[ भगत सिंह ने कहा था, ‘व्यक्ति को मार कर विचारों को नहीं मारा जा सकता.’ किशन जी उर्फ कोटेश्वर राव को पाशविकता की हद तक क्रूर पुलिस ने बर्बर तरीके से हत्या कर दी थी, जिस बर्बरता की गवाह वे तस्वीरें हैं, जो उन दिनों मीडिया में आई थी. परन्तु किशन जी की बर्बर हत्या कर के भी उनके विचारों को नहीं मारा जा सका. पेश के कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी के विचार जो प्रसिद्ध पत्रकार पुण्य प्रसुन वाजपेयी के कलम से 27 सितम्बर, 2009 को एक अनजानी फोन कॉल के माध्यम से निकला था. ]
“सत्ता बंदूक की गोली से निकलती है और व्यवस्था बंदूक से चलती है.” ” कोबाड के एनकाउंटर की तैयारी झारखंड में हो चुकी थी-”
‘माओवादी कोबाड गांधी को पुलिस एनकाउंटर में मारना चाहती थी लेकिन मीडिया में कोबाड की गिरफ्तारी की बात आने पर सरकार को कहना पड़ा कि कोबाड गांधी नामक बड़े माओवादी को दिल्ली में पकड़ा गया है, जो सीपीआई माओवादी का पोलित ब्यूरो सदस्य है.’ यह बात अचानक किसी ने टेलीफोन पर कही. 24 सितंबर की रात के वक्त मोबाइल की घंटी बजी और एक नया नंबर देख कर थोडी हिचकिचाहट हुई कि कौन होगा … रात में किस मुद्दे पर कौन सी खबर की बात कहेगा … यह सोचते-सोचते हुये ही मोबाइल का हरा बटन दब गया और दूसरी तरफ से पहली आवाज यही आयी कि ‘मैं आपको यही जानकारी देना चाहता हूं कि सीपीआई माओवादी संगठन के जिस पोलित ब्यूरो सदस्य कोबाड गांधी को पुलिस ने पकड़ा है, उसके एनकाउंटर की तैयारी पुलिस कर रही थी.’
‘लोकिन आप कौन बोल रहे हैं ?’ ‘मैं लालगढ़ का किशनजी बोल रहा हूं.’ किशनजी, यानी सीपीआई माओवादी का पोलितब्यूरो सदस्य कोटेश्वर राव. यह नाम मेरे दिमाग में आया तो मैंने पूछा, ‘किशनजी अगर इनकाउंटर करना होता तो पुलिस कोबाड को अदालत में पेश नहीं करती.’
‘आप सही कह रहें है लेकिन पहले मेरी पूरी बात सुन लें …..’ ‘जी कहिये.’ उन्होंने कहा, ‘हमें कोबाड गांधी के पकडे जाने की जानकारी 22 सितबर की सुबह ही लग गयी थी. इसका मतलब है कोबाड को 22 सितंबर से पहले पकड़ा गया था. हमने दिल्ली में पुलिस से पूछवाया लेकिन पुलिस ने जब कोबाड को पकड़ने की खबर को गलत माना तो हमने 22 सितंबर को दोपहर बाद से ही तमाम राष्ट्रीय अखबारों को इसकी जानकारी दी. इसके बाद मीडिया के लगातार पूछने के बाद ही सरकार की तरफ से रात में कोबाड गांधी की गिरफ्तारी की पुष्टि की गयी. अगर मीडिया सामने नहीं आता तो दिल्ली पुलिस झारंखड पुलिस को भरोसे में ले चुकी थी और कोबाड के एनकाउंटर की तैयारी कर रही थी क्योंकि दिल्ली पुलिस के विशेष सेल ने जब झारखंड पुलिस को कोबाड गांधी के पकड़ने की जानकारी दी तो झारखंड पुलिस ने इतना ही कहा कि कोबाड गांधी को एनकाउटर में मार देना चाहिये, नहीं तो माओवादी झारखंड समेत अपने प्रभावित क्षेत्रों में तबाही मचा देगे. हमारे एक साथी को झारखंड पुलिस ने पकड़ा था और दो महीने पहले ही हमने पांच राज्यों में बंद का ऐलान किया था. झारखंड में हमारी ताकत से सरकार वाकिफ है इसलिये झारखंड में भी जब हमने पता किया तो यही पता चला कि 21 सितंबर को ही झारखंड पुलिस की तरफ से कोबाड गांधी के एनकाउंटर को हरी झंडी दे दी गयी थी.’
