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गरबा मेला : परंपरा के नाम पर खुला सेक्स

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[ हिन्दू धर्म में बलात्कार और निरीहों की हत्या को पुण्य कर्म माना जाता है. तुलसीदास जब अपना श्लोक ‘‘ढ़ोल गंवार शुद्र पशु नारी, ये सब है ताड़न के अधिकारी’’ का प्रसिद्ध ज्ञान हिन्दु समाज को दिया तो यह इसी बात का निचोड़ था, जहां धर्म और परंपरा के नाम पर यह कुत्सित कर्म किये जाते हैं तो धर्म और समाज के तथाकथित ठेकेदारों को इसकी छूट दी जाती है, और वह देश में भगवान का दर्जा हासिल कर लेते हैं. 2014 में देश की सत्ता पर काबिज तथाकथित हिन्दू धर्म के ठेकेदारों की सरकार देश में धर्म के नाम पर हत्यारों और बलात्कारियों को देवता का तो दर्जा नहीं दे पाया, पर उसे मंत्री, प्रधानमंत्री, नेताओं के रूप में जरूर पुरस्कृत कर दिया है.

आज जब देश में हत्यारों और बलात्कारियों की सरकार बन गई है और देश को दुनिया भर में बदनाम कर देश की अर्थव्यवस्था को गटर में पहुंचा दिया है. चारों तरफ हाहाकार मचा गया है, औरतों, दलितों, आदिवासियों को आये दिन निशाना बनाया जा रहा है, तब देश की जनता का ध्यान इन समस्याओं से भटकाने के लिए एक ओर मौत के भय का नाटक खेला जा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर  me-too, me too का खेल खेला जा रहा है. जबकि देश के तथाकथित अमीर मॉडल राज्यों में धर्म के नाम पर सेक्स का खेल खेला जाता है, जिसे न केवल सरकारी समर्थन होता है, बल्कि मीडिया द्वारा भी जोर-शोर से प्रोत्साहित किया जा रहा है. कमलेश नाहर द्वारा लिखित यह आलेख गरबा के नाम पर सेक्स के खुल खेल को बेहतरीन तरीके से पर्दाफाश किया है. ]

गरबा मेला : परंपरा के नाम पर खुला सेक्स

गरबा – उजालों की आड़ में छिपा एक अंधा खेल. विश्व का सबसे बड़ा सेक्स मेला गरबा परंपरा के नाम पर खुला सेक्स !!

एक लड़की – “मुझे स्ट्रॉबेरी बहुत पसंद है.”

दूसरी लड़की – “पर मुझे तो चॉकलेट बहुत अच्छा लगता है, खासकर डार्क चॉकलेट” कह कर आंख मारती है.

“अरे यार, कोई मैंगो के बारे में भी तो बताओ.”

तीसरी लड़की बीच में बोल पड़ी – “यह सब तो ठीक है, लेकिन एक बात माननी पड़ेगी … जो बात नेचुरल में होती हैं, उसका तो कोई जवाब नहीं … उसके सामने बाकी सब फीके होते हैं … असली का कोई मुकाबला नहीं.”

चौथी लड़की दार्शनिक अंदाज में बोली – ‘”हां यार !!! यह तुम एकदम सही कह रही हो … “उसकी तो बात ही कुछ और है.”

“it’s a fun to having the real thing in…oh! dear l just can’t resist the heat n the passion of the moment. …”

इसके बाद एक बेशर्म खिलखिलाहट वातावरण में फैल जाती हैं और लड़कियां एक दूसरे को हाथ मार कर हाई-फाई देती है.

ये 4-5 लड़कियों की आपसी बातचीत किसी फ्रूट फेस्टिवल को लेकर नहीं है. ना ही किसी खाने-पीने की चीज को लेकर है. यह बात हो रही है नवरात्रि में डांडिया खेलने वालों की… कंडोम के फ्लेवर की….

