सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए एक पोस्ट था, “किसी पत्रकार ने ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर चर्चिल को मूर्ख लिख दिया था. चर्चिल उस पर भड़क गए. सदन में प्रतिपक्ष ने चर्चिल को घेर लिया – आप इतनी-सी बात पर गुस्सा क्यों हैं ? हर तरफ से घिरे चर्चिल ने जो तर्क दिए उसने पूरे सदन को ठहाके से भर दिया. चर्चिल ने कहा – ‘उसने हमें मूर्ख कहा. हमें इस पर गुस्सा नहीं है, गुस्सा है कि उसने गोपनीयता भंग की है.’
दूसरी बात, ‘‘कांग्रेस का मुखपत्र नेशनल हेराल्ड जो पंडित नेहरू के अथक परिश्रम का नतीजा था. एक दिन उसी अखबार के मुखपृष्ठ पर पंडित नेहरू के काम काज के खिलाफ जबरदस्त खबर छपी. कांग्रेस परेशान. संपादक से पूछा गया, ‘यह खबर किसने लिखी और किसकी अनुमति से छपी ?’ संपादक ने जवाब दिया, ‘यह पंडित नेहरू से पूछिए.’ बाद में पता चला वह खबर खुद पंडित नेहरू ने ही लिखा था.
पंडित नेहरू चाहते थे कि संसद में प्रतिपक्ष की जबरदस्त आमद होनी चाहिए और संसद देश की आईना बने. इसके लिए जरूरी है कि संसद में प्रतिपक्ष मजबूत हो. उस समय पंडित नेहरू के सबसे मुखर आलोचक डॉ राममनोहर लोहिया और कृपलानी दोनों थे. दोनों जन उपचुनाव में जीत कर संसद पहुचे तो सबसे ज्यादा खुश पंडित नेहरू थे. महावीर प्रसाद त्यागी आजादी की लड़ाई से तप कर आये थे कांग्रेसी थे. पंडित नेहरू के नजदीक थे लेकिन संसद में उनके भाषण को पढ़िए लगता है प्रतिपक्ष बोल रहा है.’’
लोकतंत्र में सरकार चलाने के लिए प्रतिपक्ष का होना निहायत ही जरूरी है. अगर सरकार में प्रतिपक्ष मजबूत नहीं होगा तो वह सरकार देश का प्रतिनिधित्व कतई नहीं कर सकती. इसके अन्ततः परिणाम जो होंगे वह विद्रोह के स्वरूप में होगी, यानि जनता उस सरकार को उखाड़ फेंक देगी अथवा वह व्यवस्था ही खत्म हो जायेगी. इसे बचाये रखने के लिए देश में संसद के अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, सीबीआई, मीडिया आदि जैसे संस्थान खड़े किये गये, जिसकी स्वायत्तता सुनिश्चित की गई थी.
विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा का बहुमत में आने के साथ ही भाजपा की केन्द्र सरकार देश को विपक्षविहीन करने का जो कारनामा किया है, उसने देश के लोकतंत्र की चूलें हिला दी है. एक-एक कर सुप्रीम कोर्ट सहित चुनाव आयोग, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, सीबीआई, मीडिया आदि जैसे स्वायत्त संस्थानों में अपने दलालों को बिठाकर उसकी स्वायत्तता को लगभग खत्म-सा कर दिया है. यही कारण है कि एक-एक कर तमाम संस्थानों में विद्रोह के स्वर फूटने लगे हैं. इसमें एक कुछ को इस प्रकार गिनाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के चार जजों का सीजेआई के खिलाफ प्रेस-कांम्फ््रेंस, सीबीआई के उचस्थ अधिकारियों का घूस लेने और देने के सवाल पर दोषारोपण, आरबीआई में भाजपा के ही बिठाये गये दलाल उर्जित पटेल का मोदी सरकार के खिलाफ सवाल, चुनाव आयोग की विश्वसनीयता जनता के नजरों में लगभग खत्म हो जाना, मीडिया को खरीदकर उसका मूंह बंद कर देना आदि जैसे कुछ तथ्य देखने योग्य हैं.
