सोशल मीडिया के माध्यम से एक सैनिक अपना नाम और पता गुप्त रखने के शर्त पर अपनी समस्याओं और सेना के अफसरों के नैतिक पतन की पराकाष्ठा को न केवल बुरी तरह उकेड़ते ही हैं, वरन् सेना के अन्दर व्याप्त गंदगी को भी निकाल कर बाहर रख देते हैं. यहां हम उस सैनिक के बयान को हू-ब-हू उनके ही शब्दों में रखते हैं :
‘‘सेना अध्यक्ष विपिन रावत कहते हैं कि अगर सैनिकों को कोई परेशानी है तो वो मुझे सुझाव लिखित में भेजें … लेकिन सर जी, हमारे सुझाव और शिकायत आप तक पहुंचने कौन देगा … ?
‘‘आप भी यहीं से तो वहां तक पहुंचे हैं … जब सारे officers एक हो गये तो आप भी उन्हीं का साथ दोगे … मैंने ये देखा है tv डिवेट में … मैं यहाँ भारतीय सेना … Indian army की बात कर रहा हूँ सिर्फ … चाहे बी.एस.एफ हो, आई.टी.बी.पी. हो, सब जगह सैनिकों का शोषण होता है, शारीरिक तौर पर भी और मानसिक तौर पर भी … ये कैसे होता है .. मैं आपको बताता हूँ ….
‘‘1. अगर सैनिक के घर पर सैनिक के मां-बाप बीमार होते हैं, और उस दौरान घर पर उस सैनिक की जरूरत घरवालों को सेना से ज्यादा होती है, तो छुट्टी के लिए जब सैनिक आॅफिसर के सामने ( interview) में जाता है तो सवाल-जवाब कुछ यूं होते हैं …
‘‘आॅफिसर: क्या प्रोब्लम है ?
‘‘जवान: सर, मेरी माँ बीमार है, मुझे छुट्टी चाहिए।
‘‘आॅफिसर: आपको किसने बताया कि मां बिमार है ?
‘‘जवान: सर पापा का फोन आया था।
‘‘आॅफिसर: तेरा बाप डाक्टर है क्या ?
‘‘(सोचिये जरा आप भी….)
‘‘2. आॅफिसर: ठीक है, तू छुट्टी जा, अगर सच में तेरी मां बीमार है तो. तू छुट्टी से आने के बाद डाॅक्टर द्वारा जांच की पर्ची, दवाईयों के बिल, और क्या इलाज करवाया, सब लेते आना. हमें सबूत चाहिए कि तू सच बोल रहा है या झूठ.
‘‘(क्या ये सही है?.. आप ही कहिये)
‘‘3. अगर हमारे मां-बाप बीमार होते हैं तो इनसे छुट्टी मांगने पर ये कहते हैं कि ‘घर पर तेरे अलावा कोई भाई-बहन नहीं है जो देख रेख कर सके’. लेकिन अगर इनके मां-बाप बीमार होते हैं तो हम में से किसी सिपाही को वहाँ भेज देते हैं उनकी टट्टी साफ करने के लिए. क्या ये सही है?
‘‘4. हम अगर सेना के अंदर family member बनते हैं तो हमारी wife को ये और इनकी wife, family welfare के नाम पर नचवाने के लिए मजबूर कर देते हैं, नहीं नाचती है तो हम सैनिकों को परेशान करते रहते हैं. फिर कहते हैं कि हम आपकी wife को सोशल बना रहे हैं. मेरी wife ने कई बार इसकी शिकायत की मुझ से, लेकिन मैं चुप रहा. मैं कहता हूँ कि जब मुझे नहीं जरूरत कि मेरी वाइफ नाचे, तो तुम कौन होते हो नचाने और सोशल बनाने वाले ???
‘‘(क्या ये सही है…आप ही कहो)
‘‘5. अगर एक आॅफिसर को गोली लगती है आॅपरेशन के दौरान तो वहां तुरंत हेलीकॉप्टर पहुंच जाता है, लेकिन अगर एक सिपाही को गोली लगती है तो 2.5 ton के पीछे डाल देते हैं, जिस कारण नजदीकी मेडिकल सेंटर तक पहुंचते-पहुंचते उसकी मौत हो जाती है.