शारीरिक-संबंध बनाते समय कहीं गर्भ न ठहर जाए. इसके लिए अलग-अलग कंपनियों के अलग-अलग खुशबू वाले कंडोम के इस्तेमाल करते हैं. कितना आसान है धर्म का पजामा पहन के.

नाड़ा-खोल-देना
और चूड़ीदार-सरकाना ….
घाघरा-लहंगा-उठाना.

जी हां, नवरात्रि के नौ दिन पूजा का तो पता नहीं पर खुले सेक्स का खुला बाज़ार ज़रूर हो गया है. लड़कियों द्वारा खुद को बेहतरीन तरीके से सजना-संवरना और अच्छे से अच्छा परिधान पहनना ऐसा लगता है मानो लड़कों को लुभाने की कोई प्रतियोगिता चल रही है.

कहने के लिए डांडिया खेला जाता है पर असल मकसद गुल्ली-डंडा और कबड्डी खेलना होता है. वह भी कहीं भी. किसी भी अंधेरे कोने में. दीवार के सहारे … फ्रेश होने के लिए बुक कराए गए कमरों में … या पार्किंग में खड़ी कार का इस्तेमाल बखूबी झूम-झूम कर पूरी शिद्दत के साथ किया जाता है. रात भर कौन नाचता है !!! कोई बता सकता है ??




इंसान एक घंटा नाचेगा … दो घंटा नाचेगा … फिर तो थक कर सो ही जाएगा … पर लड़के-लड़कियां रात भर गायब रहते हैं … दिन भर सोते हैं और रात को फिर जाते हैं !

ऐसा कौन सा डांडिया खेलने जाते हैं जो उनको रात भर बाहर रहना पड़ता है. लड़कियों की बातें चोली …. यानी कि एक डोरी गले पर और एक डोरी कमर पर … बस ! आगे से खूब डीप गले जिसने उनके स्तन के सिर्फ निप्पल ही छुप पाते हैं … लड़कियां लेटेस्ट मेकअप वह भी नॉन ट्रांस्फ़रेबल ताकी चिपका-चिपकी में और होंठों से होंठ चूसते और खाते वक्त फैला हुआ मेकअप चुगली ना कर दे किसी से !!!

ऐंटी रोमियो के नाम पर साथ चल रहे लड़के-लड़की को सरेआम बेइज़्जत कर देते हैं लेकिन धर्म के नाम पर खुले ये त्योहार के नाम पर किसी को दिक्कत नहीं है और मीडिया में कितना इसका प्रचार किया जाता है !

अब ये गरबा रातें अपने पैर गुजरात और महाराष्ट्र से अलावा दूसरे प्रदेशों में भी फैला रही हैं … और इसकी जद में हमारे बच्चों के आने का भी डर है …
यह अपर क्लास का धर्म के नाम पर नंगा नाच ही तो है, जिसका इंफेक्शन अब मिडिल क्लास को भी लगने लगा है.

नवरात्रि के समय इस दो जगहों (गुजरात और महाराष्ट्र) में कंडोम की और गर्भ न ठहरने देने वाली गोलियों की बिक्री में बेतहाशा बिक्री होती है और कुछ दिनों बाद अबोर्शन मे भी बेतहाशा वृद्धि हो जाती है !!

ये कैसा त्योहार है जिसमें बच्चे अपने चरित्र का हनन स्वयं करने में संकोच नहीं करते ?

क्यूं धर्म के नाम पर मां-बाप रात भर बाहर रहने की छूट दे देते हैं ?

क्यूं सेक्स का नाम लेने भर से शरमाने वाले समाज ने धर्म के नाम पर खुली छूट दे दी ?

ये पर्व अब –

चल संयासी मंदिर में
तेरा चिमटा मेरी चूड़ियां
दोनों साथ बजाएंगे
साथ साथ खनकाएंगे, से अधिक कुछ नहीं रह गया है !!





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