्र पटवाल





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ROHIT SHARMA

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