‘लेकिन दिल्ली में एनकाउंटर करना खेल नहीं है क्योंकि मीडिया है, सरकारी तंत्र है … फिर लोकतंत्र पर इस तरह का दाग सरकार भी लगने नहीं देगी !’
मैं कब कह रहा हूं कि एनकाउंटर दिल्ली में होना था. झारखंड पुलिस चाहती थी कि 22 सितंबर की रात ही कोबाड गांधी को डाल्टेनगंज ले जाया जाये. वहां डाल्टेनगंज और चतरा के बीच पांकी इलाके में पहुंचाया जाये और एनकाउंटर में मारने का ऐलान अगले ही दिन 23 सितंबर को कर दिया जाये.’ माओवादी नेता कोटेश्ववर राव की मानें तो कोबाड गांधी के एनकाउंटर के जरिये झारखंड पुलिस के आईजी रैंक के एक अधिकारी इसके जरिए मेडल और बडा ओहदा भी चाहते थे, जो उन्हें इसके बाद गृह मंत्रालय की सिफारिश पर मिल भी जाता. मुझे लगा माओवादी पूरे मामले को सनसनीखेज बनाकर सरकार की क्रूर छवि को ही उभारना चाहते है. मैंने बात मोड़ते हूये पूछा, ‘कोबाड गांधी की गिरफ्तारी का असर माओवाद के विस्तार कार्यक्रम पर कितना पड़ेगा ?’ ‘करीब दो-तीन महीने तक संगठन का काम रुकेगा, जबतक दूसरे सदस्य कोबाड का काम नहीं संभाल लेते.’
मैंने देखा, रात के करीब साढ़े बारह बज रहे हैं … तो सोचा लालगढ़ के बारे में भी माओवादियों की पहल और सोच क्या चल रही है, जरा इसे जान लेना भी अच्छा है, यह सोच मैंने जैसे ही कहा, ‘लालगढ़़ मं तो आपको फोर्स ने घेर लिया है’ तो पल में जवाब आया, ‘बिलकुल नहीं … आप यह जरुर कह सकते हैं कि लालगढ़ के जरिये पहली बार बंगाल में माओवादी कैडर और सीपीएम के हथियारबंद दस्ते आमने-सामने आ खडे हुये हैं. प्रभावित इलाकों के तीन ब्लॉक मिदनापुर, सेलबनी और वाल्तोर में बीते तीन महीने की हिंसक झडपों में सीपीएम के सौ से ज्यादा हथियारबंद कैडर मारे जा चुके हैं. अभी तक इन क्षेत्रों में सीपीएम के चार सौ से ज्यादा हथियारबंद कैडर को जमीन छोड़नी पडी है जो कि 12 कैंपों में मौजूद थे.’
‘कैंप का मतलब … क्या सेना का कैंप ?’ ‘जी नहीं. सीपीएम का कैंप, जहां उनके हथियारबंद कैडर रहते हैं. सबसे बड़ा कैंप तो सीपीएम नेता अनिल विश्वास के घर पर ही था, जहां सीपीएम के 35 कैडर मारे गये. इसी के बाद सीपीएम के एक दूसरे बडे नेता सुशांतो घोष ने सार्वजनिक सभा में ऐलान किया कि ‘नंदीग्राम की तरह लालगढ़ पर हमला कर जीत लेगें’ तो इसका असर लोगों में किस तरह हुआ यह बेकरा गांव की सभा में देखने को मिला, जहां के गांववालों ने सुशांतो घोष की सभा नहीं होने दी. जब वह सभा को संबोधित करने पहुंचे तो गांववालों ने उन्हें खदेड़ दिया. गांववालों में सीपीएम को लेकर कितना आक्रोश है, इसका नजारा मिदनापुर में हमने देखा. मिदनापुर में इनायतपुर के पोलकिया गांव में 21 सितंबर की रात सीपीएम के पांच लोग मारे गये. दस घायल हुये. यहां की तीन आदिवासी महिलाओं के साथ सीपीएम के हथियारबंद कैडर ने बदसलूकी की थी, जिसके बाद गांववालों में आक्रोश आ गया. गांववालों ने सीपीएम की शिकायत यहां तैनात ज्वाइंट फोर्स से की लेकिन गांववालां की मदद ज्वाइंट फोर्स ने नहीं की. माओवादियों से गांववालों ने मदद मांगी. 10 घंटे तक फायरिंग हुई, जिसके बाद सीपीएम के पांच लोग मारे गये. इसी तरह सोनाचूरा में 8 सीपीएम कैडर मारे गये. सीपीएम को लेकर लोगों में आक्रोश है. यही हमें ताकत भी दे रहा है और हम उसी जनता के भरोसे संघर्ष भी कर रहे हैं.’
