मैं शुक्रिया अदा करना चाहता हूं तमाम लोगों का और सुप्रीम कोर्ट के जजों का जिन्होंने अपनी अलहदा राय जाहिर की जिससे हमें अपने मामले में राहत ढूंढने की चार हफ्ते की मोहलत मिली, और जनता के हक में आवाज उठाने वाले नागरिकों और भारत के वकीलों का जिन्होंने हमारी ओर से बहादुराना लड़ाई लड़ी जिनकी यादों को मैं संजो कर रखूंगा. मैं अभिभूत हूं उस एकजुटता से जो सरहदों की बंदिशें तोड़ती हुई हमारे समर्थन में गोलबंद हुईं.
दिल्ली हाई कोर्ट से मैंने अपनी आज़ादी जीती है. मैं इससे रोमांचित महसूस कर रहा हूं.
मेरे सबसे अजीज दोस्तों और वकीलों ने, जिन की रहनुमाई कानूनी और लॉजिस्टिक टीम के तमाम दोस्तों के साथ नित्या रामकृष्णन, वारिसा फरासत, अश्वत्थ कर रहे थे, मेरी आजादी को हासिल करने के लिए अक्षरशः ‘जमीन और आसमान’ एक कर दिया. मुझे नहीं पता मैं अपने दोस्तों का और उन वकीलों का, जिन्होंने शीर्ष अदालत में हमारे पक्ष में दलीलें दीं, कभी यह कर्ज़ अदा कर पाऊंगा. तमाम बंदिशों के बावजूद अपनी नजरबंदी के इस मौके का मैंने सही इस्तेमाल किया लिहाजा मुझे कोई गिला-शिकवा नहीं है.
तो भी मैं अपने सह-अभियुक्तों को और हजारों की तादाद में जेलों में बंद राजनीतिक बंदियों को नहीं भूल सकता जिन्हें उनकी वैचारिक प्रतिबद्धताओं की वजह से या झूठे आरोपों का सहारा लेकर और/या ‘गैरकानूनी गतिविधि (निरोधक) कानून’ यूएपीए के तहत जेलों में कैद करके रखा गया है. इसी तरह के मामले में कैद आरोपी जेलों के अंदर हो रही बदसलूकी के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठे हैं और मांग कर रहे हैं कि उन्हें राजनीतिक बंदी/अंतरात्मा के बंदी का दर्जा दिया जाय. अन्य राजनीतिक बंदियों ने भी समय-समय पर भूख हड़ताल का सहारा लिया है और यही मांग की है. उनकी आजादी और उनके अधिकार ‘नागरिक स्वतंत्रता और जनतांत्रिक अधिकार’ के आंदोलन के लिए बेहद बेशकीमती हैं.
बावजूद इसके जश्न मनाने का एक सबब है.
मैं एलजीबीटी के कामरेडों को सलाम करता हूं कि एक लंबे जद्दोजहद के बाद हाल में उन्हें ऐतिहासिक कामयाबी मिली जिसने एक ऐसे शानदार सामाजिक आंदोलन का रास्ता खोल दिया जैसा बाबासाहेब आंबेडकर ने जाति प्रथा के सफाये के लिए खोला था जिसने हम सब को ‘शिक्षित होने, संगठित होने और आंदोलन करने’ की प्रेरणा दी. आप तक हमारी एकजुटता पहुंचने में थोड़ी देर जरूर हुई लेकिन आपकी दृढ़ता ने हमें खुद को बदलने के लिए मजबूर किया. आपने हमारे चेहरों पर मुस्कान वापस लौटा दी और हमारी जिंदगी में इंद्रधनुष के रंगों को बिखेर दिया.
इसके साथ ही भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण और उनके साथी सोनू और शिवकुमार की निवारक नजरबंदी से आजादी से हमें खासतौर पर बहुत राहत मिली क्योंकि इससे हमारे समाज में जड़ जमा कर बैठे जातिवादी अत्याचार के खिलाफ प्रतिरोध की जमीनी ताकत का शिद्दत के साथ अहसास होता है.
मैं जेएनयू छात्र संघ के अपने दोस्तों के संयुक्त वामपंथी पैनल की ऐतिहासिक विजय को सलाम करता हूं जिसने एक बार फिर साबित किया कि मिलजुल कर प्रतिरोध करना ही आज के वक़्त की जरूरत है. केवल इस तरीके से ही हम किसी भी उत्पीड़न का सामना कर सकते हैं और इसके लिए जबरदस्त जन समर्थन जुटा सकते हैं.
दोस्तो! सच्चाई और ईमानदारी से लड़े शब्द गोली और गाली से ज्यादा ताकतवर होते हैं, आज यह साबित हो रहा है. हमारे गीतों और कविताओं में जोश है और हमारे काम और लेखनी का आधार तर्क और तथ्य हैं.
अपने सभी दोस्तों से मैं कहूंगा कि हम सब अपनी संवैधानिक आजादी को लागू करने के लिए और हर तरह के शोषण और उत्पीड़न का विरोध करने के लिए हर तरह से अपनी आवाज बुलंद करना जारी रखें.
एक बार फिर पाश के ये अनमोल बोल याद करें:
‘हम लड़ेंगे साथी
कि लड़ने के बगैर कुछ भी नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अभी तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वालों की
याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी।’
लाल सलाम !
गौतम नवलखा
सोमवार, 1 अक्टूबर 2018
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