‘‘6. किसी यूनिट का अगर कोई जवान जैसे आज किसी आॅपरेशन में मर जाता है तो पूरे जवान उस दिन खाना नहीं खा पाते लेकिन अगर आॅफिसर मैस में पहले से उस दिन पार्टी का आयोजन होना होता है तो, वो होता ही है. कहते हैं हमारे लिए जवान मरा, कुत्ता मरा, बात बराबर है.
‘‘ऐसी सोच के लिए आप क्या कहेंगे ???
‘‘7. यहाँ तक कि अगर एक आॅफिसर और एक जवान को एक जैसा बुखार या बिमारी हो तो MH में दवाईयों में भी फर्क होता है. आॅफिसर को दो दिन में ठीक कर वापस भेज देते हैं जबकि जवान को 10 दिन तक MH में पडाये रखते हैं, experiment करते रहते हैं.
‘‘8. अगर किसी आफिसर की family members में किसी को खुन कि जरूरत होती है तो ये जवानों का blood group मैच कर उसको by force खुन देने के लिए भिजवाते हैं, चाहे उस जवान की इच्छा हो या ना हो. और डाक्टर खुन को खुन, जवानों का प्लाज्मा तक निकाल देते हैं.
‘‘9. RR hospital Delhi … जहाँ एक सैनिक को तब मेडिकल ग्राउंड में रेफर किया जाता है. जब उसकी बीमारी नयी या unknown हो. लेकिन वहाँ जा कर बेचारे सैनिक का इलाज कम, नये नये टेस्ट किये जाते हैं, नये नौसिखिया डाॅक्टरों को प्रेक्टीकल के रूप में जवानों की body, object के रूप में दी जाती है क्योंकि अगर मर भी गया तो उसके घर वालों को 20-25 लाख पकड़ा कर चुप करवा देंगे…. मैं तो कहता हूँ कि अगर कोई सैनिक मिलिट्री डाॅक्टर के इलाज के दौरान मरता है तो उस सैनिक का पोस्टमार्टम फिर से उस सैनिक के घर वालों को कराना चाहिए, ताकि ये पता चल सके कि कहीं सैनिक के शरीर के साथ फालतू छेड़छाड़ तो नहीं हुई, जिस कारण उसकी मौत हुई हो.
‘‘10. सेना में 60 दिन सालाना अवकाश और 30 दिन अकाससमिक अवकाश का प्रबंध है लेकिन एक युनिट के अंदर सैनिकों की कम मौजूदगी के कारण ये अवकाश मात्र 60 दिन ही मिल पाता है क्योंकि युनिट के आधे सैनिक तो सेवा पर तैनात आॅफिसर और सेवानिवृत आॅफिसर के सहायक (नौकर), कुत्ते घुमाने, इनके मां-बाप की सेवा करने, बीवी के अंडरगारमेंट धोने पर लगे होते हैं. अगर सिपाही ये सब करने से मना करे तो उसके लिए शाररिक, मानसिक और फाइनेंशल दंड तुरंत लगवा देते हैं, साथ में और भी कई आर्मी एक्ट. सिपाही बेचारा गरीब घर का, बुड्ढे मां-बाप, बीवी-बच्चों का बोझ लिए चुपचाप सहता आ रहा है ये सब क्योंकि उसके पास सिर्फ यही नौकरी है. लेकिन आज जब तेज बहादुर यादव ने मंगल पांडे बनने का फैसला ले ही लिया है तो हम भी क्यों सच्चाई को दबाते रहें. देश को और साथ-साथ हमारे घरवालों को भी पता चले कि हम पर क्या बीत रही है !!!
‘‘11. जब एक आॅफिसर और एक जवान दोनों ही मिलिट्री में सेवा दे रहे हैं तो आॅफिसर की मिलिट्री सर्विस-पे 6400 और जवान की 2000 क्यों ?… हैं तो दोनों सैनिक ही … ये भेदभाव क्यों ???