देश को विपक्षविहीन करने के लिए मोदी सरकार ने सबसे कारगर कदम जो उठाया वह है देश के युवाओं को शिक्षित होने के रोकना. बुद्धिजीवियों को रोकना, उनको बदनाम करना, उनकी हत्या करना आदि. उसने स्तरीय शिक्षण संस्थानों पर हमले तेज कर दिये, जिसकारण रोहित वेमुला को आत्महत्या करना पड़ा. युवाओं को शिक्षित होने से रोकने के लिए मोदी सरकार ने शिक्षा के बजट में कटौती कर दिया. आरएसएस के स्कूल से निकले भोंपुओं को विभिन्न शिक्षण संस्थानों में बिठाकर कमजोर तबके के छात्रों को शिक्षण संस्थानों से बाहर का रास्ता दिखाना, बीएचयू जैसे संस्थानों के गर्ल्स हॉस्टलों में रात्रि में पुलिस को घुसाकर छात्राओं की पिटाई करना, देशभक्त और देशद्रोही, गाय, गोबर, गोमुत्र, भारत माता की जय, वंदे मातरम् आदि का फर्जी डिबेट खड़ा करना और लोगों को जेलों में बंद करना आदि. इस सबसे पीछे एक ही उद्देश्य है लोगों को शिक्षित होने से रोकना. अशिक्षित लोगों पर शासन करना ज्यादा आसान होता है.
इसके बाद भी जो कोई पढ़-लिख लें उसे वैज्ञानिक चिंतन से दूर कर पोंगापंथी बना देना. धर्म के भंवर जाल में फंसाकर मूर्ख बना देना. यही वजह है कि बार-बार भाजपा के मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक अवैज्ञानिक व हास्यास्पद बातों को देश के सामने मंचों पर बोलते हैं. यथा, प्रधानमंत्री पद पर विराजमान नरेन्द्र मोदी ने कहा कि प्राचीन भारत में ट्रांसप्लांट का उदाहरण था जिसमें गणेश के सर पर हाथी के सर को लगा दिया गया. कि गंदे नाली के निकलने वाले दुर्गंधयुक्त गैस से चाय बनता है. भाजपा के एक मंत्री का कथन है कि संस्कृत का विद्वान एमबीबीएस डॉक्टर से ज्यादा योग्य होता है. एक मंत्री तो यहां तक बोलता है कि डार्विन का सिद्वांत गलत है कि वेद ही सबकुछ है.
एक समय सरदार बल्लभ भाई पटेल को जुआरी और अय्यास कहने वाले नरेन्द्र मोदी द्वारा पटेल और शिवाजी की मूर्ति को बनाने के नाम पर हजारों करोड़ रूपये फूंक दिये जिसमें न जाने कितने रूपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये. अब राम मंदिर के फर्जी नारों के सहारे देश को मूर्ख बनाने और साम्प्रदायिक दंगे में झोंक देने की कुत्सित मानसिकता पाल रहा है. इस तरह के अवैज्ञानिक विचारों को प्रचारित-प्रसारित करने के पीछे भाजपा-आरएसएस का एक मात्र यही उद्देश्य है कि लोगों को बेवकूफ बनाये रखा जाये ताकि शोषण-अपमान के तंत्रों को सहनीय बनाने के लिए धर्म का मजबूत मुलम्मा लगा दिया जाये और विरोध का कहीं से भी कोई स्वर न उभर सके.
ऐसी हालत में देश के तमाम जागरूक लोगों को विकास के पश्चगति को बल प्रदान करनेवाली भाजपा-आरएसएस के पश्चगामी विचारों के खिलाफ से एक मुकम्मल लड़ाई जारी रखना चाहिए और कम से कम देश के संविधान में निर्धारित न्यूनतम मान्यताओं को भी बचा कर रखा जा सके. वरना वह दिन दूर नहीं जब पूरे भारतवासी दुनिया भर में उपहास के पात्र बनेंगे और आम जनता शोषण की व्यवस्था में दब कर एक बार फिर मध्ययुगीन बर्बरता को झेलने को विवश हो जायेगी.
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