लगभग पुरी दुनियां घुमने के बाद इस्लाम के बारे जो मेरी राय बनी है उस पर मुहर लगा दिया अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय में हुये इस शोध ने.
इस्लामी शिक्षाओं पर अमल करने में पश्चिमी देश सबसे आगे, सऊदी अरब 131वें स्थान पर.
जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हुसैन अस्करी के नेतृत्व में ‘कितने इस्लामी हैं इस्लामिक देश’ नामक शोध हुआ, जिसके निष्कर्ष से यह मालूम होता है कि जो देश अपने दैनिक जीवन में इस्लामी सिद्धांतों को अपनाये हुए हैं, उनमें से अधिकतर परम्परागत दृष्टि से मुस्लिम नहीं हैं. जिस देश के लोग सबसे ज्यादा इस्लामी सिद्धांत पर चलते हैं वे वरीयता क्रम में इस प्रकार से हैं- न्यूजीलैंड, लक्जमबर्ग, आयरलैंड, आइसलैंड, फिनलैंड, डेनमार्क और कनाडा। शोध के अनुसार इस्लामी सिद्धांत अपनाने वाले पहले 65 देशों में केवल तीन मुस्लिम देश हैं- मलेशिया (38 वां स्थान), कुवैत (48 वां स्थान) और बहरीन (64 वां स्थान). सबसे हैरत की बात यह है कि मुस्लिम राजनीति व धर्म के स्वयंभू ठेकेदारी करने वाला सऊदी अरब इस सूची में 131 वें स्थान पर है.
‘ग्लोबल इकॉनमी जर्नल’ में प्रकाशित यह शोध शायद अधिकतर मुस्लिमों को पसंद न आये, लेकिन अगर वह अपने इर्दगिर्द देखें तो स्थिति की वास्तविकता समझ में आ जायेगी कि अध्ययन के निष्कर्ष सही व सच्चे हैं. मुस्लिम सिर्फ रोजा, नमाज, पर्दा, दाढ़ी आदि में ही व्यस्त हैं. वह कुरआन को पढ़ते तो हैं, लेकिन उसे समझते नहीं. इसलिए इस्लाम के सिद्धांतों, नियमों व आदेशों का पालन नहीं करते. एक चीनी व्यापारी ने शोधकर्ताओं को बताया, “मुस्लिम व्यापारी मेरे पास आते हैं और मुझसे अपने सामान पर फर्जी अंतर्राष्ट्रीय लेबल व ब्रांड्स लगाने को कहते हैं. जब मैं उन्हें खाने के लिए आमंत्रित करता हूं तो वह फूड हलाल नहीं है कहकर इंकार कर देते हैं. तो क्या उनके लिए नकली माल बेचना हलाल है ?”
एक जापानी मुस्लिम ने शोधकर्ताओं से कहा, “मैंने पश्चिम की यात्रा की और गैर-मुस्लिमों के दैनिक जीवन में इस्लाम को प्रैक्टिस में देखा. मैंने पूर्व की यात्रा की, इस्लाम को देखा लेकिन किसी मुस्लिम को नहीं देखा. मैं अल्लाह का शुक्रगुजार हूं कि मैं मुस्लिमों को जानने व उनकी हरकतों को देखने से पहले वास्तविक इस्लाम को समझ गया था.’’ दरअसल, मुस्लिमों ने इस्लाम को रोजा नमाज तक सीमित करके रख दिया है, जबकि इस्लाम जीवन व्यतीत करने का तरीका है, जिसमें दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना महत्वपूर्ण है. धार्मिक फर्ज अदा करना आपके और ईश्वर के बीच तक सीमित है, लेकिन अच्छा व्यवहार आपके और दूसरे व्यक्तियों के बीच से संबंधित है. दूसरे शब्दों में अपने दैनिक जीवन में इस्लामी सिद्धांतों को एक्शन व प्रैक्टिस में न लाने से मुस्लिम व मुस्लिम देश बदनाम हो रहे हैं, जबकि इस्लाम धर्म की बजाय इस्लामी सिद्धांतों को अपनाकर पश्चिमी देश अपने नागरिकों का जीवन खुशहाल बना रहे हैं.
- अरविन्द श्रीवास्तव
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