‘‘12. सेना एक पिरामिड की तरह है, जिसमें सैनिक नींव की ईंट है और जरनल सर्वोच्च भाग. अगर सैनिक (नींव) में प्रोब्लम आने लगेगी तो पूरी बिल्डिंग गिरने पर मजबूर हो जायेगी, और हम सिपाही नहीं चाहते थे कि ऐसा हो, जिस कारण हम चुप बैठे थे लेकिन अब सह पाना मुश्किल सा लगता है.
‘‘13. LOC पर एक कंमाडिंग आॅफिसर अपने ACR (ANNUAL CONFIDENTIAL REPORT) में अपने अच्छे point के लिए 4 आतंकियों के बदले अपने एक जवान को मरवा देता है लेकिन बेचारे के घरवालों को लगता है, उनका बेटा शहीद हुआ है.
‘‘14. हम सैनिकों को उतना डर आतंकियों से नहीं लगता जितना कि आॅफिसर का खौफ होता है. न जाने कौन-सी बात पर कौन-सा एक्ट लगा दें !!!
‘‘15. अंत में मैं यही कहना चाहता हूं कि सेना के system में बदलाव होना चाहिए, क्योंकि ना हम इन आॅफिसर्स के लिए नौकरी कर रहे हैं, ना ये हमारे लिए नौकरी कर रहे हैं, हम-सब को मिलकर इस देश के लिए नौकरी करनी चाहिए लेकिन ये तब ही संभव होगा जब सेना से ये भेदभाव मिटेगा, आॅफिसरशाही, तानाशाही मिटेगी … सरकार से दरख्वास्त है कि कृपा कर के वोट-बैंक से ऊपर आ कर सोचें !! देश के जवानों के बारे में सोचें !!!
‘‘16. हम जवान अगर किसी कारण वस छुट्टी से 1-2 घंटा लेट हो जाते हैं तो हमारे लिए बिना सोचे समझे क्वाटर गार्ड तैयार मिलता है. जबकि एक जवान सीमित समय में छुट्टी खत्म होने पर लगभग 1200-1300 किमी ट्रेन से यात्रा करते हैं, और कभी-कभी ट्रेन लेट हो जाती है, फिर कहते हैं यहाँ मुहर लगवाओ, वहाँ मुहर लगवाओ.
‘‘बहुत सी और भी खतरनाक और खौफनाक कमियां हैं सेना में … विस्तार करने पर पूरा दिन लग जायेगा, मैं मीडिया चैनल, न्यूज चैनल से दरख्वास्त करता हूं कि बात-विवाद के लिए न्यूज बाॅक्स में सेना के आॅफिसर्स को नहीं बल्कि एक सिपाही को बैठा कर पूछें लेकिन याद रहे उस सिपाही को पहले से ही इनके द्वारा हरासमेंट ना कर दिया गया हो कि ‘अगर तुने कुछ और कहा तो देख लेना”.
अपने पूर्ववर्ती के हश्र से भयभीत ये सैनिक आगे लिखते हैं, ‘‘दोस्तों मेरे द्वारा लिखा ये सच आप ज्यादा से ज्यादा शेयर कर सकते हैं लेकिन कृपा कर मेरा नाम मत लेना. मेरे भी छोटे छोटे बच्चे हैं, जिनके लिए मुझे नौकरी तो करनी ही पड़ेगी, सहना तो पडे़गा … पर ना जाने कब तक सह सकुंगा … लेकिन कृपया इस मैसेज को जहां तक पहुंचना चाहिए वहां तक जरूर पहुंचा दिजियेगा’’
अन्त में, उक्त सैनिक देश के लिए ‘‘धन्यवाद’’ और ‘‘जय हिंद’’ का सलाम पेश करते हुए अपनी बात खत्म करते हैं.
अगर हमारे देश के सेना की ये यर्थाथ हालत है तो सचमुच यह बहुत ही गंभीर मामला है. इस मुद्दे पर सरकार को अपना ध्यान अवश्य देना चाहिए.
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आखिर एक डरी हुई सेना के सहारे कितनी डिंगे हांकी जा सकती है
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