अलीगढ़ एनकाउंटर की कहानी
उस घर में कभी पुलिस नहीं आयी थी. दो लड़के पड़ोस के हाजी के यहां कढ़ाई का काम करते थे. एक कपड़े की दुकान में नौकरी करता था.
मुहल्ले की तमाम औरतें भी घर मे कढ़ाई करती थी. उनको वो कच्चा माल देने और तैयार माल लेने जाता था. किसी ने कभी कोई शिकायत नहीं की.
अचानक एक दिन पुलिस आती है. हाजी लड़कां को आवाज़ देता है. पुलिस लड़कों को बेरहमी से पीटती हुई ले जाती है. तारीख है 16 सितंबर. उसके बाद 20 को उन दोनों की मां के पास फ़ोन आता है कि लड़के अस्पताल में एडमिट है. वहां जाने पे दोनों की लाश मिलती है. हाजी भी वहीं मौजूद होते हैं, दोनों लाशों के ऊपर एक सफेद कपड़ा डाल कर गढ्ढे में डाल कर उसे भर दिया जाता है. न नहाना, न कफ़न, न दफन.
एक लड़का जो दिमागी तौर पे कमज़ोर है, उसे गिरफ्तार बताया जाता है और लड़कों के बाप का कोई अता-पता नहीं.
पुलिस चार FIR दिखाती है कि वो भाग कर आ रहे थे. रोका गया तो गोली चलाने लगे. जवाबी फायरिंग में मर गए.
चार FIR है और चारो में मोटरसाइकिल के नम्बर अलग-अलग है, मुठभेड़ लोकल चैनेल द्वारा दिखाई गई, सवाल ये है कि मीडिया को किसने बुलाया ? जब सब कुछ अचानक हुआ था या जवाबी फायरिंग तक इंतज़ार किया गया कि मीडिया आ जाये और वो अपराधी भी इंतज़ार करते रहे कि मीडिया आये तो वो गोली खा कर मर जाये, वहां से भागे नहीं.
जिन साधुओं को मारने का आरोप है उस FIR में लिखा है कि इन लड़कों के पास एक गड़ासा था. उससे उन्होंने लकड़ी काटी, लाठी बनाई और उस से साधु को मार दिया, अब जिसको मारना होगा वो गड़ासे से ही मार देगा. लाठी क्यो बनाएगा, वैसे साधु का परिवार भी रिहाई मंच की टीम को उन्हें निर्दोष बता चुका है.
इस बीच मीडिया उनको वीरप्पन से ज़्यादा दुर्दांत और खतरनाक बता चुकी थी और एसएसपी साहब बजरंग दल से वीरता पुरस्कार लेकर फेसबुक में पोस्ट कर रही थी.
परिवार के लोग मीडिया से बात न कर सके इसके लिए पूरी पुलिस टीम उनके घर के बाहर खड़ी की गयी, अलीगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता मारिया सलीम जब इसकी शिकायत करने थाने पहुची तो वहां बजरंगी कम्पनी ने वो उत्पात मचाया कि उनको अपनी कार छोड़ कर जान बचा कर भागना पड़ा.
हम लोग जब ये सब सुन कर पहुंचे तो घर वालां ने कहा, ‘तीसरे दिन कुछ खाने को मिला है.’ मोहल्ले के लोगों ने कहा, ‘इस मामले के पहले आज तक कभी पुलिस नहीं आई.’ उसके बाद जब हम थाने पहुचे तो 250 के आस-पास बजरंगी बुलाये गए और हमारे ओर हमला करने की तैयारी थी. किसी तरह हम वहां से निकले. लग यही रहा था कि थाना इंचार्ज परवेश राना न होकर बजरंगी है.
उसके बाद अगले दिन कहीं हमारे ऊपर मुक़दमा होने की ख़बर थी. किसी ने हमें गिरफ्तार बताया. किसी ने मुक़दमा दर्ज करवा दिया. कोई अखबार, कोई चैनेल पीछे नहीं रहा. बाद में मालूम चला कि फैज़ुल और मशकूर पर दोनों की मां के अपहरण का मुकदमा दर्ज करवा दिया गया है.
बरहाल 29 को हमने अपनी डिटेल रिपोर्ट के साथ उन दोनों की मां के साथ जब प्रेस वार्ता की, तब हक़ीक़त सब के सामने आई और देश के लगभग सभी मीडिया हाउस ने इसे स्थान दिया और उन दोनों ने अपहरण वाली कहानी को भी खारिज किया, उसके बाद से अलीगढ़ पुलिस ये बताना चाह रही है कि वो दोनों लड़के इस देश के सबसे बड़े अपराधी थे. रोज़ एक नई कहानी बताई जा रही है. नौशाद जिसकी उम्र 17 साल है, कहा जा रहा है कि 7 साल पहले दंगा भड़काने का केस उसके ऊपर लगा था. अब 10 साल की उम्र का लड़का दंगा कैसे भड़काता है, ये समझ से बाहर है. फिर कहा कि 6 हत्याओं में उसकी तलाश थी जिसमें एक मामला 10 साल पहले का है. अब ये कौन बताए कि 7 साल की उम्र में कट्टा कैसे चलाते हैं ?
दो दिन पहले अमीक़ भाई ने रिपोर्ट मांगी थी. उसके बाद कल उनका जवाब आया कि समाजवादी पार्टी के प्रवक्ताओं को ये निर्देश आया है कि वो रिपोर्ट के अनुसार मीडिया में अलीगढ़ मामले को उठाये, सदफ जाफर ने रिपोर्ट मांगी और उसके बाद कांग्रेस प्रवक्ता का अलीगढ़ मामले में बयान आया. उसके बाद उन्होंने बताया कि 3 अक्टूबर को राजब्बर इस मामले प्रेस वार्ता कंरेगे, लगातार पिछले 3 तीन दिन में जिस तरह माहौल बना है आज उसके बाद खुद बीजेपी के सहयोगी राजभर इसके विरोध में बोले हैं.
ह्यूमन राइट कमीशन में जो उत्तरप्रदेश एनकाउंटर के खिलाफ याचिका है उसमें united against hate भी एक पार्टी है उस याचिका में हम ये केस भी ऐड करवाएंगे और दो दिन के अंदर अतरौली SO और SSP अलीगढ़ के विरुद्ध मुकदमा करेंगे.
जब तक इस मामले में कोई ठोस नतीजा नहीं आ जाता, तब तक शांत नहीं बैठेंगे, जिस तरह उत्तर प्रदेश में एनकाउंटर का बाज़ार गर्म है उसको देखते हुए यही लगता है कि जब तक बड़े दोषी अधिकारी जेल नहीं जाएंगे, तब तक इसपे लगाम नहीं लगने वाली.
डिटेल इसलिए लिखा है कि हिंदी अखबार तो कुछ लिखेगा नहीं तो सोशल मीडिया से ही बात बढ़ाई जाए.
- नदीम
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