‘लेकिन अब केन्द्र सरकार भी माओवादियों को चारो तरफ से घेरने की तैयारी कर रही है, कैसे सामना करेंगे ?’ ‘सवाल हमारा सामने करने का नहीं है. हम जानते हैं कि अबूझमाड यानी माओवादी प्रभावित क्षेत्र में घुसने के लिये 8 हैलीपैड बनाये गये हैं. आंध्र प्रदेश से सीमावर्ती चित्तूर, भद्राचलम से लेकर छत्तीसगढ़ के बीजापुर तक में अर्धसैनिक बलों को तैनात किया जा रहा है लेकिन इसमें जितना नुकसान हमारा है, उतना ही सरकार का भी होगा. इसका एक चेहरा छत्तीसगढ़ के दंत्तेवाडा के पालाचेलिना गांव में सामने भी आया, जहां कोबरा फोर्स को पीछे हटना पड़ा. ‘तो क्या यह चलता रहेगा ?’ ‘यह सरकार पर है क्योंकि यहां के आदिवासी ग्रामीणां में गुस्सा है. वह हमसे कहते हैं मिलकर लडेगें, मिलकर मरेंगे. यह सरकार का काम है कि उनकी जरुरतों को उनके अनुसार समाधान करें. नहीं तो हम भी उन्हीं के साथ मिलकर लडेंगे, मिलकर मरेंगे.
‘तो क्या सरकार समझती है कि गांववालो की जरुरत क्या है ?’ ‘देखिये, सवाल समझने का नहीं है. जिन पांच राज्यों को लेकर सरकार परेशान है. उनमें झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में सबसे ज्यादा खनिज संसाधन है. खनिज संसाधन की लूट के लिये तब तक रास्ता नहीं खुल सकता है, जब तक यहां के ग्रामीण आंदोलन कर रहे हैं और हम उनके साथ खड़े हैं.’ ‘लेकिन सरकार विकास के रास्ते भी खनिज संपदा का उपयोग कर सकती है ?’ ‘सही कह रहे हैं आप लेकिन आंध्रप्रदेश से लेकर बंगाल तक के रेड कॉरिडोर पर पहली बार अमेरिका की नजर है. उसे भारत का यह खनिज औने-पौने दाम में मल्टीनेशनल कंपनियों को दिलाने का रास्ता खोलना है. हाल ही में गृह मंत्री चिदबंरम साहब पेंटागन गये थे. वहीं उन्हें ब्लू-प्रिंट दिया गया कि कैसे माओवादियों को इन इलाकों से खत्म करना है इसीलिये कश्मीर से फौज हटायी जा रही है, जिसे माओवादी प्रभावित इलाकों में हमारे खिलाफ लगाया जा रहा है. लेकिन यह समझ भारत की नहीं, अमेरिका की है. अमेरिका समझ रहा है कि विश्व बाजार जब तक पहले की तरह चालू नहीं हो जाता तब तक मंदी का असर बरकरार रहेगा. इन इलाकों के खनिज संसाधन अगर विश्वबाजार में पहुंच जायें तो दुनिया के सामने करीब पचास लाख करोड़ से ज्यादा का व्यापार आयेगा, जो झटके में मुर्दा पड़ी दुनिया की दर्जनों बड़ी कंपनियो में जान फूंक देगा. आप यही देखो की एस्सार का 15 हजार करोड का प्रोजेक्ट इसी दिशा में काम कर रहा है. बैलेडिला से लेकर बंदरगाह तक पाइप लाइन का उसका प्रोजेक्ट शुरु हुआ है यानी यहां की खनिज संपदा कैसे बाहर भेजी इस दिशा में पहल शुरु हो चुकी है.’
