क्या सेना के किसी बड़े जनरल, DGMO, अफसर या प्रवक्ता ने भाजपा द्वारा सेना के चुनावी फायदा उठाऊ पोस्टर्स, अभियान और नीति पर कोई आपत्ति दर्ज कराई ?
क्या सेना के किसी रिटायर्ड जनरल या अधिकारी ने मोदी, मनोहर पर्रिकर, निर्मला सीतारमण,अमित शाह आदि व भाजपा के द्वारा सेना की मर्यादा को ताख पर रखते हुए अपने चुनावी फायदे के लिए सैन्य अभियानों का राजनैतिक क्रेडिट लेने पर कोई आलोचना प्रस्तुत की ?
क्या किसी भी वर्तमान या रिटायर्ड सैन्य अधिकारी और शहीदों के परिवारों ने सैनिकों के कृत्यों की क्रेडिट चोरी कर राष्ट्रीय स्तर पर भोंडे मुजरे करते भाजपाइयों पर कोई आरोप लगाया ?
क्या किसी भी सैन्य प्रवक्ता ने वायु सैनिक पर हमला कर उसे कोमा में पहुँचाने वाले तथा उसके पिता की हत्या करने के अपराध के मुल्ज़िम की जेल में किडनी फेल होने से हुई निकृष्ट प्रकार की मौत के बावजूद उसे सैन्य शहीदों के समक्ष रख तिरंगे में लपेटे जाने पर कोई प्रश्न किया ?
क्या किसी भी सैनिक ने शहीदों के दाह संस्कार के समय व्यस्त हो जाने वाले केंद्रीय और राज्य मंत्रियों से प्रश्न किया कि वे बिसहाड़ा के दंगाई की मौत को शहीदी स्थापित करने के लिए कैसे समय निकाल पा रहे हैं ? संस्कृति मंत्री से लेकर दक्षिण पंथी रुझान के नेता तिरंगे के इस अपमान कार्यक्रम में सम्मलित हो वास्तविक शहीदों का अपमान क्यों कर रहे हैं ?
क्या किसी भाजपाई और सैन्य अधिकारी ने one rank one pension की मांग करने वाले भूतपूर्व सैनिकों की कोई सुध ली ?
अपनी खराब की जाती छवि पर सेना का ये मौन क्या मात्र अनुशासन के कारण है ?
या प्रमोशन के आंकड़ों के कारण है ?
या रिटायरमेंट के बाद राजदूत या अन्य पदों की उम्मीद के कारण है ?
या हथियार खरीद में दलाली को कानून सम्मत बना देने के सरकारी फरमान के कारण है ?
या बीजेपी के द्वारा सेना में दक्षिणपंथी रुझानों को इंजेक्ट करने के प्रयासों के कारण है ?
या किसी और अज्ञात कारण से यह तो समय बताएगा !!!
पर फ़िलहाल सेना का मौन ये दर्शाता है कि सेना ने आगामी चुनावों में भाजपा का ब्रांड एम्बेसडर बनना स्वीकार कर लिया लगता है.
अब कुछ राजनीती की बात !
ज़रा कोई इन राहुल गांधी जी से पूँछे कि जब ऐसे सभी कृत्यों से स्पष्ट है कि मामला एक तरफ़ा है तो आप भाजपा को सैनिकों के खून की दलाली करने वाला किस मुंह और अधिकार से कह रहे हो ?
राहुल जी ज़रा होश में आइये चुनावी राजनीति के भारतीय परंपरा वाले पुराने उसूलों को भाजपा ने सर के बल खड़ा कर दिया है. अब सेना भी भारतीय चुनावी राजनीति में एक उपकरण की तरह प्रयुक्त होगी. खेल के नियम बदल दिए गए हैं. सरकार और उसका राजनैतिक दल खुल्लम खुल्ला ऐसा ही कर रहे हैं. एलानिया कर चुके हैं.
वैसे भी बुज़ुर्ग उदाहरण देते हैं कि गन्दगी में लोटते सूअर को पछाड़ने के लिए आपको भी गन्दगी में उतरना ही पड़ता है.
