इतिहास गवाह है कि हर काल मे किसी ना किसी प्रकार से स्त्रियों का यौन शोषण होता रहा है- इसी में से एक प्रथा थी देवदासी प्रथा.
देवदासी प्रथा एक ऐसी प्रथा थी, जिसमे धर्म का डर दिखा कर भोली भाली समाज की निचली जनता को बेवकूफ़ बनाया जाता था. इसकी आड़ में खुलेआम केवल दलित वर्ग की स्त्रियों का शोषण किया जाता था. जो सुंदर होती थी उन्हें किसी तरह से प्रभु की सेवा के नाम पर ज़िंदगी भर के लिए व्यभिचार के दलदल में धकेल दिया जाता था. तब कुछ कर्मकांड के नाम पर उन सब कुंवारी कन्याओं का शुद्धिकरण कर के उच्च वर्ग के पुरुषों, राजाओं, पुजारियों की सेज सेवा के तैयार किया जाता था. उनसे उत्पन्न होने वाली संतान को समाज मे कोई अधिकार प्राप्त नही होते थे.
कुछ मान-सम्मान व गहने कपड़े की लालच में इस प्रकार की प्रथाओं के नाम पर ना जाने कितने सालो तक स्त्रियों का शोषण होता रहा है, जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति जीवन जीने की मजबूरी बनती चली गई. इन्हें अक्सर मंदिर के पीछे तरफ रखा जाता. मंदिर की मूर्ति से ही इनका विवाह कर के इन्हें सदा सुहागन होने का पद दिया जाता था. ये देवदासियां जो भगवान की पत्नी कहलाती थी, इन्हें मूर्ति को छूने व गर्भगृह में प्रेवश करने की सख्त मनाही थी ???
इन भगवान की पत्नियों का दैहिक उपभोग, धर्म के नाम पर खुलेआम होता था. इन देवदासियों को साफ सफाई व अन्य काम दिए जाते थे. ये प्रथा दक्षिण भारत मे सर्वाधिक देखने को मिलती थी. धर्म के नाम जब इसकी पाशविकता अत्यधिक बढ़ने लगी तो, दक्षिण भारत मे इस प्रथा पर करीबन 1984 में पूरी तरह से रोक लगा दी गई, फिर भी वर्तमान में कहीं कहीं ये प्रथा लुकेछिपे तौर पर देखने को मिल सकती है.
ये ‘देवदासी’ एक हिन्दू धर्म की प्राचीन प्रथा है. भारत के कुछ क्षेत्रों में खास कर दक्षिण भारत में महिलाओं को धर्म और आस्था के नाम पर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला गया. सामाजिक-पारिवारिक दबाव के चलते ये महिलाएं इस धार्मिक कुरीति का हिस्सा बनने को मजबूर हुर्इं. देवदासी प्रथा के अंतर्गत कोई भी महिला मंदिर में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं. देवता को खुश करने के लिए मंदिरों में नाचती थीं. इस प्रथा में शामिल महिलाओं के साथ मंदिर के पुजारियों ने यह कहकर शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए कि इससे उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है.
धीरे-धीरे यह उनका अधिकार बन गया, जिसको सामाजिक स्वीकायर्ता भी मिल गई. उसके बाद राजाओं ने अपने महलों में देवदासियां रखने का चलन शुरू किया. मुगलकाल में, जबकि राजाओं ने महसूस किया कि इतनी संख्या में देवदासियों का पालन-पोषण करना उनके वश में नहीं है, तो देवदासियां सार्वजनिक संपत्ति बन गर्इं.
कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 14 जिलों में यह प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है. देवदासी प्रथा को लेकर कई गैर-सरकारी संगठन अपना विरोध दर्ज कराते रहे. सामान्य सामाजिक अवधारणा में देवदासी ऐसी स्त्रियों को कहते हैं, जिनका विवाह मंदिर या अन्य किसी धार्मिक प्रतिष्ठान से कर दिया जाता है. उनका काम मंदिरों की देखभाल तथा नृत्य तथा संगीत सीखना होता है.
- गीतांजली
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