‘लेकिन माना जाता है कि आप लोगों को राजनीतिक मदद भी है. आप लोगो को ममता बनर्जी की मदद मिल रही है. ऐसे मुद्दों को आप संसदीय राजनीति के जरिये उठा सकते है. इसके लिये हथियार उठाने की क्या जरुरत है ?’ ‘आप ममता की क्या बात कर रहे हैं. वह तो खुद सौ फीसदी प्राइवेटाइजेशन की वकालत कर रही है. मैं आपको एक केस बताता हूं … आप खुद जांच लें. कोलकत्ता हवाइअड्डा से जब आप शहर की तरफ आते हैं तो रास्ते में राजारहाट पड़ता है. यहां उपनगरी तैयार की जा रही है, जहां अत्याधुनिक सब कुछ होगा. किसानों की जमीन हथियायी जा रही है. विप्रो और इन्फोसिस को दुबारा मनाकर लाया जा रहा है लेकिन किस तरह राजनीति यहां एकजुट है, जरा इसका नजारा देखिये. यहां जो सक्रिय हैं, उनमें सीपीएम के पोलित ब्यूरो सदस्य गौतम देव, ज्योति बसु के बेटे चंदन बसु, तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय विधायक शामिल हैं. उसके अलावा बिल्डिंग माफिया कमल नामक शख्स भी साथ है. सैन्ट्रल बैक ऑफ इंडिया इनका प्रमोटर है और राजारहाट में अभी तक 600 किसान जमीन गंवा चुके हैं, जिसमें से 60 किसान मारे भी गये हैं. 100 से ज्यादा घायल होकर घर में भी पड़े हैं लेकिन इन किसानों को राजनीतिक हिंसा का शिकार बता दिया गया, यानी किसान को भी राजनीतिक दल से जोड़कर उपनगरी के मुनाफे में बंदरबांट सीपीएम और तृणमूल दोनों कर रही है.’
‘तो क्या इसे जनता समझ नहीं रही है ?’ ‘समझ क्यों नहीं रही है. ईद के दिन ही यानी 21 सिंतबर को ही तृणमूल का एक नेता निशिकांत मंडल मारा गया. निशिकांत सोनाचूरा ग्राम पंचायत का प्रधान था.’ ‘तृणमूल नेता को क्या ग्रामीणों ने मारा ?’ ‘आप कह सकते हैं कि ग्रामीण आदिवासियों की सहमति के बगैर इस तरह की पंचायत के प्रधान की हत्या हो ही नहीं सकती है. निशिकांत पहले सीपीएम में था. फिर तृणमूल में आ गया. ऐसे बहुत सारे सीपीएम के नेता हैं तो पंचायत स्तर पर अब ममता बनर्जी के साथ आ गये हैं. ऐसे में गांववाले मान रहे हैं कि ममता नयी सीपीएम हो गयी हैं जबकि यह लड़ाई सीपीएम की नीतियों के खिलाफ और उसके कैडर की तानाशाही के खिलाफ शुरु हुई थी. वही स्थिति अब ममता की बन रही है इसलिये अब देखिए निशिकांत की हत्या नंदीग्राम में हुई, जहां से ममता बनर्जी को राजनीतिक पहचान और लाभ मिला.’
‘तो क्या यह माना जाये कि 2011 के चुनाव में ममता नहीं जीत पायेगी ?’ ‘यह तो हम नहीं कह सकते हैं कि चुनाव कौन जीतेगा या कौन हारेगा लेकिन अब ग्रामीण आदिवासी मानने लगे हैं कि ममता बनर्जी भी उसी रास्ते पर है, जिस पर सीपीएम थी, यानी ममता का मतलब एक नयी सीपीएम है.’ बातचीत करते रात के डेढ़ बज चुके थे. मैंने फोन काटने के ख्याल से कहा कि … ‘चलिये इस पर फिर बात होगी. क्या आपके इस मोबाइल पर फोन करने पर आप फिर मिल जायेगे ?’ ‘नहीं, फोन आप मत करिये. जब हमें बात करनी होगी तो हमीं फोन करेंगे.’ बातचीत खत्म हुई तो मुझे यही लगा कि माओवादियों को लेकर सरकार का जो नजरिया है, उसके ठीक विपरित माओवादियो का नजरिया व्यवस्था और सरकार को लेकर है. यह रास्ता बंदूक के जरिये कैसे एक हो सकता है, चाहे वह बंदूक किसी भी तरफ से उठायी गयी हो ?
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