Home गेस्ट ब्लॉग डाकू के शक्ल में स्टेट बैंक ऑफ इंडियाः कामनवेल्थ बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया से तुलनात्मक अध्ययन

डाकू के शक्ल में स्टेट बैंक ऑफ इंडियाः कामनवेल्थ बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया से तुलनात्मक अध्ययन

36 second read
0
0
685

[ ‘सामाजिक यायावर’ के नाम से लिखने वाले एक विभूति ने शानदार तरीक़े से कामनवेल्थ बैंक अॉफ आस्ट्रेलिया (CBA) बनाम भारतीय स्टेट बैंक SBI के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन किया है. इस आलेख ने इन्होंने शानदार तरीक़े से बतलाया है कि किसी भी सामाजिक जिम्मेदारी से मुक्त भारतीय स्टेट बैंक आम आदमी को लूकने खसोटने के महज एक औजार बन गया है. हलांकि यहां केवल एक भारतीय बैंक का उदाहरण दिया गया है, परन्तु बैंकों की यह हालत भारत के तमाम निजी और सरकारी बैंकों की है. ]

डाकू के शक्ल में स्टेट बैंक ऑफ इंडियाः कामनवेल्थ बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया से तुलनात्मक अध्ययन

कामनवेल्थ बैंक अॉफ आस्ट्रेलिया (CBA) बनाम भारतीय स्टेट बैंक SBI के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन

सालाना आय/इक्विटी/कुल संपत्ति

SBI की सालाना आय दस हजार करोड़ रुपया से अधिक.
CBA की सालाना आय छप्पन हजार करोड़ रुपया से अधिक.

SBI की कुल इक्विटी दो लाख करोड़ रुपया से अधिक.
CBA की कुल इक्विटी तीन लाख करोड़ रुपया से अधिक.

SBI की कुल संपत्ति चौतीस लाख करोड़ रुपया से अधिक.
CBA की कुल संपत्ति पचास लाख करोड़ रुपया से अधिक.

सालाना रेवेन्यू/ग्राहकों की संख्या

SBI का सालाना रेवेन्यू दो लाख करोड़ रुपया से अधिक.
CBA का सालाना रेवेन्यू लगभग एक लाख चौतीस हजार करोड़ रुपया.

SBI के ग्राहकों की संख्या 30 करोड़ से अधिक.
CBA के ग्राहकों की संख्या पौने दो करोड़ से भी कम.

प्रति ग्राहक ब्रांच व कर्मचारी की संख्या

SBI की औसतन 15000 ग्राहक पर एक ब्रांच है तथा औसतन 1000 ग्राहक पर एक कर्मचारी है.

CBA की औसतन 15000 ग्राहक पर एक ब्रांच है तथा औसतन 300 ग्राहक पर एक कर्मचारी है.

वेतन

SBI के कर्मचारियों का औसत वेतन लगभग 50 हजार रुपया महीना.
CBA के कर्मचारियों का औसत वेतन पांच लाख रुपया महीना से अधिक.
CBA सालाना लगभग 33 हजार करोड़ रुपये कर्मचारियों को वेतन देने में खर्च करता है.

SBI के चेयरपरसन का वेतन पांच लाख रुपया महीना से भी कम.
CBA के चेयरपरसन का वेतन लगभग चार करोड़ रुपया महीना.

सामाजिक मुद्दों पर खर्च

CBA बच्चों, वृद्धों व पर्यावरण के मुद्दों पर भारी खर्च करता है. केवल रिनेवेबल ऊर्जा मतलब अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर ही लगभग चौदह हजार करोड़ रुपया सालाना खर्च करता है.

यहां यह ध्यान देने की बात है कि CBA सरकारी योजनाओं से इतर सामाजिक मुद्दों पर अपनी स्वेच्छा से सामाजिक जिम्मेदारी महसूस करते हुए भारी भरकम रकम खर्च करता है.

ऊपर के बिंदुओं के आधार पर CBA व SBI की तुलना

देखा जा सकता है कि SBI के पास 30 करोड़ से अधिक ग्राहक हैं जबकि CBA के पास 2 करोड़ से भी बहुत कम, डेढ़ करोड़ से कुछ अधिक. देखा जा सकता है कि SBI का रेवेन्यू CBA के रेवेन्यू से अधिक है.

देखा जा सकता है कि SBI में प्रति ग्राहक कर्मचारियों की संख्या CBA की तुलना में बहुत कम है, जबकि CBA के ग्राहकों को बैंक जाने की जरूरत शायद ही पड़ती हो, इसके बावजूद कर्मचारियों की संख्या प्रति ग्राहक तीन गुने से भी अधिक है.

देखा जा सकता है कि SBI में प्रति ग्राहक व प्रति ब्रांच कर्मचारियों की संख्या CBA की तुलना में तीन गुनी कम है. SBI में कर्मचारियों को दिया जाना वाला वेतन CBA द्वारा कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन की तुलना में बहुत ही कम है. SBI में औसत वेतन 50 हजार रुपए महीना, CBA में औसत वेतन 5 लाख रुपए महीना से भी अधिक, चेयरपरसन का वेतन तो लगभग 4 करोड़ रुपया महीना है.

SBI सरकारी योजनाओं से अलग अपनी स्वेच्छा से सामाजिक मुद्दों में शायद ही एक रुपया खर्च करता हो. जब ग्राहकों से तमीज से व्यवहार करना नहीं आता तो SBI के पास अपनी खुद की कोई सामाजिक व्यवहार योजना होगी इसकी कल्पना करना ही बेमानी है.