अब स्वच्छ छवि और स्वच्छ इरादे वाली राजनीति को अलविदा कहने के समय आ गया है. नए नियमों के अनुसार अब सीबीआई और दूसरी संवैधानिक संस्थाओं के बाद सेना का भी चुनावी दुरूपयोग किया जायेगा. ये नियम सम्मत भी ठहरा दिया गया है. जनता इसका स्वागत भी कर रही है. जो राजनैतिक दल इस गन्दगी में लिप्त न होना चाहें वे सन्यास ले लें. भारत की वर्तमान चुनावी राजनीति में उन्हें अपनी दुकान बंद कर देनी चाहिए नहीं तो जनता ज़बरदस्ती उनका शटर डाउन करा ही देगी.
भविष्य की चुनावी राजनीति: एक हैपोथेटिक्ल विश्लेषण !
बीजेपी के द्वारा बदल दिए गए नियमों और मर्यादा के मद्देनजर कांग्रेस/अन्य दल को अपने शासन काल के सभी युद्धों, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, लंका में शांति सेना का भेजा जाना, पंजाब में तथाकथित आतंकविरोधी कार्यवाही के दौरान तथा बाद में बीजेपी और संघ का भिंडरवाले तथा खालिस्तान समर्थकों के साथ गठजोड़, आतंकी कार्यवाहियों के विरुद्ध पाक में की गई सर्जिकल स्ट्राइक्स (यदि की गई है तो) तथा ऐसे सब कार्यवाहियों के समय कांग्रेसी नेताओं के दृढनिश्चय वाले निर्णयों व आदेशों के सबूतों को अपना चुनावी हथियार बनाना चाहिए.
कुछ समझदार देशवासियों को शायद ये सब गन्दा लगे लेकिन नयी मर्यादाओं के अनुसार अब यही चुनावी धंधा भी है.
कांग्रेस/अन्य दल अपने शासनकाल के उन सैन्य जनरल्स और अधिकारियों का एक समूह बनाये जो कांग्रेसी रुझान रखते हों या दक्षिणपंथी सोच के खतरे समझते हों. ऐसे सैन्य अधिकारी टीवी, समाचार पत्र और अन्य मंचों पर कांग्रेसी सैन्य उपलब्धियों का बखान करें. ढके छिपे लफ़्ज़ों में कहूंं तो प्रत्येक राजनैतिक दल को अब अपने सैन्य प्रकोष्ठ भी बनाने पड़ जायेंगे, अगर दुकान का शटर डाउन होने से बचाना है तो !
अब अगर अगले चुनाव में प्राइम टाइम पर आप टीवी पर बहस देख रहे हों और वक्ताओं के नीचे लिखा हो भाजपा समर्थक सैन्य अधिकारी या कांग्रेस समर्थक सैन्य अधिकारी या आप समर्थक सैन्य अधिकारी तो आश्चर्य मत कीजियेगा क्योंकि अब चुनाव युद्धोन्माद, पाक को पीटने के मुद्दे पर लड़े जायेंगे. क्षेत्रीय विकास के मुद्दे का ज़बरदस्ती गर्भपात करा दिया गया है.
ये आनुमानिक परिस्थिति है लेकिन अवश्यम्भावी है.
वैसे ही जैसे पदासीन प्रधानमंत्री को गालियां देने का चलन 2014 के चुनाव से पहले भाजपा ने ही प्रारम्भ किया था और वर्तमान प्रधानमंत्री रफ़ाएल पर फ्रेंच राष्ट्रपति के खुलासे के बाद आज सबसे अधिक उसका भुगतान कर रहे हैं.
बदले हुए नियमों, प्रवृत्ति और चलन के चलते धीरे-धीरे ये राजनैतिक कूड़ा-करकट सेना को भी कुप्रभावित करेगा ही क्योंकि आज हम सब राजनेताओं के द्वारा सेना के घृणित चुनावी प्रयोग पर चुप हैं.
- फरीदी अल हसन तनवीर
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