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आसन्न पराजय की डर से छटपटाता तानाशाह

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आसन्न पराजय की डर से छटपटाता तानाशाह

क्योंकि बकौल पुलिस, संबित पात्रा- आर एस एस , अर्णब गोस्वामी-सुधीर चौधरी-अंजना ओम कश्यप मामला प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का है, इसकी जांच तो होगी ही और ‘सच’ सामने आएगा.

इस अत्यंत संवेदनशील मामले में ‘सच्चाई’ उजागर करने के प्रति मोदी सरकार कितनी गंभीर है, बानगी देखिये–1जनवरी को FIR हुई, 6 महीने बाद जून में 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया और दावा किया गया कि प्रधानमंत्री की हत्या के प्लाट की ओर इशारा करने वाला दस्तावेज मिला है, फिर 3 महीने के लंबे अंतराल के बाद अब 5 साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है !

प्रधानमंत्री की हत्या के संभावित साजिशकर्ताओं की गिरफ़्तारी में इतना विलम्ब ? वे बाहर थे, कोई अनहोनी घट जाती तो कौन जिम्मेदार होता ? इतनी धीमी जांच, आखिर यह किसकी साजिश है ???

बहरहाल, क्या देश अब यह उम्मीद कर सकता है कि जल्द से जल्द ‘सच’ को उजागर करके इस मामले का पटाक्षेप कर दिया जायेगा अथवा अन्य ऐसे ही मामलों की तरह इसे ‘ज़िंदा’ रखा जायेगा ताकि चुनाव तक काम आये ??

याद आता है, आपातकाल के बाद जब हम लोग इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पहुंचे तो हिंदी के प्रख्यात समालोचक प्रो0 रघुवंशजी को देख कर दंग रह गए, जो दोनों हाथों से विकलांग थे और इमरजेंसी में जेल में बंद किये गए थे- इस आरोप में कि वह इंदिरा गांधी की सत्ता को अस्थिर करने के लिए खंभे पर चढ़ कर तार काट रहे थे !!!

आजमगढ़ के तब के विख्यात वेस्ली इंटर कालेज में मेरे हाई स्कूल के सबसे प्रिय विज्ञान-गणित अध्यापक श्री विपिन बिहारी श्रीवास्तव, जिन्हें मैं अपने जीवन में मिला सबसे आदर्श अध्यापक मानता हूंं, इसलिए जेल में डाले गए थे कि वे इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने की साजिश कर रहे थे (संभवतः CIA के इशारे पर !) !!!

सुधा से कभी मुलाकात का संयोग तो नहीं हुआ, लेकिन वे छात्र जीवन से ही IIT, Kanpur के दोस्तों के माध्यम से हमारे बीच चर्चा का विषय रहती थीं – बेशक वे हमारी पीढ़ी की, (संभवतः हमारे बैच की भी), सबसे मेधावी और सबसे आदर्शवादी छात्रों में थीं, जिन्होंने अपने कैरियर को लात मारकर जनसेवा का मार्ग चुना और हमारे समाज के आखिरी पायदान पर खड़े आदिवासी समाज के जीवन में बदलाव तथा मानवाधिकारों के लिए अपने को समर्पित कर दिया.

डा. आनंद तेलतुंबड़े (Incidentally, डा. आंबेडकर के वंशज ), जो निर्विवाद रूप से देश के सबसे प्रखर दलित बुद्धिजीवियों में हैं तथा गौतमजी जो गंभीर बुद्धिजीवी तथा लोकतांत्रिक अधिकार आंदोलन के नेता हैं, वरवर राव, जो सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि व लेखक हैं आदि के खिलाफ लगाये गए आरोपों ने इंदिरा राज में प्रो. रघुवंश जैसों पर लगे आरोपों की याद ताजा कर दी है.

यह अनायास नहीं कि चर्चित इतिहासकार प्रो. राम चंद्र गुहा जैसे लोग तक जो माओवाद छोड़िए लेनिन-मार्क्स के विचारों के भी धुर विरोधी हैं, आज इन गिरफ्तारियों के खिलाफ खड़े हैं.

ये गिरफ्तारियां लोकतंत्र के पक्ष में, आम जनता – किसानों, नौजवानों, महिलाओं, आदिवासियों-दलितों-कमजोर तबकों के पक्ष में खड़े हर शख्स को डरा देने के लिए है !

ये गिरफ्तारियां मोदी के अखंड कारपोरेट राज की निर्बाध लूट के खिलाफ खड़ी हर आवाज को डरा देने के लिए हैं !!

ये गिरफ्तारियां कथित आज़ादी गैंग-अर्बन नक्सल के ‘राष्ट्रविरोधी’ nexus का हौआ खड़ा करके पूरे देश को डराकर, बचाने वाले इकलौते ‘मसीहा’ की शरण में ठेलने का खेल है !!!

ये गिरफ्तारियां 2019 का एजेंडा सेट करने के लिए आखिरी ब्रह्मास्त्र हैं, क्योंकि और कोई तीर काम आता नहीं दिख रहा- न मंदिर, न ओबीसी आरक्षण-विभाजन, न असम का NRC, न पाकिस्तान उन्माद, न एक देश – एक चुनाव, न तीन तलाक !

दरअसल, गिरफ्तारियों से पैदा की जा रही यह सनसनी-यह उन्माद आखिरी desperate attempt है अपनी विराट विफलताओं से उबलते जन आक्रोश को दिग्भ्रमित करने का !

क्योंकि तानाशाह डर गया है- अपनी आसन्न पराजय की आहट से, इसलिए वह सबको डराकर अपने समर्थन के लिए ब्लैकमेल का खेल खेल रहा है !!!

यह वक्त है अंतिम निर्णायक चोट का !!!!!!!!

– लाल बहादुर सिंह के पोस्ट से

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