SBI अपने ग्राहकों से अनेक प्रकार की फीस व सरचार्ज काटकर लूटता है. CBA तो एटीएम से पैसा निकालने में भी फीस नहीं वसूलता है, चाहे जितनी बार निकालिए, सर्विसेस के लिए कोई फालतू के चार्जेस नहीं लेता, ग्राहक को लूटता नहीं, बात-बात पर चार्ज नहीं लेता.

SBI इंटरनेशनल ट्रांजैसक्शन में करेंसी एक्सचेंज रेट्स में झोल झपाटा करके खूब रुपए लूटता है. CBA करेंसी एक्सचेंज रेट में झोल नहीं करता, केवल मामूली सी सुनिश्चित फीस लेता है.

इस सबके बावजूद CBA बैंक SBI बैंक की तुलना में आय में लगभग 6 गुना बड़ा बैंक तथा कुल संपत्ति में दुगुना बड़ा बैंक है, जबकि CBA बैंक के पास SBI बैंक की तुलना में 15 गुने से भी कम ग्राहक हैं तथा रेवेन्यू कम है.

ग्राहकों के प्रति जिम्मेदारी व जवाबदेही में तो नर्क व स्वर्ग जितना अंतर है. ग्राहक के पैसे की सुरक्षा की जिम्मेदारी महसूस करता है. ग्राहक को परेशान करने की बजाय सरलता प्रदान करता है.

और तो और, CBA में पहले ग्राहक बैठता है तब मैंनेजर बैठेगा. यदि ग्राहक खड़ा है तो मैनेजर भी खड़ा ही रहेगा. ऐसा नहीं होगा कि ग्राहक खड़ा है और बैंक का ऊंचे से ऊंचा कर्मचारी भी बैठे हुए बात कर रहा है. यहां तक कि ग्राहक के बैठने की कुर्सी या तो बैंक कर्मचारी के जैसी होगी या उससे बढ़िया होगी. ऐसा नहीं है कि बैंक का कर्मचारी बढ़िया कुर्सी पर बैठेगा और ग्राहक उसकी तुलना में कम बढ़िया कुर्सी पर. मान लीजिए इतनी कुर्सियां नहीं हैं कि ग्राहक बैठ सके तो मैनेजर खड़ा हो जाएगा और ग्राहक को बैठने के लिए अपनी कुर्सी देगा.

यह बताने की जरूरत तो नहीं ही है कि SBI बैंक हर तरह से कितना सड़ियल, भ्रष्ट व कामचोर बैंक है. बैंक के ऐसा होने में जनसंख्या अधिक होना भी कोई कारण नहीं है.

उल्टे जनसंख्या अधिक होने के कारण तो बैंक की आय अधिक होना चाहिए, इक्विटी अधिक होना चाहिए, संपत्तियां अधिक होना चाहिए. लोक कल्याण पर सरकारी योजनाओं से इतर खूब पैसा खर्चा करना चाहिए. यह जनसंख्या ही है जिसके कारण SBI खुद को दुनिया के 50 सबसे बड़े बैंको में होने का फर्जी दावा करता रहता है लेकिन कौन सी कैटेगरी में ऐसा है इसका खुलासा कभी नहीं करता.

चलते-चलते

बैंक की बात छोड़िए मैंने आस्ट्रेलिया में आज तक कोई ऐसा सरकारी विभाग नहीं देखा जिसमें ऐसी व्यवस्था हो कि सरकारी अधिकारी/कर्मचारी किसी नागरिक से बैठकर बात करे और नागरिक खड़ा हो या अधिकारी/कर्मचारी की कुर्सी नागरिक की कुर्सी से बढ़िया हो.

भारतीय नौकरशाही/व्यवस्था तंत्र लोकतंत्र को समझे या न समझे, भले ही सामाजिक कल्याण के नाम पर नाम पहचान महानता का अतिरिक्त भोग करने की लिप्सा को भी खूब जीभरकर जीने के लिए खूब ढोंग व दिखावा करता रहे.

लेकिन कम से कम आम आदमी को मनुष्य मानते हुए बिना ढोंग के अंदर से तमीज महसूस करते हुए तमीजदार व्यवहार करना तो सीख ही ले. महानता व बड़प्पन के जबरदस्त ढोंग से इतर कम से कम इतनी आदमीयत तो सीख ही ले. केवल इतना ही करना भी भारतीय समाज में कई मूलभूत बदलाव ला देगा.

ऐसा हो पाने के लिए जनसंख्या कहीं आड़े नहीं आती है.

Read Also –

नीरव मोदी और राष्ट्रीय खजाने की लूट
नीरव मोदी और राष्ट्रीय खजाने की लूट
आखिर क्यों हम इन केंद्रीय बैंकरों के गुलाम बने बैठे हैं?
क्या देश अमीरों के टैक्स के पैसे से चलता है ?
मोदी सरकार द्वारा विश्व बैंक से लिये कर्ज
बैंकों का बढ़ता घाटा और पूंजीवादी संकट

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

[ प्रतिभा एक डायरी ब्लॉग वेबसाईट है, जो अन्तराष्ट्रीय और स्थानीय दोनों ही स्तरों पर घट रही विभिन्न राजनैतिक घटनाओं पर अपना स्टैंड लेती है. प्रतिभा एक डायरी यह मानती है कि किसी भी घटित राजनैतिक घटनाओं का स्वरूप अन्तराष्ट्रीय होता है, और उसे समझने के लिए अन्तराष्ट्रीय स्तर पर देखना जरूरी है. प्रतिभा एक डायरी किसी भी रूप में निष्पक्ष साईट नहीं है. हम हमेशा ही देश की बहुतायत दुःखी, उत्पीड़ित, दलित, आदिवासियों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों के पक्ष में आवाज बुलंद करते हैं और उनकी पक्षधारिता की खुली घोषणा करते हैं. ]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…